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मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को हनुमान जयंती भी मनाई जाती है. इस त्योहार को हनुमान व्रतम के नाम से भी जाना जाता है. कन्नड़ हनुमान जयंती मुख्य रूप से कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के अन्य हिस्सों में
मार्गशीर्ष द्वादशी में आने वाले द्वादशी व्रत का बहुत महत्व है. हर द्वादशी में दो द्वादशी आती हैं, एक कृष्ण पक्ष की द्वादशी और दूसरी शुक्ल पक्ष की द्वादशी. इस द्वादशी में द्वादशी पर गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों में
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को वैकुंठदा एकादशी कहते हैं.यह एकादशी व्रत व्यक्ति के कई प्रकार के पापों का नाश करती है. दक्षिण भारत में इस एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने
भगवान सूर्य की पूजा का दिन भानु सप्तमी कहलाता है. इस दिन भानु यानि सूर्य की पूजा की जाती है. शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भानु सप्तमी व्रत रखा जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार, सूर्य देव की पूजा करने वाले भक्तों को धन,
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को खंडोबा षष्ठी या खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। मान्यता है कि खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी का पर्व भगवान शिव के अवतार खंडोवा को समर्पित है। खंडोवा या खंडोबा को कई अन्य
वैवाहिक जीवन व्यक्ति को मनचाहा सुख प्रदान करता है. मार्गशीर्ष माह में आने वाली पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन श्री राम और सीता जी का विवाह समारोह मनाया जाता है. अगर
एकादशी तिथि को उन विशेष तिथियों में स्थान प्राप्त है जिनके द्वारा व्यक्ति मोक्ष की गति को पाने में भी सक्षम होता है. एक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी और कृष्ण पक्ष की एकादशी दोनों का ही विशेष महत्व रहा है.
मगसर अमावस्या को मार्गशीर्ष माह के दौरान मनाया जाता है. यह अमवास्य तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष अर्थात मगसर महीने में नवंबर-दिसंबर के कृष्ण पक्ष में आती है, मगसर अमावस्या का दूसरा नाम अगहन अमावस्या है, मगसर को
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सुब्रहमन्य षष्ठी के नाम से मनाया जाता है. सुब्रहमन्य भगवान का पूजन इस दिन भक्ति भाव के साथ किया जाता है. शिव के दूसरे पुत्र को सुब्रहमन्य या कार्तिकेय
अगहन माह एकादशी अगहन माह में आने वाली एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ और खास माना गया है. चतुर्मास में हर प्रबोधनी के पश्चात आने वाली ये एकादशी श्री हरि पूजन और एकादशी के जन्म को दर्शाती है. अगहन माह में आने वाली पहली एकादशी
अगहन मास भक्ति और समर्पण से भरा होता है. ऎसे में इस माह में आने वाली अमावस्या को अगहन अमावस्या के नाम से जाना जाता है. साल भर में आने वाली सभी अमावस्या में से विशेष यह अगहन अमावस्या काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. अगहन
मार्गशीर्ष माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का दिन गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के रुप में पूजा जाता है. इस दिन भगवान श्री गणेश जी का पूजन विधि विधान के साथ करते हैं. भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और गणेश जी की पूजा वंदना
त्रिपुरारी पूर्णिमा एक ऐसा त्यौहार है जो हिंदुओं, सिखों और जैनियों द्वारा की पूर्णिमा पर मनाया जाता है. यह उत्सव मनाने वालों के लिए साल का सबसे पवित्र महीना है. त्रिपुरी पूर्णिमा को बहुत से नामों के रुप में मनाया जाता
बैकुंठ चतुर्दशी आरती कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चौदस के रुप में मनाया जाता है. चतुर्दशी तिथि का ये समय बहुत ही विशेष होता है. वैकुंठ चौदस के दिन  के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष 2024 में यह
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कार्तिक शुक्ल एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन को देवउठनी एकादशी, देवउत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु निद्रा से
