मेष लग्न के लिए बाधक ग्रह और प्रभाव
मेष लग्न के लिए बाधक ग्रह
मेष लग्न के लिए ग्यारहवां भाव बाधक भाव होता है और इस भाव का स्वामी शनि होता है. शनि यहां बाधक ग्रह की भूमिका निभाता है. शनि की दशा या अंतर्दशा के दौरान व्यक्ति को करियर, आर्थिक स्थिति और सामाजिक प्रतिष्ठा में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. शनि का प्रभाव देरी, रुकावट और असफलता के रूप में भी प्रकट हो सकता है. व्यक्ति को मानसिक तनाव और अवसाद का सामना करना पड़ सकता है.
मेष लग्न के लिए जब बात आती है तो शनि दशा बाधक के रुप में अपना असर दिखाती है. मेष लग्न के लिए इसे अनुकूल नहीं माना गया है. मेष लग्न अग्नि तत्व युक्त राशि है, जिस पर मंगल का अधिकार है. मंगल के साथ शनि का प्रभाव वैसे भी शुभ नहीं माना जाता है ओर एकादश भाव का स्वामी बन कर शनि बाधक ग्रह बन जाता है. इस प्रकार मेष लग्न की कुंडली में शनि के परिणाम अधिकतर कमजोर ही मिलते हैं.
मेष लग्न के लिए बाधक शनि प्रभाव
मेष राशि के लिए यह अत्यंत खास ग्रह भी है क्योंकि यह दशम भाव का भी स्वामी है जो एक केन्द्र भाव स्थान है. नीचस्थ शनि की महादशा अशुभ हो सकती है. यदि शनि राहु, केतु और मंगल से पीड़ित है तो जीवन में कई अवांछित घटनाएं घट दे सकता है. शनि प्रभाव के दौरान स्वास्थ्य समस्याएं, शत्रु और ऋण होने की संभावना रह सकती है. यदि शनि ग्रह अच्छी स्थिति में है तो यह सहायक भी होता है लेकिन पूर्ण रुप से अपना असर नहीं दे पाता है.
मेष लग्न के लिए शनि बाधक दशा का फल
मेष लग्न के लिए शनि का प्रभाव अधिक शुभ नहीं माना जाता है. यह किसी बुरे ग्रह का प्रभाव अधिक दिखाता है. शनि की महादशा के कारण कार्यक्षेत्र पर काफी परेशानी हो सकती है, नौकरी छूटने का भी डर रहता है. महादशा के दौरान व्यक्ति का जीवन कर्ज और बीमारियों से घिर जाता है. इस समय मेहनत तो अधिक होती है लेकिन लाभ कम रहता है शनि सेवक, कर्मचारियों, नशे या गलत चीजों का सेवन, क्रोध, भ्रम, पुरुषार्थ, साहस, पराक्रम, योग आदि का प्रतिनिधि है. कमजोर एवं अशुभ होने पर इन फलों में कमी एवं अशुभता प्रदान कर सकता है.
शनि धार्मिक गतिविधियों के प्रति रुझान बढ़ाता है. व्यक्ति चीजों को जल्दी खत्म करना चाहता है. व्यक्ति को अपने काम में टालमटोल या देरी पसंद नहीं होती. काम में समय सीमा को पूरा करने में अच्छा प्रदर्शन करते हैं. उनका संचार भी मजबूत होता है, जो उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में मदद करता है. हालाँकि, यह स्थिति कभी-कभी बेचैन, अनैतिक और चंचल दिमाग का बना सकती है.
मेष लग्न के लिए बाधक शनि का भाव फल
शनि अधिक पित्त वाला, सभी प्रकार का भोजन करने वाला, उदार, कुल का दीपक तथा स्त्रियों के प्रति कम प्रेम रखने वाला, धीमा ग्रह है. मेष लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति शनि के बाधक होने के कारण शारीरिक कष्ट तथा धन की हानि का सामना करना पड़ सकता है. बाधकेश होकर शनि जिस भी भाव से संबंध बनाता है उसे भी प्रभावित करता है.
प्रथम केन्द्र और शरीर भाव में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि में स्थित शनि के प्रभाव से शारीरिक सौन्दर्य, मान-सम्मान और आय में कुछ कमी आती है, साथ ही राज्य क्षेत्र में भी परेशानियां आती हैं.
