भेरी,पुष्कल,विरांची, शुभाचारी,कालसर्प,अखण्ड सम्राज्य योग | How is Bheri Yoga Formed | Pushkal Yoga | Viranchi Yoga | Shubhachari Yoga | Kalsarp Yoga | Akhandh Samrajya Yoga
भेरी योग
भेरी योग में लग्नेश, शुक्र, ग्रुरु एक-दूसरे से केन्द्र में और नवमेश बली हो या शुक्र, बुध के पहले, दुसरे, सातंवे या बारहवें भाव में युति और दशमेश बली. यह योग व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है. यह योग स्वास्थय के पक्ष से अनुकुल योग है. सत्ता और राजनीति में सफल होने में यह योग सहयोग करता है. इस योग के व्यक्ति को विभिन्न स्त्रोतों से आय प्राप्त होती है. इस योग से युक्त व्यक्ति धार्मिक आस्था युक्त होता है. तथा वह स्वयं को सदैव प्रसन्न रखने का प्रयास रखता है.
पुष्कल योग क्या है. | What is the Pushkal Yoga
जब कुण्डली में बली चन्द्रेश की लग्न पर दृष्टि और लग्न में एक बली ग्रह हो तो पुष्कल योग बनता है. पुष्कल योग व्यक्ति को धनवान बनाता है. व्यक्ति मीठा बोलने वाला होता है. इस योग के व्यक्ति को प्रसिद्ध और सम्मान दोनों प्राप्त होते है. तथा अपने कार्यो से उसे सरकारी क्षेत्रों से पुरुस्कार भी प्राप्त होता है.
विरांची योग कैसे बनता है. | How is Formed Viranchi Yoga
विरांची योग में पंचमेश होकर गुरु या शनि अपने मित्र या उच्च राशि का होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो तो विरांची योग बनता है. विरांची योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति धार्मिक आस्था युक्त होता है. उस व्यक्ति में उदारता का भाव पाया जाता है. समाज सेवा के कार्यो को करने पर उसे सम्मान प्राप्त होता है. यह योग व्यक्ति के धन-वैभव में भी वृ्द्धि करता है.
शुभाचारी योग कैसे बनता है. | How is Shubhachari Yoga Formed
जब चन्द्रमा को छोडकर कोई अन्य शुभ ग्रह सूर्य से बारहवें भाव में हो, तो शुभाचारी योग बनता है. शुभाचारी योग व्यक्ति को अपने नाम के अनुरुप फल देता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को शुभ आचरण करना पसन्द होता है. व्यक्ति के सुन्दर अंग होते है. वह सुवक्ता होता है. उसे ख्याति प्राप्त होती है. तथा ऎसा व्यक्ति धनवान भी होता है.
कालसर्प योग कैसे बनता है. । How is Formed Kalsarp Yoga
जब कुण्डली में सभी सातों ग्रह राहू-केतु के अक्ष के मध्य स्थित होते है. तो कालसर्प योग बनता है. इस योग को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा गया है. इस योग के होने पर व्यक्ति बैचेन और जीवन के उतार चढावों से घिरा रहता है. उसके जीवन में परेशानियां अधिक होती है. इस योग के बारे में यह भ्रांति गलत है, कि यह योग व्यक्ति की आयु पर प्रभाव डालता है. राहू-केतु की दशा आने पर या राहू-केतु लग्न, चन्द्रमा व सूर्य पर गोचर करते है, तब उसका प्रभाव अधिक होता है. यह जीवन में आकस्मिक उत्थान और गिरावट को बढाती है. इस प्रकार की घटनाएं विशेष रुप से राहू-केतु की दशा अवधि में होती है.
कुण्डली में जब लग्न और लग्नेश पर शुभ दृष्टि इस योग को निरस्त कर देती है. यदि राहू विशाखा नक्षत्र में हो तो यह योग निष्क्रय हो जाता है. यह भी पाया गया है, कि काल सर्प योग के लिए ग्रहों को राहू और केतु के मध्य होना चाहिए. तथा केतु और राहू के मध्य नहीं क्योकि जब लग्न के बाद केतु पहले आता है, तो राहू दूर होता है. तब यह कालामृ्त योग बन जाता है. कुण्डली में यदि केतु की युति किसी अन्य ग्रह से होती है, तो यह मंगलकारी स्थिति बिगड जाती है.
अखण्ड सम्राज्य योग कैसे बनता है. | How is Formed Akhand Samrajya Yoga
अखण्ड साम्राज्य योग में दूसरे या पांचवें भाव का स्वामी बली गुरु हों और ग्यारहवें भाव का स्वामी चन्द्रमा से केन्द्र में हो तो अखण्ड सम्राज्य योग बनता है. यह योग व्यक्ति को दीर्घायु वाला बनाता है, उसे जीवन में सभी सुखों का लाभ प्राप्त होता है. अखन्ड सम्राज्य योग राजनैतिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है.