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ज्योतिष में, लग्न की स्थिति व्यक्ति के लिए बेहद महत्व रखती है. लग्न का असर जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य पर भी अपना विशेष असर डालता है. लग्न आपके सेहत, आपके विचारों आपकी काम करने की इच्छा, आप क्या सोच रहे हैं कैसे
जीवन में धन की स्थिति को लेकर हर कोई किसी न किसी रुप में प्रयासरत देखा जा सकता है. आर्थिक प्रगति की इच्छा सभी के भीतर मौजूद रहती है. लेकिन हर कोई एक जैसी स्थिति को नहीं पाता है. कहीं धन की कमी इतनी बनी रहती है कि
कुंडली में मौजूद आपके लिए शुभ है या अशुभ इस बात को जानने के लिए जरुरी है की, इसके द्वारा मिलने वाले प्रभावों को समझ लिया जाए. शुक्र के कारक तत्वों की प्राप्ति जीवन में किस रुप में होती है उसके द्वारा इस बात को जान पाना
ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह की स्थिति अत्यंत ही विशिष्ट मानी गई है. शनि हमारे जीवन के अधिकांश भाग पर अपने असर दिखाता है. अन्य सभी ग्रहों से अधिक शनि का प्रभाव हम सभी के जीवन पर अधिक पड़ता है. शनि की दशा हो या उसकी
धनार्जन से जुड़े कई कार्य जीवन में दिखाई देते हैं लेकिन जब बात आती है अचानक से मिलने वाली सफलता तो उसमें शेयर बाजार का नाम सबसे आगे रहता है. बड़े रिस्क से जुड़ी मार्किट का विश्लेषण करें तो इसमें ज्योतिष अनुसार इसमें
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की इच्छा किसी छात्र के मन में बहुत अधिक देखने को मिल सकती है तो कई बार हम अपने करियर को बेहतर बनाए के लिए भी उच्च शिक्षा की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. आप अपने जीवन में शिक्षा का
ज्योतिष के अनुसार कई ऎसे योग हैं, जिनके अनुसार व्यक्ति की संतती के बारे में जाना जा सकता है. शादी के बाद किसी भी व्यक्ति के जीवन में वंश वृद्धि का प्रयास बना रहता है. कई दंपतियों को समय पर अपनी संतान का सुख मिल जाता है
ज्योतिष में बुध की स्थिति हमारे संचार, बुद्धि और अनुकूलन क्षमता के लिए बहुत विशेष होती है. संचार और मानसिक कौशल पर इसका बेहतरीन नियंत्रण होता है. बुध व्यक्ति के सोचने और काम करने की प्रवृत्ति को गहराई से प्रभावित करने
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति बहुत असर दिखाती है. सभी ग्रह कुंडली में अपनी अपनी स्थिति के अनुसार परिणाम दिखाते हैं. कुछ ग्रह कुंडली में शुभ ग्रह दिखाते हैं तो कुछ ग्रह खराब फल देते हैं. वहीं कुछ ग्रह अपनी अवस्था के
दान करने के लिए प्रत्येक ग्रह से जुड़ी चीजों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है. यदि ग्रह की शांति के लिए दान करना शुभ है तो कई बार दान की स्थिति नकारात्मक फलों को भी देने वाली हो जाती है. इसके लिए जरूरी है की समझा जाए कि दान
कन्या लग्न के प्रभाव से व्यक्ति में संघर्षों से लड़ने की क्षमता होती है. यह राशि पृथ्वी तत्व की राशि मानी जाती है इसलिए यह परिस्थिति से उबरने में सक्षम होती है. बुध इसके लग्न का स्वामी होता है. बुध बौद्धिक क्षमता का
बुध के साथ चंद्रमा की युति दो शुभ ग्रहों की युति का योग होती है. चंद्रमा और बुध दोनों को ही ज्योतिष शास्त्र में शुभ ग्रहों के रुप में देखा जाता है. इसके अलावा इन दोनों ग्रहों का आपसी संबंध भी बहुत विशिष्ट माना गया है.
शुक्र के सिंह राशि में प्रवेश के साथ ही कई तरह के बदलाव सभी को दिखाई देंगे. सिंह राशि में शुक्र का प्रवेश नई संभावनाओं को देने वाला होगा. जिस समय शुक्र सिंह राशि में गोचर करेगा उस समय एक प्रकार की सौम्यता की कमी दिखाई
ज्योतिष शास्त्र आपको आपके भावी पति-पत्नी के स्वभाव और विशेषताओं को देखने में मदद करता है और यह आपको यह जानने में भी मदद करता है कि आपका अपने पति या पत्नी के साथ किस प्रकार का संबंध होगा. ज्योतिष शास्त्र के पास कुंडली से
अंकों के द्वारा जाने अपनी सेहत का राज जिस प्रकार ज्योतिष स्वास्थ्य और रोग के प्रति विस्तृत व्याख्या देता है उसी प्रकार अंक ज्योतिष भी सेहत से जुड़े मसलों पर अपना विचार अभिव्यक्त करने में सक्षम होता है. प्रत्येक अंक के
ज्योतिष एक बेहद विस्तृत विषय है जिसके अंदर अनेकों प्रकार की विद्याएं मौजूद होती हैं. इन सभी के मध्य कुछ संबंध भी देखने को मिल सकता है. इसमें अंक ज्योतिष का असर भी देखने को मिलता है. अंक ज्योतिष और वैदिक ज्योतिष के मध्य
कुंडली में अस्त ग्रह की स्थिति कई मायनों में असर दिखाती है. अस्त अगर शुभ ग्रह हुआ है तो उसके फल पाप ग्रह के अस्त होने से विपरित होंगे. अस्त ग्रह सामान्य रह सकता है तो कहीं वह विद्रोह की स्थिति को भी दिखाता है. अपने
सिंह लग्न के लिए सभी ग्रहों की स्थिति कुछ शुभ और कुछ कठोर बनती है. ग्रह जिस भाव के स्वामी होते हैं और जैसी स्थिति में होते हैं उसी के अनुरुप अपना असर दिखाते हैं. सिंह लग्न महत्वाकांक्षी, साहसी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले,
राहु के साथ चंद्रमा का प्रभाव विभिन्न फल प्रदान करने वाला होता है. इसका असर गहराई से पड़ता है. राहु एक पाप ग्रह है चंद्रमा एक शुभ ग्रह है. ग्रह के साथ का प्रभाव मिलकर कई तरह से अपना असर दिखाने वाला होता है. जन्म कुंडली
चंद्रमा और शुक्र दो जलीय ग्रह है लेकिन मंगल अग्नि तत्व युक्त ग्रह है. चंद्र शुक्र स्त्रैण ऊर्जाएं हैं और मंगल पौरुष ऊर्जा है. यह तीनों जब एक साथ होते हैं तो असरदायक रुप से प्रभावित करते हैं. शक्तिशाली, उग्र और गर्म ग्रह
अष्टकवर्ग में त्रिकोण शोधन एक महत्वपूर्ण शोधन होता है. यह ग्रह की स्थिति एवं उसकी क्षमता को दर्शाता है. अष्टकवर्ग के सिद्धांतों का सही प्रकार से उपयोग करने के बाद कुण्डली की विवेचना करने में ओर उसके परिणाम समझने में
कर्क लग्न को एक अत्यंत ही शुभ लग्न के रुप में जाना जाता है. यह चंद्रमा के स्वामित्व की राशि का लग्न होता है. इस पर चंद्रमा के गुणों के साथ राशि गुणों का भी गहरा असर देखने को मिलता है. कर्क लग्न में ग्रहों की दशाओं का
प्रश्न कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति संतान सुख प्राप्त कर पाएगा या नहीं. कुंडली में बनने वाले योग कुछ वैदिक नियमों और सिद्धांतों पर आधारित होते हैं. इस लेख में हम कुछ उदाहरणों के
मिथुन लग्न वालों के लिए सभी ग्रह अलग अलग रुप से अपनी दशा और अपना असर दिखाते हैं. इन लग्न के व्यक्तियों को शुक्र, बुध और चंद्र की दशा में अच्छे और अनुकूल परिणाम मिल सकते हैं लेकिन मंगल और गुरु की दशाएं बहुत अधिक
करियर ज्योतिष एक बेहद की उपयोगी और सहायक बन सकता है उन सभी के लिए जो अपने काम को लेकर कई तरह की दुविधाओं में फंसे होते हैं. ज्योतिष में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक अच्छा करियर पाने के लिए करियर ज्योतिष
विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं. शनि महादशा की अवधि 20 वर्ष होती है. शनि की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशाएं भी होती हैं, जो व्यक्ति पर मिश्रित प्रभाव
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा का महत्व बहुत ही व्यापक रुप से माना गया है. यह मन, भावना, संवेदनशीलता को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला ग्रह है. सूर्य के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रह चंद्रमा माना जाता है. यह दोनों कुंडली की
