बृहस्पति का वक्री गोचर और वक्री ग्रह के क्या परिणाम होते हैं?
बृहस्पति एक बहुत ही शुभ ग्रह है इसकी महत्ता के बारे में जन्म कुंडली में यदि हम देखें तो यदि ये शुभ हैं तो व्यक्ति के लिए सभी काम सकारात्मक रुप से होते चले जाते हैं. किंतु यदि ये सकारात्मक नहीम है तो काम के क्षेत्र में व्यक्ति को काफी परेशानी उठानी पड़ती है. इस कारण से बृहस्पति का वक्री होना उसके कमजोर पक्ष की ओर इशारा करता प्रतीत होता है. कोई भी ग्रह जब वक्री होता है तो उसके परिणाम कई तरह से बदलते चले जाते हैं. इसी में बृहस्पति ग्रह से संबंधित फल कई प्रकार के हो सकते हैं जो संपूर्ण कुंडली पर निर्भर करते हैं लेकिन सामान्य तौर पर यही परिणाम होते हैं.
वक्री होने पर बृहस्पति ग्रह अपना स्वभाव छोड़ देता है. एक मजबूत शनि एक मेहनती और श्रमसाध्य बनाता है, लेकिन वक्री बृहस्पति का लोगों को गर्व से परिपूर्ण एवं आलसी बनाने का एक बहुत ही प्रमुख प्रभाव भी देखने को मिलता है. एक मजबूत बृहस्पति व्यक्ति को धार्मिक बनाता है, लेकिन वक्री बृहस्पति इसके विपरीत काम करता है. यह वक्री होने पर जरुरी नहीं है कि किसी व्यक्ति को धर्म से अलग ले जाएगा लेकिन धर्म को लेकर अलग सोच अवश्य देने की स्थिति को दर्शाता है. यह व्यक्ति की पारिवारिक परंपराओं से अलग कट्टरपंथी विचार भी देने वाला होता है.
वक्री होने पर ग्रह अपने से पीछे वाले भाव के फल भी देने वाला माना गया है. क्योंकि ग्रह वक्री है, इसलिए यह पीछे की ओर जाने लगता है. यदि हम पीछे की ओर बढ़ना शुरू करते हैं तो हम को पीछे मुड़कर पीछे देखने की जरूरत होती है. इस प्रकार, यह स्थिति ग्रह की भी होती है.
बृहस्पति का ज्योतिष स्वरुप
बृहस्पति को नौ ग्रहों में सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली ग्रह माना जाता है. यह शुभता, ईमानदारी, ज्ञान, ज्ञान, विस्तार, न्याय, सकारात्मक गुणों और खुशी का प्रतिनिधित्व करता है. यह दूसरे, पांचवें, नौवें, दसवें और एकादश भाव का कारक है. बृहस्पति पूर्वावास, विशाखा और पूर्वाभाद्र नक्षत्र के स्वामी होते हैं. यह साल में लगभग चार महीने वक्री अवस्था में रहते देखे जा सकते हैं. . बृहस्पति एक राशि में लगभग एक या सवा वर्ष की अवधि तक रहता है और राशि चक्र को पूरा करने में 13 वर्ष का समय लगा देता है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग बृहस्पति से प्रभावित होते हैं वे अधिक चर्बी वाले और मीठा खाने के शौकिन हो सकते हैं. बृहस्पति का प्रभाव आध्यात्मिक, धार्मिक, दूरदर्शी, विद्वान और दार्शनिक बनाता है. बृहस्पति की दृष्टि पंचम, सप्तम और नवम भाव पर पूर्ण रूप से पड़ती है. माना जाता है कि जिन घरों पर बृहस्पति की दृष्टि होती है, वे शुभ फल देते हैं, लेकिन जिस घर में स्थित होते हैं, वे अशुभ फल देते हैं. बृहस्पति को धनु और मीन राशि के लिए शुभ माना जाता है जबकि कन्या और मिथुन राशि के लिए अशुभ.
बृहस्पति के वक्री होने का फल और परिणाम
बृहस्पति यदि कुंडली में उच्च का हो तो नीच के अनुरुप फल दे सकता है. नीच का हो तो अच्छे ग्रह का फल देने लगता है. अगर पापग्रहों से दृष्ट हो तो अत्यंत अशुभ फल देता है, यदि शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो शुभ फल देता है. सूर्य से दूर होने पर ग्रह स्वतंत्र हो जाता है. उच्च और स्वतंत्र होना बहुत अधिक अच्छा है जो ग्रह को अभिमानी, बहुत मजबूत, अभिमानी और व्यर्थ बनाता है. नीच और वक्री को उच्च होने का फल बताया गया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब ग्रह मुक्त होता है, तो यह अपनी ताकत का फिर से निर्माण करने के लिए काफी मजबूत होता है. इसे ग्रहों के नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है जो इसे कमजोर बनाते हैं. यह विद्रोह करने के लिए स्वतंत्र है. बृहस्पति का वक्री होना इसे किसी ग्रह की संगति से प्रभावित करने वाला भी बना देता है. शुभ के साथ हो तो शुभ और अशुभ के साथ हो तो अशुभ हो जाता है. वक्री ग्रह भी स्वतंत्र होते हैं ऎसे में उनकी संगती जिस भी ग्रह के साथ होती है वह उसे अच्छा या बुरा बनाने में भी काफी सहयोग देती है.
वक्री बृहस्पति ग्रह अपने कारक भाव का फल देता है. इस स्थिति में बृहस्पति वक्री है तो वह पंचम भाव , नवम भाव इत्यादि का भी फल देने में सक्षम होता है. वक्री ग्रह परिवर्तन के प्रबल सूचक बन कर उभरते हैं. वक्री बृहस्पति का अर्थ है शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव , किसी संस्थान शिक्षण स्थल का निर्माण लेकिन आधुनिक बातों को अपनाना. बहुत अधिक वक्री ग्रहों का अर्थ है कि व्यक्ति को चीजों को शुरू करने की आदत है लेकिन बीच में ही छोड़ देना है. ऎसे में बृहस्पति जब वक्री हो जाता है तो उसके कारण अब चीजें वैसी नहीं रहती हैं जैसी कि हम उनके प्रति सोच रखे हुए थे. वक्री प्रभाव का संबंध ग्रह के कारकत्व से होता है. यदि बृहस्पति मेष राशि के लिए वक्री है, तो इसका मतलब यह है कि उसका इस राशि में होकर आध्यात्मिक क्षेत्र में बदलाव करना तथा अपनी शिक्षा नीति को और अलग अंदाज से करना
वक्री बृहस्पति अपनी महादशा के उत्तरार्ध में फल देता है
वक्री ग्रह के कारकत्व से संबंधित प्रमुख परिणाम ग्रह के गोचर में वक्री होने पर भी महसूस किए जा सकते हैं. वक्री ग्रह के परिणामों के बारे में दशा एवं ग्रह की कुंडली में स्थिति के सतह साथ गोचर में स्थिति के आधार पर कई तरह के दिशा निर्देश हमें प्राप्त होते हैं. ग्रह का गोचर होकर फल देना परिणाम और प्रभाव को बदल देने वाला होता है. चार या इससे अधिक ग्रहों के वक्री होने से बहुत प्रबल राज योग भी बनता है इसलिए वक्री होने की स्थिति कुछ विशेष असर भी दिखाती है. बृहस्पति के वक्री होने पर व्यक्ति बहुत स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होता है. कुंडली के थोड़े मजबूत और अन्य शुभ योगों के सहयोग द्वारा वह बहुत ही कुशल व्यक्तित्व भी प्राप्त कर सकता है.