श्री साईं बाबा व्रत कथा और पूजन विधि
साईं बाबा एक महान संत व गुरु थे. भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में साईं के भक्तों की संख्या कई गुना है. साईं बाबा के भक्तों को उनकी भक्ति का अनुपम आशिर्वाद सदैव ही प्राप्त हुआ है. बृहस्पतिवार के दिन को विशेष रुप से साईं बाबा की पूजा का दिन कहा जाता है. बृहस्पतिवार वार के व्रत बहुत से लोग साईंबाबा की कृपा और आशिर्वाद को पाने के लिए करते हैं. साईं बाबा का मुख्य धाम शिरडी रहा है. यहीं पर साईं बाबा ने जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों को बिताया.
साईं बाबा से संबंधित अनेकों कथाएं मिलती हैं जिनमें बाबा के द्वारा किए गए चमत्कारों और उनकी शिक्षाओं का पता चलता है. साईं की जीवन गाथा प्रेरणादायक, रोचक और चमत्कार से भरी हुई है. शिरडी के श्री साईं बाबा सभी के है वे किसी धर्म एवं संप्रदाय को नही दर्शाते अपितु सभी को साथ लेकर चलते हैं. साईं बाबा के दरबार में हर व्यक्ति को स्थान मिलता है, यहां अमीर, गरीब सभी व्यक्ति मौजूद होते हैं. जात-पात व धर्म से अलग एक नवीन जीवन मूल्य यहां स्थान पाता है.
साईं बाबा के लिए सभी व्यक्ति सामान्य हैं मानवता और प्रेम ही उनका धर्म रहा है. शिर्डी को हिंदू- मुस्लिम सभी के लिए एक पवित्र स्थल रहा है. सभी धर्मों को मानने वाले लोग साई बाबा के अनुयायी रहे हैं.
साईं बाबा जीवन परिचय
श्री साईं बाबा का जन्म वर्ष 1835 के करीब महाराष्ट्र में बताया जाता है. साईं बाबा के जन्म की तिथि के विषय में बहुत अधिक जानकारी किसी को ज्ञात नहीं है. अलग अलग धर्म एवं संप्रदाय के लोग उन्हें अपने साथ ही जुड़ा हुआ बताते हैं.
जब साईं बाबा महाराष्ट्र के शिरडी में आए तो उनकी तप एवं साधना द्वारा सभी प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाए. शिर्डी के ग्राम प्रधान की पत्नी बैजाबाई साईं बाबा के प्रति अगाध प्रेम भाव रखती थीं और साईं भी उन्हें अपनी माता की भांति सम्मान देते थे.
शिरडी में बाबा ने नीम के पेड़ के नीचे ही रहना पसंद करते थे. सांईं बाबा अपना समय पूजा और ध्यान में बिताते थे. कहा जाता है कि बाबा जो खाना पकाते थे उन्हें सभी के साथ मिल बांट कर खाते थे. कुछ के अनुसार वे एक महान संत थे तो कुछ के अनुसार वह भगवान का रुप थे.
साईं बाबा की शिक्षाएं
साईंबाबा जी हमेशा मजबूर और लाचार लोगों की मदद करने के लिए सभी को प्रोत्साहित करते करते हैं. उनकी शिक्षाओं में दान देने के महत्व को बहुत विशेष स्थान दिया गया है. उनके अनुसार मदद मांगने वाले की अपने सामर्थ्य अनुसार जरुर मदद करनी चाहिए. किसी भी जरुरतमंद के प्रति आदर और प्रेम का भाव रखें उसके प्रति घृणा नही दिखाएं.
साईं बाबा कथा
एक शहर में कोकिला नाम की स्त्री और उसके पति महेशभाई रहते थे. दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय था. दोनों में आपस में स्नेह और प्रेम था. पर महेश भाई कभी कभार झगडा करने की आदत थी. परन्तु कोकिला अपने पति के क्रोध का बुरा न मानती थी. वह धार्मिक आस्था और विश्वास वाली महिला थी. उसके पति का काम-धंधा भी बहुत अच्छा नहीं था. इस कारण वह अपना अधिकतर समय अपने घर पर ही व्यतीत करता था. समय के साथ काम में और कमी होने पर उसके स्वभाव में और अधिक चिडचिडापन रहने लगा.
एक दिन दोपहर के समय कोकिला के दरवाजे पर एक वृद्ध महाराज आयें. उनके चेहरे पर गजब का तेज था. वृ्द्ध महाराज के भिक्षा मांगने पर उसे दाल-चावल दियें. और दोनों हाथोम से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया. बाबा के आशिर्वाद देने पर कोकिला के मन का दु:ख उसकी आंखों से छलकने लगा. इस पर बाबा ने कोकिला को श्री साई व्रत के बारे में बताया और कहा कि इस व्रत को 9 गुरुवार तक एक समय भोजन करके करना है. पूर्ण विधि-विधान से पूजा करने, और साईंबाबा पर अट्टू श्रद्वा रखना. तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी.
महाराज के बताये अनुसार कोकिला ने व्रत गुरुवार के दिन साई बाबा का व्रत किया और 9 गुरुवार को गरीबों को भोजन भी दिया. साथ ही साईं पुस्तकें भेंट स्वरुप दी. ऎसा करने से उसके घर के झगडे दूर हो गये और उसके घर की सुख शान्ति में वृद्धि हुई. इसके बाद दोनों का जीवन सुखमय हो गया.
एक बार उसकी जेठानी ने बातों-बातों में उसे बताया, कि उसके बच्चे पढाई नहीं करते यही कारण है. कि परीक्षा में वे फेल हो जाते है. कोकिला बहन ने अपनी जेठानी को श्री साई बाबा के 9 व्रत का महत्व बताया. कोकिला बहन के बताये अनुसार जेठानी ने साई व्रत का पालन किया. उसके थोडे ही दिनों में उसके बच्चे पढाई करने लगें. और बहुत अच्छे अंकों से पास हुए.