Articles in Category vedic astrology Jyotish

ज्योतिष में, लग्न की स्थिति व्यक्ति के लिए बेहद महत्व रखती है. लग्न का असर जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य पर भी अपना विशेष असर डालता है. लग्न आपके सेहत, आपके विचारों आपकी काम करने की इच्छा, आप क्या सोच रहे हैं कैसे
जीवन में धन की स्थिति को लेकर हर कोई किसी न किसी रुप में प्रयासरत देखा जा सकता है. आर्थिक प्रगति की इच्छा सभी के भीतर मौजूद रहती है. लेकिन हर कोई एक जैसी स्थिति को नहीं पाता है. कहीं धन की कमी इतनी बनी रहती है कि
ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह की स्थिति अत्यंत ही विशिष्ट मानी गई है. शनि हमारे जीवन के अधिकांश भाग पर अपने असर दिखाता है. अन्य सभी ग्रहों से अधिक शनि का प्रभाव हम सभी के जीवन पर अधिक पड़ता है. शनि की दशा हो या उसकी
धनार्जन से जुड़े कई कार्य जीवन में दिखाई देते हैं लेकिन जब बात आती है अचानक से मिलने वाली सफलता तो उसमें शेयर बाजार का नाम सबसे आगे रहता है. बड़े रिस्क से जुड़ी मार्किट का विश्लेषण करें तो इसमें ज्योतिष अनुसार इसमें
ग्रहों की शक्ति कई तरह से हमारे समक्ष हम कई तरह के सूत्रों को उपयोग में लाते हैं. ग्रहों की शक्ति के लिए नवमांश कुंडली भी एक बेहद मजबूत सूत्र की तरह काम करता है. वैदिक ज्योतिष में अत्यधिक महत्व दिया गया है. प्रत्येक
ज्योतिष के अनुसार कई ऎसे योग हैं, जिनके अनुसार व्यक्ति की संतती के बारे में जाना जा सकता है. शादी के बाद किसी भी व्यक्ति के जीवन में वंश वृद्धि का प्रयास बना रहता है. कई दंपतियों को समय पर अपनी संतान का सुख मिल जाता है
ज्योतिष में बुध की स्थिति हमारे संचार, बुद्धि और अनुकूलन क्षमता के लिए बहुत विशेष होती है. संचार और मानसिक कौशल पर इसका बेहतरीन नियंत्रण होता है. बुध व्यक्ति के सोचने और काम करने की प्रवृत्ति को गहराई से प्रभावित करने
मकर लग्न शनि के स्वामित्व का लग्न है, इस लग्न के प्रभाव में जब जो ग्रह आता है वह अपने भाव स्वामित्व के आधार पर असर दिखाता है. इस लग्न के लिए शुक्र पंचम और दशम का स्वामी है इस कारण से ण शुक्र मकर लग्न के लिए राजयोग कारक
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति बहुत असर दिखाती है. सभी ग्रह कुंडली में अपनी अपनी स्थिति के अनुसार परिणाम दिखाते हैं. कुछ ग्रह कुंडली में शुभ ग्रह दिखाते हैं तो कुछ ग्रह खराब फल देते हैं. वहीं कुछ ग्रह अपनी अवस्था के
दान करने के लिए प्रत्येक ग्रह से जुड़ी चीजों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है. यदि ग्रह की शांति के लिए दान करना शुभ है तो कई बार दान की स्थिति नकारात्मक फलों को भी देने वाली हो जाती है. इसके लिए जरूरी है की समझा जाए कि दान
कन्या लग्न के प्रभाव से व्यक्ति में संघर्षों से लड़ने की क्षमता होती है. यह राशि पृथ्वी तत्व की राशि मानी जाती है इसलिए यह परिस्थिति से उबरने में सक्षम होती है. बुध इसके लग्न का स्वामी होता है. बुध बौद्धिक क्षमता का
बुध के साथ चंद्रमा की युति दो शुभ ग्रहों की युति का योग होती है. चंद्रमा और बुध दोनों को ही ज्योतिष शास्त्र में शुभ ग्रहों के रुप में देखा जाता है. इसके अलावा इन दोनों ग्रहों का आपसी संबंध भी बहुत विशिष्ट माना गया है.
शुक्र के सिंह राशि में प्रवेश के साथ ही कई तरह के बदलाव सभी को दिखाई देंगे. सिंह राशि में शुक्र का प्रवेश नई संभावनाओं को देने वाला होगा. जिस समय शुक्र सिंह राशि में गोचर करेगा उस समय एक प्रकार की सौम्यता की कमी दिखाई
ज्योतिष शास्त्र आपको आपके भावी पति-पत्नी के स्वभाव और विशेषताओं को देखने में मदद करता है और यह आपको यह जानने में भी मदद करता है कि आपका अपने पति या पत्नी के साथ किस प्रकार का संबंध होगा. ज्योतिष शास्त्र के पास कुंडली से
अंकों के द्वारा जाने अपनी सेहत का राज जिस प्रकार ज्योतिष स्वास्थ्य और रोग के प्रति विस्तृत व्याख्या देता है उसी प्रकार अंक ज्योतिष भी सेहत से जुड़े मसलों पर अपना विचार अभिव्यक्त करने में सक्षम होता है. प्रत्येक अंक के
ज्योतिष एक बेहद विस्तृत विषय है जिसके अंदर अनेकों प्रकार की विद्याएं मौजूद होती हैं. इन सभी के मध्य कुछ संबंध भी देखने को मिल सकता है. इसमें अंक ज्योतिष का असर भी देखने को मिलता है. अंक ज्योतिष और वैदिक ज्योतिष के मध्य
विवाह मिलान से जुड़े ज्योतिषीय नियमों में एक नियम भकूट भी है. भकूट का उपयोग वैवाहिक सुख को देखने हेतु विशेष रुप से किया जाता है. विवाह मिलान में भकूट मिलान का बेहद महत्व होता है. भकूट की स्थिति पर ध्यान देते हुए दोनों
कुंडली में अस्त ग्रह की स्थिति कई मायनों में असर दिखाती है. अस्त अगर शुभ ग्रह हुआ है तो उसके फल पाप ग्रह के अस्त होने से विपरित होंगे. अस्त ग्रह सामान्य रह सकता है तो कहीं वह विद्रोह की स्थिति को भी दिखाता है. अपने
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि मंगल और शनि के योग को अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. इन दोनों का संयोग हर किसी के जीवन में कष्ट और संघर्ष लेकर आता है. मंगल ग्रह और शनि योग क अप्रभाव व्यक्ति की कुंडली के साथ साथ विश्व को
सिंह लग्न के लिए सभी ग्रहों की स्थिति कुछ शुभ और कुछ कठोर बनती है. ग्रह जिस भाव के स्वामी होते हैं और जैसी स्थिति में होते हैं उसी के अनुरुप अपना असर दिखाते हैं. सिंह लग्न महत्वाकांक्षी, साहसी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले,
ज्योतिष में शुभता का प्रभाव योग के फलों के द्वारा समझा जा सकता है. किसी भी ग्रह की शुभता अकेले से ही निर्मित नही होती है अपितु उसके साथ कई अन्य फैक्टर भी काम करते हैं. इसी श्रेणी में वैदिक पराशर ज्योतिष से अलग जैमिनी
राहु के साथ चंद्रमा का प्रभाव विभिन्न फल प्रदान करने वाला होता है. इसका असर गहराई से पड़ता है. राहु एक पाप ग्रह है चंद्रमा एक शुभ ग्रह है. ग्रह के साथ का प्रभाव मिलकर कई तरह से अपना असर दिखाने वाला होता है. जन्म कुंडली
चंद्रमा और शुक्र दो जलीय ग्रह है लेकिन मंगल अग्नि तत्व युक्त ग्रह है. चंद्र शुक्र स्त्रैण ऊर्जाएं हैं और मंगल पौरुष ऊर्जा है. यह तीनों जब एक साथ होते हैं तो असरदायक रुप से प्रभावित करते हैं. शक्तिशाली, उग्र और गर्म ग्रह
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि राज योग एक ऐसा योग है जो व्यक्ति को राजा जैसा भाग्य प्रदान करता है, इस कारण से ही इसे राजयोग कहा गया है. जिसकी कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति को कई तरह के फल प्राप्त होते हैं. लेकिन
अष्टकवर्ग में त्रिकोण शोधन एक महत्वपूर्ण शोधन होता है. यह ग्रह की स्थिति एवं उसकी क्षमता को दर्शाता है. अष्टकवर्ग के सिद्धांतों का सही प्रकार से उपयोग करने के बाद कुण्डली की विवेचना करने में ओर उसके परिणाम समझने में
कर्क लग्न को एक अत्यंत ही शुभ लग्न के रुप में जाना जाता है. यह चंद्रमा के स्वामित्व की राशि का लग्न होता है. इस पर चंद्रमा के गुणों के साथ राशि गुणों का भी गहरा असर देखने को मिलता है. कर्क लग्न में ग्रहों की दशाओं का
प्रश्न कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति संतान सुख प्राप्त कर पाएगा या नहीं. कुंडली में बनने वाले योग कुछ वैदिक नियमों और सिद्धांतों पर आधारित होते हैं. इस लेख में हम कुछ उदाहरणों के
ज्योतिष शास्त्र में राशियों के द्वारा संबंधों की जटिलताओं को समझने में बहुत सहायता प्राप्त होती है. राशियों का उपयोग आपसी कम्पेटिबिलिटी को समझने के लिए किया जाता रहा है. राशि चक्र में प्रत्येक राशि के विशेष लक्षण और गुण
करियर ज्योतिष एक बेहद की उपयोगी और सहायक बन सकता है उन सभी के लिए जो अपने काम को लेकर कई तरह की दुविधाओं में फंसे होते हैं. ज्योतिष में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक अच्छा करियर पाने के लिए करियर ज्योतिष
विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं. शनि महादशा की अवधि 20 वर्ष होती है. शनि की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशाएं भी होती हैं, जो व्यक्ति पर मिश्रित प्रभाव
नक्षत्रों की भूमिका को ज्योतिष में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. यदि ज्योतिष में कृष्णमूर्ति पद्धिति की बत की जाए तो उसमें नक्षत्रों का ही बोलबाला रहा है. हर प्रकार की भविष्यवाणि में नक्षत्र की स्थिति अत्यंत विशेष स्थान
करियर किसी भी क्षेत्र में हो उसमें सफलता की चाह ओर एक अच्छी प्रगत्ति को पाने का संघर्ष सभी के द्वारा जारी रहता है. ऎसे में कौन सा करियर विकल्प रुचियों के अनुरूप हो और उसमें सफलता का प्रयास भी सकारात्मक रुप से मिल पाए
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति विस्तार का ग्रह है. यह उन लोगों के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है जो परंपराओं एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकास के लिए अग्रसर होते हैं. ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को एक अत्यंत ही शुभ ग्रह है. यह
कुंडली में जब भविष्यफल का फल जानना हो तो उस समय पर जो भाव अधिक सक्रिय होता है उसके जीवन में वह समय अधिक संघर्ष या सफलता की स्थिति को दर्शाता है. ऎसे में कुंडली का विश्लेषण किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को
वक्री ग्रहों का संबंध पूर्व जन्म की या कहें प्रारब्ध की अवधारणा के साथ बहुत अधिक जुड़ा हुआ माना गया है. ज्योतिषियों के लिए इस ग्रहों के लिए यह खगोलीय घटना का अर्थ है कि ग्रह का संबंध आपके पूर्व जन्म के साथ भी काफी गहराई
ज्योतिष में जब पंचांग गणना में मुहूर्त की ओर ध्यान दिया जाता है तो योगों के चयन को लेकर विशेष रुप से सतर्क रहने की जरुरत होती है. ज्योतिष में कुछ योग अपने अपने क्रम अनुसार प्रमुख हैं जिनमें से सत्ताइस योगों का उल्लेख भी
कुंडली में यदि आठवें भाव को एक चुनौतिपूर्ण स्थान माना गया है वहीं शनि की आठवें भाव उपस्थिति को बेहद अनुकूल माना गया है. वैदिक ज्योतिष में एक विशेष स्थान माना जाता है. आठवां घर परंपरागत रूप से परिवर्तन, मृत्यु, छिपे हुए
कारकांश आत्मकारक और नवमांश का आपसी संबंध दर्शाता है. इस कुंडली की मजबूती और नवांश की शक्ति के आपसी संबंध की भी व्याख्या करने वाला होता है. कारकांश D9 में वह राशि है जहां D1 का आत्मकारक ग्रह स्थित है, जिस प्रकार नवांश
मेष लग्न के लिए बुध ग्रह की महादशा कैसे परिणाम देगी इस तथ्य पर कुंडली में बुध के भाव अधिग्रह के साथ बुध के भाव स्थान की महत्ता विशेष होती है. जिसका अर्थ हुआ की मेष लग्न के लिए बुध किन भावों का स्वामी होता है और बुध
करियर के क्षेत्र में हम अपने लिए नौकरी का चयन करते हैं या फिर व्यवसाय का इन का पता लगाने के लिए कई तरह की पद्धितियां ज्योतिष में मौजूद हैं. इन्हीं में से एक विचार कारकांश के द्वारा भी प्राप्त होता है. कारकांश का संबंध
महादशा में अन्य ग्रहों की दशाओं का आना अंतरदशा प्रत्यंतरदशा रुप में होता है. दशाओं का प्रभाव सूक्ष्म रुप में पड़ता है. हर दशा का असर अपने भव स्वामित्व ग्रह स्थिति के आधार पर ही होता है. सूर्य की महादशा का प्रभाव व्यक्ति
शुक्र का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में विवाह पर विशेष भूमिका को दर्शाता है. शुक्र ग्रह को विवाह के कारक रुप में देखा जाता है. वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुखों की प्राप्ति के लिए यह विशेष रहता है. जन्म कुंडली में शुक्र की
जब दो ग्रह एक ही राशि के अंतर्गत युति योग बनाते हैं, तो कुंडली में कई तरह के फलों का मिलाजुला फल मिलता है. यह सफलता और कठिनाई दोनों को दिखाने वाला भी हो सकता है. भाग्य पर इस तरह के शनि शुक्र योग का गहरा असर भी देखने को
ज्योतिष अनुसार स्वास्थ्य के विषय में कई तरह के मुद्दों को समझ पाना संभव होता है. यदि सेहत अच्छी हो तो व्यक्ति एक लम्बी आयु का सुख अच्छे स्वास्थ्य के रुप में देख पाता है. स्वास्थ्य ही धन है, अच्छे स्वास्थ्य के बिना, कुछ
जैमिनी ज्योतिष अनुसार आत्मकारक ग्रह कुंडली में का विशेष ग्रह होता है जो अपने प्रभाव द्वारा कुण्डली के फलों को बदल देने में काफी सक्षम होता है. आत्मकारक ग्रह एक प्रकार से कुंडली में सभी ग्रहों को अपने द्वारा प्रभावित
शुक्र ग्रह का असर जीवन में कई तरह की भिन्नताओं को दिखाने वाला होता है. शुक्र पर एक बहुत अलग लेकिन व्यावहारिक परिभाषा तब अधिक सप्ष्ट होती है जब ग्रह अपने प्रभावों को दिखाने में सक्षम होता है. शुक्र की स्थिति पर विचार
बुध को वैश्य वर्ग का माना गया है, अर्थात व्यापार से संबंधित ग्रह के रुप में बुध को विशेष रुप से देखा जाता है. बुध की स्थिति कुंडली में एक अच्छे वाणिज्य को दर्शाने वाली होती है. बुध एक ऎसा ग्रह है जो बिड़ पर अपना गहरा
आत्मकारक ग्रह जीवन में इच्छाओं के साथ आकांक्षा को दर्शाता है. यह ग्रह मुख्य ग्रह है जिसके माध्यम से कुंडली के अन्य ग्रहों के बल का आंकलन किया जाता है. यदि आत्मकारक कमजोर या पीड़ित है, तो जीवन में गलत निर्णय अधिक हो सकते
मंगल और केतु यह दोनों ही ग्रह काफी क्रूर माने जाते हैं. इन दोनों का असर जब एक साथ कुंडली में बनता है तो यह काफी गंभीर ओर नकारात्मक प्रभाव देने वाला माना गया है. इन दोनों ग्रहों की प्रकृति का स्वरुप ऎसा है की यह तोड़फोड़
मेष लग्न के लिए शनि की महादशा का समय कार्यक्षेत्र एवं महत्वाकांक्षाओं की स्थिति को प्रभावित करने वाला होता है. मेष लग्न का स्वामी मंगल है और शनि इस लग्न के लिए दशम भाव के साथ एकादश भाव का स्वामी बनता है. अब इन दो
जीवन में रिश्तों को लेकर हर व्यक्ति काफी अधिक भावनात्मक होता है. अपने जीवन में वह रिश्तों की स्थिति को अच्छे से निभाने की हर संभव कोशिश करते हैं लेकिन कई बार असफल होते चले जाते हैं. कई बार जीवन में ऎसे भी क्षण आते हैं