करियर किसी भी क्षेत्र में हो उसमें सफलता की चाह ओर एक अच्छी प्रगत्ति को पाने का संघर्ष सभी के द्वारा जारी रहता है. ऎसे में कौन सा करियर विकल्प रुचियों के अनुरूप हो और उसमें सफलता का प्रयास भी सकारात्मक रुप से मिल पाए
कुंडली में जब भविष्यफल का फल जानना हो तो उस समय पर जो भाव अधिक सक्रिय होता है उसके जीवन में वह समय अधिक संघर्ष या सफलता की स्थिति को दर्शाता है. ऎसे में कुंडली का विश्लेषण किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को
वक्री ग्रहों का संबंध पूर्व जन्म की या कहें प्रारब्ध की अवधारणा के साथ बहुत अधिक जुड़ा हुआ माना गया है. ज्योतिषियों के लिए इस ग्रहों के लिए यह खगोलीय घटना का अर्थ है कि ग्रह का संबंध आपके पूर्व जन्म के साथ भी काफी गहराई
कुंभ लग्न जो अपने आप में एक व्यापक और विस्तृत रुप से सामने आता है. कुंभ लग्न शनि के प्रभाव का लग्न है यह लग्न जीवन के लाभ क्षेत्र पर विशेष असर दिखाने वाली होती है. मस्तमौला और गहरी विचारधारा सोच को लेकर इसकी अलग ही दिशा
कारकांश आत्मकारक और नवमांश का आपसी संबंध दर्शाता है. इस कुंडली की मजबूती और नवांश की शक्ति के आपसी संबंध की भी व्याख्या करने वाला होता है. कारकांश D9 में वह राशि है जहां D1 का आत्मकारक ग्रह स्थित है, जिस प्रकार नवांश
मीन लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव मीन लग्न को एक शुभ, कोमल उदार लग्न के रुप में जाना जाता है. मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति होता है जो ज्ञान का सूचक है. इस लग्न में जन्मे व्यक्ति का व्यवहार एवं गुणों पर मीन राशि के गुण और
मेष लग्न के लिए बुध ग्रह की महादशा कैसे परिणाम देगी इस तथ्य पर कुंडली में बुध के भाव अधिग्रह के साथ बुध के भाव स्थान की महत्ता विशेष होती है. जिसका अर्थ हुआ की मेष लग्न के लिए बुध किन भावों का स्वामी होता है और बुध
महादशा में अन्य ग्रहों की दशाओं का आना अंतरदशा प्रत्यंतरदशा रुप में होता है. दशाओं का प्रभाव सूक्ष्म रुप में पड़ता है. हर दशा का असर अपने भव स्वामित्व ग्रह स्थिति के आधार पर ही होता है. सूर्य की महादशा का प्रभाव व्यक्ति
जब दो ग्रह एक ही राशि के अंतर्गत युति योग बनाते हैं, तो कुंडली में कई तरह के फलों का मिलाजुला फल मिलता है. यह सफलता और कठिनाई दोनों को दिखाने वाला भी हो सकता है. भाग्य पर इस तरह के शनि शुक्र योग का गहरा असर भी देखने को
राहु एक ऎसा छाया ग्रह है जो अपनी शक्ति के द्वारा किसी भी ग्रह को प्रभावित कर पाने में सक्षम होता है. यह एक ऎसा ग्रह है जिसका असर व्यक्ति के जीवन में उन घटनाओं को लाने के लिए जिम्मेदार होता है जिनके होने पर जीवन में हर
ज्योतिष अनुसार स्वास्थ्य के विषय में कई तरह के मुद्दों को समझ पाना संभव होता है. यदि सेहत अच्छी हो तो व्यक्ति एक लम्बी आयु का सुख अच्छे स्वास्थ्य के रुप में देख पाता है. स्वास्थ्य ही धन है, अच्छे स्वास्थ्य के बिना, कुछ
जैमिनी ज्योतिष अनुसार आत्मकारक ग्रह कुंडली में का विशेष ग्रह होता है जो अपने प्रभाव द्वारा कुण्डली के फलों को बदल देने में काफी सक्षम होता है. आत्मकारक ग्रह एक प्रकार से कुंडली में सभी ग्रहों को अपने द्वारा प्रभावित
शुक्र ग्रह का असर जीवन में कई तरह की भिन्नताओं को दिखाने वाला होता है. शुक्र पर एक बहुत अलग लेकिन व्यावहारिक परिभाषा तब अधिक सप्ष्ट होती है जब ग्रह अपने प्रभावों को दिखाने में सक्षम होता है. शुक्र की स्थिति पर विचार
बुध को वैश्य वर्ग का माना गया है, अर्थात व्यापार से संबंधित ग्रह के रुप में बुध को विशेष रुप से देखा जाता है. बुध की स्थिति कुंडली में एक अच्छे वाणिज्य को दर्शाने वाली होती है. बुध एक ऎसा ग्रह है जो बिड़ पर अपना गहरा
आत्मकारक ग्रह जीवन में इच्छाओं के साथ आकांक्षा को दर्शाता है. यह ग्रह मुख्य ग्रह है जिसके माध्यम से कुंडली के अन्य ग्रहों के बल का आंकलन किया जाता है. यदि आत्मकारक कमजोर या पीड़ित है, तो जीवन में गलत निर्णय अधिक हो सकते
शनि का प्रभाव प्रत्येक लग्न के लिए विशेष होता है. किसी लग्न में शनि बेहद खराब हैं तो किसी के लिए बेहद उत्तम होते हैं वहीं किसी के लिए सम भाव के साथ दिखाइ देते हैं. अब शनि हम पर कैसा असर डालता है वह कई बातों के आधार से
मंगल और केतु यह दोनों ही ग्रह काफी क्रूर माने जाते हैं. इन दोनों का असर जब एक साथ कुंडली में बनता है तो यह काफी गंभीर ओर नकारात्मक प्रभाव देने वाला माना गया है. इन दोनों ग्रहों की प्रकृति का स्वरुप ऎसा है की यह तोड़फोड़
मेष लग्न के लिए शनि की महादशा का समय कार्यक्षेत्र एवं महत्वाकांक्षाओं की स्थिति को प्रभावित करने वाला होता है. मेष लग्न का स्वामी मंगल है और शनि इस लग्न के लिए दशम भाव के साथ एकादश भाव का स्वामी बनता है. अब इन दो
जीवन में रिश्तों को लेकर हर व्यक्ति काफी अधिक भावनात्मक होता है. अपने जीवन में वह रिश्तों की स्थिति को अच्छे से निभाने की हर संभव कोशिश करते हैं लेकिन कई बार असफल होते चले जाते हैं. कई बार जीवन में ऎसे भी क्षण आते हैं
छठे भाव में सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं पर विजय दिलाएगा. आप अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ विलय करेंगे और सौहार्दपूर्ण तरीके से एक साथ काम करेंगे. छठे भाव में स्थित सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं
ज्योतिष में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है, यह हमारे स्वयं को, हमारी समग्र ऊर्जा और हमारे व्यापक अस्तित्व को व्यक्त करने के तरीके को प्रभावित करता है. जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है, तो यह सूर्य नहीं है जो
सूर्य का चतुर्थ भाव में होना, मिले-जुले फल मिलते हैं जिसमें आप को भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति तो होती है . साथ में जिम्मेदारियों को भी आप अवश्य पाते हैं. चतुर्थ भाव में सूर्य व्यक्ति को अपने परिवार से जुड़ा हुआ पाता
ज्योतिष के अनुसार शुक्र और शनि की युति सभी लाभ देती है और यह युति अनुकूल मानी जाती है. शुक्र और शनि की युति के मध्य में कुछ द्वंद भी देखने को मिल सकता है. यहां विचारों एवं इनकी ऊर्जाओं में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती
तीसरे भाव में सूर्य का होना प्रबलता का सूचक होता है यह सुखद स्थिति कहीं जा सकती है. एक नियम के रूप में, तीसरे भाव में सूर्य वाले लोग बहिर्मुखी होते हैं, लेकिन इनका अंतर्मन इतना प्रबल होता है की इनके भीतर को जान पाना
सूर्य की स्थिति का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में बेहद उपयोगी माना गया है. जन्म कुंडली में दूसरे भाव का प्रभाव और यहां सूर्य की स्थिति का होना बहुत अच्छे प्रभाव देने वाला होता है. जन्म कुंडली के दूसरे भाव का सूर्य
सूर्य जब पहले भाव में होता है तो यह एक अत्यंत विशिष्ट स्थान और असर के लिए जाना जाता है. लग्न में सूर्य का होना व्यक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण स्थिति होती है. लग्न एक ऎसा स्थान है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है.