द्वितीय धन और कुटुंब भाव में अपने मित्र शुक्र की वृष राशि में स्थित शनि के प्रभाव से आर्थिक क्षेत्र में सफलता के लिए संघर्ष अधिक करना पड़ता है और धन और कुटुंब में वृद्धि होती है. इस स्थान से शुक्र चतुर्थ भाव को तृतीय शत्रु दृष्टि से देखता है.
तृतीय पराक्रम भाव में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में स्थित शनि के प्रभाव से पराक्रम में वृद्धि होती है और उसे अपने भाई-बहनों से पर्याप्त सुख नहीं मिलता है. इसके साथ ही उसे पिता और राज्य क्षेत्र से भी सहयोग मिलता है.
चतुर्थ केन्द्र, माता, सुख एवं भूमि भाव में अपने शत्रु चन्द्र की कर्क राशि में स्थित शनि के प्रभाव से माता एवं भूमि के सम्बन्ध में सफलता से कुछ असंतोष मिलता है, किन्तु सुख के साधन बढ़ते रहते हैं.
पंचम त्रिकोण एवं शिक्षा एवं बुद्धि के क्षेत्र में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि में स्थित शनि के प्रभाव से शिक्षा एवं बुद्धि द्वारा व्यापार के क्षेत्र में सफलता पाता है, किन्तु संतान से मतभेद बना रहता है.
छठे शत्रु भाव में अपने मित्र बुध की कन्या राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक का अपने पिता से बैर होता है तथा सरकारी क्षेत्र में कठिन प्रयासों के बाद सफलता मिलती है. छठे भाव में क्रूर ग्रह की उपस्थिति प्रभावी मानी जाती है, अत: जातक की आय अच्छी रहेगी तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता रहेगा.
शनि सप्तम भाव में है तो अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर उच्च का होकर स्त्री और व्यापार के भाव में बैठा हो तो इसके प्रभाव से व्यक्ति को व्यापार और स्त्रियों में विशेष सफलता मिलती है. पिता और राज्य से भी उसे बहुत लाभ मिलता है. यहां से शनि तृतीय शत्रु दृष्टि से नवम भाव को देखता है, अतः भाग्य वृद्धि में कुछ कठिनाइयां आएंगी.
शनि अष्टम भाव में होने पर अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि में स्थित शनि के प्रभाव से आय के क्षेत्र में कमजोरी रहती है, परन्तु पुरातत्व में लाभ होता है तथा आयु के सम्बन्ध में भी बहुत बल मिलता है. ऐसी ग्रह स्थिति क्रोधी, वाणी में तीक्ष्ण तथा अल्प लाभ पाने वाली होती है.
शनि नवम भाव में होने पर शत्रु गुरु की धनु राशि में बैठे शनि के प्रभाव से भाग्य आरम्भ में थोड़ा सुधरता है, धर्म का भी थोड़ा पालन होता है. पिता और राज्य की शक्ति भी होती है और उनसे लाभ भी प्राप्त होता है.
बाधक शनि दशम भाव में होने पर अपनी स्वराशि मकर में अनुकूलता दे सकता है. पिता और राज्य से विशेष शक्ति मिलती है तथा उनसे लाभ मिलता है. शनि गुरु की मीन राशि में व्यय भाव को तीसरी दृष्टि से देखता है, अतः व्यय अधिक होगा तथा बाहरी संबंधों से असंतोष प्राप्त होता है.
एकादश लाभ भाव में अपनी कुंभ राशि में स्थित बाधक शनि के प्रभाव से आय के क्षेत्र में उत्तम सफलता कम मिलती है. पिता एवं राज्य से भी अच्छा सुख एवं लाभ प्राप्त करने के लिए संघर्ष होता है. शारीरिक सौन्दर्य में कमी आ सकती है. शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण सफलता नहीं मिलती है.
बाधक शनि के द्वादश व्यय भाव में होने पर अपने शत्रु गुरु की मीन राशि में स्थित शनि के प्रभाव से व्यय बहुत अधिक रहते हैं. साथ ही पिता और सरकार से भी हानि उठानी पड़ती है. धन और कुटुंब की वृद्धि के लिए विशेष प्रयास करने होते हैं.