कर्क लग्न के लिए सभी ग्रहों का दशा फल
कर्क लग्न को एक अत्यंत ही शुभ लग्न के रुप में जाना जाता है. यह चंद्रमा के स्वामित्व की राशि का लग्न होता है. इस पर चंद्रमा के गुणों के साथ राशि गुणों का भी गहरा असर देखने को मिलता है. कर्क लग्न में ग्रहों की दशाओं का प्रभाव सभी ग्रहों के भाव स्वामित्व एवं उनकी लग्न अनुसार स्थिति के अनुरुप ही उन्हें प्राप्त होता है. इस लग्न के लिए प्रत्येक ग्रह की स्थिति अलग अलग तरह से अपना असर दिखाने वाली होती है. आइये जानते हैं की कर्क लग्न में नव ग्रहों की दशाएं अपना असर किस प्रकार से डाल सकती हैं.
कर्क लग्न में चंद्र दशा का प्रभाव
कर्क लग्न के लिए चंद्रमा लग्न यानि के प्रथम भाव का स्वामी होता है. अब इस लग्न का लग्नेश होकर चंद्रमा शुभ फल देने वाला होता है. चंद्रमा की महादशा लग्न महादशा के नाम से जानी जाती है. इस महादशा के आने के साथ ही जीवन में अनेक बदलाव भी देखने को मिलते हैं. यह दशा व्यक्ति को शांत लेकिन बेचैन बनाने वाली होती है. इस दशा के दोरान व्यक्ति को आर्थिक लाभ प्रेम एवं सुख की प्राप्ति होती है. अगर चंद्रमा की स्थिति कुंडली में शुभ हो तो इस दशा में व्यक्ति कई तरह के शुभ फलों को पाता है लेकिन यदि चंद्रमा कमजोर है पाप प्रभावित होता है तो उस स्थिति में अच्छे फल कमजोर हो जाते हैं. इस दशा में दान और पाठ करने से इनका अशुभ फल दूर हो जाता है.
कर्क लग्न में सूर्य दशा का प्रभाव
कर्क लग्न में सूर्य दूसरे भाव के स्वामी बनते हैं. सूर्य कर्क लग्न के साथ मित्र भाव होता है लेकिन मारक भाव का स्वामी भी बनता है. इस कारण से इसके फल भी कुछ कम ही दिखाई देते हैं. दूसरे भाव को मारक भाव कहा जाता है, इसलिए सूर्य कर्क लग्न में मारक ग्रह बन जाता है. सूर्य की महादशा जब भी इस लग्न में चलती है तो स्वभाव में क्रोध की अधिकता दे सकती है. शरिर में पित्त की अधिकता के कारण स्वास्थ्य परेशानी हो सकती है. कुछ धन का आगमन भी होता है लेकिन खर्चों की अधिकता से यह अधिक सहायक नहीं बन पाती है. कुल मिलाकर यह कम ही शुभता देने वाली दशा होती है. इस समय के दोरान व्यक्ति को सरकार की ओर से कुछ बेहतर लाभ मिल सकता है लेकिन यह तभी संभव होता है जब सूर्य की स्थिति कुछ अच्छी हो. पाप ग्रहों के प्रभाव होएन पर यह निर्बल दशा बन सकती है.
कर्क लग्न में बुध दशा प्रभाव
कर्क लग्न के लिए बुध महादशा तीसरे और बारहवें भाव की दशा कहलाती है. इस लग्न के लिए बुध की दशा अधिक अनुकूल नहीं होती है. बुध दशा का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में परिश्रम की अधिकता के साथ साथ बाहरी संपर्क से लाभ को दिखाने वाला समय होता है. यह दशा लगातार होने वाली यात्राएं भी देने में सहायक बनती है. बुध का संबंध चंद्रमा के साथ शत्रुता का होता है और इस कारण भी यह दशा अधिक अनुकूलता नहीं दे पाती है. लेकिन इसके बावजूद यदि बुध कुंडली में अनुकूल स्थिति में है शुभ ग्रहों के साथ है तो उस स्थिति में यह दशा संतोषजनक फलों को देने में सक्षम होती है. किंतु यदि बुध पाप प्रभवैत होता है तो उस स्थिति के कारण गलत संगत और गलत कार्यों के चलते कई तरह से नकारात्मक फलों को दिखाने वाली होती है.