सूर्य ग्रह आत्मा का प्रतीक है और शुक्र सौंदर्य एवं भोग का. इन दोनों ग्रहों का संबंध जीवन के कई पड़ावों पर अपना असर दिखाता है. एक अग्नि तत्व ग्रह है और दूसरा जल तत्व से भरपूर अब इन का प्रभाव एक साथ होता है तो उसके कारण
ज्योतिष में अंगारक योग को एक अशुभ पयोग के रुप में जाना जाता है. अंगारक योग एक बहुत ही कष्टदायक योग है, यदि कुंडली में राहु या केतु का मंगल से संबंध किसी भी एक भाव में स्थापित हो जाते हैं तो इस योग का निर्माण बना रह जाता
जब बात होती है केतु की तो यह एक काफी संदेह और चिंता को दर्शाता है. इस ग्रह का प्रभाव काफी विशेष है. ग्रहों की दिशा का प्रभाव कुछ मायनों में काफी विशेष होता है. किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु की उपस्थिति अकेले हो या फिर
राहु का असर मीन लग्न में होना एक बेहद गंभीर एवं तेजी से होने वाले बदलावों का प्रतिनिधित्व करता है. राहु की स्थिति व्यक्ति को उन चीजों से जोड़ती है जो सीमाओं से परे की बात करती है और बृहस्पति के स्वामित्व की राशि मीन
ज्योतिष के कुछ खराब योगों में श्रापित दोष का विशेष महत्व होता है. श्रापित योग का असर किसी व्यक्ति के पिछले जन्मों का प्रभाव दिखाता है, इसे एक अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. यह एक भाव में शनि और राहु के मिलन के साथ एक
केतु को छाया ग्रह के रुप में जाना जाता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार, केतु दक्षिण नोड है जिसे चंद्रमा के कटान बिंदू के रुप में भी जानते हैं. राहु अपने रहस्यमय और आक्रामक गुणों के लिए जाना जाता है. इसमें छिपे हुए गुण भी
मंगल का आर्द्रा नक्षत्र में जाना दो शक्तिशाली तत्वों का एक साथ होने का योग बनता है. आर्द्रा नक्षत्र में मौजूद होने के कारण मंगल व्यक्ति को कड़ी मेहनत करके लाभ प्राप्त करने की शक्ति, देता है. आर्द्रा नक्षत्र परिवर्तन और
कुंडली में शुक्र और राहु ग्रहों की युति बहुत ही अलग प्रकार के फल देती है. इन दोनों को रिश्तों पर असर डालने वाला योग माना गया है. इन दोनों के कारण व्यक्ति के प्रेम संबंध और वैवाहिक जीवन के सुख पर भी असर देखने को मिलता
सभी 12 लग्नों के लिए बुध की दशा अच्छे और बुरे हर प्रकार के असर दिखाती है, लेकिन इस अच्छे और खराब की स्थिति का प्रभाव किस तरह से मिलागा उसका संबंध बुध की लग्न के साथ शुभता और अशुभता पर निर्भर करता है. ग्रहों में बुध ग्रह
नेत्र संबंधित रोग के लिए कौन से ग्रह और योग बनते हैं कारक चिकित्सा ज्योतिष में नेत्र रोग से संबंधित कई तरह के योग मिलते हैं जो आंखों की बीमारियों के होने का संकेत देते दिखाई देते हैं. ग्रह इस तथ्य को उजागर कर सकते हैं
मंगल महादशा का प्रभाव सभी राशियों के लिए बेहद विशेष होता है, हर लग्न के लिए मंगल किसी न किसी विशेष पक्ष को दर्शाता है. मंगल की स्थिति यदि लग्न के लिए शुभ है तो वह शुभ फल प्रदान करने वाला होगा, इसके अलग यदि मंगल उस लग्न
ज्योतिष के अनुसार शुभ या अशुभ ग्रहों के विशेष योग से एक प्रकार की युति बनती है जिसे योग कहते हैं. यह योग कई तरह से देखने को मिलते हैं इसमें योग कई प्रकार के होते हैं. कुछ योग शुभ होते हैं तो कुछ अशुभ तो कई बार शुभ अशुभ
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को शक्ति और प्रभाव का कारक माना जाता है. इसकी शक्ति जहां भी मौजूद होती है वहां जीवन और प्रगति को दर्शाती है. यह आशावाद और चमक का प्रतीक है और क्रोध का भी इसकी शक्ति के समय सभी ग्रहों का तेज
बुध और सूर्य से निर्मित बुधादित्य योग एक अत्यंत शुभ योगों की श्रेणी में स्थान पाता है. बुध ग्रह एवं आदित्य अर्थात सूर्य जब दोनों ग्रह एक साथ होते हैं तो इनका योग बुधादित्य योग का कारण बनता है. कुंडली में बुधादित्य योग
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति एक पवित्र समुद्र है, जिसके कारण यह विस्तार का स्वरुप भी है. यह आध्यात्मिकता नैतिकता का आधार होता है. ज्योतिष में बृहस्पति को एक मजबूत शुभ ग्रह माना जाता है. इसे देवगुरु भी कहा जाता है. ग्रह का
शनि और मंगल को शत्रु ग्रह के रूप में जाना जाता है, इसलिए इन दोनों की कोई भी युति अच्छी नहीं मानी जाती है. यह एक कठिन स्थिति को दर्शाती है. मंगल को अग्नि तत्व युक्त ग्रह कहा जाता है. मंगल स्वभाव से बहुत हिंसक होता है और
केतु का असर ज्योतिष के दृष्टिकोण से काफी शुष्क माना गया है, जिसका अर्थ हुआ की ये ग्रह अपने प्रभाव द्वारा जीवन में कठोरता एवं वास्तविकता से रुबरु कराने वाला होता है. केतु की राशि और उसके ग्रहों के साथ युति दृष्टि योग पर
बृहस्पति एक बहुत ही शुभ ग्रह है इसकी महत्ता के बारे में जन्म कुंडली में यदि हम देखें तो यदि ये शुभ हैं तो व्यक्ति के लिए सभी काम सकारात्मक रुप से होते चले जाते हैं. किंतु यदि ये सकारात्मक नहीम है तो काम के क्षेत्र में
राहु और केतु ऎसे छाया ग्रह हैं जिन्हें बेहद चुनौतिपूर्ण फलों को देने वाला माना गया है. राहु के साथ केतु भौतिक स्वरुप वाले ग्रहों से अलग छाया ग्रह हैं. लेकिन इनकी ऊर्जा बेहद प्रभावी होती है और जिसके कई खराब प्रभाव हम देख
कुंडली में एक ग्रह के रूप में चंद्रमा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऎसा इस कारण होता है क्योंकि इसके गोचर की अवधी ओर इसका मानसिकता के साथ संबंध होना. जीवन के रोजमर्रा में होने वाले बदलावों को चंद्रमा की स्थिति से
वैदिक ज्योतिष कर्म और पुनर्जन्म के दर्शन पर आधारित है. जन्म कुंडली द्वारा व्यक्ति अपने जीवन और कर्म सिद्धांत की स्थिति को काफी गहराई के द्वारा जांच सकता है. जन्मों की इस यात्रा को समझने में ज्योतिष हमारी बहुत मदद कर
ज्योतिष अनुसार खगोलिय एवं ग्रह गोचरीय दोनों दृष्टिकोण से यह घटना क्रम काफी महत्वपूर्ण माने गए हैं. इन दोनों ग्रहों का मेल जब एक साथ होता है तो इसमें ज्ञान के विस्तार के साथ साथ कई चीजों में आगे बढ़ने के मौके मिलते हैं.
सूर्य महादशा का आगमन जब होता है, तो व्यक्ति के जीवन में काफी बदलाव का समय होता है. सूर्य दशा का प्रभाव जातक को कई तरह के जीवन में प्रभाव दिखाता है. सूर्य ग्रह का प्रभाव विशेष माना जाता है. सूर्य की स्थिति व्यक्ति को मान
इन दोनों ग्रहों का आपस में गहरा संबंध माना गया है. राहु का प्रभाव व्यक्ति को उचित अनुचित के भेद से परे को दिखाता है. शुक्र प्रेम, संबंध, विलासिता, प्रसिद्धि और धन को दर्शाता है. राहु शुक्र जब एक साथ होते हैं तो इच्छाओं
सातवें भाव में बैठा सुर्य बहुत अधिक महत्वपुर्ण प्रभाव डालने वाला माना गया है. सूर्य का असर कुंडली के सातवें घर में जाना मिलेजुले असर दिखाने वाला होता है. जब सूर्य कुण्डली के सप्तम भाव में होता है. इसका असर जीवन साथी पर
ज्योतिष शास्त्र में मानसिक विकार से संबंधित योगों का वर्णन मिलता है. ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले विकार एवं नकारात्मक सोच के पीछे ज्योतिषिय कारण बहुत असर डालते हैं. मानसिक रुप से चंद्रमा का प्रभाव बहुत
कुंडली विषण एक बहुत विस्तृत प्रक्रिया है, और कुंडली में सभी सूक्ष्म बातों को देखना होता है. इन विवरणों में शुभ और अशुभ ग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह एक कठिन काम है क्योंकि कोई ग्रह एक ही समय पर शुभ भी होगा
केतु महादशा का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है. इस दशा के समय व्यक्ति को अस्थिरता अधिक परेशान कर सकती है. जातक अपने लिए उचित एवं अनुचित के मध्य की स्थिति को समझ पाने में कुछ कमजोर रह सकता है. केतु की महादशा में व्यक्ति को
सूर्य और केतु का योग ज्योतिष अनुसार काफी महत्वपूर्ण होता है. यह योग कुंडली में जहां बनता है उस स्थान पर असर डालता है. इस योग को वैसे तो अनुकूलता की कमी को दिखाने वाला अधिक माना गया है. इस योग में मुख्य रुप से दो उर्जाओं
अंगारक योग कुंडली में मंगल और राहु के एक साथ होने पर बनता है. इस योग में केतु और सूर्य का प्रभाव भी अंगारक योग का निर्माण करता है. यह एक ज्योतिष योग है जिसे खराब योगों की श्रेणी में रखा जाता है. अंगारक योग वैदिक ज्योतिष
शनि महादशा में आने वाले अन्य ग्रहों की दशाओं का प्रभाव जीवन में कई तरह के बदलाव देने वाला होता है. शनि ग्रह को ज्योतिषीय क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली ग्रहों में से एक माना जाता है, इसका प्रभाव जीवन को बदल देने की क्षमता
मंगल ग्रह को आक्रामक, क्रियाशीलता एवं शक्ति से संबंधित होता है. मंगल ग्रह साहस, नेतृत्व और प्रभुत्व से जुड़ा है जो मुख्य रूप से हिंसा, आग से होने वाली सभी तबाही का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल क्रोध, वीरता और शक्ति है जो
ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति महादशा का समय एक शुभ दशा के रुप में देखा जाता है. बृहस्पति महादशा की अवधि सोलह वर्ष की अवधि तक रहती है.बृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है, इस दशा के समय पर जातक के जीवन में कई बड़े बदलाव भी
शुक्र की महादशा 20 वर्ष तक रहती है. यह संपूर्ण दशा चक्र में अन्य ग्रहों के बीच सबसे लंबी अवधि की दशा का प्रभाव देने वाला ग्रह है. ( Xanax ) यह अत्यधिक शुभ ग्रह है, जो सुख-सुविधाओं और भौतिकवादी लाभ को प्रदान करने वाला
मंगल महादशा सात वर्ष की दशा का प्रभाव रखती है. इस दशा समय पर व्यक्ति मंगल के प्रभाव से सबसे अधिक प्रभावित होता है. मंगल ग्रह को एक अत्यधिक शक्तिशाली और आक्रामक ग्रह माना गया है. इसकी शक्ति एवं साहस का प्रभाव किसी भी
बुध, को बुद्धि का ग्रह माना गया है, यह बोलने और वाणी के प्रभाव को दिखाता है. बुध एक शुभ ग्रह की श्रेणी में आता है इसे सामान्य रूप से सकारात्मक ग्रह माना जाता है. इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में कई रुपों से पड़ता है. बुध
सूर्य को ज्योतिष में अग्नि युक्त प्राण तत्व के रुप में माना गया है. ज्योतिष के आकाश में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है. यह जीवन को उसकी समग्र ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का अवसर देने में सक्षम होता है. चीजों को प्रभावशाली रुप
ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा का असर आत्मा और मन के अधिकार स्वरुप दिखाई देता है. किसी भी कुंडली में यदि ये दोनों ग्रह शुभस्त हों तो व्यक्ति की आत्मा और मन दोनों ही शुद्ध होते हैं. इसके अलग यदि ये दोनों ग्रह किसी प्रकार
सूर्य एक शक्तिशाली ग्रह है जो शक्ति और आत्मा के लिए कारक रुप में विराजमान है. इस महादशा में जीवन को गति मिलती है. व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है जिसके द्वारा वह अपने कार्यों को करता है. सूर्य महादशा 6 साल के लिए होती है.
