शनि आपकी कुंडली में इस भाव या राशि में देगा शुभ फल

ज्योतिष शास्त्र मे शनि का संबंध धीमी गति और लम्बे इंतजार से रहा है. शनि को एक पाप ग्रह के रुप में भी चिन्हित किया जाता रहा है. शनि को बुजुर्ग और अलगाववादी ग्रह कहा गया है. शनि मंद गति से चलने वाला ग्रह है और यह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है. शनि की उपस्थिति कब हमारे लिए शुभ होती है ये समझना अत्यंत आवश्यक है. हम सभी शनि को लेकर आशंकित होते हैं लेकिन शनि अपने फलों को देने में कभी भेदभाव नहीं करता है. शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी ग्रह होता है. 

शनि तुला राशि में उच्च का होता है और मेष राशि में नीच का होता है. कुंभ राशि में शनि मूलत्रिकोण की स्थिति को पाता है. शनि को रोग, व्याधि, बीमारी, दीर्घायु, लोहा, विज्ञान, खोज, अनुसंधान, खनिज, कर्मचारी, नौकर, जेल, आयु, दया, संयम, बुढ़ापा, वायु तत्व, मृत्यु, अपमान, स्वार्थ, लालच, आकर्षण, आलस्य, कानून, धोखाधड़ी, शराब , काले वस्त्र, वायु विकार, पक्षाघात, दरिद्रता, भत्ता, ऋण और भूमि आदि से संबंधित माना गया है. 

शनि का कारक भाव 

वैदिक ज्योतिष में शनि को एक अशुभ ग्रह बताया गया है, लेकिन अगर यह कुंडली में शुभ स्थिति या मजबूत स्थिति में है, तो इस ग्रह के शुभ प्रभाव प्राप्त हो सकते हैं. कमजोर शनि व्यक्ति को आलसी, थका हुआ, सुस्त और प्रतिशोध की भावना को दे सकता है. शनि कुंडली के 6, 8, 12 भावों का कारक ग्रह बनता है. पीड़ित शनि के प्रभाव से लकवा, जोड़ों और हड्डियों के रोग, कैंसर, तपेदिक जैसे पुराने रोग उत्पन्न हो सकते हैं. माना जाता है कि शनि व्यक्ति को हमेशा कष्ट और दुख देते हैं, लेकिन यह सच इसके विपरित ही होता है. शनि आपको वह देता है जो व्यक्ति ने अपने जीवन में किया है. शनि देव कर्मों का फल देते हैं. शनि को श्रेष्ठ गुरु भी कहा जाता है. क्योंकि जीवन का पाठ सिखाने वाले होते हैं. शनि की महादशा, शनि की साढ़ेसाती और शनि की शैय्या पर व्यक्ति की परीक्षा होती है. इस समय उसके धैर्य, शक्ति और संयम की परीक्षा होती है.

यदि शनि कुंडली में मजबूत स्थिति में हो तो व्यक्ति को मेहनती, अनुशासित बनाता है. शनि के शुभ प्रभाव से व्यक्ति मेहनती और अपने काम के प्रति प्रतिबद्ध होता है. शनि की शुभ स्थिति व्यक्ति को रोग से मुक्त करती है और जीवन में संतुलन प्रदान करती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति लंबी आयु प्राप्त करता है.

शनि कब शुभ फल देता है 

यदि जन्म कुंडली में शनि की स्थिति शुभ ग्रह के रूप में हो तो व्यक्ति व्यवस्थित जीवन व्यतीत करता है. वह अनुशासित, व्यावहारिक, मेहनती, गंभीर और सहनशील होता है. उसकी दक्षता बहुत अच्छी हो सकती है. यह बिना थके लगातार काम करने की क्षमता देने वाला होता है. शनि बलवान होने पर व्यक्ति को दृढ़निश्चयी और परिपक्व सोच देने में सक्षम बनाता है. 

