मीन लग्न में बाधक ग्रह और इसका प्रभाव
मीन लग्न के लिए बाधक ग्रह सातवें भाव का स्वामी होता है. सातवें भाव में आने वाली कन्या राशि का स्वामी बुध मीन लग्न के लिए बाधक का काम करता है. मीन लग्न के लिए बुध की स्थिति बाधक के रुप में अपना असर दिखाती है. बाधक की स्थिति कई मायनों में अस्पना असर डालने वाली है. आइये जान लेते हैं कैसे मीन लग्न के लिए बाधक अपना असर डालता है और इसके क्या प्रभाव देखने को मिल सकते हैं.
मीन लग्न के लिए कौन सा ग्रह और भाव बाधक होता है
मीन लग्न के लिए बुध ग्रह बाधक होता है और सातवां भाव बाधक बनता है.
मीन लग्न में बुध के बाधकेश होने का प्रभाव
मीन लग्न के लिए बुध चतुर्थ भाव का स्वामी होने से शुभ फल देने में सहायक होता है. इसके अलावा बुध सप्तम भाव का स्वामी होकर विवाह, साझेदारी, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, दान जैसी चीजों के लिए विशेष हो जाता है. कुंडली में बुध की स्थिति व्यक्ति को वह सुख प्रदान करती है जिसके लिए व्यक्ति काफी संघर्ष करता है.
व्यक्ति की कुंडली में बुध की दशा अवधि में बुध के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं. लेकिन अगर बुध कमजोर हो तो कमजोर परिणाम देखने को मिलते हैं.
बुध के बाधकेश होने पर इसकी दशा और इसके प्रभाव उपयुक्त रुप से नहीं मिल पाते हैं.
बाधकेश बुध के साथ जो ग्रह युति योग में होते हैं तो उन ग्रहों पर भी बाधकेश बुध का अधिक असर पड़ता है.
बुध के बाधकेश होने पर बुध से मिलने वाले कारक तत्व कमजोर हो जाते हैं.
बुध के बाधकेश होने पर महादशा और दशा पर बाधकेश का असर पड़ता है.
बाधकेश बुध की ग्रहों के साथ दृष्टि संबंध भी बाधक वाल अप्रभाव डालती है.
मीन लग्न में शुभ अशुभ ग्रह
मीन लग्न को शुभ, सौम्य और उदार लग्न के रूप में जाना जाता है. मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति है जिसे बहुत ही शुभ ग्रह माना गया है. मीन लग्न का असर व्यवहार और गुणों पर मीन राशि के साथ साथ गुरु के गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है. इस लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव विशेष रूप से देखा जा सकता है. मीन लग्न के भाव की स्थिति और राशि की स्थिति के अनुसार सभी ग्रह अपना प्रभाव दिखाते हैं. मीन लग्न में प्रत्येक ग्रह का प्रभाव इस प्रकार देखा जा सकता है:-
मीन लग्न और गुरु
मीन लग्न के लिए गुरु लग्नेश होता है ओर अच्छे परिणाम देता है. इसके अतिरिक्त गुरु शुभ स्थित है तो जीवन में निखार आता है तथा मजबूती भी आती है. गुरु के प्रभाव में या उसकी दशा अवधि में शुभ फल प्राप्त होते हैं, लेकिन गुरु के कमजोर होने से अच्छे परिणाम कमजोर हो जाते हैं.
मीन लग्न और सूर्य
मीन लग्न के लिए सूर्य छठे भाव का स्वामी होता है. इस कारण सूर्य इस लग्न के लिए ये सभी चीजें प्रदान करने वाला ग्रह भी बन जाता है. अधिकार मिलता है, व्यापारिक दृष्टिकोण मिलता है. किसी भी अच्छी या बुरी लत से निपटने में इसकी कुशलता सूर्य के माध्यम से पाई जा सकती है. इस स्थान पर सूर्य के स्वामित्व का प्रभाव व्यक्ति में चीजों से लड़ने का साहस भी देता है.
मीन लग्न और चन्द्रमा
मीन लग्न के लिए चन्द्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. भाव के प्रभाव का स्वामी होने से चन्द्रमा की शुभता प्राप्त होती है. चन्द्रमा शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, दान, छल, कपट, अंतःकरण की स्थिति के लिए भी जिम्मेदार बनता है. चन्द्रमा जलीय पदार्थ, संचित धन, झूठे आरोप, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. यहां यह ऐसी चीजों से जुड़ता है जिसके कारण व्यक्ति भावनात्मक रूप से अधिक उन्नत होता है.
मीन लग्न और मंगल
मीन लग्न के लिए मंगल द्वितीय भाव का स्वामी होता है. मंगल का परिवार पर गहरा प्रभाव पड़ता है. वहीं नवम भाव का स्वामी होने के कारण मंगल धर्म, गुण, भाग्य, गुरु, ब्राह्मण, भगवान, तीर्थ यात्रा, भक्ति, दृष्टिकोण, भाग्य को प्रभावित करता है. मंगल की दशा के दौरान मंगल के मजबूत और शुभ प्रभाव मिलते हैं, लेकिन मंगल कमजोर है, तो बुरे परिणाम और अधिक संघर्ष देखने को मिलता है.
मीन लग्न और शुक्र
मीन लग्न के लिए शुक्र तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. इन दोनों भावों का स्वामी होने के कारण यह बुरे परिणाम देने के लिए अधिक जाना जाता है. तीसरे भाव का स्वामी होने के कारण यह जातक अपने साहस के लिए इस पर निर्भर रहता है. शुक्र एक शुभ ग्रह है, इसलिए इन बुरे भावों का स्वामी होने के कारण यह अपने शुभ फल अनुकूल ढंग से नहीं दे पाता है.
मीन लग्न और शनि
मीन लग्न के लिए शनि ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. शनि व्यक्ति के सामाजिक प्रभाव को भी दर्शाता है. इसके अलावा शनि जीवन में होने वाले खर्चों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा. शनि नींद, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग विलास, वासना, व्यभिचार, बेकार की चीजों का प्रतिनिधित्व करेगा. विदेश यात्रा आदि के लिए भी शनि की स्थिति महत्वपूर्ण होगी.
मीन लग्न और राहु-केतु
राहु और केतु को किसी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है, इसलिए ऐसी स्थिति में ये ग्रह जिस भाव में स्थित होते हैं, उसके अनुसार परिणाम देते हैं.इसी तरह, इसके सामने बैठा केतु भी भाव, राशि और ग्रह स्थिति के अनुसार अपना प्रभाव दिखाएगा. अगर कुंडली में ये दोनों ही सही स्थान पर हैं तो सकारात्मक प्रभाव देंगे, लेकिन अगर इसके विपरीत है तो ये दोनों कई नकारात्मक परिणाम दे सकते हैं.