ज्योतिष में शनि ओर केतु दोनों को ही पाप ग्रह की उपाधी प्राप्त है, ऎसे में जब दो पप ग्रह एक साथ होंगे तो इनका युति योग जातक के जीवन में कई तरह अपना असर डालेगा. शनि ग्रह को आदेश, कानून, अनुशासन, न्याय और रूढ़िवादी का
विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं. वैदिक ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्र महादशा का समय दस वर्ष का होता है. चंद्रमा की महादशा का पुर्ण भोग्यकाल दस साल के समय अवधि
बारहवें भाव में शुक्र क्यों माना जाता है विशेष जन्म कुंडली में बारहवें भाव में शुक्र की स्थिति की कई मायनों में अनुकूल रुप से देखा जाता है. यह अत्यधिक कल्पनाशील शक्ति लाता है. व्यक्ति को चुलबुला, मोहक और आकर्षक बनाता
ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों ग्रहों का एक बेहतर स्थान है. सूर्य ग्रह क्रूर होकर भी शुभता को दर्शाते हैं वहीं शुक को भी शुभ ग्रह माना जाता है. पर जब बात आती है इन दोनों के एक साथ होने की तब इस शुभता में कुछ कमी को देखा
नव ग्रहों का ज्योतिष शास्त्र एवं जीवन पर असर देखा जा सकता है. शनि का प्रभाव इन सभी ग्रहों के प्रभाव को कम करने अथवा प्रभावित करने में सक्षम होता है. शनि ग्रह के रूप में, लोगों की नियति में सबसे महत्वपूर्ण है. शनि ग्रह
मंगल का प्रभाव कुंडली के हर भाव में बहुत विशेष होता है. इस ग्रह की स्थिति जातक को काफी प्रभावित करने वाली होती है. मंगल जिस भी भाव में होता है वह अपने प्रभाव को अलग-अलग तरह से दिखाता है. मंगल का असर पहले घर में होना
ज्योतिष में सभी ग्रहों और राशियों का अपना महत्व होता है. वैदिक ज्योतिष में किसी भी अन्य भाव की तुलना में ग्यारहवें भाव का अधिक महत्व है. ग्यारहवां भाव स्थान राहु के लिए अच्छे परिणाम देने वाला होता है. इस आधुनिक युग में
ज्योतिष शास्त्र मे शनि का संबंध धीमी गति और लम्बे इंतजार से रहा है. शनि को एक पाप ग्रह के रुप में भी चिन्हित किया जाता रहा है. शनि को बुजुर्ग और अलगाववादी ग्रह कहा गया है. शनि मंद गति से चलने वाला ग्रह है और यह एक राशि
अन्य ग्रहों की तरह शुक्र भी व्यक्ति के निजी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह शुभ ग्रह प्रेम जीवन में सुख और आनंद प्रदान करने वाला है. शुक्र विवाह, प्रेम संबंधों और व्यभिचार का भी कारक है. व्यक्ति की जन्म कुंडली
शनि और चंद्रमा जब भी एक साथ होते है तो इनका युति योग कुछ मामलों में नकारात्मक स्थिति को ही दिखाता है. यह बहुत अनुकूल योग नहीं माना जाता है किंतु इस योग भी अपना सकारात्मक पक्ष होता है. वैसे इन दोनों ग्रहों के मध्य का भेद
शनि एक सबसे धीमी गति के ग्रह हैं. यह कर्मों के अनुरुप व्यक्ति को उसका फल प्रदान करते हैं इसलिए इन्हें न्यायकर्ता और दण्डनायक भी कहा जाता है. शनि का जीवन पर प्रभाव व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक हर तरह से प्रभावित
कुंभ राशि में बुध ग्रह का होना बहुत सी विशेषताओं को लिए होता है. कुम्भ की विशेषताओं में बुद्धि, रचनात्मकता और परिवर्तन की इच्छा शक्ति शामिल होती है. कुम्भ राशि का दुनिया पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है. यह सुधार की तलाश करने
ज्योतिष में कई तरह के योग ऎसे हैं जो जीवन में भाग्य के निर्माण के लिए बाधा का कार्य करने वाले होते हैं इन्ही में से एक अमावस्या दोष के रुप में जाना जाता है. इस दोष का प्रभाव व्यक्ति के भविष्य निर्माण में व्यवधानों का
पंचांग निर्माण में ग्रहों एवं समय गणना के आधार पर कई तरह के योग एवं कालों का विभाजन संभव हो पाता है. इस में एक विशेष काल की गणना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है जिसे राहुकाल के नाम से जाना जाता है. सामान्य रुप से राहु काल को
साढ़े साती से तात्पर्य साढ़े सात साल की अवधि से है जिसमें शनि तीन राशियों, चंद्र राशि, और एक राशि चंद्रमा से पहले और एक उसके बाद में चलता है. साढ़े साती तब शुरू होती है जब शनि जन्म चंद्र राशि से बारहवीं राशि में प्रवेश
जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह
ज्योतिष में कर्म की अवधारणा काफी गहराई से समाहित है. यह एक कठिन अवधारणा है लेकिन जब कुंडली में इसे देखते हैं, तो पाते हैं की ये जातक के कर्म एवं उससे मिलने वाले परिणामों का विशेष संबंध दर्शाती है. कुंडली का दसवां भाव
राहु की महादशा लोगों के जीवन को कई अलग-अलग तरह से प्रभावित कर सकती है. यह कुछ के लिए अच्छे तो बहुतों के लिए खराब हो सकती है. राहु दशा के फल शुभ होंगे या अशुभ, यह पूरी तरह से राहु के कुंडली में स्थिति के अनुसार तय होता
अपने करियर में जब कोई व्यक्ति चिकित्सा से जुड़े कार्य को चुनता है तो ऎसा होना उसकी कुंडली के कुछ विशेष योगों के द्वारा ही संभव हो पाता है. आज के समय में चिकित्सा के क्षेत्र में इतनी अधिक शाखाएं हैं जिन्हें लेकर कई तरह
ज्योतिष शास्त्र जन्म कुंडली का विश्लेषण में बहुत सी चीजों पर आधारित होता है. कुंडली में कुछ स्थान शुभ होते हैं तो कुछ स्थान अशुभ माने जाते हैं. शुभता एवं शुभता की कमी के कारण ग्रहों का असर काफी गहरे प्रभाव डालने वाला
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम और विलासिता का ग्रह माना गया है. जबकि पश्चिमी ज्योतिष में शुक्र को एक स्त्री के रूप में चित्रित किया जाता है. वैदिक ज्योतिष अनुसार शुक्र ग्रह का संबंध शुक्राचार्य हैं, जो दैत्यों के
सिंह लग्न के लिए दूसरा और सातवां भाव मारक भाव कहलाता है. सिंह लग्न के लिए, द्वितीय भाव में पड़ने वाली राशि कन्या और सातवें भाव में पड़ने वाली कुंभ राशि मारकेश का स्वामित्व पाती है. कन्या राशि का स्वामी बुध और कुंभ राशि
कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह और कब होता है मारक का असर कर्क लग्न के लिए यदि मारक ग्रह की बात की जाए तो कर्क लग्न के दूसरे भाव और सातवें भाव स्थान को मारक स्थान कहा जाएगा. अब कुंडली के दूसरे और सातवें भाव के स्वामी इसके
रिश्तों और प्यार में नवग्रहों की भूमिका कैसे करती है सहायता जन्म कुंडली में रिश्तों एवं प्रेम कि स्थिति को जानने के लिए प्रत्येक ग्रह की विशेष भूमिका होती है. किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में ग्रहों की स्थिति का जो
जन्म कुंडली में शनि और चंद्र का एक साथ एक भाव में होना विष योग का निर्माण करता है. यह एक घातक योग होता है. इस योग के खराब असर अधिक देखने को मिलते हैं. जिस भाव में इस योग का निर्माण होता है उस भाव से जुड़े शुभ फल कमजोर
ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति अनुसर बनने वाले कुछ योग इतने विशेष हो जाते हैं जिनका जीवन पर गहरा असर पड़ता है. धन की कमी के लिए बनने वाला केमद्रूम योग आर्थिक स्थिति को कमजोर बनाता है, धन देने वाला लक्ष्मी योग आर्थिक
जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह
विवाह मिलान में नक्षत्र मिलान एक सबसे महत्वपूर्ण कारक बनता है. नक्षत्रों का एक साथ शुभता लिए होना विवाह के सुखमय होने का आधार भी बनता है. जब हम अपने सहयोगी एवं मित्र स्वरुप नक्षत्र से मिलते हैं तो इस स्थिति में हमारे
ज्योतिष शास्त्र की एक शाखा जैमिनी ज्योतिष भी जिसे ऋषि जैमिनी के नाम से ही जाना जाता है. जैमीनी ज्योतिष अनुसार अमात्यकारक ग्रह कुंडली में अहम स्थान रखता है. सभी नव ग्रहों में किसी न किसी को अमात्यकारक का स्थान प्राप्त
सेहत से जुड़े कई कारकों का वर्णन वैदिक ज्योतिष में मिलता है. सेहत जीवन का एक महत्वपुर्ण मुद्दा है जिसे लेकर कइ बर हम सजग तो कई बार लापरवाह भी दिखाई देते हैं किंतु कुल मिलाकर सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए प्रत्येक
कुंडली का प्रत्येक लग्न किसी न किसी मारक ग्रह से प्रभावित अवश्य होता है. मिथुन लग्न की कुंडली होने पर इस कुंडली के दूसरे भाव और सातवें भाव का स्वामी मारक बनता है. मिथुन लग्न के लिए, द्वितीय भाव में कर्क राशि आती है ओर
विदेश में जाना, विदेश यात्रा करना आज के समय में इसका काफी प्रचलन बढ़ गया है. विदेश में यात्रा के अवसर कई तरह से मिल जाते हैं लेकिन जब बात आती है विदेश में ही रहने की तब चीजें काफी मुश्किल सी दिखाई देती हैं. कई
नौकरी में सफल होने के लिए, करियर से संबंधित विचार बहुत जल्द ही कम उम्र में शुरू हो जाता है. करियर बनाने की दिशा में शिक्षा क्षेत्र का चयन पहला कदम होता है. जो इस बात को निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति शिक्षा