देव दिवाली 2024 महत्वपूर्ण तिथि हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है. देव दीपावली कोप देवताओं की दीपावली के पर्व नम से जान अजाता है. मान्यताओं के अनुसर इस दिन देवताओं दीपावली का पर्व मनाया था. इस दिन
पंचक एक ऎसा समय माना जाता है जिसे अनुकूल कम ही कहा गया है. लेकिन कार्तिक मास में आने वाले पंचक की स्थिति उन पंचक से भिन्न होती है जो पंचांग गणना के अनुसार निर्मित होते हैं. कार्तिक माह में आने वाले पंचक को भीष्म पंचक के
कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रखा जाता है. कार्तिक माह में रखा जाने वाला दुर्गा अष्टमी का व्रत बहुत खास होता है. इस दिन भक्त देवी के अष्ट रुपों की पूजा करते हैं ओर नव रुप में देवी का संपन्न
जगद्धात्री पूजा: देवी दुर्गा का स्वरुप कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में देवी दुर्गा के एक स्वरुप का पूजन जगद्धात्री पूजा के नाम से किया जाता है. जगद्धात्री पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. यह
कंद षष्ठी - छह दिवसीय उत्सव कंद षष्ठी भारत के दक्षिण भाग में धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व है जो भगवान मुरुगन को समर्पित है. कंद षष्ठी को स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. कंद षष्ठी, जिसे कंदा षष्ठी व्रतम के नाम
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन नाग चतुर्थी का उत्सव मनाया जाता है. लोक मान्यताओं में इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है. कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के चौथे दिन को नाग चतुर्थी जिसे नागुला चविथी के नाग से
शारदा पूजा दिवालि के दिन की जाने वाली विशेष पूजा है जो देश भर में भक्ति भाव के साथ की जाती है. विशेष रुप से गुजरात में शारदा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है जिसे चोपड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है. शारदा पूजा देवी
केदार गौरी व्रत को दीपावली के दिन किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार यह व्रत देवी पार्वती ने रखा था. देवी ने जब भगवान का आधा शरीर पाया तब भगवान अर्धनारीश्वर कहलाए. कथाओं के अनुसार एक बार माता पार्वती के एक भक्त ने अपनी
तांत्रिक लक्ष्मी कमला जयंती 2024 दस महाविद्याओं में से एक देवी कमला को सुख समृद्धि प्रदान करने वाल लक्ष्मी माना गया है. देवी शत्रुओं को परास्त करके भक्तों को निर्भय होने का वरदान देती हैं. कार्तिक माह के मास की अमावस्या
धनतेरस का समय कई मायनों में विशेष रहा है जिसे धार्मिक रुप से विशेष माना जाता है और इस दिन का ज्योतिषिय महत्व भी बहुत रहा है. इस समय पर ग्रहों की स्थिति का प्रभाव कई मायनों में विशेष होता है. अपनी राशि के अनुसार कुछ उपाय
यम पंचक कार्तिक माह में आने वाला विशेष समय होता है जो पांच दिनों तक चलता है. यम पंचक के दौरान विभिन्न तरह के धार्मिक कार्यों को किया जाता है. इस समय को पांच दिन चलने वाले त्यौहारों के रुप में भी देखा जाता है. कार्तिक
करक चतुर्थी का उत्सव कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में मनाया जाता है. करक चतुर्थी की रस्में क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग हों, लेकिन सार एक ही है जो भक्ति, आस्था और विश्वास को दर्शाने वाला समय होता है. करक चतुर्थी
सौर पंचांग का आरंभ मेष संक्रांति से होता है. सूर्य जब मीन राशि से निकल कर मेष राशि में प्रवेश करता है, तो मेष संक्रांति होती है. जिस तरह से मीन राशि में सूर्य का होना सौर कैलेंडर का आखिरी महीना होता है उसी तरह से मेष
हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है. इसे दशहरा भी कहते हैं. यह दिन भगवान श्री राम को समर्पित है उनके घर वापसी का दिन है और इसी कारण इस दिन व्यक्ति अपने सुखों की वापसी करता
काली चौदस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. इस तिथि पर मां काली की पूजा करने का विधान है. ऐसा करने से साधक को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही इस दिन छोटी दिवाली और नरक चतुर्दशी भी
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि के अंतिम दिन का प्रतीक है जिसे भक्त उत्साह के साथ मनाते हैं. देश भर के अलग अलग हिस्सों में इसे मनाते हुए देख अजा सकता है. अलग अलग स्थानों में अलग अलग रंग रुप लिए ये दिन विशेष महत्व रखता है.