छठे भाव में सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं पर विजय दिलाएगा. आप अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ विलय करेंगे और सौहार्दपूर्ण तरीके से एक साथ काम करेंगे. छठे भाव में स्थित सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं
सूर्य का चतुर्थ भाव में होना, मिले-जुले फल मिलते हैं जिसमें आप को भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति तो होती है . साथ में जिम्मेदारियों को भी आप अवश्य पाते हैं. चतुर्थ भाव में सूर्य व्यक्ति को अपने परिवार से जुड़ा हुआ पाता
तीसरे भाव में सूर्य का होना प्रबलता का सूचक होता है यह सुखद स्थिति कहीं जा सकती है. एक नियम के रूप में, तीसरे भाव में सूर्य वाले लोग बहिर्मुखी होते हैं, लेकिन इनका अंतर्मन इतना प्रबल होता है की इनके भीतर को जान पाना
सूर्य ग्रह आत्मा का प्रतीक है और शुक्र सौंदर्य एवं भोग का. इन दोनों ग्रहों का संबंध जीवन के कई पड़ावों पर अपना असर दिखाता है. एक अग्नि तत्व ग्रह है और दूसरा जल तत्व से भरपूर अब इन का प्रभाव एक साथ होता है तो उसके कारण
ज्योतिष में अंगारक योग को एक अशुभ पयोग के रुप में जाना जाता है. अंगारक योग एक बहुत ही कष्टदायक योग है, यदि कुंडली में राहु या केतु का मंगल से संबंध किसी भी एक भाव में स्थापित हो जाते हैं तो इस योग का निर्माण बना रह जाता
ज्योतिष के कुछ खराब योगों में श्रापित दोष का विशेष महत्व होता है. श्रापित योग का असर किसी व्यक्ति के पिछले जन्मों का प्रभाव दिखाता है, इसे एक अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. यह एक भाव में शनि और राहु के मिलन के साथ एक
केतु को छाया ग्रह के रुप में जाना जाता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार, केतु दक्षिण नोड है जिसे चंद्रमा के कटान बिंदू के रुप में भी जानते हैं. राहु अपने रहस्यमय और आक्रामक गुणों के लिए जाना जाता है. इसमें छिपे हुए गुण भी
मंगल का आर्द्रा नक्षत्र में जाना दो शक्तिशाली तत्वों का एक साथ होने का योग बनता है. आर्द्रा नक्षत्र में मौजूद होने के कारण मंगल व्यक्ति को कड़ी मेहनत करके लाभ प्राप्त करने की शक्ति, देता है. आर्द्रा नक्षत्र परिवर्तन और
कुंडली में शुक्र और राहु ग्रहों की युति बहुत ही अलग प्रकार के फल देती है. इन दोनों को रिश्तों पर असर डालने वाला योग माना गया है. इन दोनों के कारण व्यक्ति के प्रेम संबंध और वैवाहिक जीवन के सुख पर भी असर देखने को मिलता
सभी 12 लग्नों के लिए बुध की दशा अच्छे और बुरे हर प्रकार के असर दिखाती है, लेकिन इस अच्छे और खराब की स्थिति का प्रभाव किस तरह से मिलागा उसका संबंध बुध की लग्न के साथ शुभता और अशुभता पर निर्भर करता है. ग्रहों में बुध ग्रह
नेत्र संबंधित रोग के लिए कौन से ग्रह और योग बनते हैं कारक चिकित्सा ज्योतिष में नेत्र रोग से संबंधित कई तरह के योग मिलते हैं जो आंखों की बीमारियों के होने का संकेत देते दिखाई देते हैं. ग्रह इस तथ्य को उजागर कर सकते हैं
मंगल महादशा का प्रभाव सभी राशियों के लिए बेहद विशेष होता है, हर लग्न के लिए मंगल किसी न किसी विशेष पक्ष को दर्शाता है. मंगल की स्थिति यदि लग्न के लिए शुभ है तो वह शुभ फल प्रदान करने वाला होगा, इसके अलग यदि मंगल उस लग्न
शनि का उदय और अस्त होना शनि चाल में सबसे महत्वपूर्ण समय की स्थिति होती है. ज्योतिष में सभी ग्रहों का अस्त होना सूर्य की स्थिति से देखा जाता है. अब जब शनि सूर्य से अस्त होता है तो यहां इसकी स्थिति अन्य ग्रहों से बहुत
ज्योतिष के अनुसार शुभ या अशुभ ग्रहों के विशेष योग से एक प्रकार की युति बनती है जिसे योग कहते हैं. यह योग कई तरह से देखने को मिलते हैं इसमें योग कई प्रकार के होते हैं. कुछ योग शुभ होते हैं तो कुछ अशुभ तो कई बार शुभ अशुभ
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को शक्ति और प्रभाव का कारक माना जाता है. इसकी शक्ति जहां भी मौजूद होती है वहां जीवन और प्रगति को दर्शाती है. यह आशावाद और चमक का प्रतीक है और क्रोध का भी इसकी शक्ति के समय सभी ग्रहों का तेज
बुध और सूर्य से निर्मित बुधादित्य योग एक अत्यंत शुभ योगों की श्रेणी में स्थान पाता है. बुध ग्रह एवं आदित्य अर्थात सूर्य जब दोनों ग्रह एक साथ होते हैं तो इनका योग बुधादित्य योग का कारण बनता है. कुंडली में बुधादित्य योग
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति एक पवित्र समुद्र है, जिसके कारण यह विस्तार का स्वरुप भी है. यह आध्यात्मिकता नैतिकता का आधार होता है. ज्योतिष में बृहस्पति को एक मजबूत शुभ ग्रह माना जाता है. इसे देवगुरु भी कहा जाता है. ग्रह का
शनि और मंगल को शत्रु ग्रह के रूप में जाना जाता है, इसलिए इन दोनों की कोई भी युति अच्छी नहीं मानी जाती है. यह एक कठिन स्थिति को दर्शाती है. मंगल को अग्नि तत्व युक्त ग्रह कहा जाता है. मंगल स्वभाव से बहुत हिंसक होता है और
केतु का असर ज्योतिष के दृष्टिकोण से काफी शुष्क माना गया है, जिसका अर्थ हुआ की ये ग्रह अपने प्रभाव द्वारा जीवन में कठोरता एवं वास्तविकता से रुबरु कराने वाला होता है. केतु की राशि और उसके ग्रहों के साथ युति दृष्टि योग पर
राहु और केतु ऎसे छाया ग्रह हैं जिन्हें बेहद चुनौतिपूर्ण फलों को देने वाला माना गया है. राहु के साथ केतु भौतिक स्वरुप वाले ग्रहों से अलग छाया ग्रह हैं. लेकिन इनकी ऊर्जा बेहद प्रभावी होती है और जिसके कई खराब प्रभाव हम देख
कुंडली में एक ग्रह के रूप में चंद्रमा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऎसा इस कारण होता है क्योंकि इसके गोचर की अवधी ओर इसका मानसिकता के साथ संबंध होना. जीवन के रोजमर्रा में होने वाले बदलावों को चंद्रमा की स्थिति से
वैदिक ज्योतिष कर्म और पुनर्जन्म के दर्शन पर आधारित है. जन्म कुंडली द्वारा व्यक्ति अपने जीवन और कर्म सिद्धांत की स्थिति को काफी गहराई के द्वारा जांच सकता है. जन्मों की इस यात्रा को समझने में ज्योतिष हमारी बहुत मदद कर
सूर्य महादशा का आगमन जब होता है, तो व्यक्ति के जीवन में काफी बदलाव का समय होता है. सूर्य दशा का प्रभाव जातक को कई तरह के जीवन में प्रभाव दिखाता है. सूर्य ग्रह का प्रभाव विशेष माना जाता है. सूर्य की स्थिति व्यक्ति को मान
ज्योतिष शास्त्र में मानसिक विकार से संबंधित योगों का वर्णन मिलता है. ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले विकार एवं नकारात्मक सोच के पीछे ज्योतिषिय कारण बहुत असर डालते हैं. मानसिक रुप से चंद्रमा का प्रभाव बहुत
कुंडली विषण एक बहुत विस्तृत प्रक्रिया है, और कुंडली में सभी सूक्ष्म बातों को देखना होता है. इन विवरणों में शुभ और अशुभ ग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह एक कठिन काम है क्योंकि कोई ग्रह एक ही समय पर शुभ भी होगा
केतु महादशा का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है. इस दशा के समय व्यक्ति को अस्थिरता अधिक परेशान कर सकती है. जातक अपने लिए उचित एवं अनुचित के मध्य की स्थिति को समझ पाने में कुछ कमजोर रह सकता है. केतु की महादशा में व्यक्ति को
मंगल ग्रह को आक्रामक, क्रियाशीलता एवं शक्ति से संबंधित होता है. मंगल ग्रह साहस, नेतृत्व और प्रभुत्व से जुड़ा है जो मुख्य रूप से हिंसा, आग से होने वाली सभी तबाही का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल क्रोध, वीरता और शक्ति है जो
ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति महादशा का समय एक शुभ दशा के रुप में देखा जाता है. बृहस्पति महादशा की अवधि सोलह वर्ष की अवधि तक रहती है.बृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है, इस दशा के समय पर जातक के जीवन में कई बड़े बदलाव भी
शुक्र की महादशा 20 वर्ष तक रहती है. यह संपूर्ण दशा चक्र में अन्य ग्रहों के बीच सबसे लंबी अवधि की दशा का प्रभाव देने वाला ग्रह है. ( Xanax ) यह अत्यधिक शुभ ग्रह है, जो सुख-सुविधाओं और भौतिकवादी लाभ को प्रदान करने वाला
मंगल महादशा सात वर्ष की दशा का प्रभाव रखती है. इस दशा समय पर व्यक्ति मंगल के प्रभाव से सबसे अधिक प्रभावित होता है. मंगल ग्रह को एक अत्यधिक शक्तिशाली और आक्रामक ग्रह माना गया है. इसकी शक्ति एवं साहस का प्रभाव किसी भी
बुध, को बुद्धि का ग्रह माना गया है, यह बोलने और वाणी के प्रभाव को दिखाता है. बुध एक शुभ ग्रह की श्रेणी में आता है इसे सामान्य रूप से सकारात्मक ग्रह माना जाता है. इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में कई रुपों से पड़ता है. बुध
सूर्य को ज्योतिष में अग्नि युक्त प्राण तत्व के रुप में माना गया है. ज्योतिष के आकाश में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है. यह जीवन को उसकी समग्र ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का अवसर देने में सक्षम होता है. चीजों को प्रभावशाली रुप
सूर्य एक शक्तिशाली ग्रह है जो शक्ति और आत्मा के लिए कारक रुप में विराजमान है. इस महादशा में जीवन को गति मिलती है. व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है जिसके द्वारा वह अपने कार्यों को करता है. सूर्य महादशा 6 साल के लिए होती है.
विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं. वैदिक ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्र महादशा का समय दस वर्ष का होता है. चंद्रमा की महादशा का पुर्ण भोग्यकाल दस साल के समय अवधि
ज्योतिष में सभी ग्रहों और राशियों का अपना महत्व होता है. वैदिक ज्योतिष में किसी भी अन्य भाव की तुलना में ग्यारहवें भाव का अधिक महत्व है. ग्यारहवां भाव स्थान राहु के लिए अच्छे परिणाम देने वाला होता है. इस आधुनिक युग में
ज्योतिष शास्त्र मे शनि का संबंध धीमी गति और लम्बे इंतजार से रहा है. शनि को एक पाप ग्रह के रुप में भी चिन्हित किया जाता रहा है. शनि को बुजुर्ग और अलगाववादी ग्रह कहा गया है. शनि मंद गति से चलने वाला ग्रह है और यह एक राशि
धनु संक्रांति सूर्य का धनु राशि प्रवेश समय है. इस समय पर सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में प्रवेश करते हैं और एक माह धनु राशि में गोचरस्थ होंगे. इस गोचरकाल के समय को खर मास के नाम से भी जाना जाता रहा है.
कुंभ राशि में बुध ग्रह का होना बहुत सी विशेषताओं को लिए होता है. कुम्भ की विशेषताओं में बुद्धि, रचनात्मकता और परिवर्तन की इच्छा शक्ति शामिल होती है. कुम्भ राशि का दुनिया पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है. यह सुधार की तलाश करने
ज्योतिष में कई तरह के योग ऎसे हैं जो जीवन में भाग्य के निर्माण के लिए बाधा का कार्य करने वाले होते हैं इन्ही में से एक अमावस्या दोष के रुप में जाना जाता है. इस दोष का प्रभाव व्यक्ति के भविष्य निर्माण में व्यवधानों का
पंचांग निर्माण में ग्रहों एवं समय गणना के आधार पर कई तरह के योग एवं कालों का विभाजन संभव हो पाता है. इस में एक विशेष काल की गणना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है जिसे राहुकाल के नाम से जाना जाता है. सामान्य रुप से राहु काल को
साढ़े साती से तात्पर्य साढ़े सात साल की अवधि से है जिसमें शनि तीन राशियों, चंद्र राशि, और एक राशि चंद्रमा से पहले और एक उसके बाद में चलता है. साढ़े साती तब शुरू होती है जब शनि जन्म चंद्र राशि से बारहवीं राशि में प्रवेश
जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह
ज्योतिष में कर्म की अवधारणा काफी गहराई से समाहित है. यह एक कठिन अवधारणा है लेकिन जब कुंडली में इसे देखते हैं, तो पाते हैं की ये जातक के कर्म एवं उससे मिलने वाले परिणामों का विशेष संबंध दर्शाती है. कुंडली का दसवां भाव
राहु की महादशा लोगों के जीवन को कई अलग-अलग तरह से प्रभावित कर सकती है. यह कुछ के लिए अच्छे तो बहुतों के लिए खराब हो सकती है. राहु दशा के फल शुभ होंगे या अशुभ, यह पूरी तरह से राहु के कुंडली में स्थिति के अनुसार तय होता
अपने करियर में जब कोई व्यक्ति चिकित्सा से जुड़े कार्य को चुनता है तो ऎसा होना उसकी कुंडली के कुछ विशेष योगों के द्वारा ही संभव हो पाता है. आज के समय में चिकित्सा के क्षेत्र में इतनी अधिक शाखाएं हैं जिन्हें लेकर कई तरह
ज्योतिष शास्त्र जन्म कुंडली का विश्लेषण में बहुत सी चीजों पर आधारित होता है. कुंडली में कुछ स्थान शुभ होते हैं तो कुछ स्थान अशुभ माने जाते हैं. शुभता एवं शुभता की कमी के कारण ग्रहों का असर काफी गहरे प्रभाव डालने वाला
घर खरीदने का योग कब होगा आपके लिए पूरा घर खरीदने की इच्छा सभी के दिल में होती है, मन में व्यक्ति के विचार अपने आशियाने की इच्छा को दिखाने वाले होते हैं. इस दुनिया में हर व्यक्ति घर का मालिक होने या संपत्ति का मालिक होने
सिंह लग्न के लिए दूसरा और सातवां भाव मारक भाव कहलाता है. सिंह लग्न के लिए, द्वितीय भाव में पड़ने वाली राशि कन्या और सातवें भाव में पड़ने वाली कुंभ राशि मारकेश का स्वामित्व पाती है. कन्या राशि का स्वामी बुध और कुंभ राशि
कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह और कब होता है मारक का असर कर्क लग्न के लिए यदि मारक ग्रह की बात की जाए तो कर्क लग्न के दूसरे भाव और सातवें भाव स्थान को मारक स्थान कहा जाएगा. अब कुंडली के दूसरे और सातवें भाव के स्वामी इसके
रिश्तों और प्यार में नवग्रहों की भूमिका कैसे करती है सहायता जन्म कुंडली में रिश्तों एवं प्रेम कि स्थिति को जानने के लिए प्रत्येक ग्रह की विशेष भूमिका होती है. किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में ग्रहों की स्थिति का जो
जन्म कुंडली में शनि और चंद्र का एक साथ एक भाव में होना विष योग का निर्माण करता है. यह एक घातक योग होता है. इस योग के खराब असर अधिक देखने को मिलते हैं. जिस भाव में इस योग का निर्माण होता है उस भाव से जुड़े शुभ फल कमजोर
ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति अनुसर बनने वाले कुछ योग इतने विशेष हो जाते हैं जिनका जीवन पर गहरा असर पड़ता है. धन की कमी के लिए बनने वाला केमद्रूम योग आर्थिक स्थिति को कमजोर बनाता है, धन देने वाला लक्ष्मी योग आर्थिक
जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह
विवाह मिलान में नक्षत्र मिलान एक सबसे महत्वपूर्ण कारक बनता है. नक्षत्रों का एक साथ शुभता लिए होना विवाह के सुखमय होने का आधार भी बनता है. जब हम अपने सहयोगी एवं मित्र स्वरुप नक्षत्र से मिलते हैं तो इस स्थिति में हमारे
ज्योतिष शास्त्र की एक शाखा जैमिनी ज्योतिष भी जिसे ऋषि जैमिनी के नाम से ही जाना जाता है. जैमीनी ज्योतिष अनुसार अमात्यकारक ग्रह कुंडली में अहम स्थान रखता है. सभी नव ग्रहों में किसी न किसी को अमात्यकारक का स्थान प्राप्त
सेहत से जुड़े कई कारकों का वर्णन वैदिक ज्योतिष में मिलता है. सेहत जीवन का एक महत्वपुर्ण मुद्दा है जिसे लेकर कइ बर हम सजग तो कई बार लापरवाह भी दिखाई देते हैं किंतु कुल मिलाकर सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए प्रत्येक
ज्योतिष में ग्रहों, नक्षत्रों, भावों, राशियों इत्यादि के आधार पर कई तरह के योग बनते हैं जो कुछ शुभ तो कुछ अशुभ स्थिति को पाते हैं . कुछ योग ऎसे होते हैं जो काफी विशेष रुप से व्यक्ति पर अपना असर डालते हैं. इन योग का असर
विदेश में जाना, विदेश यात्रा करना आज के समय में इसका काफी प्रचलन बढ़ गया है. विदेश में यात्रा के अवसर कई तरह से मिल जाते हैं लेकिन जब बात आती है विदेश में ही रहने की तब चीजें काफी मुश्किल सी दिखाई देती हैं. कई
नौकरी में सफल होने के लिए, करियर से संबंधित विचार बहुत जल्द ही कम उम्र में शुरू हो जाता है. करियर बनाने की दिशा में शिक्षा क्षेत्र का चयन पहला कदम होता है. जो इस बात को निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति शिक्षा
वृष लग्न शुक्र के स्वामित्व का लग्न है इस लग्न के लिए दूसरे और सातवें भाव को मारक कहा जाता है. दूसरे और सातवें भाव के राशि स्वामी को मारकेश कहा जाएगा. वृष लग्न के लिए द्वितीय भाव में मिथुन राशि आती है और मिथुन राशि का
चंद्रमा की गति व्यक्ति के मन और स्वभाव को बहुत अधिक प्रभावित करती है. ज्योतिष अनुसार चंद्रमा का असर तेजी से पड़ता है. चंद्रमा किसी भी राशि में लगभग सवा दो दिन तक रहता है उसके पश्चात आगे बढ़ जाता है. चंद्रमा का यही गुण
शिक्षा शुरू करने में मुहूर्त का महत्व शिक्षा का प्रभाव जीवन के विकास और निर्माण दोनों में सहायक होता है. भारतीय संस्कृति में शिक्षा का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. वेदों में वर्णित सूक्तों द्वारा शिक्षा के महत्व को
जन्म कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति अत्यधिक संवेदनशील और मानसिक स्वभाव के कारण कुछ अत्यधिक भावनात्मक स्थितियों को जन्म दे सकती है. राहु एक शक्तिशाली छाया ग्रह है, और जब चंद्रमा के साथ जुड़ता है, तो वास्तविकता अधिक
जब दो ग्रह एक ही राशि में होते हैं तो युति योग का निर्माण करते हैं, जिससे कुंडली पर इनका गहरा असर पड़ता है. यह संयोग अक्सर भाग्य पर अचानक होने वाले और अनिश्चित प्रभाव डालता है, जिससे आपकी कुंडली में सबसे विशेष तरीके से
शादी से पहले कुंडली मिलान करने के कारण जिनसे विवाह में नही आती बाधाएं ज्योतिष शास्त्र में एक व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष को समझने में मदद मिलती है. इसी में एक महत्वपूर्ण चीज विवाह भी है. विवाह एक ऎसा संस्कार है जो
सूर्य और बृहस्पति का योग शुभस्थ स्थिति का कारक माना गया है. यह दोनों ही ग्रह बुद्धि, ज्ञान और आत्मिक विकास के लिए उत्तम होते हैं. ज्योतिष के संदर्भ में सूर्य राजा है और वहीं सष्टि में जीवन के विकास का आधार भी है. दूसरी
ज्योतिष शास्त्र विज्ञान पर आधारित शास्त्र होता है. इन्हीं पर आधारित होता है हमारे जीवन का सभी फल इसी में एक तथ्य नाड़ि ज्योतिष से जुड़ा है. नाड़ी दोष विशेष रुप से कुंडलियों के मिलान के समय पर अधिक देखा जाता है. नाड़ी का
ज्योतिष शास्त्र से जानें संतान सुख में आईवीएफ और दत्तक संतान फल बच्चों की इच्छा एवं उनके सुख को पाना दंपत्ति का पहला अधिकार होता है. विवाह पश्चात संतान जन्म द्वारा ही जीवन के अगले चरण का आरंभ होता है. विवाह जीवन में एक
वैदिक ज्योतिष में केतु को अलगाव, ज्ञान, रहस्य, ध्यान और सबसे महत्वपूर्ण वैराग्य के कारक के लिए माना जाता है. केतु कर्म का प्रतिनिधित्व करता है, यह हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के फल को दर्शाता है. कुंडली में केतु जहां
जन्म कुंडली का आठवां भाव रहस्यों का स्थान कुंडली के बारह भावों अपने आप में पूर्ण अस्तित्व को दर्शाते हैं. इन सभी भावों में एक भाव ऎसा भी है जो आयु मृत्य और रहस्य का घर होकर सभी आचार्यों के लिए एक गंभीर एवं सूक्ष्म स्थान
हिंदू पंचांग में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष महत्व हिंदू पंचांग को ज्योतिष फलकथन एवं खगोलिय गणना इत्यादि हेतु उपयोग में लाया जाता है. हिंदू धर्म में मौजूद समस्त व्रत त्यौहार एव्म धार्मिक क्रियाकला पंचांग द्वारा ही
ज्योतिष में ग्रहों की अस्त स्थिति काफी महत्वपूर्ण रह सकती है. सूर्य का प्रभाव ही ग्रहों को अस्त करने के लिए महत्वपूर्ण कारक बनता है. सूर्य के समीप आकर सभी ग्रहों का असर कमजोर हो जाता है. सुर्य के कारण ही ग्रह अस्त होते
राहु - सूर्य राहु और सूर्य का संबंध कुण्डली में ग्रहण योग का निर्माण करता है. इसके प्रभाव स्वरुप पिता एवं संतान के मध्य वैचारिक मतभेद की स्थिति रह सकती है. संतान की जन्म कुण्डली में यह योग होने पर पिता के व्यवसाय और मान
मकर राशि वालों के लिए मार्च माह का समय कुछ उत्साह में वृद्धि वाला और नए अवसर को दिलाने वाला होगा. इस समय के दौरान राशि स्वामी की मजबूत स्थिति के साथ ही सुख और लाभ की स्थिति भी मजबूत अवस्था में दिखाई देगी, तो अनुकूल अवसर
1 जुलाई 2023 को मंगल सिंह राशि में प्रवेश करने वाले हैं. मंगल का सिंह राशि में गोचर बहुत ही प्रभावशाली रहेगा क्योंकि पिछले काफी समय से मंगल कर्क राशि में गोचरस्थ थे और कर्क राशि में होने के कारण मंगल अपने समस्त फलों को
राहु अभी तक एक लम्बे समय से मिथुन राशि में गोचरस्थ थे. पर अब वह मिथुन से निकल कर वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे और फिर वहीं पूरा डेढ़ साल का समय बिताएंगे. राहु को छाया ग्रह का रुप कहा गया है. ऎसे में इस छाया का प्रभाव इतना
शनि का गोचर ज्योतिशः की दृष्टि से एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना होती है. शनि और गुरु ऎसे ग्रह हैं जिनके राशि परिवर्तन को लेकर सभी में जिज्ञासा रहती है क्योंकि इन दो ग्रहों की जीवन पर बहुत गहरी छाप पड़ती है. ऎसे में शनि का
शनि का मकर राशि में गोचर सभी बारह राशियों पर अलग-अलग रुप से पड़ेगा. इसके अलाव शनि का गोचर अनेक घटनाओं को भी प्रभावित करने वाला होगा. सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर भी ये विश्व पर असर डालने वाला होगा. शनि सबसे मंद गति से
शनि का गोचर प्रत्येक राशि के लिए अढाई वर्ष का समय लेता है. सभी ग्रहों में शनि ग्रह ही ऎसे ग्रह हैं जो किसी भी राशि में सबसे अधिक समय लेते हैं. इस गोचर में शनि का वक्री-मार्गी गति के साथ गोचर करना भी महत्व रखता है. कई
13 अप्रैल 2021 को नव विक्रम संवत का आरंभ होगा. 2078 का नव संवत्सर “राक्षस” नाम से पुकारा और जाना जाएगा. इस वर्ष संवत के राजा मंगल होंगे और मंत्री भी मंगल ही होंगे. राक्षस नामक संवत के प्रभाव से विकास के कार्यों में
चोरी के प्रश्न में चोर के स्वरुप तथा अन्य बातों का पता चल जाता है यदि कुण्डली का विश्लेषण भली-भाँति किया जाए. इसके लिए लग्न, चन्द्रमा तथा अन्य संबंधित भाव का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए. आइए इस कडी़ में सबसे पहले आपको
जीवन में अनेक समस्याएँ तथा कठिनाइयाँ उभरकर सामने आती हैं. कई व्यक्ति इन कठिनाईयों को बिना मानसिक परेशानियों के झेलते हैं और कई जातक परेशान हो जाते हैं. इन परेशानियों के कारण कई बार घर - परिवार में कलह भी उत्पन्न हो जाते
ज्योतिष शास्त्र का निर्माण करने में बहुत से ऋषिमुनियों का सहयोग हुआ. इन सभी के प्रयासों से ज्योतिष द्वारा व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान के समय को जानने में बहुत अधिक सहायता मिल पाई है. इन्ही में से वेदव्यास और कश्यप
व्यास जी ने कहा- एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में अस्सी हजार मुनि एकत्र हो कर पुराणों के ज्ञाता श्री सूत जी से पूछने लगे- हे महामुने! आपने हमें अनेक पुराणों की कथाएं सुनाई हैं, अब कृपा करके हमें ऐसा व्रत और कथा बतायें जिसके
चोरी के प्रश्न में प्रश्नकर्त्ता का आमतौर पर यह प्रश्न होता है कि चोर कब पकडा़ जाएगा. वह पकडा़ भी जाएगा या नहीं पकडा़ जाएगा. इसे देखने के लिए प्रश्न कुण्डली के कुछ योगों के विषय में आपको जानकारी दी जा रही है. इन योगों
रत्नों के उपयोग का चलन बहुत पहले से ही सामाज में प्रचलित रहा है. इन रत्नों को कभी संदरता बढ़ाने के लिए तो कभी भाग्य में वृद्धि के लिए किसी न किसी रुप में उपयोग किया ही जाता रहा है. ज्योतिष में रत्नों का उपयोग ग्रह शांति
एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई
मृ्गशिरा नक्षत्र को किसान नक्षत्र कहा जाता है. सरल शब्दों में उसे हिरनी या खटोला भी कहा जाता है. राशिचक्र को 27 समान भागों में विभाजित करने के बाद बाद 27 नक्षत्रों बनते है. इनमें से प्रत्येक नक्षत्र 13 अंश और 20 मिनट का
जन्म कुण्डली में बनने वाले कुछ योग किसी भी जातक के जीवन में एक चमत्कारिक रुप से प्रभाव देते हैं. इस तरह के योग नभस योग और अन्य महत्वपूर्ण योगों की श्रेणी में आते ही है. इन योगों में चंद्र-मंगल योग और दूसरा महाभाग्य योग
हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास हिन्दू वर्ष का तीसरा माह है. हिन्दी माह में हर माह की एक विशेषता रही है. सभी की कोई न कोई खासियत होती ही है. जीवन में आने वाले उतार-चढा़वों में ये सभी माह कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका
सप्तमांश कुण्डली या D-7 | Saptamansha Kundali or D-7 इस कुण्डली से संतान का अध्ययन किया जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के सात बराबर भाग किए जाते हैं. जो ग्रह विषम राशि में होगें उनकी गिनती वहीं से आरम्भ
पंचांग शब्द का अर्थ है - पाँच अंग. तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण के आधार पर पंचांग का निर्माण होता है. इन सभी की गणना गणितीय विधि पर आधारित है. आपको पंचाँग के पांचों अंगों की गणना की विधि सरल तथा आसान तरीके से समझाई
किसी जातक की जन्म कुण्डली में बनने वाला पंच महापुरुष योग एक बेहद ही प्रभावशाली और शुभ फलदायक योग माना गया है. इस योग के प्रभाव स्वरुप जातक को जीवन में सफलता और संघर्षों से आगे निकल कर जीवन में अपने लिए एक बेहतर स्थान भी
ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र को मन का कारक कहा गया है. सामान्यत: यह देखने में आता है, कि मन जब अकेला हो तो वह इधर-उधर की बातें अधिक सोचता है, और ऎसे में व्यक्ति में चिन्ता करने की प्रवृ्ति अधिक होती है. ठिक इसी प्रकार के
मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में
ज्योतिष में जन्म कुण्डली के अतिरिक्त बहुत सी वर्ग कुण्डलियां भी होती हैं. ये वर्ग कुण्डलियां जातक के जीवन के किसी न किसी क्षेत्र को बारीकी से जांचने के लिए उपयोग की जाती है. वर्ग कुण्डली से धन, संतान, स्वास्थ्य, जीवन
तुला राशि के व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते है. जीवन की कठिन परिस्थितियों को भी सहजता से लेते है. उनमें सिद्धान्तों पर रहकर कार्य करने का गुण देखा जा सकता है. इस राशि का व्यक्ति स्वभाव से सुलझा हुआ होता है.
प्रश्न की पहचान के लिए कई नियम आपको पिछले अध्याय में बताए गए हैं. इस अध्याय में भी कुछ और नियमों की चर्चा की जाएगी. सबसे पहले हम षटपंचाशिका के नियमों की चर्चा करेंगें. यह नियम हैं :- (1) जिस ग्रह का नवाँश लग्न में है वह
तृ्तीय भाव पराक्रम भाव भी कहलाता है. इस भाव के अन्य कुछ नाम अपिक्लिम भाव, उपचय भाव, त्रिषडय भाव है. तृ्तीय भाव से व्यक्ति की ताकत, साहस, दीर्घायु, छोटे भाई, दृ्ढता, छोटी यात्राएं, लेखन, सम्बन्ध, दिमागी उलझने, आनन्द,
पूर्वमध्यकाल अर्थात ई. 501 से 1000 तक का काल ज्योतिष के क्षेत्र में उन्नति और विकास का काल था. इस काल के ज्योतिषियों ने रेखागणित, अंकगणित और फलित ज्योतिष पर अध्ययन कर, अनेक शास्त्रों की रचना की. इस काल में फलित ज्योतिष
उत्तराषाढा नक्षत्र 21 वां नक्षत्र है, तथा इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों में कृ्तज्ञता की भावना विशेष रुप से पाई जाती है. इस नक्षत्र के व्यक्ति धार्मिक आस्था के होते है. इन्हें धर्म क्रियाओं में विशेष आस्था
पंचांग का एक महत्वपूर्ण विषय है करण. पंचांग के पांच अंगों में करण भी विशिष्ट अंग होता है. करण कुल 11 हैं और प्रत्येक तिथि दो करणों से मिलकर बनी होती है. इस प्रकार कुल 11 करण होते हैं. इनमें से बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर,
जैमिनी स्थिर दशा में सबसे पहले राशि बल का आंकलन किया जाता है. राशि बल को निकालने के लिए तीन प्रकार के बलों को निकाला जाता है. फिर उन तीनों का कुल जोड़ राशि बल कहलाता है. यह तीन बल हैं :- चर बल, स्थिर बल तथा दृष्टि बल.
विवाह करने से पूर्व वर-वधू की कुण्डलियों का मिलान करते समय आठ प्रकार के मिलान किये जाते है. इस मिलान को अष्टकूट मिलान के नाम से जाना जाता है. इन्हीं अष्टकूट मिलान में से एक गण मिलान है. इस मिलान में वर वधु के व्यवहार और
ज्योतिष में नभस योग का बहुत महत्व रहा है. इन योगों के सहयोग द्वारा जातक के जीवन में होने वाली घटनाओं ओर भाग्य का निर्धारण में भी बहुत अधिक सहायक बनते हैं. नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से अलग होते हैं. यह
स्वाधिष्ठान, चक्र जननेन्द्रियों या अधिष्ठान त्रिकास्थि में स्थित होता है. स्वाधिष्ठान को द्वितीय चक्र स्वाधिष्टान, सकराल, यौन, द्वितीय चक्र नामों से भी संबोधित किया जाता है. यह मूलाधार के पश्चात द्वितीय स्थान पाता है
सूर्य अपने अंशों से जब 12 अंश आगे जाता है, तो एक तिथि का निर्माण होता है. इसके अतिरिक्त सूर्य से चन्द्र जब 109 अंशों से लेकर 120 अंश के मध्य होता है. उस समय चन्द्र मास अनुसार शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि चल रही है. इसी
बृहस्पतिवार (गुरुवार व्रत) कथा | Thursday Story प्राचीन समय की बात है– एक बड़ा प्रतापी तथा दानी राजा था, वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं पून करता था. यह उसकी रानी को अच्छा न लगता. न वह व्रत करती और न ही किसी
ज्योतिष के इतिहास से जुडे 18 ऋषियों में से एक थे ऋषि अत्रि. एक मान्यता के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के द्वारा हुआ था. भगवान श्री कृष्ण ऋषि अत्रि के वंशज माने जाते है. कई पीढीयों के बाद ऋषि अत्रि के कुल में ही
भारतीय हिन्दू वैदिक ज्योतिष में प्रथम भाव को कई नामों से जाना जाता है. इस भाव को लग्न भाव, केन्द्र भाव व त्रिकोण भाव भी कहा जाता है. लग्न भाव कुण्डली का बल होता है. और अन्य सभी भावों की तुलना में इसका सबसे अधिक महत्व
जिस दिन और जिस समय जातक ने प्रश्न किया है उस दिन की होरा ज्ञात करेंगें. होरा जानने के बाद यह तय करेंगें कि प्रश्न के समय किस ग्रह की होरा चल रही थी. जिस ग्रह की होरा चल रही थी उस ग्रह से संबंधित बातों का विश्लेषण प्रश्न
गुरु रत्न पुख्रराज, गुरुरत्न, पुष्पराग, गुरुवल्लभ, वचस्पति वल्लभ, पीतमणी के नाम से भी विख्यात है. इस रत्न को धारण करने पर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृढ होती है. यह रत्न व्यक्ति को संतान, संपति और ऎश्वर्य के साथ साथ
मंगलवार का व्रत सम्मान, बल, पुरुषार्थ और साहस में बढोतरी के लिये किया जाता है. इस व्रत को करने से उपवासक को सुख- समृ्द्धि की प्राप्ति होती है. यह व्रत उपवासक को राजकीय पद भी देता है. सम्मान और संतान की प्राप्ति के लिये
भेरी योग भेरी योग में लग्नेश, शुक्र, ग्रुरु एक-दूसरे से केन्द्र में और नवमेश बली हो या शुक्र, बुध के पहले, दुसरे, सातंवे या बारहवें भाव में युति और दशमेश बली. यह योग व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है. यह योग स्वास्थय के पक्ष
सिद्धान्त, संहिता और होरा शास्त्र ज्योतिष के तीन स्कन्ध ज्योतिष की तीन भाग है. इसमें भी सिद्वान्त ज्योतिष सर्वोपरि है. सिद्वान्त ज्योतिष को बनाने में पौराणिक काल के उपरोक्त 18 ऋषियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
यूप योग लग्न से चतुर्थ भाव अर्थात कुण्डली के पहले चार भावों में सभी ग्रह होने पर बनता है. यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग क्योकि लग्न, भाव, धन भाव, तृ्तीय भाव अर्थात यात्रा भाव व चतुर्थ भाव अर्थात सुख भाव
उपल उपरत्न ओपल के नाम से अधिक विख्यात है. संस्कृत में यह स्वागराज तो हिन्दी में यह सागरराज कहलाता है. मूलरुप में उपल रंगहीन होता है परन्तु रंगहीन अवस्था में इसका मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है. प्रकृति में सोलह प्रकार के
योग का शाब्दिक अर्थ युति है. ज्योतिष में योग का अर्थ है, ग्रहों की एक ऎसी स्थिति है, जिसमें ग्रह विशेष परिणाम देता है. समान्यत: योग ग्रहों के एक विशेष स्थिति में बैठने पर ज्योतिष योग बनते है. ज्योतिष ज्ञान की इस श्रंखला
सबसे पहले यह उपरत्न तंजानिया में पाया गया था इसलिए इसका नाम तंजानाइट रखा गया. यह नीले से बैंगनी रंग में पाया जाता है (It is found in colors ranging from blue to purple). हम यह भी कह सकते हैं कि यह उपरत्न नील लोहित रंग
पिछले पाठ में आपने जैमिनी कारकों के बारे में पढा़ था जिनका क्रम उनके अंशों के आधार पर होता है. जैमिनी ज्योतिष में कई विद्वान स्थिर कारकों का भी प्रयोग करते है. यह स्थिर कारक निम्नलिखित हैं. (1) सूर्य तथा शुक्र में से जो
जब जैमिनी दशा के वर्ष निर्धारित करने हों तब सबसे पहले आप सम और विषम राशियों की एक तालिका बना लें. कुण्डली में जिस राशि के दशा वर्ष निर्धारित करने है उस राशि के स्वामी से राशि तक गिनती करें. यदि दशाक्रम सव्य है तो गिनती
शुक्र रत्न हीरा सदा से ही अपने आकर्षक आभा के कारण चर्चा का विषय रहा है. इस रत्न को वज्रमणी, इन्द्रमणी, भावप्रिय, मणीवर, कुलीश आदि नामों से भी पुकारा जाता है. हीरा धारण करने वाले व्यक्ति के वैवाहिक सुख-शान्ति में वृ्द्धि
षोडशाँश कुण्डली या D-16 | Shodhshansha Kundli or D-16 इस कुण्डली का विश्लेषण वाहन सुख के लिए किया जाता है. इस वर्ग का उपयोग वाहन से संबंधित कष्ट, दुर्घटना तथा मृत्यु का आंकलन करने के लिए भी किया जाता है. यह वर्ग कालांश
पिछले पाठ में आपने जैमिनी दशा में उपयोग में आने वाले कारकों के बारे में जानकारी हासिल की है. कारकों का निर्धारण करना आपको आ गया होगा. जिस प्रकार पराशरी सिद्धांतों में प्रत्येक भाव का अपना महत्व होता है. उसी प्रकार
त्रिशाँश कुण्डली या D-30 | Trishansha or D-30 इस कुण्डली का अध्ययन जीवन में होने वाली बीमारी तथा दुर्घटनाओं के लिए किया जाता है. इस कुण्डली का अध्ययन जातक के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के अरिष्ट देखने के लिए किया जाता
यह उपरत्न देखने में पन्ना रत्न का भ्रम पैदा करता है. यह संरचना तथा बनावट के आधार पर बिलकुल पन्ना रत्न का आभास देता है. कोई दूसरा खनिज पन्ना उपरत्न के समान नहीं लगा है जबकि यह उपरत्न थोडा़ सा गहरा और पन्ना से कम पारदर्शी
ज्योतिष का यह ग्रन्थ प्राचीन और मौलिक ग्रन्थ है. वर्तमान में उपलब्ध यह ग्रन्थ अधूरी अवस्था में है. इस ग्रन्थ में भी नक्षत्र का भी वर्णन किया गया है. इस ग्रन्थ में अस्स नाम अश्चिनी और साई नाम स्वाति नक्षत्र ने विषुवत
कई बार प्रश्नकर्त्ता को अपने शत्रुओं से भय रहता है. वह डरते हैं कि क्या शत्रु नुकसान पहुंचाएंगें? आजकल यह प्रश्न किसी भी सन्दर्भ में पूछा जा सकता है. यह प्रश्न प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शत्रुओं के लिए भी पूछा जा सकता है.
पंचम भाव प्रेम भाव है, इसे शिक्षा का भाव भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त इस भाव को पणफर और कोण भाव भी कहा जाता है. पंचम भाव सन्तान, बुद्धिमता, बुद्धिमानी, सट्टेबाजी, प्रसिद्धि, पदवी, बुद्धि, भावनाएं, पहला गर्भाशय, अचानक
कृष्णमूर्ती पद्धति की गणना नक्षत्रों पर आधारित होती है. प्रत्येक भाव के नक्षत्र तथा उपनक्षत्र स्वामी का अध्ययन सूक्ष्मता से किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में परम्परागत प्रणली में लग्न भाव अर्थात प्रथम भाव से बहुत सी बातों
27 नक्षत्रों की श्रेणी में रोहीणी नक्षत्र को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि इस नक्षत्र को चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र में विचण करते समय चंद्रमा की स्थिति बहुत ही अनुकूल मानी गई है. रोहिणी
यह यह उपरत्न कई स्थानों पर सेलेस्टाईन के नाम से भी जाना जाता है. सेलेस्टाईट या सेलेस्टाईन दोनों ही शब्द लैटिन शब्द स्वर्ग(Heaven) और आकाश से बने है. कई विद्वान इस उपरत्न के नाम की उत्पत्ति लैटिन शब्द स्वर्ग से मानते हैं
रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं.
हिन्दूओं का एक अन्य पवित्र माह माघ मास है, इस माह का महत्व धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है. इस माह के दौरान हर दिन किसी न किसी रुप में पूजा, पाठ, जप, तप, दान इत्यादि की महत्ता को विस्तार रुप से बताया गया है.
इस उपरत्न को हिन्दी में जमुनिया कहा जाता है. कई स्थानों पर इसे बिल्लौर के नाम से भी जाना जाता है. इसे नीलम रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. प्रकृति में यह उपरत्न प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह उपरत्न
मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में
मथुरा और वृ्न्दावन में भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे अनेक धार्मिक स्थल है. किसी एक का स्मरण करों तो दूसरे का ध्यान स्वत: ही आ जाता है. मथुरा के इन्हीं मुख्य धार्मिक स्थलों में गिरिराज धाम का नाम आता है(Giriraj Dham is one
सावन माह व्यक्ति को कई प्रकार के संदेश देता है. सावन के माह में आसमान पर हर समय काली घटाएँ छाई रहती हैं. यह घटाएँ जब बरसती है तब गरमी से मनुष्य को राह्त मिलती है. यह माह हमें जीवन की मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का
उभयचरी योग सूर्यादि योगों में से एक योग है. यह योग शुभ योग है. सूर्यादि योगों की यह विशेषता है, कि इन योगों राहू-केतु और चन्द्र ग्रह को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर उभयचरी योग बनते समय चन्द्र भी योग बनाने
चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है. शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है. षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी
प्रश्न कुण्डली के लग्न में ग्रहों की स्थिति देखी जाती है कि क्या है. शुभ ग्रह लग्न को प्रभावित कर रहें हैं अथवा पाप ग्रहों का प्रभाव लग्न पर अधिक पड़ रहा है. आइए इसे विस्तार से समझें. प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ
यह उपरत्न ताँबा अयस्क के आक्सीकरण से बनता है. समय के साथ यह उपरत्न जैसे-जैसे पानी को अवशोषित करता है, तब यह मैलाकाइट खनिज में बदल जाता है. इस प्रक्रिया के फलस्वरुप एजुराइट तथा मैलाकाइट दोनों ही एक साथ पाए जाते हैं.
नभस योग की श्रेणी में यव नामक योग भी आता है. यव योग भी एक शुभ योगों के अंतर्गत स्थान पाता है. इस योग के प्रभाव का जातक के जीवन में मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है. यव योग होने पर व्यक्ति की कुण्डली में ग्रह उडते हुए
सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य
इस उपरत्न में कई रंग दिखाई देते हैं. यह एक पारभासी उपरत्न है. यह उपरत्न प्राकृतिक रुप में काले तथा भूरे रंग में पाया जाता है. इसकी आभा इसकी काट पर निर्भर करती है. इसकी काट और छाँट के आधार पर यह एक ओर से हरा तो दूसरी ओर
फिल्मी जगत में कई कलाकार सफल होते हैं तो कई असफलता का मुँह देखते हैं. जो सफल होते हैं उनकी सफलता का रहस्य उनकी कुण्डली में छिपा होता है. ज्योतिष के संसार में ज्योतिषियों ने फिल्मों में सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ नियम
आषाढ माह हिन्दू पंचाग का चौथा माह है. यह बरसात के आगमन और मौसम के बदलाव को दिखाता है. आषाढ़ मास भगवान विष्णु को बहुत प्रिय रहा है. इस माह में अनेकों उत्सव एवं पर्वों का आयोजन होता है. इस माह में भी अन्य माह की भांति दान
केतु को धड, पूंछ और घटता हुआ पर्व कहा गया है. केतु की कारक वस्तुओं में मोक्ष, उन्माद, कारावास, विदेशी भूमि में जमीन, कोढ, दासता, आत्महत्या, नाना, दादी, आंखें, तुनकमिजाज, तुच्छ और जहरीली भाषा, लम्बा कद, धुआं जैसा रंग,
पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है. पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है. इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है. पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है और उसमें आकर्षण
चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति मंगल ग्रह से प्रभावित होते है. इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होने के कारण. 27 नक्षत्रों में से चित्रा नक्षत्र 14वां नक्षत्र है. किसी भी नक्षत्र पर उसके स्वामी और नक्षत्र जिस राशि
एक वितीय वर्ष में आजीविका क्षेत्र में आने वाले उतार-चढावों को ज्योतिष के माध्यम से समझने के लिये हमें योग, दशा ओर गोचर की अंगूली पकड कर चलना पडेगा. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी योग केवल अपनी महादशा- अन्तर्दशा और गोचर
मून स्टोन चन्द्रमा के रत्न मोती का मुख्य उपरत्न है. इस रत्न का उपयोग नव ग्रह में से एक चंद्रमा की शक्ति और सकारात्मकता को पाने के लिए किया जाता है. मून स्टोन आसानी से प्राप्त हो जाने वाला प्रभावशाली रत्न है. मून स्टोन
एक हिन्दू तिथि सूर्य के अपने 12 अंशों से आगे बढने पर तिथि बनती है. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य देव है, तथा प्रत्येक पक्ष में एक सप्तमी तिथि होती है. सप्तमी तिथि को शुभ प्रदायक माना गया है. इस तिथि में जातक को सूर्य का
मंगल को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के साहस, छोटे भाई-बहन, आन्तरिक बल, अचल सम्पति, रोग, शत्रुता, रक्त शल्य चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, भूमि, अग्नि, रक्षा, सौतेली माता, तीव्र काम भावना, क्रोध, घृ्णा, हिंसा, पाप,
वार व्रत करने का उद्देश्य नवग्रहों की शान्ति करना है, वार व्रत इसलिये भी श्रेष्ठ माना गया है. क्योकि यह व्रत सप्ताह में एक नियत दिन पर रखा जा सकता है. वार व्रत प्राय: जन्मकुण्डली में होने वाले ग्रह दोषों और अशुभ ग्रहों
माता लक्ष्मी की कृ्पा पाने के लिये शुक्रवार के दिन माता वैभव लक्ष्मी का व्रत किया जाता है. शुक्रवार के दिन माता संतोषी का व्रत भी किया जाता है. दोनों व्रत एक ही दिनवार में किये जाते है. परन्तु दोनों व्रतों को करने का
प्रश्न कुण्डली | Prashna Kundli (1) क्रियमाण कर्म को दर्शाती है. क्रियमाण कर्म वह हैं जो इस जीवन में किये गए हैं. (2) यह कुण्डली केवल एक विषय से संबंधित होती है. जन्म कुण्डली | Janam Kundali (1) प्रारब्ध को दर्शाती है.
आपने पिछले अध्याय में पढा़ कि जब केन्द्र में राहु/केतु के अतिरिक्त चार या चार से अधिक ग्रह केन्द्र में स्थित हों तब मण्डूक दशा लगती है. इस दशा का क्रम निर्धारित करने के लिए यह देखा जाता है कि लग्न में कौन-सी राशि आ रही
ऋग्वेद के प्रथम श्लोक में ही रत्नों के बारे में जिक्र किया गया है. इसके अतिरिक्त रत्नों के महत्व के बारे में अग्नि पुराण, देवी भागवद, महाभारत आदि कई पुराणों में लिखा गया है. कुण्डली के दोषों को दूर करने के लिए हर
ज्योतिष की इतिहास की पृष्ठभूमि में वराहमिहिर और ब्रह्मागुप्त के बाद भास्कराचार्य के समान प्रभावशाली, सर्वगुणसम्पन्न दूसरा ज्योतिषशास्त्री नहीं हुआ है. इन्होने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से घर में ही प्राप्त
| Tritiya Tithi | Tritiya Meaning | What is Tithi in Hindu Calender | How is Tithi Calculated तृतीया तिथि की स्वामिनी गौरी तिथि है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी रहता है. इस
ज्योतिष शास्त्र में वर्णित 27 नक्षत्रों में से अश्विनी नक्षत्र पहला नक्षत्र है. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है. इस नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है. केतु एक रहस्यमयी ग्रह है. अश्विनी नक्षत्र,
सोमवार क व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है. सोमवार व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है. इस व्रत को स्त्री- पुरुष दोनों कर सकते है. इस व्रत को भी अन्य व्रतों कि तरह पूर्ण विधि-विधान
जन्म कुण्डली में दुर्धरा (दुरुधरा) योग का निर्माण चंद्रमा की स्थिति के आधार पर तय होता है. जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, चन्द्र के दोनो और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. यह योग
मीन राशि के व्यक्तियों में अनुकम्पा करने की प्रवृ्ति होती है. ये धार्मिक, भगवान से डरने वाले होते है. इसके साथ ही इनमें अन्धविश्वास का भाव भी पाया जाता है. जिन व्यक्तियों की मीन राशि हो, वे संयमी, रुढीवादी, अन्तर्मुखी,
जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. * यदि प्रश्न के
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर राशि के लिए उपयुक्त स्वास्थ्यवर्धक भोजन इस प्रकार है. जैसे:- मेष लग्न | Aries इस लग्न में जन्में जातक तेज जिंदगी जीते है. जिससे शारीरिक शक्ति का अधिक व्यय होता है. यह मस्तिष्क प्रधान राशि है
चतुर्दशी तिथि के स्वामी देव भगवान शिव है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को नियमित रुप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इसलिए मुहूर्त कार्यो में सामान्यत: इस तिथि का त्याग
शनि रत्न नीलम के कई नाम है. इसे इंद्रनील, शौरी रत्न, नीलमणी, महानील, निलोफर, वाचिनाम से जाना जाता है (It is known by different names loke: Indranil, Shauri Ratna, Nilmani, Mahanil, Nilofar, Vachinam). मराठी में इसे नील,
कार्तिक माह हिन्दू कैलेंडर का 8वां महिना है. शास्त्रों में कहा भी गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं है. तुला राशि पर सूर्य का गोचर होने पर कार्तिक माह का आरंभ हो जाता है. कार्तिक का माहात्म्य के बारे में
लाजवर्त जिसका एक नाम लापिस लाजुली भी है. इस उपरत्न को शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है. इस उपरत्न की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है. इस उपरत्न का रंग नीले रंग की विभिन्न आभाओं में पाया
सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य, सौर मण्डल, सूर्य की गति, युग, आयन तथा मुहूर्त का उल्लेख किया गया है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ को वेदांग ज्योतिष का प्राचीन ओर प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है. यह ग्रन्थ प्राकृ्त भाषा में
विषुवांश | Vishwansha किसी ग्रह की बसन्त सम्पात बिन्दु से, विषुवत रेखा पर पूर्व की ओर कोणीय दूरी, विषुवांश कहलाती है. क्रांति | Kranti किसी ग्रह की विषुवत रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी, उस ग्रह की क्रांति
यह एक दुर्लभ उपरत्न है. इस उपरत्न का यह नाम अरबी शब्द से पडा़ है, जिसका अर्थ स्वर्ग है. इसलिए इस उपरत्न को स्वर्ग का उपरत्न भी कहा जाता है. इस उपरत्न को इसके नीले आसमानी रंग के कारण स्वर्ग का उपरत्न कहा जाता है. यह
सावन के माह में शिवभक्त अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. श्रावण मास के आरम्भ
"कैल्साइट" शब्द की उत्पत्ति लैटिन तथा ग्रीक शब्दों से मिलकर हुई है. यह चूना पत्थर तथा संगमरमर में आमतौर से पाया जाता है. रंगहीन कैल्साईट अथवा प्रकाशीय कैल्साईट में दोहरा अपवर्तन पाया जाता है. जब किसी लिखे हुए शब्द पर
अपने नाम के अनुरुप ही यह योग बहुत ही सुंदर और शुभ योग होता है. हंस योग से युक्त व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है. तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है. उसमें सात्विक गुण पाये
भरणी नक्षत्र तीन तारों के समूह से मिलकर बना है. यह तीन तारे स्त्री की योनि के आकार की तरह दिखाई देते हैं. सभी नक्षत्रों की आकृति और आकारों की तुलना पृथ्वी पर पाए जाने वाले पदार्थों से की गई है. भरणी नक्षत्र मेष राशि में
जन्म कुण्डली में शुभाशुभ योगों के प्रभव से जातक का जीवन बहुत प्रभावित होता है. जातक को मिलने वाली दशाएं और योगों का शुभ और अशुभ प्रभाव उसके जीवन में निर्णायक भूमिका दिखाता है. कुछ व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता प्राप्त
विवाह संबंधी प्रश्न | Marriage Related Prashna वर्तमान समय में ज्योतिषी के पास विवाह से संबंधित प्रश्न बहुत आते हैं. विवाह कब होगा, किससे होगा, जीवनसाथी कैसा होगा आदि बहुत से प्रश्न है जिनको प्रश्नकर्त्ता जानना चाहता
चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है, इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी
माणिक्य रत्न को अनेक नामों से जाना गया है. इसे कुरविन्द, वसुरत्न, रत्ननायक और लोहितरत्न के अतिरिक्त रविरत्न और लक्ष्मी पुष्य नाम से भी सुशोभित किया गया है हिन्दी और मराठी में इसे क्रमश: माणिक्य, माणिक कहा गया है.