वृष लग्न शुक्र के स्वामित्व का लग्न है इस लग्न के लिए दूसरे और सातवें भाव को मारक कहा जाता है. दूसरे और सातवें भाव के राशि स्वामी को मारकेश कहा जाएगा. वृष लग्न के लिए द्वितीय भाव में मिथुन राशि आती है और मिथुन राशि का
ज्योतिष शास्त्र में ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन की सभी गतिविधियों पर पड़ता है. इन सभी के अच्छे और खराब फल व्यक्ति पर पड़ते हैं. कुछ न कुछ उतार-चढाव हर व्यक्ति के जीवन को अवश्य प्रभावित करते हैं. सुख और
चंद्रमा की गति व्यक्ति के मन और स्वभाव को बहुत अधिक प्रभावित करती है. ज्योतिष अनुसार चंद्रमा का असर तेजी से पड़ता है. चंद्रमा किसी भी राशि में लगभग सवा दो दिन तक रहता है उसके पश्चात आगे बढ़ जाता है. चंद्रमा का यही गुण
शिक्षा शुरू करने में मुहूर्त का महत्व शिक्षा का प्रभाव जीवन के विकास और निर्माण दोनों में सहायक होता है. भारतीय संस्कृति में शिक्षा का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. वेदों में वर्णित सूक्तों द्वारा शिक्षा के महत्व को
जन्म कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति अत्यधिक संवेदनशील और मानसिक स्वभाव के कारण कुछ अत्यधिक भावनात्मक स्थितियों को जन्म दे सकती है. राहु एक शक्तिशाली छाया ग्रह है, और जब चंद्रमा के साथ जुड़ता है, तो वास्तविकता अधिक
जब दो ग्रह एक ही राशि में होते हैं तो युति योग का निर्माण करते हैं, जिससे कुंडली पर इनका गहरा असर पड़ता है. यह संयोग अक्सर भाग्य पर अचानक होने वाले और अनिश्चित प्रभाव डालता है, जिससे आपकी कुंडली में सबसे विशेष तरीके से
शादी से पहले कुंडली मिलान करने के कारण जिनसे विवाह में नही आती बाधाएं ज्योतिष शास्त्र में एक व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष को समझने में मदद मिलती है. इसी में एक महत्वपूर्ण चीज विवाह भी है. विवाह एक ऎसा संस्कार है जो
सूर्य और बृहस्पति का योग शुभस्थ स्थिति का कारक माना गया है. यह दोनों ही ग्रह बुद्धि, ज्ञान और आत्मिक विकास के लिए उत्तम होते हैं. ज्योतिष के संदर्भ में सूर्य राजा है और वहीं सष्टि में जीवन के विकास का आधार भी है. दूसरी
ज्योतिष की एक शाखा चिकित्सा शास्त्र से संबंधित होती है. चिकित्सा का संबंध केवल चरक एवं आयुर्वेद से ही जुड़ा नहीं है अपितु यह ज्योतिष में कई योगों से भी संबंधित रहा है. ज्योतिष में रोग बिमारी, दुर्घटना प्राकृतिक आपदाओं
राहु को ज्योतिष में एक छाया ग्रह का स्थान प्राप्त है. वैदिक ज्योतिष में इसका बहुत महत्वपूर्ण अर्थ है क्योंकि यह एक व्यक्ति के पिछले जन्मों की व्याख्या करता है. जीवन में जुनून और लक्ष्यों को दर्शाता है. प्रथम भाव में
ज्योतिष शास्त्र विज्ञान पर आधारित शास्त्र होता है. इन्हीं पर आधारित होता है हमारे जीवन का सभी फल इसी में एक तथ्य नाड़ि ज्योतिष से जुड़ा है. नाड़ी दोष विशेष रुप से कुंडलियों के मिलान के समय पर अधिक देखा जाता है. नाड़ी का
ज्योतिष शास्त्र से जानें संतान सुख में आईवीएफ और दत्तक संतान फल बच्चों की इच्छा एवं उनके सुख को पाना दंपत्ति का पहला अधिकार होता है. विवाह पश्चात संतान जन्म द्वारा ही जीवन के अगले चरण का आरंभ होता है. विवाह जीवन में एक
वैदिक ज्योतिष में केतु को अलगाव, ज्ञान, रहस्य, ध्यान और सबसे महत्वपूर्ण वैराग्य के कारक के लिए माना जाता है. केतु कर्म का प्रतिनिधित्व करता है, यह हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के फल को दर्शाता है. कुंडली में केतु जहां
जन्म कुंडली का आठवां भाव रहस्यों का स्थान कुंडली के बारह भावों अपने आप में पूर्ण अस्तित्व को दर्शाते हैं. इन सभी भावों में एक भाव ऎसा भी है जो आयु मृत्य और रहस्य का घर होकर सभी आचार्यों के लिए एक गंभीर एवं सूक्ष्म स्थान
ज्योतिष में ग्रहों की अस्त स्थिति काफी महत्वपूर्ण रह सकती है. सूर्य का प्रभाव ही ग्रहों को अस्त करने के लिए महत्वपूर्ण कारक बनता है. सूर्य के समीप आकर सभी ग्रहों का असर कमजोर हो जाता है. सुर्य के कारण ही ग्रह अस्त होते
ज्योतिष में कई तरह के शुभ एवं अशुभ योगों का वर्णन प्राप्त होता है. इन योगों के प्रभाव स्वरुप किसी व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है. एक विशेष योग बालारिष्ट भी ज्योतिष शास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण
ज्योतिष शास्त्र में जीवन के हर क्षण और घटनाक्रम को समझा जा सकता है. इसमें मौजूद गणनाओं का उपयोग करके जीवन में होने वाली घटनाओं को जान पाना संभव होता है. इन सूक्ष्म गणनाओं में एक गणना आयु और दुर्घटना को लेकर है जिसे
राहु - सूर्य राहु और सूर्य का संबंध कुण्डली में ग्रहण योग का निर्माण करता है. इसके प्रभाव स्वरुप पिता एवं संतान के मध्य वैचारिक मतभेद की स्थिति रह सकती है. संतान की जन्म कुण्डली में यह योग होने पर पिता के व्यवसाय और मान
ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार राशियों के द्वारा किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझने में बहुत से विशेष बातों का आसानी से पता चल सकता है. अगर आपको अपने भावी साथी से केवल उनकी जन्म तिथि की जानकारी ही मिल पाती है तब आप उनके
मीन राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी बृहस्पति का मीन राशि गोचर होगा इसके पश्चात 28 जुलाई को बृहस्पति मीन राशि में वक्री होकर गोचर करेंगे. मंगल का गोचर मेष राशि में होगा. माह आरंभ
कुंभ राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी शनि का वक्री अवस्था में ही गोचर कुंभ राशि में होगा और 12 जुलाई को शनि वक्री अवस्था में मकर राशि में प्रवेश करेंगे तथा वहीं गोचरस्थ रहेंगे. माह
मकर राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी शनि का वक्री अवस्था में ही गोचर कुंभ राशि में होगा और 12 जुलाई को शनि वक्री अवस्था में मकर राशि में प्रवेश करेंगे तथा वहीं गोचरस्थ रहेंगे. माह
धनु राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी बृहस्पति का मीन राशि गोचर होगा इसके पश्चात 28 जुलाई को बृहस्पति मीन राशि में वक्री होकर गोचर करेंगे मंगल का गोचर मेष राशि में होगा. माह आरंभ
वृश्चिक राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी मंगल का गोचर मेष राशि में होगा. माह आरंभ में सूर्य का गोचर मिथुन में होगा उसके पश्चात माह मध्य 16 जुलाई से कर्क में राशि में गोचरस्थ आरंभ
तुला राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी शुक्र माह आरंभ में वृषभ में होंगे इसके बाद 13 जुलाई को मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे. माह आरंभ में सूर्य का गोचर मिथुन में होगा उसके पश्चात माह
मिथुन राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी बुध वृष राशि में गोचरस्थ होंगे, 2 जुलाई को बुध वृष से निकल कर मिथुन में होंगे 16 जुलाई को कर्क में जाकर गोचरस्थ होंगे. 5 जुलाई को पूर्व में
सिंह राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी सूर्य माह आरंभ में मिथुन में गोचर करेंगे, उसके पश्चात माह मध्य 16 जुलाई से कर्क में राशि में प्रवेश करेंगे तथा गोचरस्थ रहेंगे. माह आरंभ में
कर्क राशि के जातकों के लिए आर्थिक क्षेत्र में उतार-चढ़ाव बना रहने वाला है. कुछ न कुछ ऐसे मौके सामने दिखाई देंगे जिनके कारण आप लाभ ओर हानि दोनों को देखेंगे. इस समय के दौरान स्थितियां काफी मिलेजुले असर की होगी. अपने लिए
मिथुन राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी बुध वृष राशि में गोचरस्थ होंगे, 2 जुलाई को बुध वृष से निकल कर मिथुन में होंगे 16 जुलाई को कर्क में जाकर गोचरस्थ होंगे. 5 जुलाई को पूर्व में
वृषभ राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी शुक्र माह आरंभ में वृषभ में होंगे इसके बाद 13 जुलाई को मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे. माह आरंभ में सूर्य का गोचर मिथुन में होगा उसके पश्चात माह
मेष राशि के लिए जुलाई माह में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहेगी. राशि स्वामी मंगल का गोचर मेष राशि में होगा. माह आरंभ में सूर्य का गोचर मिथुन में होगा उसके पश्चात माह मध्य 16 जुलाई से कर्क में राशि में गोचरस्थ आरंभ होगा.
