कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र और बाधकेश प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र और बाधकेश प्रभाव 

कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र बनता है. शुक्र कर्क लग्न के लिए बाधकेश होता है. शुक्र एक अनुकूल शुभ ग्रह होने पर भी कर्क लग्न के लिए बाधक का काम करता है. शुक्र की स्थिति कई मायनों में अपना असर डालता है. कर्क राशि एक जल राशि है, जिसका स्वामी चंद्रमा है, जो एक जलीय ग्रह है. चंद्रमा के साथ शुक्र के संबंध अनुकूल नहीं माने जाते हैं. वैसे तो दोनों ग्रह शुभ हैं लेकिन इन दोनों ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे के लिए शत्रुतापूर्ण संबंध साझा करता है. 

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वहीं शुक्र बाधक बन कर और अधिक परेशानी देने वाला होता है. इस प्रभाव से लग्न के लोग जल तत्व के प्रबल प्रभाव में होते हैं और उनमें भावनाओं की भी स्थिति काफी जोश से भरी होती है. होता है. शुक्र का प्रभाव संवेदनशील बनाता है और बहुत जल्दी लोगों से जुड़ जाते हैं लेकिन दूसरों से उतना लगाव नहीं मिल पाता है. वे प्यार में विशेष रूप से कमज़ोर होते हैं क्योंकि वे आसानी से मीठी-मीठी बातें करके आहत हो सकते हैं. दूसरों पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं और प्यार के मामलों में काफी आशावादी होते हैं. दूसरों के प्रति बहुत सहानुभूति रखते हैं.

बाधकेश शुक्र का कर्क लग्न के लिए प्रभाव 

कर्क राशि में शुक्र व्यक्ति को सामाजिक और व्यावसायिक सफलता के मामले में बुद्धिमान, विद्वान, मजबूत, गुणी और शक्तिशाली बनाता है. यह रचनात्मक और कलात्मक गतिविधियों के लिए एक मजबूत प्रवृत्ति भी देता है. ऎसे में शुक्र का बाधकेश होना दिक्कत भी बना जाता है. लोग कला और सौंदर्य जैसे रचनात्मक क्षेत्रों में अच्छा करने का सोचते हैं वो बाधकेश के कारण ही परेशानी झेलते हैं. बाधकेश का प्रभाव नशे या फिर गलत संबंधों की ओर झुकाव भी देता है. इन संबंध के कारण आमतौर पर परेशानी में पड़ जाते हैं.  काफी मूडी और अप्रत्याशित भी हो सकते हैं नाराज़ होने और सारा दोष खुद पर डालने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए. कर्क लग्न के लिए बाधकेश शुक्र महादशा के परिणाम.

बाधकेश शुक्र इस लग्न कुंडली में शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी है. शुक्र को इस लग्न कुंडली में सम ग्रह माना गया है क्योंकि यह दो शुभ भावों का स्वामी है. बाधकेश शुक्र यदि लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम और एकादश भाव में स्थित हो तो अपनी क्षमता के अनुसार अपना फल देता है. तृतीय, षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित हो तो अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देता है. बाधकेश शुक्र यदि अच्छे भाव में स्थित हो तो उसकी दशा में उसका रत्न धारण करने से उसकी अनुकूलता में वृद्धि होती है. बाधकेश शुक्र यदि अशुभ भाव में स्थित हो तो उसका दान जपने से इस ग्रह की अशुभता कम होती है.

कर्क लग्न में शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है. चतुर्थ भाव का स्वामी होने के कारण यह माता, भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदार, शांति, जल, जनता, स्थायी, संपत्ति इत्यादि की स्थिति, अफवाह, प्रेम विवाह और प्रेम प्रसंग जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं एकादश भाव का स्वामी होने के कारण यह लोभ, लाभ, रिश्वतखोरी, गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतान, सगे-संबंधी इत्यादि बातों के लिए विशेष होता है.

कर्क लग्न पर बाधकेश शुक्र की महादशा का प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र का प्रभाव जब महादशा में मिलता है तो इसके अकरण कई तरह के असर दिखाई देते हैं. बाधकेश शुक्र ग्रह जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव और एकादश भाव का स्वामी है. इसलिए इसे कर्क लग्न के लिए अशुभ ग्रह माना जाता है. यह कर्क लग्न के जातकों के लिए नकारात्मक ग्रह है, लेकिन शुभ भाव में और शुभ ग्रहों के साथ होने पर अनुकूल परिणाम देने में सहयोग भी करता है. विशेष रुप से बाधकेश शुक्र जब उच्च स्थिति में हो जैसे मीन राशि में उच्च का है, तो यह धन, व्यावसायिक स्थिति और सांसारिक उपलब्धियों में असामान्य वृद्धि लाएगा. 

लेकिन बाधकेश शुक्र कन्या राशि में अशुभ है और अशुभ शनि, राहु, केतु और मंगल से पीड़ित है, तो यह व्यवसाय, करियर में विफलता ला सकता है. यह आर्थिक रुप से कमजोर बना सकता है. बाधकेश शुक्र महादशा के दौरान परिणाम बेहद खराब होंगे.  कन्या राशि शुक्र की नीच राशि है. अत: कन्या राशि में आने पर छोटे-बड़े भाई-बहनों से कष्ट उत्पन्न होने की संभावना रहती है. 

पिता से मन मुटाव रहता है, धर्म में आस्था नहीं रहती, विदेश यात्रा से लाभ नहीं मिलता, सुख-सुविधाओं में कमी रहती है तथा काफी मेहनत के बाद भी लाभ में कमी रहती है. प्रतियोगिता में विजय काफी मेहनत के बाद ही मिलती है, कोर्ट-कचहरी के मामले होते हैं तथा माता और बड़े भाई-बहन को कष्ट रहता है. शुक्र की महादशा में कोई न कोई खर्च होता रहता है. विदेश में सेटलमेंट के योग बनते हैं. हर काम में रुकावट, देरी, धन की कमी और रोग हो सकते हैं.