पंचांग गणना | Parts of Panchang
पंचांग शब्द का अर्थ है - पाँच अंग. तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण के आधार पर पंचांग का निर्माण होता है. इन सभी की गणना गणितीय विधि पर आधारित है. आपको पंचाँग के पांचों अंगों की गणना की विधि सरल तथा आसान तरीके से समझाई जाएगी.
(1) नक्षत्र | Nakshatra
व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो, उसे जन्म नक्षत्र कहते हैं. किसी कार्य के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होगा, वह उस समय का नक्षत्र होगा. नक्षत्र की गणना गणितीय विधि पर आधारित है. पिछले अध्यायों में आपने नक्षत्र के बारे में पढा़ था. कुल 27 नक्षत्र होते हैं और अभिजीत को गिनने पर कुल 28 नक्षत्र होते हैं. गणना की विधि :- जन्म के समय अथवा किसी कार्य के समय चन्द्रमा की स्थिति देखें और नोट करें कि चन्द्रमा का भोगाँश क्या है.
माना चन्द्रमा का भोगाँश है : 9 राशि 6 अंश 05 मिनट. इसे अब अपनी सुविधानुसार मिनटों में बदल लेगें. मिनटों में बदलने पर 16565मिनट आता है. इस संख्या को 800 मिनट से भाग देंगें. भाग देने पर 20.70625 संख्या प्राप्त होती है. इसका अर्थ यह हुआ कि 20 नक्षत्र समाप्त हो चुके हैं और 21वाँ नक्षत्र अभी चल रहा है. 21वाँ नक्षत्र उत्तराषाढा़ है. इसी प्रकार आप अन्य नक्षत्रों के बारे में गणना कर सकते हैं. दशमलव से पहले की संख्या को बीते हुए नक्षत्र मानेंगें. यदि दशमलव से पहले 5 आता है तो इसका अर्थ है कि पाँच नक्षत्र बीत चुके हैं और छठा नक्षत्र चल रहा है.
(2) वार | Day
एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक वार होता है. सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार तथा रविवार तक वार कहलाते हैं. इनकी संख्या 7 होती है.
(3) तिथि | Tithi
तिथि की गणना भी गणितीय विधि पर आधारित है. एक तिथि सूर्य और चन्द्रमा के मध्य का कोण है. 12 अंश के कोण को एक तिथि कहा जाता है. सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों ही गति करते हैं. जब चन्द्रमा सूर्य से दूर जाता है तब बढ़ता हुआ दिखाई देता है. सूर्य से दूर जाने वाले समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं. जब चन्द्रमा सूर्य के नजदीक आता है तब घटता हुआ दिखाई देता है और इसे कृष्ण पक्ष कहते हैं. तिथि की गणना का एक नियम बन जाता है जो इस प्रकार है :-
तिथि = चन्द्र का भोगाँश - सूर्य का भोगाँश
12 अंश
उपरोक्त फार्मूले के आधार पर तिथि की गणना की जाती है. जिस दिन की तिथि ज्ञात करनी है उस दिन के चन्द्रमा तथा सूर्य के भोगाँश को नोट कर लें. अब चन्द्रमा के भोगाँश में से सूर्य के भोगाँश को घटा दें. जो संख्या प्राप्त होगी उसे 12 से भाग दें. भाग देने पर जो संख्या प्राप्त होगी वह वाँछित दिन की तिथि होगी. यदि प्राप्त संख्या 1 से 15 दिन के मध्य है तब यह कृष्ण पक्ष की तिथियाँ होगीं. यदि प्राप्त संख्या 15 से अधिक हैं तब यह शुक्ल पक्ष की तिथियाँ होंगी. माना उपरोक्त विधि से तिथि की गणना करने पर आपको 17 संख्या प्राप्त हुई. इसका अर्थ है कि शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है.
पाठकों को एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उत्तर भारत में कृष्ण पक्ष से नए माह का आरम्भ माना जाता है.
(4) योग | Yoga
पंचाँग का चौथा अंग योग है. इसकी गणना का आधार सूर्य तथा चन्द्र है. योग को ज्ञात करने के लिए गणितीय विधि से गणना की जाती है. कुल 27 प्रकार के योग होते हैं. यह योग अपने नाम के अनुसार फल देने वाले होते हैं. योग की गणना के लिए चन्द्र तथा सूर्य के भोगाँश का जोड़ करेंगें और फिर 13 अंश 20 मिनट से प्राप्त संख्या को भाग देगें. आप 13 अंश 20 मिनट को मिनटों में बदल सकते हैं. मिनटों में बदलने पर 800 मिनट प्राप्त होते हैं. 800 मिनट से प्राप्त संख्या को भाग दे.
एक बार फिर समझें कि जिस दिन का योग आपको ज्ञात करना है उस दिन के चन्द्र तथा सूर्य के भोगाँश को जमा करें. जो संख्या प्राप्त होती है उसे 800 मिनट अथवा 13 अंश 20 मिनट से भाग दें. भाग देने पर अब जो संख्या प्राप्त होती है वह उस दिन का योग होगा. माना आपको 15 . 56 संख्या प्राप्त होती है तो इसका अर्थ हुआ कि 15 योग बीत चुके हैं और 16वाँ योग अभी चल रहा है. 16वाँ योग सिद्धि योग है.
27 योगों के नाम निम्नलिखित हैं :-
(1) विष्कुंभ
(2) प्रीति
(3) आयुष्मान
(4) सौभाग्य
(5) शोभन
(6) अतिगण्ड
(7) सुकर्मा
(8) धृति
(9) शूल
(10) गण्ड
(11) वृद्धि
(12) ध्रुव
(13) व्याघात
(14) हर्षण
(15) वज्र
(16) सिद्धि
(17) व्यतीपात
(18) वरीयान
(19) परिघ
(20) शिव
(21) सिद्धा
(22) साध्य
(23) शुभ
(24) शुक्ल
(25) ब्रह्म
(26) इन्द्र अथवा ऎन्द्र
(27) वैधृति
(5) करण |Karana
यह पंचाँग का पांचवाँ अंग है. करण की गणना भी गणितीय आधार पर की जाती है. करण तिथि का आधा भाग होता है. एक दिन में दो करण आते हैं. करणों की कुल संख्या 11 होती है. जिनमें से चार करण स्थाई होते हैं. यह स्थाई करण महीने में एक बार आते हैं. 7 करणों की पुनरावृत्ति बार-बार होती रहती है. एक करण माह में आठ बार आता है.
स्थाई करण | Sthir Karana
इनकी संख्या 4 होती है. यह चारों करण अशुभ होते हैं.
(1) शकुनि
(2) चतुष्पद
(3) नाग
(4) किन्तुघ्न
चर करण | Char Karana
इनकी संख्या 7 होती है. इसमें भद्रा का कुछ भाग अशुभ माना जाता है.
(1) बव
(2) बालव
(3) कौलव
(4) तैतिल
(5) गर
(6) वणिज
(7) विष्टि या भद्रा
करणों की table बनानी है.