हर माह आने वाली अमावस्या को दर्श अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. प्रत्येक माह आने वाले कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दर्श अमावस्या के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस अमावस्या पर पितरों का पूजन करना शुभफल
शिव वास अपने नाम के अनुरुप भगवान शिव के निवास स्थान की स्थिति को बताता है. शिव वास की स्थिति को जानकर भगवान शिव के रुद्राभिषेक को करना शुभफल देने वाला होता है. शिव वास के नियमों के द्वारा जान सकते हैं कि अनुष्ठान के समय
ज्योतिष अनुसार किसी भी राशि में सूर्य और चंद्रमा की युति का अंशात्मक रुप से करीब होना अमावस्या तिथि और अमावस्या योग कहा जाता है. धर्म शास्त्रों और ज्योतिष शास्त्र अनुसार अमावस्या का महत्व बहुत ही विशेष रहा है. अमावस्या
एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ समय माना गया है. आश्विन मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी एक अत्यंत ही उत्तम दिवस है इस समय को एकादशी व्रत, ग्यारस श्राद्ध, इंदिरा एकादशी, एकादशी श्राद्ध तिथि इत्यादि के नामों से पूजा जाता
आश्विन मास की पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इसी पूर्णिमा के दिन समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था, और इस दिन कई अन्य विशेष घटनाएं घटित हुई जिनके कारण यह दिन वर्ष भर की पूर्णिमाओं
ओणम का त्यौहर दक्षिण भारत के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है. उत्तर भारत पंचाग अनुसार यह त्यौहार भाद्रपद माह के दौरान आता है. भादो माह की द्वादशी के करीब इस पर्व को मनाया जाता है और दक्षिण भारत के पंचांग अनुसार चिंगम
पार्श्व एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी के दिन मनाई जाती है.. एकादशी का यह दिन विशेष फल प्रदान करता है. यह पुण्य व्रतों में से एक है जब भक्त को प्रभु का आशीर्वाद मिलता हे. यह
रांधण छठ इसे ललही छठ और हलछठ व्रत भी कहते हैं. इसके अलावा इसे हलषष्ठी, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, कमर छठ या खमर छठ भी कहते हैं. इस दिन को माताओं द्वारा विशेष रुप से पूजा जाता है. माता और संतान के प्रेम का यह
पंचांग गणना अनुसार प्रत्येक माह में अमावस्या का आगमन होता है. यह अमावसाय तिथि कृ्ष्ण पक्ष के अंतिम दिन में मनाई जाती है जिसके पश्चात शुक्ल पक्ष का आरंभ होता है. अमावस्या को कई नामों से पुकारा जाता है. जिस माह में जो
भगवान वराह भगवान विष्णु के अवतार हैं और इस शुभ दिन पर उनके भक्तों द्वारा उनकी पूजा की जाती है. यह त्यौहार बहुत महत्व रखता है विशेष रुप से दक्षिण भारत में इस पर्व का महत्व काफी खास माना गया है. इस्थ शुभ दिन पर भक्त भगवान
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार होता है. इसे विशेष गणेश चतुर्थी व्रतों में से एक के रूप में भी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इसे अत्यधिक भक्ति के साथ मनाया जाता है. यह पर्व अधिकमास के
रक्षाबंधन का पर्व एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है. यह सावन माह में आने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. श्रावण माह के सबसे प्रमुख त्यौहार की श्रेणी में इसका अग्रीण स्थान है. राखी भाई बहन के प्रम का प्रतीक है और
सावन माह में आने वाले अधिकमास के दौरान मनाई जाने वाली अमावस्या को श्रावण अधिकमास अमावस्या के नाम से जाना जाता है. श्रावण अधिक मास का होना सावन समय की अधिकता को बताता है. इस समय पर श्रावण माह में दो अमावस्या का योग बनता
गणेश चतुर्थी, का समय भगवान श्री गणेश के जन्म का समय माना जाता है. यह हर माह में मनाई जाती है लेकिन जब मलमास आता है तो यह चतुर्थी पूजन बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है. इस दिन पर व्रत उपवास एवं अन्य प्रकार के धार्मिक
हिंदू वैदिक कैलेंडर के अनुसार, हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाता है. लेकिन अधिक मास के समय आने वाली मासिक दुर्गाष्टमी सभी से खास होती है. अधिकमास में दुर्गा अष्टमी के शुभ दिन
अधिक मास के दौरान आने वाली एकादशी पदमनी एकादशी के रुप में जानी जाती है. इस एकादशी का समय को सभी प्रकार के शुभ लाभ प्रदान करने वाली एकादशी माना गया है. इस एकदशी के विषय में एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से
शास्त्रों के अनुसार, चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु शयन करते हैं और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है. यह व्रत भगवान शिव के पूजन का भी समय होता है, इस कारण से इस समय पर भगवान श्री विष्णु एवं भगवान
सावन माह की शिवरात्रि को सावन शिवरात्रि के रुप में जाना जाता है. श्रावण माह के दौरान आने वाली शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव के अभिषेक से संबंधित कार्य संपन्न होते है. इस साल सावन माह में अधिकमास शिवरात्रि का समय भी
व्यास पूर्णिमा का समय वेद व्यास जयंती के रुप में हर साल अषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है. इस वर्ष 21 जुलाई 2024 को रविवार के दिन मनाई जाएगी व्यास पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में वेदों का बेहद विशेष स्थान और
शनि त्रयोदशी का पर्व पंचाग अनुसार त्रयोदशी तिथि के दिन शनिवार के दिन पड़ने पर मनाया जाता है. शनि त्रयोदशी का समय भगवान शिव और शनि देव के पूजन का विशेष संयोग होता है. इस समय पर भगवान शिव के साथ शनि देव का पूजन करने से
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नरसिंह द्वादशी के रुप में पूजा जाता है. भगवान श्री विष्णु के दो स्वरुप इस दिन विशेष रुप से पूजे जाते हैं. इस दिन भगवान को नृसिंह रुप में और  गोंविद रुप में भी पूजा जाता है.