ओनेक्स उपरत्न कई रंगों में पाया जाता है. यह हरे रंग, हरे और पीले रंग के मिश्रण तथा तोतिया हरे रंग में पाया जाता है. यह ओनेक्स के मुख्य रंग हैं. इसके अतिरिक्त ओनेक्स सफेद अथवा धूम्र वर्ण में भी उपलब्ध होता है. इस उपरत्न
यह उपरत्न पायरोक्सीन(pyroxene) समूह का मैग्नेशियम, सिलिकेट खनिज है. यह उपरत्न क्रोमियम युक्त विभिन्न श्रेणियों में पाया जाता है और चमकीले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न क्रोम डायोप्साईड कहलाता है. यह उपरत्न दूसरे उपरत्नों की
इस उपरत्न को संस्कृत में वैक्रांत तथा हिन्दी में शोभामणि कहते हैं. अंग्रेजी में इसे टूमलाइन या टूरमैलीन भी कहते हैं. प्रकृति में मौजूद सभी रंगों में यह उपरत्न पाया जाता है. सभी रंगों में पाए जाने के कारण इस उपरत्न को
कृष्णमूर्ति पद्धति में सभी भावों के उपनक्षत्र स्वामी का विश्लेषण किया जाता है कि वह कुण्डली में किन-किन भावों के कार्येश हैं. जिन भावों के वह कार्येश होते हैं उन्हीं भावों से संबंधित फल दशा तथा दशाभुक्ति आने पर प्राप्त
ज्योतिष के आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक इसके सिद्धान्तों में अनेक परिवर्तन हुए. ऋक ज्योतिष ग्रन्थ में युग, आयन, ऋतु, मास, नक्षत्र आदि के विषय में और मुहूर्त का विस्तार से वर्णन किया गया है. परन्तु इसमें ग्रहों व
ज्योतिष के प्रमुख 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का नाम भी आता है. ऋषि गर्ग ने ज्योतिष के क्षेत्र में आयुर्वेद और वास्तुशास्त्र पर महत्वपूर्ण कार्य किया. गर्ग पुराण में ज्योतिष के मुख्य नियमों का उल्लेख मिलता है. ज्योतिष
ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक कहा गया है. इसके साथ सूर्य आत्मा के कारक ग्रह है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति को सिद्धान्तवादी बनाता है. इसके अतिरिक्त सूर्य कार्यक्षेत्र में
जीवन में हर किसी की जिंदगी में किसी न किसी बात को लेकर कोई न कोई परेशानी लगी ही रहती है. परिवार, पैसा, प्यार ऎसे न जाने कितने कारण हैं जो कारण व्यक्ति की लाईफ में लड़ाई झगड़े का कारण बनते हैं. कई बार कुछ विवाद इतने
प्रश्न कुण्डली ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है. यह कुण्डली जातक द्वारा पूछे प्रश्न पर आधारित होती है. जिस समय किसी व्यक्ति विशेष द्वारा कोई प्रश्न किया जाता है उसी समय की एक कुण्डली बना ली जाती है. इसे ही प्रश्न
ज्योतिष में अनेकों योग हैं और इन योगों की संख्या भी हजारों में है. ऎसे में कोई न कोई शुभ या अशुभ योग जातक की कुण्डली में बनता ही है. ये योग जातक के प्रारब्ध का ही प्रभाव होता हैं जो आने वाले जीवन को भी प्रभावित करते
ज्योतिष शास्त्र में 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों को स्थान दिया गया है. ब्रह्माण्ड में एक नई राशि के आगमन की खबर आज सभी की हैरानी का सबब बनी हुई है. राशि परिवार में एक नए सदस्य के बढने पर सभी अधिक आश्चर्य प्राचीन
ऋषि भृगु उन 18 ऋषियों में से एक है. जिन्होने ज्योतिष का प्रादुर्भाव किया था. ऋषि भृ्गु के द्वारा लिखी गई भृ्गु संहिता ज्योतिष के क्षेत्र में माने जाने वाले बहुमूल्य ग्रन्थों में से एक है. भृ्गु संहिता के विषय में यह
चतुर्विशांश कुण्डली या D-24 | Chaturvishansha Kundali or D-24 इस कुण्डली का अध्ययन शिक्षा, दीक्षा, विद्या तथा ज्ञान के लिए किया जाता है. शिक्षा में सफलता तथा बाधाओं को देखा जाता है. इस वर्ग को सिद्धांश भी कहते हैं. इस
ज्योतिष का आदिकाल ईं. पू़. 501 से लेकर ई़. 500 तक माना जाता है. यह वह काल था, जिसमें वेदांग के छ: अंग अर्थात शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छन्द पर कार्य हुआ. इस समयावधि में ज्योतिष का संम्पूर्ण प्रसार और
कई व्यक्ति विवाह उपरान्त पति-पत्नी में संबंध कैसे रहेंगें, इसके बारे में भी जानना चाहते हैं. वर्तमान समय में बहुत से जातकों का यह प्रश्न अब आम हो गया है कि मेरा विवाहित जीवन कैसा रहेगा अथवा मेरे बच्चे का वैवाहिक जीवन
मकर राशि के व्यक्ति पूर्ण रुप से व्यवहारिक होते है. इनके इरादे मजबूते होते है. इस राशि के व्यक्तियों में आगे बढने की उच्च महत्वकांक्षा होती है. मकर राशि के व्यक्ति विश्वसनीय होते है. समझदार, अनुशासन में रहने वाले होते
रेड जेस्पर जिसे हिन्दी में लाल सूर्यकान्तमणि भी कहा जाता है. माणिक्य का यह उपरत्न अपारदर्शी होता है. माणिक्य के सभी उपरत्नों में रेड जेस्पर सबसे अधिक बिकता है और सबसे अधिक लाभ प्रदान करने वाला होता है. इस उपरत्न में कुछ
इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज अमेरीका के कैलीफोर्निया में 1902 में हुई थी. इस उपरत्न का नाम जॉर्ज एफ. कुंज(George F. Kunz) के नाम पर रखा गया है. यह उपरत्न अधिकाँशत: बडे़ आकार में पाया जाता है. यह 8 कैरेट तक पाया जाता है.
ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष, ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद
एक पाश्चात्य ज्योतिषी के अनुसार भचक्र में राशियों की संख्या 12 से 13 हों, गई है. पृ्थ्वी के अपनी धूरी में होने वाले बदलाव ने राशियों में एक नई राशि को जोड दिया है. वैदिक ज्योतिष के फलित का आधार प्रारम्भिक काल से सूर्य न
हिन्दू मास चन्द्र तिथियों से मिलकर बना होता है और चन्द्र मास के दो पक्ष होते है, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष, दोनों ही पक्षों में चतुर्थी तिथि आती है. इन दोनों पक्षों की चतुर्थी क्रमश: शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व
जन्म कुण्डली में जब चंद्रमा से दूसरे भाव और बारहवें भाव में कोई ग्रह नहीं होता है तो यह स्थिति केमद्रूम योग बनाती है. केमद्रूम योग खराब योगों की श्रेणी में आता है. इस योग के कारण जातक मानसिक और शारीरिक रुप से दबाव की
कुण्डली के लग्न भाव से क्रम से गिनने चतुर्थ स्थान में आने वाला भाव चतुर्थ भाव कहलाता है. चतुर्थ भाव माता, घरेलू खुशियां, भू-सम्पति, पैतृ्क भूमि, स्थिर-सम्पति, वाहन, नैतिक सदगुण, ईंमानदारी, निष्ठा, मित्र, शिक्षा, मानसिक
पिछले अध्याय में आपको बताया गया था कि जैमिनी चर दशा में वृश्चिक तथा कुम्भ राशि दशा की गणना बाकी अन्य राशियों से भिन्न होती है. इन दोनों राशियों की गणना के लिए कुछ विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं. जो निम्नलिखित हैं :-
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के अनुसार लग्न, सूर्य अथवा चन्द्र में जो ग्रह सबसे अधिक बली हों, उस ग्रह से दशम भाव का स्वामी, नवाशं में जिस राशि में स्थित हों, उस राशि की दशा और गोचर में व्यक्ति को धनोपार्जन की
आकाश मे तारों के समूह को नक्षत्र कहा जाता है और भारतीय ज्योतिष में इनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है. नक्षत्रों की गणना प्राचीन काल से ही होती आ रही है और जिस व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसके अनुसार उसके
नौकरी से संबंधित बहुत से प्रश्न प्रश्नकर्त्ता के द्वारा पूछे जाते हैं. तरक्की कब होगी? तरक्की होगी या नहीं होगी? क्या नौकरी में तबादला होगा? तबादला होगा या नहीं होगा? नई नौकरी कब मिलेगी? वर्तमान नौकरी में रहूं या नई
ब्रह्मगुप्त का नाम भारत के महान गणितज्ञों में लिया जाता है. इनके द्वारा दिए गए सूत्रों को आज भी उपयोग में लाया जाता है. ब्रह्म गुप्त न केवल गणित के जानकार थे बल्कि वे एक बहुत योग्य ज्योतिषी भी थे. उन्हों ने अपने ग्रंथों
पंचांग के पांच अंगों में एक मुख्य अंग करण है. 1 तिथि में 2 करण होते हैं, अर्थात तिथि का पहला भाग और दूसरा भाग दो करणों में बंटा होता है. करण ग्यारह होते हैं, जिनमें से सात करण बार-बार आते हैं और चार ऎसे होते हैं जिनकी
कुण्डली के सांतवें भाव को विवाह भाव या जया भाव के नाम से जाना जाता है. यह भाव व्यक्ति के जीवन साथी की व्याख्या करता है. इसके अतिरिक्त इस भाव से यौनाचार की इच्छायें, विवाह, विदेश यात्रायें, संतान, सामान्य खुशियां,
वैदिक ज्योतिष में कुण्डली का छठा भाव रोग भाव, त्रिक भाव, दु:स्थान, उपचय, अपोक्लिम व त्रिषाडय भाव के नाम से जाना जाता है. इस भाव का निर्बल होना अनुकुल माना जाता है. छठा भाव जिसे ज्ञाति भाव भी कहते है. यह भाव व्यक्ति के
यह उपरत्न चूने की खानों में पाया जाता है. इस उपरत्न को टिटेनाइट(Titanite) के नाम से भी जाना जाता है. इसमें तेज चमक होती है. इस उपरत्न का उपयोग आभूषणों में कम ही किया जाता है. यह अत्यंत नाजुक उपरत्न है. यह संग्रहकर्ताओं
चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है. इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी
एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई
करण के फलों को जानने से पहले करण किसे कहते है, यह जानने का प्रयास करते है. तिथि के आधे भाग को करण कहते है. करणों की संख्या 11 है. इसमें बव, बालव, कौलव, तैंतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुध्न है. करण
(1) 1,4,7,10 राशियाँ चर राशियाँ कहलाती हैं. (2) 2,5,8,11 रशियाँ स्थिर राशियाँ कहलाती हैं. (3) 3, 6,9,12 राशियाँ द्वि-स्वभाव कहलाती हैं. जैमिनी चर दशा में चर राशियाँ (1,4,7,10), स्थिर राशियों(2,5,8,11) पर दृष्टि डालती है
इस उपरत्न की खोज प्रोफेसर जेम्स ड्वाईट डाना(James Dwight Dana) ने 1888 में की थी. इसमें बेरिलियम की मात्रा अधिक होने से इसका नाम बेरिलोनाईट रखा गया है. यह भंगुर उपरत्न है. इसे सावधानी से प्रयोग में लाया जाना चाहिए. इस
यह एक असामान्य तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह हीरे की तुलना में अधिक चमक रखता है. इस उपरत्न की खोज 1847 में ई.एफ. ग्लोकर(E.F.Glocker) ने की थी. इस उपरत्न का नाम ग्रीक शब्द के नाम पर रखा गया था. स्फेलेराइट का अर्थ है -
बच्चे के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, वह उसका जन्म नक्षत्र कहलाता है. अभिजीत सहित कुल 28 नक्षत्रों का उल्लेख सभी ग्रंथों में किया गया है. जन्म नक्षत्र के आधार पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रकट होता है.
