चंद्रमा और शनि की युति का शुभ और अशुभ प्रभाव

शनि और चंद्रमा जब भी एक साथ होते है तो इनका युति योग कुछ मामलों में नकारात्मक स्थिति को ही दिखाता है. यह बहुत अनुकूल योग नहीं माना जाता है किंतु इस योग भी अपना सकारात्मक पक्ष होता है. वैसे इन दोनों ग्रहों के मध्य का भेद इनके गुणों में ही मौजूद होता है. यह दोनों जब युति करते हैं तो मन को उदास कर देने वाले भी होते हैं. भावनात्मक स्थिति पर जिम्मेदारी का बोझ और भारीपन की भावना डाल सकती है.

मन तो अनियंत्रित रुप से भागता है, असीम है. अब जब इस चंद्रमा रुपी मन पर शनि का संयोग बनता है तो इसकी चाल धीमी होने लगती है और आशंकाएं मन को घेर लेती हैं. चंद्रमा  लगातार विस्तार करना चाहता है. भविष्य के बारे में बिना शर्त और अनियंत्रित रूप से आशावादी होना चाहता है. अपने मूल्यों का निर्माण करना चाहता है, लेकिन शनि वह ऎसा नहीं है वह सीमाओं का निर्माण करता है. अब यहां इन दोनों का योग टकराहट में देखे जा सकते हैं. 

चंद्रमा और शनि की ज्योतिष में भूमिका

ज्योतिष में चंद्रमा आपकी मन, भावनाओं, मातृ सुख, भावनात्मक प्रतिक्रिया और कल्पना का प्रतिनिधित्व करता ह. चंद्रमा मन है इसलिए सोचने के तरीके और स्थितियों पर प्रतिक्रिया करने का तरीका दिखाता है. व्यक्ति कितना भा वुक या भावहीन हैं यह चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है. चंद्रमा एक जलीय एवं शीतल ग्रह है तो इसके प्रभाव में इन बातों को देखा जाता है. ज्योतिष में शनि जीवन में कर्म है , सीमाएं  हैं. व्यक्ति क्या हासिल कर सकते हैं और क्या नहीं, इन सभी की सीमाएं शनि तय करता है. शनि एक प्रकार से वेक अप कॉल भी है. शनि जीवन की सच्चाई और वास्तविकता दिखाता है.  गूढ़ स्तर पर चीजों को खोजने के बजाय अपने लक्ष्यों के बारे में अधिक व्यावहारिक और अनुशासित होने के लिए मजबूर करता है.

चंद्र और शनि की युति की विशेषता

जब सीमाओं का स्वामी चंद्रमा के साथ होता है, तो यह मन में सीमाएं पैदा कर सकता है या उन चीजों को सीमित कर सकता है जो मन करना चाहता है. ऎसे में जब जो चाहिए जो करना है वह नहीं मिलता है, तो हम निराशा का भाव जीवन में बढ़ने लगता है. उदासिनता अपने आप हावि होने लगती है. शनि की यथार्थवादी प्रकृति के कारण चंद्रमा का प्रभाव कमजोर होने लगता है. कल्पनाओं पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है. व्यक्ति एकांत एवं अकेलेपन को अपना सकता है. शनि "क्या है" दिखाना चाहता है, जबकि चंद्रमा "और क्या हो सकता है" के बारे में देखने को कहता है.

मन को अपने ऊपर एक ऎसा नियंत्रण दिखाई देता है जिससे कोई भी आसानी से मुक्त नहीं हो पाता है. शनि दंड नहीं देता अपितु यह केवल हमारे कर्मों का फल प्रदान करता है. यदि कर्म तटस्थ या मिश्रित होते है, तो यह आगे बढ़ने के अवसर देता है जहां चंद्रमा फिर से आशावादी महसूस करवाता है. यदि चंद्रमा शनि से अधिक शक्तिशाली है, तो चंद्रमा शुरू से ही इस युति के नकारात्मक प्रभाव को दूर कर सकता है.

