आनंदादि योग जानें इसके शुभ-अशुभ प्रभाव
आनन्दादि योग का उल्लेख भारतीय ज्योतिष शास्त्र में विशेष रूप से किया जाता है. ज्योतिष में, योग का मतलब होता है विभिन्न नक्षत्र, योग तिथि वार इत्यादि की स्थितियों और उनके आपसी संबंधों के माध्यम से उत्पन्न होने वाली विशेष परिस्थितियां. जब जो आनन्दादि योग बनता है, तो उस अनुसार उसका फल मिलता है. यह व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने का कारण बन सकता है या फिर मुश्किल और चुनौतियों को दिखा सकता है. इस लेख में हम आनन्दादि योग के महत्व, इसके बनने के कारण, और इसके प्रभाव को विस्तार से समझेंगे.
ज्योतिष शास्त्र में बनने वाले कुछ खास योग में आनंदादि योग समूह का विशेष स्थान रहा है. ये योग वार और नक्षत्र पर आधारित है. यह योग व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख, सफलता-असफलता और अन्य घटनाओं को प्रभावित करता है. इसमें कुल 28 योग हैं, जिनमें से प्रत्येक का अलग-अलग प्रभाव होता है. इन योगों को किसी विशेष दिन के लिए शुभ या अशुभ माना जाता है. पंचांग में तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार के पांच अंग महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इसके साथ ही मास, मुहूर्त, आनंदादि योग और संवत्सर को भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो मिलकर संपूर्ण फलादेश देते हैं. आइए जानते हैं कि कितने योग होते हैं और आनंदादि योग क्या है
आनंदादि योग होते हैं?
सात दिन और अभिजीत व अश्विनी सहित अट्ठाईस नक्षत्रों को मिलाकर 28 योग बनते हैं. सूर्य और चंद्रमा की राशियों के संयोग से 27 योग बनते हैं. इसी प्रकार, दिन और नक्षत्रों के विशेष संयोग से 28 योग बनते हैं, जिन्हें 'आनंददि' योग कहते हैं.
आनंदादि योगों के प्रभाव इस प्रकार हैं:
- आनन्द- सिद्धि: यह योग सुख और सफलता की प्राप्ति का सूचक है.
- कालदण्ड- मृत्यु: यह योग मृत्यु के निकट होने का संकेत देता है.
- धुम्र- असुख: इस योग से कष्ट और दुख की स्थिति उत्पन्न होती है.
- धाता/प्रजापति- सौभाग्य: यह योग सौभाग्य और समृद्धि का संकेत है.
- सौम्य- बहुसुख: यह योग सुख-समृद्धि और संतोष प्रदान करता है.
- ध्वांक्ष- धनक्षय: यह योग धन का नुकसान होने का संकेत देता है.
- केतु/ध्वज- सौभाग्य: यह योग सौभाग्य और सफलता का योग है.
- श्रीवत्स- सौख्यसम्पत्ति: यह योग समृद्धि और शारीरिक सुख की प्राप्ति का सूचक है.
- वज्र- क्षय: यह योग शारीरिक या मानसिक क्षति का संकेत करता है.
- मुद्गर- लक्ष्मीक्षय: यह योग धन-हानि का कारण बनता है.
- छत्र- राजसन्मान: यह योग राजकीय सम्मान और प्रतिष्ठा का सूचक है.
- मित्र- पुष्टि: यह योग मित्रों से सहयोग और पुष्टि प्राप्त करने का संकेत देता है.
- मानस- सौभाग्य: यह योग मानसिक सुख और अच्छे समय का प्रतीक है.
- पद्म- धनागम: यह योग धन की प्राप्ति का संकेत है.
- लुम्बक- धनक्षय: यह योग धन की हानि का सूचक है.
- उत्पात- प्राणनाश: यह योग जीवन में गंभीर संकट और मृत्यु का संकेत है.
- मृत्यु- मृत्यु: यह योग व्यक्ति की मृत्यु को सूचित करता है.
- काण- क्लेश: यह योग क्लेश और मानसिक संकट का प्रतीक है.
- सिद्धि- कार्यसिद्धि: यह योग कार्यों में सफलता प्राप्त होने का सूचक है.
- शुभ- कल्याण: यह योग शुभ और कल्याणकारी परिणामों की प्राप्ति का सूचक है.
- अमृत- राजसन्मान: यह योग राजकीय सम्मान और सम्मान प्राप्ति का संकेत है.
- मुसल- धनक्षय: यह योग धन की हानि का कारण बनता है.
- गद- भय: यह योग शारीरिक या मानसिक भय का संकेत है.
- मातङ्ग- कुलवृद्धि: यह योग कुल की वृद्धि और सम्मान का प्रतीक है.
- राक्षस- महाकष्ट: यह योग कष्ट और संकट का संकेत है.
- चर- कार्यसिद्धि: यह योग कार्यों में सफलता का प्रतीक है.
- स्थिर- गृहारम्भ: यह योग स्थिरता और घर की नींव का प्रतीक है.
- वर्धमान- विवाह: यह योग विवाह और पारिवारिक वृद्धि का संकेत है.
रविवार को अश्विनी नक्षत्र से गिने, सोमवार को मृगशिरा से गिने, मंगलवार को आश्लेषा से गिने, बृहस्पतिवार को अनुराधा से गिने, शुक्रवार को उत्तराषाढ़ा से गिने और शनिवार को शतभिषा से गिने. रविवार को अश्विनी हो तो आनन्द योग, भरणी हो तो कालदण्ड इत्यादि इस क्रम में योग जानेंगे.
इसी प्रकार से सोमवार को मृगशिरा हो तो आनन्द, आर्द्रा हो तो कालदण्ड इत्यादि क्रम से जानें.शुभ कार्यों की योजना बनाते समय पंचांग में योग का अध्ययन किया जाता है.अशुभ योग के समय विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है.किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए योग के साथ ग्रहों और नक्षत्रों का भी ध्यान रखना आवश्यक है.
आनंदादि योग का सही इस्तेमाल जीवन को सरल और सफल बनाने में सहायक होता है. शुभ योगों में कार्य करने से लाभ होता है, जबकि अशुभ योगों में कार्य करने से बचाव और उपाय आवश्यक है. इसलिए पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं का ध्यान रखते हुए ही महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहिए.