मूलाधार । प्रथम चक्र । First Chakra | Base chakra | Base Chakra Location | First Chakra Issues | Muladhara Chakra | Chakras
शरीर में मौजूद प्रत्येक चक्र शरीर के अलग-अलग अंगों में स्थित हैं इसमें से एक चक्र है मूलाधार चक्र. मूलाधार को मूल आधार, अधार, प्रथम चक्र, बेस या रूट चक्र भी कहते हैं. यह हमारे शरीर का प्रथम चक्र तथा प्राणशक्ति का आधार होता है. हमारा शरीर चक्रों से संचालित होता है यह ऊर्जा केन्द्र हैं, जो प्राणशक्ति को शरीर के सभी अवयवों तक पहुंचाने में सहायक होते हैं. ध्यान तथा योग द्वारा प्राण शक्तियों का विकास करके इन चक्रों को विकसित कर सकते हैं. योग शास्त्रों में मनुष्य के अन्दर मौजूद सभी सात चक्रों का विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त है.
मूलाधार चक्र स्थान | Base chakra Location
चक्रों में मूलाधार चक्र को प्रथम चक्र कहा गया है. मूलाधार चक्र का स्थान रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में
जननेन्द्रिय और गुदा के मध्य में स्थित होता है. इस चक्र में ही सर्पाकार कुण्डलिनी शक्ति रहती है जिसे योग द्वारा जागृत किया जाता है.
मूलाधार चक्र का रंग | Base Chakra Colour
मूलाधार चक्र का रंग लाल है. इसका रत्न माणिक्य है और यह सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करता है. इससे प्रभावित व्यक्ति के लिए लाल रंग का इस्तेमाल करना बहुत लाभकारी होता है.
प्रथम चक्र क्रिस्टल चिक्तिसा । Base Chakra Crystal Therapy
मूलाधार कमजोर होने पर माणिक्य, रक्तमणि, लाल पत्थर या गोमेद धारण करना फायदेमंद होता है.
कुण्डलिनी शक्ति | Kundalini
कुण्डलिनी शक्ति शरीर में मूलाधार चक्र में स्थित होती है. यहां यह सुषुप्त अवस्था में रहती है इसे योग द्वारा जागृत किया जाता है. जागृत होने पर यह सर्प की तरह सुषुम्ना नाड़ी से होते हुए इड़ा और पिंगला नाड़ियों की सहायता से प्रवाहित होने लगती है और सभी चक्रों को जगाती हुई मस्तिष्क में पहुंचती है. इस शक्ति के मस्तिष्क में पहुंचने से यह शक्ति सदाशिव से मिल जाती है और मनुष्य को दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है. देह में मौजूद दिव्य ऊर्जा शक्ति को कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं.
मूलाधार चक्र शारीरिक एवं भावनात्मक समस्याएँ | Base Chakra Physical and Emotional Issues
मूलाधार चक्र मांसपेशियों, अस्थि तन्त्र, रीढ़ की हड्डी, रक्त के निर्माण और शरीर के आन्तरिक अंगों को नियन्त्रित करता है. इस चक्र के गलत ढंग से कार्य करने पर जोड़ों का दर्द, रीढ़ की हड्डी का रोग, रक्त संबंधी विकार और शरीर विकास की समस्या, कैन्सर, हड्डी की समस्या, कब्ज, गैस, सर दर्द, जोडों की समस्या, गुदे से सम्बंधित समस्याएँ, यौन सम्बंधित रोग, ऐड्स, शारीरिक और मानसिक कमजोरी, संतान प्राप्ति में समस्याएं तथा आँत का कैन्सर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.
भावनात्मक समस्याएँ | Base Chakra Emotional Issues
प्रथम चक्र की उर्जा हमें भावात्मक सुरक्षा प्रदान करती है किंतु इसके कमजोर होने पर क्रोध, पागलपन जैसी भावनात्मक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं. यह कमजोर होने पर व्यक्ति में असुराक्षा का भाव उत्पन्न करती है
व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का बोध नही हो पाता. बडबडाना, अवसाद में रहना, अहंकार, भय, अस्थिरता, जलन, असंतुलन, घृणा, लत, उपेक्षा भाव, आत्महत्या की भावना, असुरक्षा का होना आदि परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं.
मूलाधार रचना | First Chakra Composition
मनुष्य के भीतर मौजूद इस ऊर्जा शक्ति की तुलना ब्रह्माण्ड की शक्ति से की जाती है. यही सृष्टि का मूल चक्र भी है. यह उत्पत्ति, विकास व संहार का कारक है. मूलाधार चक्र में चार पंखुडिया हैं और स्थापना त्रिकोनाकृति अस्थि के निचले हिस्से में हैं. इसमें कमल पुष्प का अनुभव होता है जो पृथ्वी तत्व का बोधक है. चक्र में स्थित यह चार पंखुड़ियां वाला कमल पृथ्वी की चार दिशाओं की ओर संकेत करता है.
मूलाधार चक्र शरीर की सुरक्षा, अस्तित्व से संबंधित होता है. मूलाधार का प्रतीक लाल रंग और चार पंखुडि़यों वाला कमल है. इसका मुख्य कार्य काम वासना, लालच, उग्रता एवं सनक है. शारीरिक रूप में मूलाधार कामवासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है.
चार पंखुड़ियों वाला मूलाधार चक्र का देह आकार की रचना करता है. यहां चार प्रकार की ध्वनियां वं, शं, सं, षं जैसी होती हैं यह ध्वनि मस्तिष्क एवं हृदय के भागों को दोलित करती हैं. स्वास्थ्य इन्ही ध्वनियों पर निर्भर रहता है. मूलाधार चक्र रस, रूप, गन्ध, स्पर्श, भावों व शब्दों का संगम है.
यह अपान वायु का स्थान है तथा मल, मूत्र, वीर्य आदि इसी के अधीन है. मूलाधार चक्र कुण्डलिनी शक्ति, परम ज्ञान शक्ति का मुख्य स्थान है. यह मनुष्य की दिव्य शक्ति का विकास, मानसिक शक्ति का विकास और चैतन्यता का मूल है. मूलाधार का कार्य विसर्जन, काम, वासना, संतान उत्पत्ति हैं
मूलाधार चक्र के सक्रिय एवं सुचारू रूप से कार्य करने पर शरीर हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ्य होता है. व्यक्ति में पवित्रता, शुद्धता, आत्मविश्वास का वास होता है. इस चक्र की अधिष्ठात्री देवी डाकिनी है. इसमें भगवान शिव के अंश का वास माना गया है.
मूलाधार का बीज मंत्र ‘लम्’ है.
मूलाधार का स्वर “सा” है.
मूलाधार का ग्रह “मंगल” है.
मूलाधार चक्र के देवता “श्री गणेश” हैं
मूलाधार का तत्त्व “भूमि तत्त्व” है
मूलाधार के बीज अक्षर वं, शं, षं और सं हैं.
मूलाधार के राग “बिलावल” और “शामकल्याण” हैं.
इस चक्र का स्वामी शनि होता है और राशियां मकर और कुंभ होती हैं.
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