जानिये द्रेष्काण कुण्डली और चतुर्थांश कुण्डली के बारे में विस्तार से

ज्योतिष में जन्म कुण्डली के अतिरिक्त बहुत सी वर्ग कुण्डलियां भी होती हैं. ये वर्ग कुण्डलियां जातक के जीवन के किसी न किसी क्षेत्र को बारीकी से जांचने के लिए उपयोग की जाती है. वर्ग कुण्डली से धन, संतान, स्वास्थ्य, जीवन साथी इत्यादि के विषय में अलग-अलग रुप से विचार किया जाता है.

इन वर्ग कुण्डलियों में जो द्रेष्काण कुण्डली है, वह भाई बहनों के सुख एवं रोग इत्यादि को समझने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इसके अतिरिक्त दूसरी चतुर्थांश वर्ग कुण्डली घर और धन संपदा के लिए देखी जाती है.

द्रेष्काण कुण्डली

द्रेष्काण कुण्डली जातक के भाई-बहनों का अध्ययन करने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इसी के साथ इस द्रेष्काण कुण्डली को रोग इत्यादि के लिए भी देखा जाता है. इस वर्ग कुण्डली में 30 अंश को तीन बराबर भागों में बाँटा जाता है.

0 से 10 अंश.

10 से 20 अंश

20 से 30 अंश

पहला द्रेष्काण

जन्म कुण्डली में 0 से 10 अंश के बीच में कोई ग्रह है तो वह द्रेष्काण कुण्डली में उसी राशि में लिखा जाएगा जिस राशि में वह जन्म कुण्डली में है. माना जन्म कुण्डली में कोई ग्रह वृष राशि में 0 से 10 अंश पर स्थित है तो द्रेष्काण कुण्डली में भी वह ग्रह वृषभ कुण्डली में जाएगा.

पहला द्रेष्काण नारद कहलाता है, इस के प्रभाव स्वरुप जातक में भी ऋषि नारद जैसे गुणों का प्रभाव देखने को मिलता है. लग्न या लग्न के स्वामी अगर पहले द्रेष्काण में हो तो जातक में सभी प्रकार की बातों एवं ज्ञान को बटोरने की इच्छा होती है. वह सूचना का संग्रह करना जानता है. अपने ज्ञान को दूसरों के साथ बांटने की भी बेहतर योग्यता होती है. जातक में दूसरों का कल्याण करने की भावना भी होती है. जातक के मन में अधिक समय तक बात रह भी नहीं पाती हैं. वह बातों का धनी होता है कई बार चुगलखोर भी हो सकता है. इस द्रेष्काण में जन्मा जातक सहनशील और धैर्यवान होता है. कार्य करने में निपुण और प्रतिभाशाली होता है.

दूसरा द्रेष्काण

जन्म कुण्डली में10 से 20 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो वह अपनी राशि से पाँचवीं राशि में जाएगा. माना सूर्य जन्म कुण्डली में 17 अंश का धनु राशि में स्थित है. धनु राशि से पांचवीं राशि देखी जाएगी कौन सी है. धनु राशि से पाँचवीं राशि मेष राशि है. द्रेष्काण कुण्डली में सूर्य मेष राशि में लिखा जाएगा. द्रेष्काण कुण्डली का लग्न भी इसी तरह से निर्धारित किया जाएगा.

दूसरा द्रेष्काण अगस्त कहलाता है. इस द्रेष्काण में जन्मा जातक ज्ञानी और प्रतिभावान होता है. अगस्त द्रेष्काण के लग्न या लग्नेश में जन्मा जातक प्रतिभावान और मेधावी होता है. उसमें कार्यों को कर सकने की कुशलता भी होती है. अपने कामों को पूरा कर लेने की योजनाओं को पूरा करने की अच्छी योग्यता भी होती है. जातक अपने लक्ष्यों के प्रति एकाग्रचित भी होता है. अपने निर्णय को पूरा करने की लगन और जनून भी जातक में होता है.

तीसरा द्रेष्काण

जन्म कुण्डली में 20 से 30 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो द्रेष्काण कुण्डली में वह ग्रह अपनी राशि से नवम राशि में जाएगा. माना शनि जन्म कुण्डली में मीन राशि में स्थित है. मीन राशि से नवम राशि वृश्चिक राशि होती है तो शनि द्रेष्काण कुण्डली में वृश्चिक राशि में लिखे जाएंगे.