शनि व्यक्ति को आध्यात्मिक भी बनाता है. यदि कुंडली में शनि का संबंध आठवें या बारहवें भाव से हो तो जातक कठोर साधना कर सकता है. शनि से प्रभावित व्यक्ति हर काम के प्रति सावधान और सतर्क रह कर काम कर सकता है. शनि व्यक्ति को व्यापार में निपुणता प्रदान करते हैं. इसके प्रभाव से मनुष्य प्रत्येक कार्य को पूरी लगन और दक्षता के साथ करता है.

शनि कुंडली के तीसरे, सातवें, दसवें या एकादश भाव में शुभ स्थिति में हो तो अनुकूलता प्रदान करने वाला माना जाता है. शनि वृष, मिथुन, कन्या, तुला, धनु और मीन राशि में हो तो शुभ फल देने में सहायक हो सकता है. शनि की शुभ स्थिति शुभ फल देती है, भले ही शनि कुण्डली के शुभ और लाभकारी ग्रहों से घनिष्ठ युति में हो या दृष्ट हो. शनि ग्रह कुंडली में बली होने पर भी शनि शुभ फल देता है.

नवांश कुंडली में शनि की स्थिति 

शनि की शुभता को लेकर यदि नवांश में इसकी स्थिति को समझा जाए तो यहां शनि का मजबूत होना अनुकूल रह सकता है. नवांश कुंडली में शनि अगर मेष में नहीं है तो यह शुभ फल देता है. क्योंकि मेष में शनि कमजोर स्थिति को पाता है.  एक मजबूत शनि व्यक्ति को सम्मान, लोकप्रियता, धन, मान्यता, कड़ी मेहनत, धैर्य, अनुशासन, आध्यात्मिकता, परिपक्वता, सहनशीलता और हर काम को अत्यंत दक्षता के साथ करने की शक्ति देता है. कुंडली में शनि की शुभ स्थिति गंभीर और कठिन विषयों को समझने में सहायक बनती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि तीसरे, सातवें या ग्यारहवें भाव में हो तो यह योग व्यक्ति को अनुकूल फल देने में सहायक बनता है. मेहनती और पराक्रमी बनाता है. ऐसे लोग हर बाधा को पार कर अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं. 

शनि का भाव अनुसार फल 

जन्म कुंडली का तीसरा भाव साहस, पराक्रम का भाव होता है. यह व्यक्ति को लड़ने की क्षमता देता है और उसके बाहुबल में वृद्धि करता है. शनि जब तीसरे भाव में स्थित होता है तो छोटे भाई-बहनों के सुख में भी कमी भी दे सकता है. शनि का असर कई बार जातक को मिले जुले असर भी देता है. 

जन्म कुंडली का छठा भाव रोग, शत्रु, कर्ज, विवाद, मुकदमेबाजी और प्रतियोगिता को दर्शाता है. ऎसे में एक पाप ग्रह शनि का यहां बैठना अनुकूल फल प्रदान करने में सहायक होता है. व्यक्ति अपने शत्रुओं को परास्त करने में सहायक बनता है. छठे भाव का संबंध नौकरी से होता है और नौकरी में आने वाली प्रतियोगिताओं से भी होता है. सेवा और नौकरी से संबंधित ग्रह होकर शनि व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में मान सम्मान देता है. छठे भाव का शनि नौकरी के माध्यम से अच्छा लाभ दिलाने में सहायक होता है. शनि का असर व्यक्ति को काम में बहुत मेहनत देता है. 

दशम भाव में शनि मजबूत होता है, काल पुरुष कुंडली के दशम भाव में मकर राशि आती है. इसलिए शनि का इस भाव में बैठना शुभ माना जाता है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र क्षेत्र में कड़ी मेहनत देता है और कर्म करके आगे बढ़ने वाला बनाता है. 

एकादश भाव में शनि की स्थिति आय भाव में वृद्धि को दिलाने वाली होती है. व्यक्ति को समाज कल्याण एवं परोपकारी कामों में डाल सकता है. इच्छाओं की अधिकता एवं उनकी पूर्ति में सहायक बनता है. शनि कुछ मामलों में वरिष्ठ भाई-बहनों के सुख में कमी भी देने वाला हो सकता है.