माह के आरंभ में मीन राशि के लिए ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहने वाली है. राशि स्वामी गुरु माह के आरंभ में मीन राशि में गोचरस्थ होंगे. मंगल का गोचर भी मीन राशि में होने से गुरु मंगल युति का निर्माण होगा. सूर्य माह आरंभ
माह के आरंभ में कुंभ राशि के लिए ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहने वाली है. राशि स्वामी शनि का गोचर अपनी स्वराशि कुंभ में होगा. इसी समय शनि कुंभ राशि में वक्री भी होंगे. गुरु माह के आरंभ में मीन राशि में गोचरस्थ होंगे.
माह के आरंभ में मकर राशि के लिए ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहने वाली है. राशि स्वामी शनि का गोचर कुंभ राशि में होगा. जून को शनि कुंभ राशि में वक्री होंगे. गुरु माह के आरंभ में मीन राशि में गोचरस्थ होंगे. मंगल का गोचर भी
माह के आरंभ में धनु राशि के लिए ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहने वाली है. राशि स्वामी गुरु(बृहस्पति) माह के आरंभ में मीन राशि में गोचरस्थ होंगे. मंगल का गोचर भी मीन राशि में होने से गुरु मंगल युति का निर्माण होगा ओर इस
माह के आरंभ में वृश्चिक राशि के लिए ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहने वाली है. राशि स्वामी मंगल माह के आरंभ में मीन राशि में गोचरस्थ होगा. मीन राशि में मंगल का युति संबंध बृहस्पति से होगा, 27 जून को मंगल मेष राशि में
माह के आरंभ में तुला राशि के लिए ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहने वाली है. राशि स्वामी शुक्र माह आरंभ में मेष राशि में राहु के साथ युति संबंध में गोचरस्थ होगा. 18 जून को शुक्र वृष राशि में प्रवेश करेंगे जहां बुध के साथ
माह के आरंभ में कन्या राशि के लिए ग्रहों की स्थिति इस प्रकार रहने वाली है. राशि स्वामी बुध माह आरंभ में वृष राशि में होंगे. बुध पूरे माह वृष राशि में गोचरस्थ होंगे 3 जून को बुध वक्री अवस्था से मार्गी होकर गोचरस्थ होंगे.
कर्क राशि वालों के लिए माह का आरंभिक समय आर्थिक स्थिति के लिए सामान्य रह सकता है. आय के स्त्रोत बने रह सकते हैं. ( frogbones ) उत्साह बना रहेगा. कुछ मामलों में स्थिति एकाग्रता की कमी से परेशान हो सकती है. घरेलू स्तर पर
राशि स्वामी के द्वादश भाव स्थन में होने के कारण वित्तीय मामलों में आपको खर्चों की अधिकता देखने को मिल सकती है. इस समय आपका धन स्वास्थ्य, यात्रा, जीवनसाथी एवं बाहरी कार्यों पर अधिक व्यय होता दिखाई देता है. कुछ कानूनी
वृष राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी शुक्र मेष राशि में गोचर करेंगे. शुक्र की युति इस समय मेष राशि में राहु के साथ होगी. 18 जून को शुक्र का राशि परिवर्तन वृष राशि में होगा तब
इस माह आपके पास कुछ सकारात्मक अवसर होंगे, राशि स्वामी की मजबूत स्थिति के चलते आप कुछ अच्छे लाभ को प्राप्त कर पाने में सक्षम होंगे. आप अपनी मेहनत का कुछ लाभ इस समय प्राप्त कर पाएंगे. आपके परिश्रम का बेहतर फल आप को
कुंभ राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी शनि का गोचर कुंभ राशि में होगा. बुध का गोचर माह के आरंभ में वृष राशि में होगा. 10 मई में बुध वृषभ राशि में वक्री होकर गोचर करेंगे. 14 मई को
मकर राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी शनि का गोचर कुंभ राशि में होगा. बुध का गोचर माह के आरंभ में वृष राशि में होगा. 10 मई में बुध वृषभ राशि में वक्री होकर गोचर करेंगे. 14 मई को
धनु राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी बृहस्पति का गोचर मीन राशि में होगा. बुध का गोचर माह के आरंभ में वृष राशि में होगा. 10 मई में बुध वृषभ राशि में वक्री होकर गोचर करेंगे. 14 मई
वृश्चिक राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. माह के आरंभ में मंगल का गोचर इस समय पर कुंभ राशि में हो रहा होगा. मंगल की शनि के साथ युति इस समय कुंभ राशि में बन रही होगी. 17 मई मंगल का राशि
तुला राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. माह आरंभ में राशि स्वामी शुक्र मीन राशि में गोचर करेंगे. 23 मई शुक्र का राशि परिवर्तन मेष राशि में होगा. बुध का गोचर माह के आरंभ में वृष राशि में होगा.
कन्या राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी बुध का गोचर माह के आरंभ में वृष राशि में होगा. 10 मई में बुध वृषभ राशि में वक्री होकर गोचर करेंगे. 14 मई को बुध की युति सूर्य के साथ वृषभ
सिंह राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी सूर्य का गोचर माह के आरंभ में मेष राशि में होगा यहां पर सूर्य का युति संबंध राहु के साथ होगा. माह मध्य के बाद सूर्य का राशि परिवर्तन वृषभ
कर्क राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी चंद्रमा का गोचर माह के आरंभ में मेष राशि में होगा. बुध का गोचर माह आरंभ में वृष राशि में होगा. 10 मई में बुध वृषभ राशि में वक्री होकर गोचर
मिथुन राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी बुध का गोचर माह के आरंभ में वृष राशि में होगा. 10 मई में बुध वृषभ राशि में वक्री होकर गोचर करेंगे. 14 मई को बुध की युति सूर्य के साथ वृषभ
वृष राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी. राशि स्वामी शुक्र मीन राशि में गोचर करेंगे. शुक्र की युति इस समय मीन राशि में बृहस्पति के साथ होगी. मंगल और शनि का गोचर इस समय पर कुंभ राशि में हो रहा
इस माह के आरंभ राशि स्वामी कुंभ राशि में गोचरस्थ होंगे तथा शनि के साथ युति संबंध होंगे. गुरु और शुक्र का गोचर इस समय मीन राशि में होगा. वृष राशि में बुध का गोचर होगा. सूर्य का गोचर मेष राशि में होगा. राहु का गोचर भी मेष
मीन राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी बृहस्पति माह के आरंभ में कुंभ में होंगे लेकिन माह मध्य से अपनी मीन राशि में गोचर करेंगे. आरंभ में शुक्र और गुरु का युति संबंध कुंभ राशि
माह के इस समय पर राशि स्वामी इस समय मंगल के साथ स्थित है, आप में उत्साह और प्रयास बहुत अधिक होगा. इस समय के दौरान आप परिश्रमी अधिक रह सकते हैं. नई योजनाओं में आप व्यस्त रह सकते हैं खर्चों की अधिकता का भी समय है और साथ
मकर राशि के लिए इस समय के दौरान आर्थिक लाभ वृद्धि और काम-काज में वृद्धि का समय होगा. इस समय शनि का प्रभाव आपको उत्साहित बनाने वाला होगा. आप परिवार के लिए काफी प्रयासशील हो सकते हैं. नई चीजों को लेकर आप सोच विचार में
धनु राशि वालों के लिए ये माह काफी महत्व रखने वाला है क्योंकि राशि स्वामी की स्थिति इसी माह बदलने वाली है. एक लम्बे समय से कुंभ राशि में गोचर करने के बाद बृहस्पति अपनी स्वराशि मीन में प्रवेश करेंगे जिसके चलते इस माह के
वृश्चिक राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी मंगल मकर राशि में शनि के साथ स्थित होंगे. शुक्र और गुरु का युति संबंध कुंभ राशि में दिखाई देगा. सूर्य बुध का संबंध मीन राशि में होगा
तुला राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी शुक्र कुंभ राशि में गोचर करेंगे. मंगल मकर राशि में शनि के साथ स्थित होंगे. सूर्य बुध का संबंध मीन राशि में होगा माह मध्य के पश्चात ग्रहों
कन्या राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी बुध माह के आरंभ में कमजोर स्थिति में मीन राशि में होंगे लेकिन सप्ताह के दौरान ही राशि परिवर्तन होने से मेष में होंगे. इसी प्रकार आरंभिक
कर्क राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. माह के शुरु में राशि स्वामी सूर्य का गोचर मीन राशि में होगा माह मध्य के बाद मेष में प्रवेश होगा. बुध माह के आरंभ में कमजोर स्थिति में मीन राशि में
कर्क राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी चंद्रमा का गोचर भी प्रभावी होगा. बुध माह के आरंभ में कमजोर स्थिति में मीन राशि में होंगे लेकिन सप्ताह के दौरान ही राशि परिवर्तन होने से
मिथुन राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी बुध माह के आरंभ में कमजोर स्थिति में मीन राशि में होंगे लेकिन सप्ताह के दौरान ही राशि परिवर्तन होने से मेष में होंगे. इसी प्रकार आरंभिक
वृष राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी शुक्र कुंभ राशि में गोचर करेंगे. मंगल मकर राशि में शनि के साथ स्थित होंगे. सूर्य बुध का संबंध मीन राशि में होगा माह मध्य के पश्चात ग्रहों