जन्म कुण्डली का तीसरा द्रेष्काण दुर्वासा कहलाता है. किसी भी जातक के लग्न या लग्नेश के तीसरे द्रेष्काण में होने पर व्यक्ति में क्रोध की अधिकता होती है. वह अपने मनोकूल काम करना अधिक पसंद करता है. काम में अपनी निष्ठ का पालन करता है और चाहता है की बिना किसी गलती के अपने काम को पूर्ण रुप से उचित प्रकार से कर सके. भावनाओं में बहने वाला कुछ लापरवाह और कठिन परिस्थितियों में जीवन जीने वाला भी हो सकता है.

चतुर्थांश कुण्डली या D-4 | Chaturthansha Kundali or D-4

इस कुण्डली से जातक की चल-अचल सम्पत्ति तथा भाग्य का अनुमान लगाया जाता है. इस वर्ग को चतुर्थांश या पदमांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 4 बराबर भाग किए जाते हैं. एक भाग 7 अंश 30 मिनट का होता है.

जन्म कुण्डली में ग्रह यदि पहले चतुर्थांश में स्थित है तो वह उसी राशि में चतुर्थांश कुण्डली में जाएगा.

ग्रह दूसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में स्थित है, उससे चौथी राशि में जाएगा.

ग्रह यदि तीसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में है उससे सातवीं राशि में जाएगा.

ग्रह यदि चौथे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में स्थित है उससे दसवीं राशि में जाएगा.

माना जन्म कुण्डली में कोई ग्रह या लग्न वृष राशि में पहले चतुर्थांश में स्थित है तो वह चतुर्थांश कुण्डली में वृष राशि में ही जाएगा. यदि वृष राशि में कोई ग्रह या लग्न दूसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह चतुर्थांश कुण्डली में सिंह राशि में जाएगा. यदि कोई ग्रह या लग्न जन्म कुण्डली में तीसरे चतुर्थांश में स्थित है तो बुध या लग्न चतुर्थांश कुण्डली में वृश्चिक राशि में जाएगा. यदि कोई ग्रह या लग्न जन्म कुण्डली में चौथे चतुर्थांश में वृष राशि स्थित है तो वह चतुर्थांश कुण्डली में कुम्भ राशि में जाएगा.

आइए आपको चतुर्थांश कुण्डली का वर्गीकरण करना बताएँ :-

पहला चतुर्थांश

0 से 7 अंश 30 मिनट तक पहला चतुर्थांश होता है इस चतुर्थांश को सनक कहा जाता है. इस चतुर्थांश में जन्मा जातक सभी को आदर देने वाला और उदारता से भरपूर होता है. व्यक्ति अपने कार्यों से दूसरों के मध्य लोकप्रियता पाता है. लोगों के सहयोग से जीवन में सफलता भी पाता है.

दूसरा चतुर्थांश

7 अंश 30 मिनट से 15 अंश तक दूसरा चतुर्थांश होगा. इस चतुर्थांश को सनन्दन कहा जाता है. इस चतुर्थांश का प्रभाव व्यक्ति को आनंदित बनाता है. जातक दूसरों का दुख दूर करने वाला होता है. जातक अपनी मुस्कान को दूसरों के चेहर पर भी लाने की कोशिश रहती है.

तीसरा चतुर्थांश

15 अंश से 22 अंश 30 मिनट तक तीसरा चतुर्थांश होगा. यह चतुर्थांश सनत कुमार बच्चे के जैसा और निष्कपट व्यवहार वाला होता है. दूसरों को सहज रुप से आकर्षित करता है. जातक लक्ष्यों को पाने में बहुत तेज होता है और यही उसका गुण होता है.

चौथा चतुर्थांश

22 अंश 30 मिनट से 30 अंश तक चौथा चतुर्थांश होगा. इस चतुर्थांश को सनातन के नाम से जाना जाता है. य्दि जातक का लग्न अथवा लग्नेश अगर इस अंतिम चतुर्थांश में हो तो व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होता है. ऎसे कामों को करने वाला जिनमें स्थिरता होनी आवश्यक होती है.