हंस योग से होता है भाग्योदय
अपने नाम के अनुरुप ही यह योग बहुत ही सुंदर और शुभ योग होता है. हंस योग से युक्त व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है. तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है. उसमें सात्विक गुण पाये जाते है. इस योग के द्वारा जातक के भीतर शुभ गुण भी आते हैं.
हंस योग कैसे बनता है
हंस योग बृहस्पति से बनने वाला पंच महापुरुष योग भी है. बृहस्पति को ज्योतिष में सबसे अधिक शुभ ग्रह कहा गया है, इस कारण इस इससे बनने वाले योग की शुभता को समझने में अधिक देर नहीं लगती है. जन्म कुण्डली में गुरु जिसे बृहस्पति भी कहा जाता है अगर केन्द्र भाव में, चतुर्थ भाव में, सातवें भाव में या फिर दसवें भाव में अपनी राशि में स्थित हो या फिर उच्च राशि का बैठा हुआ हो तो कुण्डली में हंस योग का निर्माण होता है.
इस योग को चंद्र कुण्डली से देखें तो चंद्र से अगर केन्द्र, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम भाव में गुरु इसी स्थिति में अपनी राशि या उच्च राशि का हो तो हंस योग बनता है. हंस योग के कारण जन्म कुण्डली में मौजुद कई खराब योग समाप्त हो जाते हैं.
हंस योग में जन्मा जातक
हंस योग में जन्मा जातक अपने बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान करने वाला होता है. इस योग के प्रभाव के कारण जातक अपनी शिक्षा के प्रति भी गंभीर होता है, और प्रयास करता है की किसी न किसी प्रकार से अपने ज्ञान को बढ़ा सके. जातक सुन्दर, आकर्षक व्यक्तित्व का, चेहरे पर लालिमा और कांति लिए होता है. सुंदर नेत्रों वाला और बेहतर वाक चातुर्य से युक्त होता है. जातक को अपने लोगों का स्नेह भी प्राप्त होता है.
अपने पिता के मान को बढ़ाने वाला होता है. परिवार में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और जागरुक भी होता है. कुछ मामलों में जातक किसी संस्था अथवा लोगों के पथ प्रदर्शक के रुप में भी काम कर सकता है. इस योग के प्रभाव से जातक हंसमुख होता है और मिलनसार भी होता है. अपने प्रभाव के कारण वह लोगों के मध्य उत्तम स्थान भी पाता है. जातक विनम्र होता है और कोशिश करता है की दूसरों के लिए किसी न किसी प्रकार से मददगार भी हो सके.
हंस योग की शुभता व्यक्ति को धनवान बनाने में भी सहायक बनती है. कुण्डली में बना कोई बहुत ही शुभ योग जातक को आर्थिक रुप से किसी न किसी तरह की मजबूती देने में भी सहायक बनता है. जातक में धर्म-कर्म के कामों को करने के प्रति जागरुकता भी होती है.
जातक का स्वादिष्ट भोजन के प्रति रुझान होता है. अपने मन मर्जी का काम करने की इच्छा अधिक रहती है. जातक में अहम भी होता है वह स्वयं की बातों को लेकर ज्यादा गंभीर रहता है. उसकी कोशिश भी रहती है की वह जीवन में सफलता को पा सके. महत्वकांक्षाएं भी अधिक होती हैं.
हंस योग के प्रभाव
हंस योग जातक को समाज में एक अच्छे पद को देने में सहायक बनता है. व्यक्ति लोगों के मध्य लोक प्रिय बनता है. व्यक्ति में सही - गलत का निर्णय करने की योग्यता होती है. वह व्यक्ति उत्तम कार्य करने वाला व उच्च कुल में जन्म लेने वाला होता है.
यह योग व्यक्ति में निर्णय योग्यता में बढोतरी करता है. बृहस्पति की स्वराशि धनु और मीन राशि हैं और कर्क राशि में बृहस्पति उच्च का होता है. अपनी राशि में होने के कारण बृहस्पति का प्रभाव अधिक हो जाता है. इसका शुभ प्रभाव जातक को ज्ञान की प्राप्ति होती है. आध्यात्मिक विकास भी होता है.
गुरु ग्रह संतान, बड़े भाई, शिक्षा, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थान, धन, दान, पुण्य का कारक होता है. दांपत्य जीवन में सुख का कारक भी यही बनता है. परिवार में भाई बंधुओं और संतान की वृद्धि आदि का कारक होता है. ज्योतिष के अनुसार, बृहस्पति अगर जन्म कुण्डली में अच्छी शुभ अवस्था में बैठा हुआ है तो इसके प्रभाव से जातक के मुश्किल रास्ते भी खुल जाते हैं और बिना रुकावटों के काम बनते जाते हैं. जातक के अंदर सात्विक गुणों का संचार होता है और वह गलत मार्ग से दूर रहता है.
हंस योग कब देता है शुभ फल
जन्म कुण्डली में कोई योग कितना शुभ होगा और किस तरह से फल देने में सक्षम होगा, ये जन्म कुण्डली की मजबूती पर भी निर्भर करता है. जन्म कुण्डली में अगर योग शुभता से युक्त हो और ग्रह भी मजबूत हो और किसी भी प्रकार के पाप अथवा खराब प्रभाव से मुक्त हो तो योग जातक को अपना शुभ फल प्रभावशाली रुप से देने वाला होता है.
दूसरी ओर अगर ग्रह किसी पाप प्रभाव में हो कमजोर हो तो ऎसी स्थिति में योग अपना शुभ फल देने में सक्षम होता है. इसलिए हंस योग में जातक को इसी प्रभाव के कारण अच्छे फल मिलते हैं. बृहस्पति की कमजोर स्थिति के कारण हंस योग अपने शुभ प्रभाव देने में कमी कर देता है.
अगर जातक की कुण्डली में हंस योग बना हुआ है. अगर कुण्डली में बृहस्पति की दशा व्यक्ति को मिल रही है तो उस दशा समय पर जातक को अपने जीवन में बहुत से अच्छे मौके मिल सकते हैं. अगर जातक को ये दशा अपने युवा समय में मिले तो वह उसके कैरियर के लिए बहुत अच्छी होती है. इसी तरह अगर बचपन के समय मिले तो जातक अपनी शिक्षा में बेतर प्रदर्शन कर सकने में कामयाब हो सकता है.
कुण्डली में बनने वाला कोई भी योग अपनी शुभता को तब बेहतर रुप से पा सकता है, जब कुण्डली में कुछ अन्य शुभ योग भी बन रहे हों तो ऎसे में कुण्डली मजबूत बन जाती है और व्यक्ति को सकारात्मक फल भी मिलते हैं. इसी के साथ अगर जो योग कुण्डली में बन रहा हो उस योग के ग्रह की दशा मिल रही हो तो उस योग का फल भी जातक को अवश्य मिलता है.