मेष राशि वालों के लिए इस माह ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होगी. राशि स्वामी मंगल मकर राशि में शनि के साथ स्थित होंगे. शुक्र और गुरु का युति संबंध कुंभ राशि में दिखाई देगा. सूर्य बुध का संबंध मीन राशि में होगा माह
कुंभ राशि वालों के लिए मार्च का समय लाभ और खर्च दोनों ही स्थितियों के साथ आगे बढ़ने वाला होगा. इस समय उत्साह का संचार रहेगा तथा नवीन प्रतिभा भी विकसित होगी. प्रयासों के द्वारा लाभ प्राप्ति होगी तो साथ ही अचानक से बाहरी
मकर राशि वालों के लिए मार्च माह का समय कुछ उत्साह में वृद्धि वाला और नए अवसर को दिलाने वाला होगा. इस समय के दौरान राशि स्वामी की मजबूत स्थिति के साथ ही सुख और लाभ की स्थिति भी मजबूत अवस्था में दिखाई देगी, तो अनुकूल अवसर
धनु राशि वालों के लिए इस माह का समय आर्थिक लाभ की स्थिति के लिए अनुकूल रह सकता है. इस समय पर आप के काम में नए बदलाव और लोगों के साथ मेल जोल की स्थिति आपके लिए परेशानी और भागदौड़ वाली होगी. इस समय के दौरान आप घर के लोगों
तुला राशि वालों के लिए इस माह का आरंभ घरेलू क्षेत्र में व्यस्तता को दर्शात है. इस समय घर पर कुछ बदलाव और नई चीजों को लाने में भी आप आगे रह सकते हैं. अपनों के साथ आप कुछ अधिक समय व्यतीत कर पाएंगे लेकिन जिम्मेदारियों में
कन्या राशि वालों के लिए इस माह का आरंभिक समय कुछ सकारात्मक होगा. कुछ नवीन कामों की शुरुआत का समय होगा. अपनी पसंद के कुछ कार्यों में दूसरों का सहयोग आपको बेहतर मौके दिलाने में सहायक बन सकता है. खेलकूद से जुड़े छात्रों को
सिंह राशि वालों के लिए ये समय सामाजिक रुप से और आर्थिक रुप से आपको आगे बढ़ने वाला हो सकता है. आप नेतृत्व करने में आगे रह सकते हैं और आपकी लीडरशिप को दूसरे महत्व भी देंगे. इस समय आर्थिक क्षेत्र में आप कोशिशों द्वारा आगे
कर्क राशि वालों के लिए मार्च का समय काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है इस समय इनके सप्तम भाव में स्थिति मंगल का रुचक योग शनि का शश योग इन के लिए काफी प्रभावशाली समय बनने वाला है. सामाजिक रुप से और साथ ही पार्टनर के साथ
मार्च के आरंभ में राशि स्वामी चतुर्ग्रही योग में शामिल रहेगा ओर ऎसे में आप का उत्साह भी कुछ अलग ही होगा. अपनी मर्जी से आगे रहने वाले हैं. अपनी कोशिशों से आर्थिक लाभ पाने में सफल हो सकते हैं. सप्ताह के दूसरे भाग में ही
वृष राशि वालों के लिए ये समय शुक्र का असर शनि और मंगल की युति के साथ होगा. इस समय के दौरान आप काफी व्यस्तता वाले रह सकते हैं. आर्थिक क्षेत्र में आप अपने प्रयासों से आगे बढ़ सकते हैं. इस समय आपके पास काफी संभनाएं रह सकती
मेष राशि वालों के लिए इस समय मंगल की स्थिति मकर राशि में होगी और यह एक उत्तम एव मजबूत स्थिति को दर्शाती है. यह आपके साहस और आपकी क्षमता को आगे बढ़ाने में सहायक बनेगा. अपनी संकल्प शक्ति में भी आप मजबूती के साथ दिखाई
मीन राशि वालों के लिए यह महीना मिले-जुले परिणाम देने वाला है. कार्यस्थल पर आप अपने को व्य्सत पाएंगे लेकिन शरीर की थकान और मानसिक उलझनों से खुद को निकाल पाना आपके लिए मुश्किल रह सकता है. अपने काम में आपको अभी से कुछ नए
इस समय पर स्थिति आपके लिए कुछ सकारात्मक पक्ष की ओर दिखाई दे सकती है. आप अपनी मेहनत द्वारा लाभ प्राप्ति के अच्छे विकल्प को प्राप्त कर सकते हैं. गुरु का गोचर राशि पर होने तथा व्ययेश की मजबूत स्थिति से लाभ एवं खर्च की
इस समय के दौरान राशि स्वामी की युति माह आरंभ में मकर राशि में सूर्य एवं बुध के साथ होगी. इसके पश्चात माह मध्य के बाद सूर्य के स्थान बदलाव के साथ ही बुध शनि संबंध दृष्टिगोचर होगा. इस समय पर चीजों में काफी व्यस्तता का
इस माह राशि स्वामी की स्थिति परिश्रम ओर यात्राओं को दर्शाती है और साथ ही इस समय मंगल शुक्र का आपकी राशि पर गोचर करना उत्साह ओर नई चीजों से जुड़ने का समय भी दिखाता है. इस समय पर घरेलू ओर बाहरी दोनों ओर की स्थिति कुछ अधिक
राशि स्वामी के दूसरे भाव में शुक्र के साथ युति संबंध का प्रभाव धनार्जन के क्षेत्र में नए मौके दिलाने वाला होगा, लेकिन इस समय अपनी जिद ओर क्रोध से कुछ दिक्कतें भी आ सकती हैं. कमाई के मामले में आपको मिले-जुले परिणाम
इस माह आप लोगों के लिए काफी फेरबदल वाला हो सकता है इस समय राशि स्वामी की स्थिति आप की मानसिक विचारधारा को प्रभावित करने वाली होगी. कुछ मामलों में आप दूसरों से अलग काम करने के पक्ष में भी होंगे. अपने लाभ को लेकर चिंता तो
सिंह राशि वालों के लिए इस माह का समय सूर्य का गोचर थोड़ा परेशानी दिखा सकता है. इस समय पर उतार-चढ़ाव बने रह सकते हैं. रशि स्वामी का शनि के साथ होना शुरुआती समय में अभी भी थोड़ा संघर्ष को दिखा सकता है. इस माह के आरंभ से
इस माह के शुरुआती दौर में आप में अधिक उत्साह और जोश देखने को मिल सकता है. आप अपने काम के प्रति बहुत सतर्क हो सकते हैं, लेकिन जल्दबाजी और निराशा से बचें क्योंकि दोनों ही चीजें आपको प्रभावित करेंगी. आपके व्यवहार में बदलाव
कुंभ राशिफल 2024 – पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक समय तिमाही का ये समय आर्थिक लाभ के लिए शुरुआती स्तर पर आगे बढ़ने का है. गुरु का गोचर किसी की हेल्प द्वारा लाभ प्राप्ति के लिए कैसे आगे बढ़ा जाए इस
मकर राशिफल 2024 - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक समय तिमाही की शुरुआत खर्चों एवं नई चीजों की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण रह सकती है. इस समय के दौरान शनि, बुध, सूर्य का प्रभाव अचानक से होने वाले खर्चों
धनु राशिफल 2024 - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक समय तिमाही का आरंभिक समय आर्थिक पक्ष के लिए सामान्य रह सकता है. इस समय पर आप अपनी पुरानी बचत का भी उपयोग कर सकते हैं. भाग्य का सहयोग आर्थिक स्थिति को
वृश्चिक राशिफल 2024 - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक समय तिमाही का समय आपके आर्थिक लाभ और खर्च की स्थिति को समान रुप से प्रभावित करने वाला होगा. परिश्रम बना रहेगा लेकिन शायद उतना लाभ मिल न पाए जितना
2024 तुला राशिफल - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक का समय तिमाही का आरंभ सामनय रुप से होगा. आप अपने परिवार का प्रेम व सहयोग भी पा सकते हैं. आप कुछ अधिक मेहनत मे भी होंगे. आमदनी के स्त्रोत आपको कुछ लाभ
202 4 कन्या राशिफल - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक का समय कन्या राशि के लिए साल का ये समय आपको शनि के प्रभाव तथा गुरु के गोचर से होने वाले बदलावों का असर आप पर रहेगा. इस समय पर आपके राशि स्वामी की
2024 सिंह राशिफल - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक का समय तिमाही का आरंभ आपके खर्चों को दर्शाने वाला होगा. इस समय पर कुछ धन की कमी परेशानी दे सकती है और साथ ही खर्चों पर नियंत्रण लगा पाना भी मुश्किल
2024 कर्क राशिफल - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक का समय तिमाही का आरंभिक समय आपको धनार्जन के अच्छे अवसर दे सकता है. कुछ नए मसौदे अब शुरु होंगे और आपको नए लोगों के साथ मिलकर काम करने का मौका भी मिल
मिथुन राशिफल 2024 - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक समय ये तिमाही धन संबंधी मामलों में शुरुआती समय पर खर्च की अधिकता को दिखा सकती है. आपके अतिरिक्त व्यय थोड़ा दबाव बना सकते हैं. आकस्मिक रुप से धन व्यय
2024 वृषभ राशिफल - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक समय अर्थिक स्थिति इस तिमाह के समय पर काफी मिले जुले प्रभाव दे सकती है. खर्चों की अधिकता लगी रह सकती है और ये समय नई चीजों की खरीदारी के साथ साथ कुछ
मेष राशिफल 2024 - पैसा और वित्तीय स्थिति जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक समय मेष राशि वालों के लिए वर्ष का आरंभ धनार्जन के क्षेत्र में लाभ से जुड़े कई सकारात्मक पहलू प्रभावित करने वाला हो सकता है. परिश्रम द्वारा धनार्जन के
शुक्र को जहां भोग-विलास और समृद्धि से जोड़ कर देखा जाता है. विलासिता इसका नैसर्गिक कारक बनती है. इस कारण तुला राशि के लोगों में वैभव-विलासितापूर्ण जीवन जीने इच्छा भी देखने को मिलती है. शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति फैशन से