सूर्य से बनने वाला एक महत्वपूर्ण योग है. वोशी योग एक बहुत ही शुभ योग है. इस योग का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में शुभता और सकारात्मकता लाने वाला होता है. इस योग का प्रभाव होने से जातक को सूर्य से प्राप्त होने वाले शुभ फल भी
कुण्डली में ग्रहों की परस्पर स्थिति से कुछ विशेष योगों का निर्माण होता है. इस प्रकार बनने वाले योग व्यक्ति के धन, संपति उन्नति में बढोतरी करने वाले होते है. ये योग सूर्य, चन्द्र और लग्न से बनने वाले योग है. चन्द्र से
ज्योतिष में योग का अर्थ दो ग्रहों की युति से है. इसके अतिरिक्त ग्रहों का योग आपसी दृ्ष्टि संबन्ध से बन सकता है. या फिर दो य दो से अधिक ग्रह आपस में भाव परिवर्तन कर रहे हों, तब भी योग बनता है. ज्योतिष योगों में नभस योगों
11 करणों में एक करण चतुष्पद नाम से है. चतुष्पद करण कठोर और असामान्य कार्यों के लिए उपयुक्त होता है. इस करण को भी एक कम शुभ करण की श्रेणी में ही रखा जाता है. ऎसा इस कारण से होता है क्योंकि अमावस तिथि के समय पर आने के
साईं बाबा एक महान संत व गुरु थे. भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में साईं के भक्तों की संख्या कई गुना है. साईं बाबा के भक्तों को उनकी भक्ति का अनुपम आशिर्वाद सदैव ही प्राप्त हुआ है. बृहस्पतिवार के दिन को विशेष रुप से साईं
प्राचीन ग्रंथों में रत्नों के मुख्य रुप से 84 उपरत्न उपलब्ध हैं(In ancient scriptures, there are mainly 84 sub-stons of stones). इन उपरत्नों का महत्व भी रत्नों के महत्व के समान माना जाता है. सभी ग्रहों के साथ सूर्य के
वर्तमान समय में कुण्डली बनाना बहुत ही आसान कार्य है. किसी भी व्यक्ति के जन्म का विवरण आप कम्प्यूटर में डालकर क्षण भर में कुण्डली का निर्माण कर सकते हैं. लेकिन यदि आप स्वयं कुण्डली बनाने का अभ्यास करेगें तो आपको और भी
एक समय की बात है कि एक शहर में एक शीला नाम की स्त्री अपने पति के साथ रहती थी. शीला स्वभाव से धार्मिक प्रवृ्ति की थी. और भगवान की कृ्पा से उसे जो भी प्राप्त हुआ था, वह उसी में संतोष करती थी. शहरी जीवन वह जरूर व्यतीत कर
ज्योतिष का वर्तमान में उपलब्ध इतिहास आर्यभट्ट प्रथम के द्वारा लिखे गए शास्त्र से मिलता है. आर्यभट्ट ज्योतिषी ने अपने समय से पूर्व के सभी ज्योतिषियों का वर्णन विस्तार से किया था. उस समय के द्वारा लिखे गये, सभी शास्त्रों
जन्म के समय जातक कई प्रकार के अच्छे योग तथा कई बुरे योग लेकर उत्पन्न होता है. उन योगों तथा दशा के आधार पर ही जातक को अच्छे अथवा बुरे फल प्राप्त होते हैं. योगों में शामिल ग्रह की दशा या अन्तर्दशा आने पर ही इन योगों का फल
द्वादशी तिथि अर्थात बारहवीं तिथि. इस तिथि के दौरान सूर्य से चन्द्र का अन्तर 133° से 144° तक होता है, तो यह शुक्ल पक्ष की द्वादशी होती है और 313° से 324° की समाप्ति तक कृष्ण द्वादशी तिथि होती है. इस तिथि के स्वामी श्री
ज्योतिष शास्त्र में एक तिथि को जब दो भागों में बांटा जाता है, तो दो करण बनते है. इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है, कि दो करण मिलाकर एक तिथि बनती है. एक करण तिथि के पहले आधे भाग से तथा दूसरा करण तिथि के दूसरे उत्तरार्ध से
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 26वां नक्षत्र है. अगर नक्षत्रों में अभिजीत नक्षत्र की भी गणना की जाती है, तो यह 27वां नक्षत्र होता है. राशिचक्र में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की स्थिति मीन राशि में आती है. इस नक्षत्र
गार्नेट जिसे रक्तमणि और तामडा़ नाम से भी जाना जाता है. एक बहुत ही प्रभावशाली रत्न है. आज के समय में हर व्यक्ति किसी ना किसी बात को लेकर परेशान रहता है. अपनी परेशानियों का हल खोजने के लिए वह कई बार अपने भविष्य की जाँच भी
द्वादश भाव मोक्ष स्थान है, इस भाव से व्यक्ति के व्यय देखे जाते है. यह भाव हानियां, व्यय, बायीं आंख, व्यर्थ के अपव्यय, मोक्ष, यौनानन्द, विदेश यात्रायें, गुप्त शत्रु, पाप, अपना स्थान छोडना, बैरियों से भय, मृ्त्यु के
रत्नों के खनिज ओलीवीन को पेरीडोट कहा जाता है. इसमें लौह तत्व होने से इस उपरत्न का रंग गहरा हरा होता है. इसके अतिरिक्त यह हरे रंग के साथ सुनहरे पीले रंग की आभा लिए हुए भी होता है. जैतून के जैसे हरे रंग में मिलता
ज्योतिष में योग शब्द से अभिप्राय ग्रहों के संबन्ध से है, यह सम्बन्ध ग्रहों की युत्ति, दृ्ष्टि संबन्ध्, परिवर्तन तथा अन्य कई कारणों से बन सकता है. जिस प्रकार धर्म में बुद्धि और शरीर का योग, आयुर्वेद में दो या दो से अधिक
पूर्वाषाढा नक्षत्र को जल नक्षत्र कहा जाता है. इस नक्षत्र के स्वामी शुक्र है. इसलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव और आचार-विचार पर शुक्र का प्रभाव देखने में आता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति
पांच महापुरुष योगों को पंच-महापुरुष योग भी कहते है. यह योग पांच श्रेष्ठ योगों का समूह है. पांच महापुरुष योग में रुचक योग, हंस योग, मालव्य योग, भद्र योग व शश योग आते है. इन पांचों योगों को एक साथ पंच महापुरुष योग के नाम
तृतीय भाव पराक्रम भाव भी कहलाता है. इस भाव के अन्य कुछ नाम अपिक्लिम भाव, उपचय भाव, त्रिषडय भाव है. तृ्तीय भाव से व्यक्ति की ताकत, साहस, दीर्घायु, छोटे भाई, दृ्ढता, छोटी यात्राएं, लेखन, सम्बन्ध, दिमागी उलझने, आनन्द,
विशाखा नक्षत्र ज्योतिष शास्त्र के 27 नक्षत्रों में से 16वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र के स्वामी गुरु है. गुरु का स्वामित्व होने के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को ज्ञान अर्जन में विशेष रुचि होती है. इस
हस्त नक्षत्र चन्द्र का नक्षत्र है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के स्वभाव में चन्द्र के गुण स्वत: होते है. 27 नक्षत्रों में हस्त नक्षत्र 13वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र का व्यक्ति स्वभाव से बुद्धिमान प्रकृति का
शरीर में मौजूद प्रत्येक चक्र शरीर के अलग-अलग अंगों में स्थित हैं इसमें से एक चक्र है मूलाधार चक्र. मूलाधार को मूल आधार, अधार, प्रथम चक्र, बेस या रूट चक्र भी कहते हैं. यह हमारे शरीर का प्रथम चक्र तथा प्राणशक्ति का आधार
सौरमण्डल के सन्दर्भ में कुछ आवश्यक बातों को आपके लिए समझना आवश्यक है. ग्रह और नक्षत्रों के विभाजन के विषय में आपने पिछले अध्यायों में जानकारी हासिल की है. इसके अतिरिक्त सौरमण्डल से जुडी़ कुछ बातों को आप और समझ लें जिनका
कन्या राशि, राशिभचक्र की छठवीं राशि है. यह राशि व्यापार कार्य करने वाले व्यक्तियों की राशि मानी जाती है. इसका कारण इस राशि के व्यक्तियों में सामान्य से अधिक बुद्धि का होना, और इस राशि के व्यक्तियों का व्यवहारिक होना है.
इस उपरत्न की खोज 1791 में हुई थी. इस उपरत्न को फ्रेन्च खनिज-विज्ञानी डियोदैट-दे-डोलोमियू(Deodat de Dolomieu) ने आल्प्स(Alps) में भ्रमण करते हुए खोजा था. उन्हीं के नाम पर इस उपरत्न का नाम डोलोमाईट पड़ गया. यह उपरत्न
घर में बालक का जन्म् होने पर बालक की कुण्डली बनवाई जाती है. कुण्डली में ग्रहों की स्थिति से बन रहे योगों की जानकारी प्राप्त की जाती है. ( sematext ) तथा सभी शुभ – अशुभ योगों के अलावा कुण्डली में बन रहे धन योगों का
पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग करण है. करण 11 होते हैं और हर 1 तिथि में 2 करण आते हैं. प्रत्येक करण का अपना एक अलग प्रभाव होता है. व्यक्ति के जीवन और उसके कार्यों पर करणों का प्रभाव भी स्पष्ट होता है. शकुनि करण के प्रभाव
अम्बर उपरत्न विभिन्न रंगों में उपलब्ध होता है. यह पीले रंग से लेकर लाल रंग तक के रंगो में पाया जाता है. परन्तु अम्बर उपरत्न का रंग सामान्यतया शहद के रंग जैसा होता है. इसी रंग का अम्बर अधिक प्रचलित है. सबसे अच्छा अम्बर
इस उपरत्न का यह नाम सिंहला नाम पर पडा़ है. सीलोन द्वीप को संस्कृत में सिंहला या सिंहली कहते थें. वर्तमान श्रीलंका का यह प्राचीन नाम है. यह उपरत्न इस द्वीप पर पाए जाने से सिन्हेलाईट कहलाता है. इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज
सूर्य से बारह अंशों की दूरी पर तिथि बनती है, तथा सूर्य से छ: अंशों कि दूरी पर करण बनता है. इस प्रकार एक तिथि में दो करण होते है. करण ज्योतिष शास्त्र में पंचाग का भाग है, व इसे मुहूर्त कार्यों में प्रयोग किया जाता है.
यह आसानी से उपलब्ध होने वाला उपरत्न है. यह अपारदर्शी होता है. यह आयरन आक्साइड से बना खनिज है. यह हल्के काले रंग से गहरे काले रंग तक के रंगों में पाया जाता है. भूरे रंग, भूरे व लाल रंग के मिश्रण तथा लाल रंग में भी
चक्र योग भी 32 नभस योगों में से एक है. इस योग की यह विशेषता है, कि जब लग्न भाव से सभी ग्रह विषम भावों में हो, तो चक्र योग बनता है. कुण्डली के विषम भाव 1, 3, 5, 7, 9, 11 भावों को कहा जाता है. चक्र योग वाला व्यक्ति अपने
कुण्डली में ग्रहों अपनी विशेष स्थिति में होने पर विशेष रुप से शुभ या अशुभ फल देने वाले हो जाते है. इस स्थिति को योग कहा जाता है. योग बनाने वाले ग्रहों की फल देने की क्षमता बढ जाती है. योग शुभ हो तो व्यक्ति को शुभ फल
नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से भिन्न है. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है. जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृ्त किया गया है. इन योगों को किसी ग्रह के
कमल योग नभस योगों की श्रेणी में आता है. भिन्न भिन्न राशियों में ग्रहों की स्थिति से नभस योग बनते है. नभस योग 1800 प्रकार से बनते है. इन योगों के नाम इनके द्वारा बनने वाली आकृति के अनुरुप रखे गये है. जैसे- कुण्डली में
इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द पाइर(Pyr) से बना है जिसका अर्थ है - आग. यह एक ऎसा खनिज है जो सोने के साथ विलक्षण समानता रखता है. यह उपरत्न सोने का भ्रम पैदा करता है और व्यक्ति इसकी चमक देखकर धोखा जाते हैं. इसलिए इसे
"दैनिक जीवन में प्रतिदिन के कार्यो में शुभता बनी रही. जिसके लिये कार्य के लिये शुभ मुहूर्त निकालने के लिये अत्यधिक मेहनत भी न करनी पडे" इस प्रकार का विचार सभी के मन में आता है. परन्तु इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल
जब कोइ ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित होता है, तो वह शक्ति हीन और निर्बल होता है. इस स्थिति में वह ग्रह अपने शुभ फल देने में असमर्थ होता है. किन्तु अन्य ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि या परस्पर राशि परिवर्तन आदि के उस पर
It is an unique and a rare gem.It is most popular between the gem collectors.It is specially finished made for them.This gemstone is similar to many other gems and created the illusion of many other gems. In colourless
वैदिक ज्योतिष में 28 नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है. सभी नक्षत्रों का अपना विशिष्ट महत्व है. 28 नक्षत्रों में से कोई भी नक्षत्र व्यक्ति विशेष के लिए शुभ तथा अशुभ हो सकता है. जो एक नक्षत्र किसी व्यक्ति के लिए अशुभ है वही
धनु राशि के व्यक्ति मानवतावादी होते है. उनके स्वभाव में फुर्तीलापन देखने में आता है. इस राशि के व्यक्ति सदैव प्रसन्नचित रहने का प्रयास करते है. वे आशावादी होते है. धनु राशि के व्यक्तियों में उत्तम वक्ता के गुण होते है.
गर करण को चर करणों की श्रेणी में आता है, हिन्दू पंचाग के पांच अंग है, इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण है, व कुल 11 करण है, इसमें से प्रारम्भ के सात करणों की आवृति होती रहती है. शेष चार करण स्थिर है. गर करण- स्वामी
जैमिनी ज्योतिष में अनेक दशाओं का प्रयोग किया जाता है. उनमें से एक प्रमुख दशा स्थिर दशा भी है. इस दशा का विश्लेषण अप्रिय घटनाओं, स्वास्थ्य तथा जीवन की नकारात्मक जानकारियों के लिए किया जाता है. यह जैमिनी की बहुत ही सरल
हिन्दू धर्म में विवाह करने से पूर्व वर-वधू दोनों की कुण्डलियों का मिलान किया जाता है. कुण्डलियों के इस मिलन को अष्टकूट मिलान के नाम से जाना जाता है. कुण्डली मिलान का प्रचलन उत्तरी भारत और दक्षिण भारत दोनों में ही मुख्य
त्रयोदशी तिथि – हिन्दू कैलेण्डर तिथि त्रयोदशी तिथि हिन्दु माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों समय पर आती है. अन्य तिथियों की भांति ही इस तिथि का भी अपना एक अलग महत्व रहा है. इस तिथि का मुहूर्त पंचाग और पर्व
चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य और चन्द्र दोनों का वर्णन किया गया है. चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ विशेष रुप से "छाया साधना" पर आधारित है. इस ग्रन्थ में 25 प्रकार की छाया बताई गई है. इन छायाओं का विश्लेषण कर व्यक्ति के
वसुमान योग बुध, गुरु, शुक्र लग्न या चन्द्रमा से तीसरे, छठे, दशवें, ग्यारहवें भाव में हो, तो यह योग बनता है. वसुमान योग व्यक्ति को अत्यधिक धनवान बनाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति बुद्धिमान, बौद्धिक रुप से गुणवान होता है.
जैमिनी चर दशा में राशि बल के बाद ग्रहों का बल ज्ञात किया जाता है. ग्रह बल में भी तीन प्रकार के बलों का आंकलन किया जाता है. मूल त्रिकोणादि बल, अंश बल तथा केन्द्रादि बल यह तीन प्रकार के ग्रह बल हैं. तीनों बलों के बारे में
11 करणों में तैतिल करण तीसरे क्रम में आता है. तैतिल करण को मिलाकर कुल 11 करण है. ज्योतिष का मुख्य भाग समझने जाने वाले पंचाग ज्ञात करने के लिए करण की गणना कि जाती है. विभिन्न कार्यो के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए भी
दशमाँश कुण्डली या D-10 | Dashmansha Kundali or D-10 यह कुण्डली व्यवसाय की सफलता तथा असफलताओं के लिए देखी जाती है. इस कुण्डली से इस बात का आंकलन किया जाता है कि जातक का व्यवसाय कैसा होगा. वह अधिक समय तक एक ही व्यवसाय में
रोग संबंधी प्रश्न |Disease Related Question जब किसी व्यक्ति विशेष की सेहत या स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव चल रहा हो और उसे स्वास्थ्य लाभ ना हो रहा हो तब वह हारकर ज्योतिषी का सहारा लेता है. कई बार रोगी अति कमजोर होता है
दशम भाव कर्मस्थान है. यह भाव व्यक्ति के जीवनयापन का साधन मात्र है. इस भाव से व्यक्ति की प्रख्याति देखी जाती है. दशम भाव व्यक्ति का व्यवसाय दर्शाता है. दशम भाव में चर राशि होने पर व्यक्ति की महत्वकांक्षाएं प्रकट होती है.