कुंडली में यदि चंद्रमा अपनी राशि में हो या उच्च शुभ स्थिति का हो तब यह युति शनि के द्वारा नियंत्रित कम हो पाती है. शनि और चंद्रमा की युति के साथ वास्तव में कठिन चीजों को अधिक देखते हैं. कठिन समय आने पर यह व्यक्ति को अच्छी तरह से तैयार करने वाला होता है

शनि और चंद्रमा की युति का प्रभाव

चंद्रमा एक भावनात्मक ग्रह है. यह ग्रहों में रानी का स्थान पाता है. मन, भावनाओं पर इसका अधिकार होता है. यह शनि से प्रकृति में पूरी तरह से विपरीत है. यह कल्पनाशील, संवेदनशील और चंचल मन वाला होता है. इसलिए जब दो पूरी तरह से अलग ग्रह युति करते हैं, तो दोनों ग्रहों के लिए ठीक से काम करना बेहद मुश्किल हो जाता है. शनि को सबसे अधिक पापी माना गया है. शनि को समान क्रूर ग्रह और कोई नहीं है. शनि सांसारिक मामलों से वैराग्य की भावना पैदा करता है और अध्यात्म में रुचि पैदा करता है. शनि दुख के प्रति तैयार करता है ताकि व्यक्ति जीवन के सुखों और चकाचौंध से अलग हो सके और वास्तविक प्राप्ति के मार्ग की ओर बढ़ सके. शनि और चंद्रमा की युति के मामले में, यह योग चिंता और खुशी से मुक्त करने वाला बनाता है. शनि के साथ चंद्रमा की युति मानसिक शांति के लिए अनुकूल नहीं होती है, लेकिन यदि तुला या मकर राशि में युति हो या बृहस्पति से दृष्ट हो तो कुछ कम असर दिखाई देता है. 

चंद्र शनि युति के लाभ कब मिलते हैं 

केंद्र और त्रिकोण के संबंध में चंद्रमा और शनि का परस्पर साथ होना राज योग बनता है. इसके कारण आगे बढ़ने का मौका मिलता है, जीवन को उच्च स्तर तक ल जाने का बढ़ावा दे सकता है. तुला लग्न के लिए चतुर्थ और पंचम भाव का स्वामी शनि है. यदि यह दसवें भाव में हो और दसवें भाव का स्वामी चंद्रमा यदि पंमम भाव में हो तो दशम और पंचम भाव के स्वामियों के बीच आपसी आदान-प्रदान होगा, और इसके परिणामस्वरूप करियर में अच्छा मौका मिल पाएगा. आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति होगी. दशम वें भाव में कर्क राशि में शनि और चंद्रमा की युति हो तो राजयोग भी बनेगा. इसी प्रकार, वृश्चिक लग्न के लिए, चतुर्थेश शनि और नवमेश चंद्रमा की युति समृद्धि प्रदान कर सकती है. वृश्चिक और तुला लग्न दोनों के लिए यह योग अत्यधिक लाभकारी हो सकता है और बहुत शुभ फल प्रदान करता है. 

इसी प्रकार शनि और चंद्रमा की युति आध्यात्मिक प्रगति के लिए अनुकूल मानी जाती है. अंतहीन चिंताओं का सामना करने और कठिनाई और बाधाओं से भरा जीवन जीने के बाद, आध्यात्मिकता की ओर झुकाव होता है. एक समय ऐसा आता है जब शनि व्यक्ति को सभी सांसारिक बंधनों, छल-कपट, लालच, झूठी चकाचौंध और पापों से वैराग्य की भावना देता है. लेकिन इसके अतिरिक्त इस आध्यात्मिक प्रगति के लिए शनि-चंद्र की युति को गुरु और केतु का सहयोग देने वाला होता है. जन्म स्थान से दूर सफलता के लिए चंद्रमा और शनि योग अच्छा माना जाता है.