कारकांश और उसका कुण्डली में भाव महत्व
कारकांश आत्मकारक और नवमांश का आपसी संबंध दर्शाता है. इस कुंडली की मजबूती और नवांश की शक्ति के आपसी संबंध की भी व्याख्या करने वाला होता है. कारकांश D9 में वह राशि है जहां D1 का आत्मकारक ग्रह स्थित है, जिस प्रकार नवांश हमें लग्न कुंडली की बारीकियां बताता है, उसी प्रकार कारकांश हमें आत्मकारक और व्यक्ति के बारे में अधिक बताता है.
जब नवमांश राशि जिसमें डी 1 अर्थात लग्न स्वामी को रखा जाता है और कारकांश में केवल शुभ ग्रह होते हैं और केवल शुभ ग्रहों से देखा जाता है, तो व्यक्ति राजा के समान होगा. यदि कारकांश से केंद्र और त्रिकोण केवल शुभ हैं और कोई अशुभ दृष्टि नहीं है तो व्यक्ति के पास न केवल धन होगा बल्कि विद्या भी होगी. यदि इन भावों में शुभ और अशुभ दोनों भाव हों तो मिश्रित परिणाम होंगे.
कारकांश से भाव का फल कैसे जानें
नवांश को लग्न के रूप में कारकांश के साथ एक चार्ट के रूप में अध्ययन किया जा सकता है. इनमें से प्रत्येक घर में मौजूद ग्रहों का व्यक्ति पर बहुत महत्व होता है. इसके प्रत्येक भाव में कारकांश के प्रभाव में बदलाव होगा जो कुंडली के द्वारा समझा जा सकता है. कारकांश से प्रयेक भाव की स्थिति को उसके स्वामी राशि एवं उस पर पड़ने वाले प्रभावों को जानकर इसे समझा जा सकता है.
पहला भाव स्थान
जब पहले भाव में कारकांश होगा तो उसकी अन्य ग्रहों के साथ युति एवं दृष्टि का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होगा. कारकांश में सूर्य होने पर व्यक्ति को सरकार से काम मिलता है. चंद्रमा कामुकता के साथ-साथ विद्वता भी देता है. मंगल व्यक्ति को शस्त्रों के प्रति रुचि पैदा करता है. जब इस मंगल पर अशुभ दृष्टि हो तो व्यक्ति के पास रखे शास्त्र नियम विरुद्ध हो सकते हैं. बुध कला, शिल्प और व्यवसाय में शिक्षा, बुद्धि और प्रतिभा प्रदान करता है. बृहस्पति विद्या, अध्यात्म और अच्छे कर्मों में रुचि देता है. शुक्र दीर्घायु, कामुकता और सरकारी मामलों के लिए जिम्मेदारी देता है. शनि व्यक्ति को पारिवारिक व्यवसाय का पालन कराता है जबकि राहु व्यक्ति को डॉक्टर, मशीनों का निर्माता और चोर बनाता है. केतु जातक को चोर और बड़े वाहनों का सौदागर बनाता है.
द्वितीय भाव स्थान
कारकांश से दूसरा भाव धन को दर्शाता है. इसके अलावा उसे रिश्तों इसकी प्रवृत्ति के बारे में सूचना देता है. यदि कारकांश से दूसरा घर शुक्र या मंगल के स्वामित्व वाले घर में है तो व्यक्ति के किसी अन्य व्यक्ति के जीवनसाथी के साथ संबंध होंगे. दूसरे भाव पर मंगल और शुक्र की दृष्टि इसे जीवन भर चलने वाली प्रवृत्ति बनाती है. इस घर में बृहस्पति प्रवृत्ति को बढ़ाता है जबकि केतु इसे प्रतिबंधित करता है. इस स्थिति में राहु धन का नाश करता है.कारकांश में राहु और सूर्य की युति इंगित करती है कि व्यक्ति को सांपों का भय होगा. अशुभ की दृष्टि सर्प से हानि का संकेत देती है. शुभ षडवर्ग में यह युति व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति चिकित्सक बनाती है. मंगल की दृष्टि हो तो आग लगाने वाला होता है. करकांश में गुलिका पर पूर्णिमा की दृष्टि चोर या चोरी के कारण परेशानी का असर दिखाई देता है.
तृतीय भाव स्थान
कारकांश से तीसरा भाव व्यक्ति के साहस के बारे में बताता है. इस घर में एक अशुभ व्यक्ति व्यक्ति को अधिक साहसी बनाता है जबकि एक शुभ ग्रह इसके विपरीत करता है. यहां का मंगल साहस को बहुत बढ़ाता है. यहां पर बैठा राहु व्यक्ति में चालाकी और चपलता देने वाला होता है. व्यक्ति अपने को लेकर काफी अग्रसर होता है. भौतिक चीजों की प्राप्ति में सक्षम होता है. बृहस्पति यहां हो तो अभिमान से भर देने वाला होता है.