यह उपरत्न जिप्सम की एक किस्म है. प्राचीन समय में मिस्त्र के लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाता था. यह प्रकृति में पाये जाने वाले सबसे अधिक नर्म पत्थरों में से एक है. इसलिए इसे गहनों के साथ मूर्त्तिकला में भी इस्तेमाल
बुध रत्न पन्ना को बुद्धि विकास और सौन्दर्य वृ्द्धि के लिये धारण किया जाता है. इस रत्न के कई नाम है, जिनमें से कुछ नाम मरकत, हरित्मणि, गरूडागीर्ण, सौपर्णी आदि कहा जाता है. इस रत्न को धारण से व्यक्ति की स्मरणशक्ति की
वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध की विशेषताओं में बुद्धिमता, शिक्षा, मित्र, व्यापार और व्यवसाय, गणित, वैज्ञानिक, ज्ञान प्राप्त करना, निपुणता, वाणी, प्रकाशक, छापने का कार्य, पढाने वाला, फूल, मामा और मामी, लेखविद्या, लिपिक,
कर्क राशि भचक्र की चौथी राशि, इस राशि के व्यक्ति स्वभाव से भावुक प्रकृ्ति के होते है. भावनाओं के प्रभाव में बहकर बडे-बडे निर्णय ले लेना इनके लिए कोई कठिन नहीं है. इस राशि के व्यक्ति जिन के मित्र बन जायें, तो मित्रों के
गुरुवार का व्रत विशेष रुप से विवाह मार्ग की बाधाओं में कमी करने के लिये किया जाता है. देव गुरु वृ्हस्पति धन के कारक ग्रह है, इसलिये इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना
इस उपरत्न को देखकर कई लोगों को जेड उपरत्न का भ्रम हो जाता है. इसलिए इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन आवश्यक है. इसका रंग द्रव्य निकिल है. इस उपरत्न के बडे़ आकार के पत्थर प्राय: कोमल तथा हल्के रंग के होते हैं. इस उपरत्न को गर्म
वैदिक ज्योतिष का आधार 9 ग्रह, 12 राशियां व 27 नक्षत्र है. इन्हीं नौ ग्रहों म्रें स्रे एक ग्रह है, जिसे गुरु या वृ्हस्पति ग्रह् के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष के 9 ग्रहों में से गुरु ग्रह को सबसे अधिक शुभ ग्रह माना गया
अमावस्या तिथि अंधेरे पक्ष को दर्शाती है. यह वह समय होता है जब अंधकार बहुत अधिक गहन होता है. इस तिथि के दौरान घर की चौखट, चौराहे, नदी, तलाब इत्यादि स्थानों पर दीपक जला कर प्रकाश का संचार करने की प्रथा प्राचीन काल से ही
सभी ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक
जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. * यदि प्रश्न के
चन्द्र रत्न मोती मुक्ता, मोक्तिम, इंदुरत्न, शाईरत्न आदि कई नामों से जाना जाता है (Pearl is known by different names like: Mukta; Moktim, Shairatna, etc,). मोती रत्न के स्वामी चन्द्र है. इस रत्न को अपने लग्न अनुसार धारण
एमेट्राईन उपरत्न में अमेथिस्ट और सिट्रीन दोनों के गुणों का समावेश माना जाता है. यह बहुत ही दुर्लभ तथा असामान्य उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न पूरे विश्व में बोलिविया के जंगल में "अनाही" की खदानों में पाया जाता है. ऎसा
प्रश्न कुण्डली में प्रश्न की पहचान होनी चाहिए. जिससे यह अंदाज हो सके कि प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न किस विषय से संबंधित है. पुराने तरीके में प्रश्न को तीन भागों में बाँटा जाता था. वह निम्नलिखित हैं :- (1) धातु चिन्ता |
एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है. एक चन्द्र मास मे 30 दिन होते है. साथ ही एक चन्द्र मास दो पक्षों से मिलकर बना होता है. दोनों ही पक्षों की ग्यारहवीं तिथि एकादशी तिथि कहलाती है. सभी तिथियों की तुलना में एकादशी तिथि का
यह उपरत्न वैसे तो कई विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है परन्तु गहनों के रुप में या सजावटी तौर से उपयोग में लाया जाने वाले शुद्ध रुप में इसकी आपूर्त्ति कम ही है. यह उपरत्न अपने विभिन्न प्रकार के रंगों तथा अदभुत गुणवत्ता
भारत में ज्योतिष का प्रारम्भ कब से हुआ, यह कहना अति कठिन है. इसे प्रारम्भ करने वाले शास्त्री कौन से है. उनका उल्लेख स्पष्ट रुप से मिलता है. उनमें सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि,
तिथियों के बिना कोई भी मुहुर्त नहीं होता है. ज्योतिष में तिथियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है. अलग-अलग तिथियों के अनुसार विभिन्न कार्य किए जाते हैं. सभी कार्यों का मुहुर्त तिथियों के अनुसार बाँटा गया है. कृष्ण पक्ष की
ज्योतिष शास्त्रों में वृ्श्चिक राशि को रहस्यमयी राशि कहा गया है. इस राशि में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से रहस्यमयी प्रकृ्ति के होते है. इस राशि के व्यक्ति गहरी भावनाओं से युक्त होते है. वृ्श्च्चिक राशि के व्यक्तियों
आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माता के नवरात्रे शुरु होते है. इन नौ दिनों में माता का पूजन और उपवास करने पर भक्तों को विशेष पुन्य की प्राप्ति होती है. इस माह के शुरु होने के साथ ही पितृ पक्ष भी प्रारम्भ होता
मिथुन राशि के व्यक्तियों में बौद्धिक योग्यता सामान्य से अधिक होती है. सभी व्यक्ति अपनी जन्म राशि की विशेषताओं के अनुरुप व्यवहार करते है. जिन व्यक्तियों की जन्म राशि मिथुन है, वे स्वभाव से विनोदी, और आकर्षक व्यक्तित्व के
कार्नेलियन उपरत्न को हिन्दी में "रात-रतुवा" कहा जाता है(Carnelion stone is called Rat-Ratua in Hindi). रात-रतुवा को रोडोनाइट के नाम से भी जाना है. इस उपरत्न को मूँगा रत्न के स्थान पर धारण किया जा सकता है. लाल रंग के
नवम भाव धर्म का भाव है. इस भाव से सौभाग्य देखा जाता है. इसके अतिरिक्त नवम भाव पिता, पुत्र का भाव भी है. व्यक्ति की धार्मिक आस्था इसी भाव से देखी जाती है. किसी भी व्यक्ति का ईष्टदेव कौन सा होना चाहिए, इसकी व्याख्या नवम
राशिचक्र 12 राशियों से मिलकर बना है, इस चक्र में 360 अंश होते है. तथा 360 अंशों को 12 भागों में बराबर बांटने पर 12 राशियों का निर्माण होता है. सभी व्यक्तियों का जीवन 12 राशियों, 9 ग्रह और 27 नक्षत्रों से प्रभावित रहता
वर्तमान समय में दैनिक जीवन के सभी कार्यों को शुभ मुहूर्त निकाल कर करना संभव नहीं है. अगर कोई व्यक्ति ऎसा प्रयास करता भी है तो मुहूर्त समय की शुद्धि में कमी रहेगी. या फिर व्यक्ति के कार्य विल्मबित होते रहेगें. ऎसे में
कनकदण्ड योग उस समय बनता है, जब सातों ग्रह मीन, मेष, वृ्षभ, और तुला राशियों में होते है. यह योग व्यक्ति को श्रेष्ठ धर्मपरायण बनाता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति को यश की प्राप्ति होती है. जिस भी क्षेत्र में होता है, उसमें
हिन्दू कैलेण्डर के बारह मासों में से सावन का महीना अपनी विशेष पहचान रखता है. इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है. ऎसा लगता है मानों प्रकृति में एक नई जान आ गई है. वेदों में मानव तथा प्रकृति का बडा़ ही गहरा संबंध
चन्द्रमा की एक कला तिथि कहलाती है. एक तिथि से दो नक्षत्र बनते है. इस प्रकार कृ्ष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों की तिथियां मिलाकर 30 तिथियां बनती है. चरण एक तिथि में दो होते है. इस हिसाब से करण कुल 60 होने चाहिए. पर
अनेक विद्वानों के मतानुसार लग्न की राशि के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय होता है. लग्न में जो राशि आती है और लग्न में स्थित ग्रहों के गुणधर्म के अनुसार व्यक्ति की आजीविका होती है. कई विद्वानों का मानना है कि व्यवसाय के
शनि ग्रह को समझने के लिए सबसे पहले शनि की कारक वस्तुओं को जानना आवश्यक है. शनि ज्योतिष में आयु का कारक ग्रह है. इसके प्रभाव से प्राकृ्तिक आपदायें, मृ्त्यु, बुढापें, रोग, निर्धनता,पाप, भय, गोपनीयता, कारावास, नौकरी,
शुक्र पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. वह विवाह का कारक ग्रह है, ज्योतिष में शुक्र से वाहन, काम सुख, आभूषण, भौतिक सुख सुविधाओं का कारक ग्रह है. शुक्र से आराम पसन्द होने की प्रकृ्ति, प्रेम संबन्ध, इत्र, सुगन्ध, अच्छे
कुण्डली के दूसरे भाव को द्वितीय भाव भी कहते है. यह भाव पनफर भाव, मारक स्थान भी कहलाता है. द्वितीय भाव को धनभाव, कुटुम्ब स्थान, वाक स्थान के नाम से भी जाना जाता है. धन भाव क्या दर्शाता है. | What does the Shows of Dhana
वर्ग कुण्डलियाँ | Varga Kundalis किसी भी कुण्डली का अध्ययन करते समय संबंधित भाव की वर्ग कुण्डली का अध्ययन अवश्य करना चाहिए. वैदिक ज्योतिष में कई वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है. जिनमें से कुछ वर्ग कुण्डलियाँ
कई व्यक्ति जीवन में दूसरों के अधीन रहकर कार्य करते हैं अर्थात नौकरी से अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं. बहुत से व्यक्ति ऎसे भी होते हैं जिन्हें किसी के अधीन रहकर कार्य करना रास नही आता है. ऎसे व्यक्ति स्वतंत्र रुप से
इस उपरत्न की जानकारी 18वीं सदी से प्राप्त होती है. यह एक टिकाऊ उपरत्न है. यह पारदर्शी, पारभासी अथवा अपारदर्शी तीनों ही रुपों में पाया जाता है. इस उपरत्न का रंग लौह सांद्रता के आधार पर होता है. कई बार यह गहरा हरा, भूरा
जैमिनी ज्योतिष | Jaimini Astrology ज्योतिष के संसार में दो महर्षियों की महान देन रही है. महर्षि पराशर तथा महर्षि जैमिनी. महर्षि पराशर ने वैदिक ज्योतिष से लोगों को परिचित कराया तो जैमिनी ज्योतिष महर्षि जैमिनी की देन है.
अक्षवेदांश चतु:चत्वारिशांश या D-45 | Akshavedansha or Chatu Chatvariyansha Kundali or D-45 इस वर्ग कुण्डली को पंच चत्वार्यांश भी कहते हैं. इस कुण्डली से व्यक्ति विशेष का चरित्र देखा जाता है. सामान्यतया अच्छे तथा बुरे
जीवनसाथी के विषय से जुडे़ अनेक प्रश्न होते हैं, उनके साथ ही विवाह संबंधी प्रश्न के बाद प्रश्नकर्त्ता का अगला प्रश्न संतान से संबंधित होता है. संतान कब तक होगी? कैसी होगी? सब ठीक होगा? आदि प्रश्नों का कई बार ज्योतिषी को
रत्न, खनिज का एक सुंदर टुकडा़ होता है. खानों से निकालने के बाद रत्नों को संवारा जाता है. इन्हें अलंकृत किया जाता है. कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद रत्नों को गहनों के रुप में इस्तेमाल किया जाता है. जो व्यक्ति रत्न
वर-वधू की कुण्डली का मिलान करते समय मांगलिक दोष व अन्य ग्रहों दोषों के साथ साथ अष्टकूट मिलान भी किया जाता है. अष्टकूट मिलान के अलावा इसे कूट मिलान भी कहा जाता है. कूट मिलान करते समय आठ मिलान प्रकार के मिलान किए जाते है.
वैदिक ज्योतिष के गर्भ में झांकने पर ज्योतिष के अनसुलझे रहस्य परत दर परत खुलते जाते है. वैदिक ज्योतिष से परिचय करने में वेद और प्राचीन ऋषियों के शास्त्र, सिद्धान्त हमारे मार्गदर्शक का कार्य करते है. ज्योतिष शास्त्र के
कैसिटेराइट बहुत ही महत्वपूर्ण तथा दुर्लभ अयस्क है जो टिन से मिलता है. यह उपरत्न काले, हल्के काले, काले-भूरे, पीलेपन में, हरापन लिए, लाल तथा रंगहीन रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को यह नाम कैसिटेराइड्स शब्द से मिला है
विपरीत राज योग त्रिक भावों के स्वामियों के परस्पर स्थान परिवर्तन से बनता है. यह योग तीन प्रकार से बन सकता है. तीनों प्रकारों के नाम अलग अलग है. इन्हीं तीनों योगों में से एक योग है, हर्ष योग.. हर्ष योग कैसे बनता है. |
फाल्गुन माह को फागुन माह भी हा जाता है. इस माह का आगमन ही हर दिशा में रंगों को बिखेरता सा प्रतीत होता है. मौसम में मन को भा लेने वाला जादू सा छाया होता है. इस माह के दौरान प्रकृति में अनूपम छटा बिखरी होती है. इस मौसम
बुधवार का व्रत करने की विधि | Wednesday Fast Method जिस व्यक्ति को बुधवार का व्रत करना हों, उस व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. उठने के बाद प्रात: काल में उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए.
जैसे भचक्र की भिन्न-भिन्न राशियों तथा नक्षत्रों का अधिकार क्षेत्र शरीर के विभिन्न अंगों पर है, ठीक उसी प्रकार भिन्न-भिन्न ग्रह भी शरीर के विभिन अंगों से संबंधित है. इसके अतिरिक्त कुछ रोग, ग्रह अथवा नक्षत्र की स्वाभाविक
शुक्र रत्न हीरा सदा से ही अपने आकर्षक आभा के कारण चर्चा का विषय रहा है. इस रत्न को वज्रमणी, इन्द्रमणी, भावप्रिय, मणीवर, कुलीश आदि नामों से भी पुकारा जाता है. हीरा धारण करने वाले व्यक्ति के वैवाहिक सुख-शान्ति में वृ्द्धि
साई बाबा व्रत को कोई भी व्यक्ति कर सकता है. इस व्रत को करने के नियम भी अत्यंत साधारण है. साई बाबा अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करते है. उनकी कृ्पा से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती है. मांगने से पहले ही वे सब कुछ देते है.
प्राचीन काल में ज्योतिष अपने सर्वोत्तम स्तर पर था. मध्य काल में इस विद्या के शास्त्रों को न संभाल पाने के कारण उस समय के सही प्रमाण हमारे पास आज पूर्ण रुप से उपलब्ध नहीं है. उस समय के के शास्त्री ग्रहों कि गति, कालों
राशियों की भाँति ग्रहों के भी गुण-धर्म होते हैं. ग्रहों की दिशाएँ तथा निवास स्थान भी होते हैं. आपने पिछले अध्याय में राशियों के बारे में कुछ जानकारी हासिल की है. अब आप इस पाठ में ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त
किंस्तुघ्न करण को कौस्तुभ करण के नाम से भी जाना जाता है. इस करण की महत्ता किसी भी शुभ योग का साथ पाकर और भी बढ़ जाती है. शुक्ल पक्ष की पहली तिथि प्रतिपदा को जब दिन के समय किंस्तुघ्न करण के साथ कोई शुभ योग आए जैसे की
पांच महापुरुष योग पांच ग्रहों के अपने राशि में स्थित होने अथवा उच्च के होकर केन्द्र में होने पर बनते है. इस प्रकार बनने वाले पांच योगों में से एक योग है. रुचक योग. रूचक योग किस प्रकार बनता है | How is Ruchaka Yoga
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता । विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ऊँ।। तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी । गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ऊँ।। मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष की
प्रश्न कुण्डली का अध्ययन करते समय ताजिक योगों का विश्लेषण करना आवश्यक होता है. बिना ताजिक योगों के प्रश्न कुण्डली का अध्ययन अधूरा होता है. कार्य की सिद्धि होगी अथवा नहीं होगी यह ताजिक योगों से पता चलती है. आपको इस
प्रश्न कुण्डली के द्वारा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि चोरी किया सामान कहाँ हैं. शहर में ही है या शहर से दूर चला गया है अथवा घर के आस-पास ही है. * मेष लग्न यदि प्रश्न कुण्डली में उदय होता हो तो चोरी का सामान भूमि
शनिवार का व्रत अन्य सभी वारों के व्रत में सबसे अधिक महत्व रखता है. शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में शनि निर्बल अवस्था में हो, या अपनी पाप स्थिति के कारण अपने पूर्ण फल देने में असमर्थ हों, उन व्यक्तियों
* प्रश्न के समय यदि लग्नेश तथा षष्ठेश का इत्थशाल होता है तब बीमारी लम्बी अवधि तक बनी रहती है. * षष्ठेश तथा लग्नेश में राशि परिवर्तन हो तो भी बीमारी लम्बी अवधि तक बनी रहती है. * 2,7,12 भावों में पाप ग्रह हों तो रोगी की
इस उपरत्न को आत्मविश्वास तथा शांति बढा़ने का उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न दिखने में शीशे जैसे हरे रंग का होता है. इसमें हरे रंग के गहरे धब्बे होते हैं. लाल तथा भूरे रंग के कृत्रिम उपरत्न पिघले हुए शीशे तथा ताँबें के
सबसे पहले आप यह निर्धारित करें कि चर दशा का क्रम सव्य है अथवा अपसव्य है. चर दशा के क्रम के विषय में पिछले अध्याय में आपको जानकारी दी गई है. चर दशा के क्रम की गणना, राशि दशा से भिन्न है. राशि दशा की गणना में भी छ:
सभी ग्रहों में सूर्य को विशेष स्थान दिया गया है, सूर्य को ग्रहों में राजा कहा गया है. वह पिता और आत्मा के कारक ग्रह है. सूर्य से ग्रहों कि विशेष स्थिति होने पर सूर्यादि योग बनते है. सूर्य से बनने वाले एक विशेष योग है.
ज्योतिष शास्त्र मे नक्षत्रों की गणना का विधान आदिकाल से चला आ रहा है. नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति के जन्म से ही शुरू हो जाता है, और उस व्यक्ति के आचार -विचार को निर्धारित करता है. नक्षत्र के फलस्वरूप ही व्यक्ति के गुण एवं
ऋषि गर्ग के पुत्र ऋषिपुत्र कहलायें. अपने पिता के समान ये ज्योतिष के विद्वान थे. इनके विषय में मिले ज्योतिष अवशेषों से यह ज्ञात होता है, कि इन्हें ज्योतिष पर कई शास्त्र लिखें, जिसमें से आज एक शास्त्र उपलब्ध है. इनके
इस उपरत्न की बनावट तन्तुमय होती है. यह सूक्ष्म मणिभ श्रेणी के स्फटिक कहे जाते हैं. यह उपरत्न छोटे मणिभ कणों के संघटित होने से बनता है. यह छिद्रयुक्त पूर्ण पत्थर है. अत: इसकी रंगाई बडी़ सरलता से हो जाती है. वर्तमान समय
कई बार नौकरी में कुछ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ता है. ऎसी स्थिति में प्रश्नकर्त्ता के ऊपर मान-सम्मान को लेकर ठेस पहुंचाने का कार्य हो सकता है. कई बार दोषारोपण के कारण अथव अन्य कई कारणों से स्थानांतरण की
ज्योतिष में जन्म कुण्डली का अष्टम भाव, आयु भाव है. इस भाव को त्रिक भाव, पणफर भाव और बाधक भाव के नाम से जाना जाता है. इस भाव से जिन विषयों का विचार किया जाता है. उन विषयों में व्यक्ति को मिलने वाला अपमान, पदच्युति, शोक,
यह हीरे का उपरत्न है. जर्कन को हिन्दी में तुरसावा कहते हैं. अंग्रेजी में हायसिंथ और जेसिन्थ कहते हैं. जर्कन उपरत्न अपने आप में एक महत्वपूर्ण रत्न है. इसका बहुत ही पुराना ऎतिहासिक महत्व भी है. इसका उपयोग हजारों वर्षों से
27 नक्षत्रों की श्रृंखला में आर्द्रा नक्षत्र का स्थान छठा है. आर्द्रा से पहले मृगशिरा नक्षत्र आता है और इसके बाद में पुनर्वसु नक्षत्र आता है. आर्द्रा नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है. यह नक्षत्र मिथुन राशि में आता है. यह
रेवती नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से सबसे अंत में आता है. यह नक्षत्र छोटे छोटे 32 नक्षत्रों से मिलकर बना है. ये 32 नक्षत्र या तारे मिलकर एक मृदंग की आकृति बनाते है. आकाश में यही मृ्दंग की आकृ्ति रेवती नक्षत्र कहलाती है.