1 जुलाई 2023 को मंगल सिंह राशि में प्रवेश करने वाले हैं. मंगल का सिंह राशि में गोचर बहुत ही प्रभावशाली रहेगा क्योंकि पिछले काफी समय से मंगल कर्क राशि में गोचरस्थ थे और कर्क राशि में होने के कारण मंगल अपने समस्त फलों को
राहु अभी तक एक लम्बे समय से मिथुन राशि में गोचरस्थ थे. पर अब वह मिथुन से निकल कर वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे और फिर वहीं पूरा डेढ़ साल का समय बिताएंगे. राहु को छाया ग्रह का रुप कहा गया है. ऎसे में इस छाया का प्रभाव इतना
24 जनवरी 2020 से शनि का राशि परिवर्तन होगा. इस समय गुरु की राशि धनु से निकल कर अपनी राशि मकर में प्रवेश करेंगे. आने वाले ढाई वर्षों तक शनि मकर राशि में ही गोचरस्थ होंगे. शनि के इस गोचर में धनु राशि वालों के लिए सढे़साती
शनि का गोचर ज्योतिशः की दृष्टि से एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना होती है. शनि और गुरु ऎसे ग्रह हैं जिनके राशि परिवर्तन को लेकर सभी में जिज्ञासा रहती है क्योंकि इन दो ग्रहों की जीवन पर बहुत गहरी छाप पड़ती है. ऎसे में शनि का
शनि का मकर राशि में गोचर सभी बारह राशियों पर अलग-अलग रुप से पड़ेगा. इसके अलाव शनि का गोचर अनेक घटनाओं को भी प्रभावित करने वाला होगा. सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर भी ये विश्व पर असर डालने वाला होगा. शनि सबसे मंद गति से
शनि का गोचर प्रत्येक राशि के लिए अढाई वर्ष का समय लेता है. सभी ग्रहों में शनि ग्रह ही ऎसे ग्रह हैं जो किसी भी राशि में सबसे अधिक समय लेते हैं. इस गोचर में शनि का वक्री-मार्गी गति के साथ गोचर करना भी महत्व रखता है. कई
ज्योतिष में जन्म कुण्डली के अतिरिक्त बहुत सी वर्ग कुण्डलियां भी होती हैं. ये वर्ग कुण्डलियां जातक के जीवन के किसी न किसी क्षेत्र को बारीकी से जांचने के लिए उपयोग की जाती है. वर्ग कुण्डली से धन, संतान, स्वास्थ्य, जीवन
विवाह करने से पूर्व वर-वधू की कुण्डलियों का मिलान करते समय आठ प्रकार के मिलान किये जाते है. इस मिलान को अष्टकूट मिलान के नाम से जाना जाता है. इन्हीं अष्टकूट मिलान में से एक गण मिलान है. इस मिलान में वर वधु के व्यवहार और
प्रश्न कुण्डली के लग्न में ग्रहों की स्थिति देखी जाती है कि क्या है. शुभ ग्रह लग्न को प्रभावित कर रहें हैं अथवा पाप ग्रहों का प्रभाव लग्न पर अधिक पड़ रहा है. आइए इसे विस्तार से समझें. प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ
केतु को धड, पूंछ और घटता हुआ पर्व कहा गया है. केतु की कारक वस्तुओं में मोक्ष, उन्माद, कारावास, विदेशी भूमि में जमीन, कोढ, दासता, आत्महत्या, नाना, दादी, आंखें, तुनकमिजाज, तुच्छ और जहरीली भाषा, लम्बा कद, धुआं जैसा रंग,
मून स्टोन चन्द्रमा के रत्न मोती का मुख्य उपरत्न है. इस रत्न का उपयोग नव ग्रह में से एक चंद्रमा की शक्ति और सकारात्मकता को पाने के लिए किया जाता है. मून स्टोन आसानी से प्राप्त हो जाने वाला प्रभावशाली रत्न है. मून स्टोन
मंगल को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के साहस, छोटे भाई-बहन, आन्तरिक बल, अचल सम्पति, रोग, शत्रुता, रक्त शल्य चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, भूमि, अग्नि, रक्षा, सौतेली माता, तीव्र काम भावना, क्रोध, घृ्णा, हिंसा, पाप,
लाजवर्त जिसका एक नाम लापिस लाजुली भी है. इस उपरत्न को शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है. इस उपरत्न की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है. इस उपरत्न का रंग नीले रंग की विभिन्न आभाओं में पाया
11 करणों में एक करण चतुष्पद नाम से है. चतुष्पद करण कठोर और असामान्य कार्यों के लिए उपयुक्त होता है. इस करण को भी एक कम शुभ करण की श्रेणी में ही रखा जाता है. ऎसा इस कारण से होता है क्योंकि अमावस तिथि के समय पर आने के
ज्योतिष का वर्तमान में उपलब्ध इतिहास आर्यभट्ट प्रथम के द्वारा लिखे गए शास्त्र से मिलता है. आर्यभट्ट ज्योतिषी ने अपने समय से पूर्व के सभी ज्योतिषियों का वर्णन विस्तार से किया था. उस समय के द्वारा लिखे गये, सभी शास्त्रों
जन्म के समय जातक कई प्रकार के अच्छे योग तथा कई बुरे योग लेकर उत्पन्न होता है. उन योगों तथा दशा के आधार पर ही जातक को अच्छे अथवा बुरे फल प्राप्त होते हैं. योगों में शामिल ग्रह की दशा या अन्तर्दशा आने पर ही इन योगों का फल
सौरमण्डल के सन्दर्भ में कुछ आवश्यक बातों को आपके लिए समझना आवश्यक है. ग्रह और नक्षत्रों के विभाजन के विषय में आपने पिछले अध्यायों में जानकारी हासिल की है. इसके अतिरिक्त सौरमण्डल से जुडी़ कुछ बातों को आप और समझ लें जिनका
जब कोइ ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित होता है, तो वह शक्ति हीन और निर्बल होता है. इस स्थिति में वह ग्रह अपने शुभ फल देने में असमर्थ होता है. किन्तु अन्य ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि या परस्पर राशि परिवर्तन आदि के उस पर
11 करणों में तैतिल करण तीसरे क्रम में आता है. तैतिल करण को मिलाकर कुल 11 करण है. ज्योतिष का मुख्य भाग समझने जाने वाले पंचाग ज्ञात करने के लिए करण की गणना कि जाती है. विभिन्न कार्यो के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए भी
वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध की विशेषताओं में बुद्धिमता, शिक्षा, मित्र, व्यापार और व्यवसाय, गणित, वैज्ञानिक, ज्ञान प्राप्त करना, निपुणता, वाणी, प्रकाशक, छापने का कार्य, पढाने वाला, फूल, मामा और मामी, लेखविद्या, लिपिक,
सभी ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक
राशिचक्र 12 राशियों से मिलकर बना है, इस चक्र में 360 अंश होते है. तथा 360 अंशों को 12 भागों में बराबर बांटने पर 12 राशियों का निर्माण होता है. सभी व्यक्तियों का जीवन 12 राशियों, 9 ग्रह और 27 नक्षत्रों से प्रभावित रहता
शुक्र पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. वह विवाह का कारक ग्रह है, ज्योतिष में शुक्र से वाहन, काम सुख, आभूषण, भौतिक सुख सुविधाओं का कारक ग्रह है. शुक्र से आराम पसन्द होने की प्रकृ्ति, प्रेम संबन्ध, इत्र, सुगन्ध, अच्छे
रत्न, खनिज का एक सुंदर टुकडा़ होता है. खानों से निकालने के बाद रत्नों को संवारा जाता है. इन्हें अलंकृत किया जाता है. कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद रत्नों को गहनों के रुप में इस्तेमाल किया जाता है. जो व्यक्ति रत्न
वर-वधू की कुण्डली का मिलान करते समय मांगलिक दोष व अन्य ग्रहों दोषों के साथ साथ अष्टकूट मिलान भी किया जाता है. अष्टकूट मिलान के अलावा इसे कूट मिलान भी कहा जाता है. कूट मिलान करते समय आठ मिलान प्रकार के मिलान किए जाते है.
जैसे भचक्र की भिन्न-भिन्न राशियों तथा नक्षत्रों का अधिकार क्षेत्र शरीर के विभिन्न अंगों पर है, ठीक उसी प्रकार भिन्न-भिन्न ग्रह भी शरीर के विभिन अंगों से संबंधित है. इसके अतिरिक्त कुछ रोग, ग्रह अथवा नक्षत्र की स्वाभाविक
राशियों की भाँति ग्रहों के भी गुण-धर्म होते हैं. ग्रहों की दिशाएँ तथा निवास स्थान भी होते हैं. आपने पिछले अध्याय में राशियों के बारे में कुछ जानकारी हासिल की है. अब आप इस पाठ में ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त
वृषभ राशि वालों के लिए मंगल बारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है.धन कोष में वृद्धि होगी. दुर्घटनाओं, विवादों से पीछा छूटेगा. राजनीतिक मसले सुलझेंगे. दांपत्य जीवन में अनुकूलता आएगी. वृ्षभ राशि वालों के लिए यह मंगल
राहू व्यक्ति को शोध करने की प्रवृ्ति देता है, राहू की कारक वस्तुओ में निष्ठुर वाणी युक्त, विदेश में जीवन, यात्रा, अकाल, इच्छाएं, त्वचा पर दाग, चर्म रोग, सरीसृ्प, सांप और सांप का जहर, विष, महामारी, अनैतिक महिला से
आयोलाइट, नीलम रत्न का उपरत्न है. इसे हिन्दी में "काका नीली" के नाम से जाना जाता है(Iolite is called kaka-Nili in Hindi). यह नीले रंग और बैंगनी रंग तक के रंगों में पाया जाता है. जैसे नीला रंग, गहरा नीला रंग, बैंगनी रंग,
चन्द्रमा ग्रहों में मां का प्रतिनिधित्व करता है. इसे शरीर में दिल का स्थान दिया गया है. इसके साथ ही चन्द्र व्यक्ति की भावनाओं पर नियन्त्रण रखता है. वह जल तत्व ग्रह है. सभी तरल पदार्थ चन्द्र के प्रभाव क्षेत्र में आती है.