चतुर्थ भाव स्थान
कारकांश से चौथा भाव व्यक्ति के घर के स्थानीवं उसकी संपत्ति बारे में अधिक बताता है. जब इस घर में शुभ हों जैसे शुक्र और चंद्रमा की स्थिति या दृष्टि हो तो व्यक्ति का घर काफी सुंदर हो सकता है. उसमें सुविधाओं की अधिकता हो सकती है. इसके अलग अगर यहां शनि और राहु का प्रभाव होगा तो घर में पुरानी और नवीन चीजों का समावेश देखने को मिल सकता है. केतु और मंगल ईंट के घर का संकेत देते हैं जबकि बृहस्पति लकड़ी के घर का संकेत देते हैं. सूर्य का प्रभाव भवन की शुभता एवं चमक को दर्शाने वाला होता है. इस पर शुभ अशुभ ग्रह का प्रभाव अलग अलग रुप में देखने को मिल सकता है.
पंचम भाव स्थान
पंचम भाव स्थान व्यक्ति की रुचि के साथ साथ उसकी बौद्धिकता के लिए भी विशेष हो जाता है. इस घर में पाप ग्रहों का प्रभाव क्रोध एवं जल्दबाजी दे सकता है ओर शुभ ग्रह क अप्रभाव चिचारशीलता के साथ आगे बढ़ने की क्षमता देने वाला होता है.इस भाव में मौजूद ग्रहों का असर व्यक्ति के जीवन के आनंद एवं उसके आत्मिक रुप पर अधिक असर डालता है जिसके द्वारा व्यक्ति जीवन के उचित पक्ष को जान पाने में सफल भी हो सकता है
छठा भाव स्थान
छठा कारकांश से देखने पर व्यक्ति की इच्छा शक्ति एवं उसके कार्यों का परिणाम दर्शाता है. यह कुछ मामलों में तीसरे भाव से समानताएं दिखाता है. प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि जब यहां शुभ ग्रह होगा तो व्यक्ति आत्मिक रुप से कमजोर एवं पराधीन भी हो सकता है. वह प्रयास करने की कोशिश तो करेगा लेकिन उसे लेकर बहुत अधिक ज्वलंत नहीं बनता है. इसके विपरित कारकांश से छठे भाव में पाप ग्रह व्यक्ति को बेहतर असर दिलाने वाले होते हैं यहां व्यक्ति परिश्रम द्वारा भाग्य को निर्मित कर पाने में सफल होता है.
सातवां भाव स्थान
कारकांश से सप्तम भाव का असर व्यक्ति के जीवन में उसके हमसफर और उसके साथ जुड़े साझेदारों के लिए उत्तरदायी होता है. यहां व्यक्ति अपने जीवन के उस पक्ष को प्राप्त करता है जिसके समक्ष उसे समान बल मिलता है. वह एक समान क्षमता को पाता है. शुभ ग्रहों का होना इस बल को सकारात्मक दिशा देता है और नकारात्मक ग्रहों का होना इसे अलगाव और कठोरता के गुण से भर देने वाला होता है.
आठवां भाव स्थान
कारकांश से आठवां भाव जीवन के उन पक्षों को दर्शाता जो व्यक्ति दूसरों के समक्ष आसानी से नहीं लाना चाहता है. यह व्यक्ति का आंतरिक स्थान होता है. जिसमें शुभ ग्रहों की स्थिति कमजोर बना देती है. अशुभ ग्रह मजबूती देते हुए बचाव देने वाले होते हैं लेकिन अपने फलों को अवश्य प्रदान करते हैं.
नौवां भाव स्थान
नवम भाव कारकांश से वह स्थान होता है जो कर्म से अधिक हमारे भाग्य का परिणाम देने वाला होता है. यह धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बारे में बताता है. जब नवम भाव पर शुभ ग्रह या शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्थिति काफी सकारात्मक रहती है व्यक्ति परंपराओं के साथ बेहतर रुप से जुड़ता है. यदि यहां अशुभ प्रभाव होगा तो रुढ़ता बढ़ सकती है. विचारों में क्रांतिकारी बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं. अपने अनुसार परंपराएं स्थान पाती हैं.
दसवां भाव स्थान
कारकांश से दशम भाव स्थान व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण भाग होता है. यह व्यक्ति के जीवन का निर्धारण करने में सक्षम होता है. यही भविष्य की दिशा को स्थापित करता है. शुभ ग्रह व्यक्ति को बुद्धिमान और समृद्ध बनाता है. यहां अशुभ होने से व्यापार में हानि होती है साथ ही पिता के सुख से भी वंचित होना पड़ता है.
एकादश भाव स्थान
यह कारकांश से जीवन के लाभ को दर्शाता है. एकादश भाव में शुभ ग्रह हों या उन पर दृष्टि हो तो बड़े वरिष्ठ लोगों से लाभ और सुख मिलना संभव होता है व्यक्ति अपनी इच्छाओं के प्रति बंधन को नहीं पाता है. पाप ग्रहों का होना व्यक्ति को बंधन में डालता है. सामाजिक अस्थिरता अधिक दिखाई दे सकती है.
द्वादश भाव स्थान
कारकांश से बारहवां भाव स्थान व्यक्ति के लिए बाहरी संपर्क से जुड़ने का साधन बनता है. यह नवीन संस्कृतियों का रहस्य दिखलाता है. जीवन की विचारधारा को भौतिकता एवं आध्यात्मिकता के साथ जोड़ने और समझने की क्षमता देता है. जीवन का व्यय होगा या उसकी प्राप्ति इसी से देखी जाती है.