इस उपरत्न की खोज 1906 में हुई है. यह अत्यंत ही दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न सारे विश्व में केवल सैन बेनिटो में बेनिटो नदी के किनारे, कैलीफोर्निया में पाया गया था. इसलिए इसका नाम बेनीटोइट पड़ गया. वर्तमान समय में इस
ज्योतिष के इतिहास में ऋषि मनु को विशेष आदर-सम्मान प्राप्त है, मनु ऋषि ने कई ज्योतिष ग्रन्थों की रचना करने के साथ साथ कई धार्मिक ग्रन्थों की भी रचना की. इनके द्वारा लिखे गये कुछ ग्रन्थों में से मनु संहिता, मनुसमृ्ति
जेड उपरत्न को उर्दू में मरगज कहा जाता है. प्राचीन समय में कई शताब्दियों तक जेड को एक ही प्रकार का रत्न समझा जाता था. सन 1863 में जेड की दो किस्में स्वीकार की गई - जेडाइट और नेफ्राइट. दोनों का ही उपयोग गहने तथा पूजा की
यह उपरत्न हल्के पीले रंग की आभा लिए हुए हल्के गुलाबी रंग में पाया जाता है.(This substone is found in light pink color with a hue of light yellow). लेकिन सबसे अच्छा उपरत्न हल्का गुलाबी रंग का माना गया है. इस उपरत्न को
27 नक्षत्रों में कृतिका नक्षत्र तीसरे स्थान पर आता है. इस नक्षत्र में 6 तारे माने गए हैं लेकिन प्राचीन वैदिक साहित्य में सात तारों का भी उल्लेख मिलता है. कृतिका नक्षत्र में तारों का समूह खुरपा या फरसे की आकृति के समान
जन्म कुण्डली में कुछ योग इस प्रकार के बनते हैं जिनमें उन योग का फल सीधे न मिलकर विपरीत रुप से फल मिलता है, इसका अर्थ हुआ की कष्ट तो मिलेगा लेकिन उसके बाद राहत भी मिलनी संभव हो पाएगी. विपरित राजयोग के अन्तर्गत सरल नामक
रत्नों तथा उपरत्नों के उपयोग के बारे में सभी जानते हैं. ज्योतिष तथा आयुर्वेद दोनों में ही प्रमुख नौ रत्नों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध हैं. आयुर्वेद में रत्नों का औषधि के रुप में भी उपयोग किया जाता है.
क्राइसोकोला उपरत्न एक चिकना तथा रेशेदार रत्नीय पत्थर है. यह उपरत्न चिकना होता है. कई बार यह पारभासी रुप में भी पाया जाता है. कई बार यह अपारदर्शी रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को देखने पर फिरोजा उपरत्न का आभास होता है.
नवमी तिथि हिन्दू मास की नवीं तिथि. यह तिथि चन्द्र मास के दोनों पक्षों में आती है. इस तिथि की स्वामिनी देवी माता दुर्गा है. तथा साथ ही यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इस तिथि के नाम के अनुसार इस तिथि में किए गए
ज्योतिष शास्त्र में छठे, आंठवें ओर बारहवें भाव और इसके स्वामियों की सदैव से आलोचना होती आई है. इन भावों के स्वामियों के विषय में यह तक कहा गया है, कि अगर इन भावों का स्वामी किसी अन्य भाव में शामिल होता है, तो उस भाव के
संतान के प्रश्न में कई बार प्रश्न कुण्डली में गर्भपात होने के योग भी बने होते हैं. योग बहुत से हैं आपको मुख्य योगों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है. बाकी आप प्रश्न कुण्डली का जितना अभ्यास करेंगें, आपकी प्रश्न
विमल नामक विपरित राजयोग, सकारात्मक फल देने में सहायक होता है. इस राजयोग में जातक को बहुत सी संभावनाएं मिलती हैं. इन संभावनाओं और अवसरों का लाभ उठाकर जातक अपने जीवन में आने वाले व्यवधानों से बचता हुआ आगे बढ़ता जाता है.
कुण्डली में अशुभ योग जितने कम हो, उत्तम रहता है, और शुभ योग अधिक हो तो व्यकि के धन, संपति, और सुख में वृ्द्धि करते है. शुभ योग अधिक होने से अशुभ योगों भी कई बार निष्क्रय हो रहे होते है. शुभ योगों की श्रेणी में से एक योग
दण्ड योग अपने नाम के अनुसार अशुभ योग है. इस योग से युक्त व्यक्ति का जीवन किसी दण्डित व्यक्ति के समान होता है. यह 1800 प्रकार के नभस योगों में से एक है. तथा इस योग से मिलने वाले फल प्रात: कुण्डली में बन रहे अन्य शुभ
चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है. यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान पूजा-पाठ और स्नान-दान
यह क्रिसोबेरिल समूह का उपरत्न है. इस उपरत्न को संस्कृत में हेमरत्न तथा हेमवैदुर्य कहा जाता है. हिन्दी में इसे हर्षल के नाम से जाना जाता है. प्रकृति में यह उपरत्न अनेक रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की विशेषता है कि
भचक्र में 12 राशियां है. ये 12 राशि अपने गुण, विशेषताओं, प्रकृ्ति और स्वभाव के अनुसार व्यक्ति को प्रभावित करती है. व्यक्ति का स्वभाव और व्यक्ति की प्रकृ्र्ति उसकी जन्म राशि और लग्न राशि दोनों के अनुसार होता है. व्यक्ति
नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से भिन्न है. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है. जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृ्त किया गया है. इन योगों को किसी ग्रह के
मिथुन राशि वालों के लिए मंगल ग्यारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है. ये योजनाएं सफल भी होंगी. यदि आप बेरोजगार हैं तो रोजगार प्राप्त होगा. और यदि आप नौकरी में है तो प्रमोशन की प्रबल संभावना.मिथुन राशि वालों के लिए
इस उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1855 में जी.ए.केनगोट(Kenngott) द्वारा की गई थी. इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द "एनस्टेट" से लिया गया है जिसका अर्थ घटक अथवा अवयव है. यह उपरत्न प्रोक्सीन समूह का खनिज है. इस उपरत्न के प्रिज्मीय
धर्माकर्माधिपति योग में नवमेश और दशमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा होता है. दोनों का एक -दूसरे से दृ्ष्टि , युति संबन्ध बन रहा होता है, कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति धर्म कर्म के कार्यो में आगे बढकर भाग लेता
महादशा | Maha Dasha जैमिनी स्थिर दशा की गणना सीधी तथा सरल है. कुण्डली में जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होते हैं उस भाव से स्थिर दशा का दशा क्रम आरम्भ होता है. इस गणना में चर,स्थिर तथा द्वि-स्वभाव राशियों की गणितीय गणना
प्रश्न कुण्डली के लिए कई तरीकों का उपयोग विभिन्न स्थानों पर किया जाता है. इस बारे में आपको आरम्भ के अध्याय में बताया गया है. कई बार प्रश्नकर्त्ता मजाक में प्रश्न में भी प्रश्न कर लेता है और कई बार कई मूर्ख तथा अज्ञानी
कुम्भ राशि के व्यक्ति मानवतावादी प्रकृ्ति के होते है. उन्हे स्वतन्त्र रुप से कार्य करना पसन्द होता है. इसके अतिरिक्त इस राशि के व्यक्तियों में उत्तम मित्र बनने का गुण विद्यमान होता है. ये वास्तविकता के निकट रहकर जीवन
एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई. सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ
वृषभ राशि वालों के लिए मंगल बारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है.धन कोष में वृद्धि होगी. दुर्घटनाओं, विवादों से पीछा छूटेगा. राजनीतिक मसले सुलझेंगे. दांपत्य जीवन में अनुकूलता आएगी. वृ्षभ राशि वालों के लिए यह मंगल
राहू व्यक्ति को शोध करने की प्रवृ्ति देता है, राहू की कारक वस्तुओ में निष्ठुर वाणी युक्त, विदेश में जीवन, यात्रा, अकाल, इच्छाएं, त्वचा पर दाग, चर्म रोग, सरीसृ्प, सांप और सांप का जहर, विष, महामारी, अनैतिक महिला से
शतभिषा नक्षत्र का स्वामी राहू है. 27 नक्षत्रों में से इस नक्षत्र का 24वां स्थान है. यह नक्षत्र कुम्भ राशि में आता है. इस नक्षत्र को पांच अशुभ नक्षत्रों में गिना जाता है. शतभिषा नक्षत्र काल में कोई भी शुभ कार्य शुरु करना
अमला योग को कई नामों से जाना जाता है, कुछ लोग इसे अमल योग भी कहते है. यह योग व्यक्ति को स्थिर बुद्धि का बनाने में सहयोग करता है. इस योग से युक्त व्यक्ति के स्वभाव में स्थिरता का भाव देखने में पाया जाता है. अमल योग कैसे
यह उपरत्न गहरे पीले रंग में पाया जाता है. हिन्दी में इस उपरत्न को “चिति” कहते हैं. इसमें सुनहरे भूरे रंग की धारियाँ पाई जाती हैं. इस उपरत्न को चमकाने के लिए पॉलिश की जाती है तब इसमें बहुत बढ़िया चमक आती है.
वैदिक ज्योतिष में राशि, भाव, नक्षत्र तथा ग्रहों के आधार पर सम्पूर्ण फलित टिका हुआ है. बारह राशियाँ, बारह भाव तथा नौ ग्रह का वर्णन सभी स्थानों पर मिलता है. ग्रहों की स्थिति के आधार पर हजारों योग बने हुए हैं. कुण्डली के
आयोलाइट, नीलम रत्न का उपरत्न है. इसे हिन्दी में "काका नीली" के नाम से जाना जाता है(Iolite is called kaka-Nili in Hindi). यह नीले रंग और बैंगनी रंग तक के रंगों में पाया जाता है. जैसे नीला रंग, गहरा नीला रंग, बैंगनी रंग,
यह उपरत्न "दहाना फरहग" भी कहलाता है. यह उपरत्न मुख्यत: हरे रंग में पाया जाता है. इस उपरत्न को काटने के बाद इसमें शैल के समान गोल आकृति दिखाई देती है. यह उपरत्न बहुत ही छोटे क्रिस्टल में पाया जाता है. बडे़ आकार में इसके
द्वितीया तिथि को कई नामों से जाना जाता है. यह तिथि दौज व दूज के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है. इस तिथि के देव ब्रहा जी है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को ब्रह्मा जी पूजन करना चाहिए. इस तिथि का एक अन्य नाम
जैमिनी चर दशा में पदों का अपना महत्वपूर्ण स्थान है. पद की गणना के विषय में कई मतभेद हैं. आपके सामने पद निर्धारण में केवल वही नियम लगाएँ अथवा बताए जाएँगें जो अधिक प्रचलित हैं. कई विद्वान पद लग्न अथवा आरुढ़ लग्न और उप-पद
सूर्य की गति पूरे वर्ष एक-सी नहीं रहती है. यह गति घटती-बढ़ती रहती है. इस कारण संसार के विभिन्न स्थानों पर समय - समय भिन्न होता है. हर देश का मानक समय अलग-अलग होता है. हर देश के विभिन्न क्षेत्रों का स्थानीय समय भी एक-सा
यह उपरत्न नीले रंग में पाया जाता है. पीले रंग में हरे तथा नीले रंग की आभा लिए यह उपरत्न मिलता है. किसी उपरत्न में हरे नीले रंग से लेकर गहरे नीले रंग तक की आभा होती है. गहरे नीले रंग के अक्वामरीन बहुत दुर्लभ पाए जाते
बेरिल बहुत ही लोकप्रिय उपरत्न हैं.(Beryl is a very popular sub-stone) बेरिल एक उपरत्न ना होकर कई उपरत्नों का एक समूह है. बेरिल में कई रंग के उपरत्न आते हैं. यह कई उपरत्नों की जड़ है. बेरिल नाम को भारत की देन माना गया
नारद और वशिष्ठ के फलित ज्योतिष सिद्धान्तों के संबन्ध में आचार्य पराशर रहे है. आचार्य पराशर को ज्योतिष के इतिहास की नींव कहना कुछ गलत न होगा. यह भी कहा जाता है, कि कलयुग में पराशर के समान कोई ज्योतिष शास्त्री नहीं हुआ.
चन्द्रमा ग्रहों में मां का प्रतिनिधित्व करता है. इसे शरीर में दिल का स्थान दिया गया है. इसके साथ ही चन्द्र व्यक्ति की भावनाओं पर नियन्त्रण रखता है. वह जल तत्व ग्रह है. सभी तरल पदार्थ चन्द्र के प्रभाव क्षेत्र में आती है.
आधुनिक समय में सभी अपनी शिक्षा का स्तर उच्च रखने की चाह रखते हैं. अभिभावक भी अपने बच्चो की शिक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं. प्राचीन समय में ब्राह्मण का कार्य शिक्षा प्रदान करना था. विद्यार्थीगण आश्रम में रहकर शिक्षा
यह एक उत्तम तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न संग्रहकर्त्ताओं में अधिक लोकप्रिय है. उनके लिए यह विशेष रुप से तराशा जाता है. यह उपरत्न अन्य कई उपरत्नों से मिलता - जुलता उपरत्न है. इससे कई अन्य रत्नों का भ्रम उत्पन्न होता
पराशर ऋषि ने कारकाध्याय में त्रिकोण तथा केन्द्र स्वामियों को शुभ माना है. लग्न को केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से अधिक शुभफल प्रदान करने वाला माना गया है. जिन जातकों की कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि किसी भी एक
कैरोआइट उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1947 में रुस में मुरुन की पहाड़ियों में यकुतिया में हुई थी लेकिन इससे भी पहले इस उपरत्न के बारे में 1940 में भी जाना जाता था. तब यह उपरत्न उत्तर से 325 मील दूर् बाइकल झील के किनारे पर
खोये व्यक्ति के संबंध बहुत से सवाल प्रश्नकर्त्ता द्वारा पूछे जाते हैं. इन प्रश्नों का बारी-बारी से तथा समझदारी से उत्तर देना चाहिए. प्रश्न कुण्डली में खोये व्यक्ति के घर वापिस आने के लिए बहुत से योग दिए होते हैं. आइए उन
विवाद प्रश्न में लग्न से प्रश्नकर्त्ता को देखा जाएगा या प्रश्न पूछने वाला जिस व्यक्ति का समर्थन कर रहा हो उसका विश्लेषण लग्न से किया जाएगा. आधुनिक समय में विवाद के प्रश्न भी काफी पूछे जाते हैं. इसमें घरेलू विवाद,
सिंह राशि के व्यक्ति तेजयुक्त, सक्रिय और दुसरों पर शीघ्र प्रभाव डालने वाले होते है. इस राशि के व्यक्तियों में उच्च अभिलाषा, गर्मजोशी और सर्जनात्मकता पाई जाती है. अपनी उर्जा शक्ति का सही उपयोग करने वाले होते है. सिंह
11th भाव-आय भाव क्या है. | Labha Bhava Meaning | Ekadasha House in Horoscope | 11th House in Indian Astrology एकाद्श भाव लाभभाव है. इस भाव को उपचय भाव और त्रिषडाय भाव भी कहा जाता है. चर राशि के व्यक्तियों के लिए यह
प्रश्न कुण्डली के द्वारा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि चोरी किया सामान कहाँ हैं. शहर में ही है या शहर से दूर चला गया है अथवा घर के आस-पास ही है. * मेष लग्न यदि प्रश्न कुण्डली में उदय होता हो तो चोरी का सामान भूमि
शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य पीडित अवस्था में हो, उन व्यक्तियों के लिये रविवार का व्रत करना विशेष रुप से लाभकारी रहता है. इसके अतिरिक्त रविवार का व्रत आत्मविश्वास मे वृ्द्धि करने के लिये भी
प्रश्न कुण्डली में चोरी हुई वस्तु के मिलने के योग बने होते है. प्रश्न कुण्डली में खोया हुआ सामान मिलेगा या नहीं मिलेगा इसके कई योग होते हैं. यह योग निम्नलिखित है. * प्रश्न कुण्डली में लग्नेश सप्तम भाव में हो और सप्तमेश
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी एकादशी कहलाती है. इस दिन भगवान पुरुषोतम राम की पूजा करने का विधि-विधान है. व्रत के दिन भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर श्वेत वस्त्र पहनाये जाते है. वर्ष 2024 में 19 मई
यह उपरत्न अर्द्ध पारभासी उपरत्न है. प्राचीन समय में इस उपरत्न का उपयोग मिस्त्रवासियों द्वारा किया जाता था. इस उपरत्न को साहस तथा पराक्रम का उपरत्न माना जाता है. इस उपरत्न का नाम अमेजन नदी के नाम पर रखा गया है क्योंकि
हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार एक तिथि का निर्माण सूर्य के अपने अंश से 12 अंश आगे जाने पर होता है. इस तिथि के देव नाग देवता है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नाग देवता का पूजन करना चाहिए. नागों की रक्षा करना और नागों
वराहमिहिर ज्योतिष लोक के सबसे प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्रियों में से रहे है. वराहमिहिर के प्रयासों ने ही ज्योतिष को एक विज्ञान का रुप दिया. ज्योतिष के क्षेत्र में इनके योगदान की सराहना जितनी की जाएं, वह कम है. ज्योतिष की
आपने पिछले अध्याय में जाना कि ज्योतिष में बारह राशियों का कुल मान 360 डिग्री होता है. प्रत्येक राशि 30 डिग्री की होती है. अब आप यह समझे कि कौन सी राशि कहाँ पर आती है. राशि राशि का मान मेष 0-30 अंश(Degree) वृष 30-60 अंश
यह उपरत्न पीले रंग से लेकर सुनहरे रंग तक की आभा वाले रंगों में पाया जाता है. यह एक पारभासी उपरत्न है. इस उपरत्न को देखने पर यह पुखराज का भ्रम पैदा करता है. इस उपरत्न को पहनने की शुरुआत प्राचीन समय में ग्रीक देश से हुई
ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार भ्रचक्र में एक बडा परिवर्तन हुआ है. इंगलैंड की प्रसिद्ध ज्योतिषिय संस्था के अनुसार राशियों की संख्या 12 से 13 हो गई है. अर्थात सूर्य को एक वर्ष में 12 राशियों के स्थान पर 13 राशियों में