कर्क लग्न में शुक्र दशा प्रभाव
शुक्र दशा का प्रभाव कर्क लग्न वालों के लिए मिलाजुला होता है. शुक्र एक शुभ भाव स्थान का स्वामी होकर आर्थिक लाभ घर की प्राप्ति सुख दे सकता है. शुक कर्क लग्न के लिए चौथे और एकादश भाव का स्वामी होता है. इस लग्न कुंडली में शुक्र को सम फल देने वाला ग्रह माना गया है. यह केन्द्र का स्वामी होकर शुभ हो जाता है ओर एकादश का स्वामी होकर कमजोर बन जाता है. यहां इच्छाएं अनियंत्रित दिखाई दे सकती हैं. अगर कर्क लग्न कुंडली में शुक्र शुभ स्थिति में हो तो अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. लेकिन अगर शुभ नीचस्थ हो या पप प्रभाव में खराब भाव स्थानों में बैठा हो तब खराब फल ही देता है. अगर शुक्र की दशा खराब फल देती है तो सुख की कमी जीवन भर व्यक्ति का पिछा करने वाली होती है.
कर्क लग्न में मंगल दशा प्रभाव
कर्क लग्न के लिए मंगल दशा को बहुत ही शुभदायक माना गया है. कुंडली में मंगल केन्द्र त्रिकोण का स्वामी होने के कारण ही अत्यंत शुभ होता है. कर्क लग्न के लिए मंगल को पंचम भाव का स्वामित्व मिलता है. इसके अलावा दशम भाव का स्वामीत्व प्राप्त होता है. मंगल की चंद्रमा के साथ अच्छी मित्रता भी होती है इसलिए मंगल दशा जीवन में शुभ फलों के आगमन को दर्शाने वाला समय होती है. कर्क लग्न के लिए मंगल को योग कारक ग्रह भी कहा जाता है. कुंडली में मंगल अगर शुभ स्थिति में है तो इस दशा में व्यक्ति अच्छे लाभ पाता है. अपनी क्षमताओं को बेहतर कर पाता है. सामाजिक प्रतिष्ठा का विशेष समय होता है. लेकिन य्दि मंगल किसी खराब स्थिति में हो पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो उस स्थिति में मंगल दशा का अधिक फल नहीं मिल पाता है.
कर्क लग्न में शनि दशा प्रभाव
कर्क लग्न के लिए शनि ग्रह को काफी खराब माना गया है. शनि इस लग्न के लिए सातवें और आठवें भाव के स्वामी होते हैं और इस कारण से शनि का प्रभाव काफी कठोर फलों को देने वाला भी होता है. शनि की दशा का प्रभाव भी इस लग्न के लिए खराब फल देने वाला होता है. कुंडली में किसी भी भाव में शनि हों वह अशुभ फल ही अधिक दिखाने वाले होते हैं. लेकिन यदि शनि छठे, आठवें और बारहवें भाव में हों तो उस स्थिति में विपरीत राजयोग बना कर कुछ सकारात्मक परिणाम देने की क्षमता भी रखते हैं. शनि दशा का समय आने पर विशेष रुप से ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. शनि की दशा में शांति पाठ एवं दान पुण्य के कार्य करते रहना ही उचित होता है.
कर्क लग्न में गुरु दशा प्रभाव
कर्क लग्न के लिए बृहस्पति छठे और नवम भाव का स्वामी होता है. बृहस्पति चंद्रमा के साथ मित्र संबंध भी बनाता है इस कारण इस लग्न के लिए शुभ भी माना गया है. भाग्येश होकर अत्यंत शुभ होता है लेकिन साथ में छठे का स्वामी होकर कुछ खराब भी होता है. यदि कुंडली में बृहस्पति अच्छी स्थिति में हो तब इस दशा के दौरान भाग्य का सहयोग मिलता है. व्यक्ति अपने जीवन में कई तरह के सकारात्मक परिणाम दिखाता है.
कर्क लग्न में राहु/केतु दशा का प्रभाव
कर्क लग्न के लिए राहु केतु दशा भी एक गंभीर दशा समय होता है. लग्नेश के साथ शत्रु भाव की स्थिति होने के कारण यह दशाएं कई बार अपने नकारात्मक परिणाम दिखाती हैं. लेकिन यदि यह दोनों ग्रह कीसी विशेष स्थान पर हों जहां इनका होना अनुकूल माना गया है, तब उस स्थिति में राहु केतु दशा का प्रभाव अपने प्रभाव में कुछ नरमी दिखाता है और लाभ के संकेत भी देता है.