बुध प्रदोषम से मिलता है ज्ञान एवं बुद्धि का आशीर्वाद प्रदोष तिथि में रखा जाने वाला व्रत भगवान शिव से संबंधित रहा है. प्रदोष का समय शिव पूजन के लिए अति शुभ एवं विशेष होता है. बुधवार के दिन प्रदोष व्रत का होना बुध प्रदोषम
ज्योतिष में सूर्य का महत्व सर्वोपरी रहा है. प्राचीन भारतीय ज्योतिष में सबसे महत्वपूर्ण दिन चंद्रमा की गति पर आधारित होते हैं, संक्रांति सूर्य की गति का प्रतीक है. प्रत्येक संक्रांति उस संक्रमण काल को दर्शाता है जहां
ललिता सप्तमी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी पर देवी ललिता सप्तमी मनाई जाती है. देवी ललिता जी को भगवान श्री कृष्ण एवं श्री राधा जी के साथ संबंधित किया जाता है. भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी में ललिता सप्तमी
तीज पर्व के रुप में मनाई जाने वाली हरतालिका तीज का समय भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आता है. इस दिन को हरतालिका व्रत के रुप में मनाया जाता है. यह व्रत विवाहिता एवं कुंवारी कन्याओं सभी के लिए विशेष महत्व रखता
गणेश पूजन में सभी राशियों के द्वारा दिए गए मंत्रों का उल्लेख, पुराणों में मिलता है. गणेश स्तुती हेतु यदि राशि अनुसार मंत्र जाप भी किया जाए तो ये प्रभाव व्यक्ति को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद देने वाला होता है. प्रत्येक
हरियाली तृतीया 07 अगस्त 2024 को बुधवार के दिन हरियाली तीज का पर्व मनाया जाएगा. हरियाली तीज अपने नाम अनुसार ही सावन के सबसे सुंदर परिदृष्य के रुप में दिखाई देती है. हरियाली तीज का त्यौहार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की
भड़ली नवमी का पर्व 15 जुलाई 2024 को मनाया जाएगा. इस दिन चित्रा नक्षत्र को पश्चात स्वाति नक्षत्र भी प्राप्त होगा. शिव योग एवं सिद्ध नामक शुभ योग बनेंगे तथा शुभ योग का निर्माण भी होगा. आषाढ माह की शुक्ल नवमी भड़ली नमवी.
चातुर्मास में रुक जाते हैं मांगलिक कार्य और पूजा पाठ को करना क्यों होता है शुभ  हिन्दू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि  चातुर्मास का आरंभ होता है. इस दिन भगवान विष्णु योग
गुप्त नवरात्रि के दिन दस महाविद्याओं का पूजन किए जाने का विधान रहा है. गुप्त नवरात्रि का पर्व गृहस्थ से अधिक तंत्र, साधना कर्म एवं योग क्रियाओं के लिए उपयुक्त समय माना जाता है. गुप्त नवरात्रि हेतु किए जाने पूजा कर्म में
हिंदू पंचांग अनुसार उत्तरायण एवं दक्षिणायन का विशेष महत्व रहा है. दक्षिणायन वह समय है जब सूर्य ग्रह उत्तरी गोलार्ध से पृथ्वी के आकाश में दक्षिण गोलार्ध की ओर गति करना शुरू करता है. किसी भी प्रकार की योग साधना करने वाले
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष में इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर 2024 को शनिवार के दिन संपन्न होगा. इंदिरा एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन होता है. इस दिन
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को महेश्वर व्रत करने का विधान है. इस वर्ष महेश्वर व्रत 24 मार्च 2024 को रविवार के दिन किया जाएगा. महेश्वर भगवान शिव का ही एक अन्य नाम है. इस दिन भगवान शिव का पूजन करना अत्यंत शुभ
भारतवर्ष में प्रत्येक दिन किसी न किसी महत्व से जुड़ा होता है. यहां मौजूद तिथि, नक्षत्र और दिनों का मेल होने पर कोई उत्सव, व्रत-त्यौहार इत्यादि संपन्न होते हैं. इन सभी का मेल एक उत्साह ओर विश्वास के साथ भक्ति और शक्ति के
व्रत और त्यौहार की श्रेणी में प्रत्येक दिन और समय किसी न किसी तिथि नक्षत्र योग इत्यादि के कारण अपनी महत्ता रखता है. इसी के मध्य में आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन कोकिला व्रत भी मनाया जाता है. अषाढ़ मास में आने वाले अंतिम
नवचंडी शक्ति का ही एक अंग है. देवी के नव रुपों का स्वरुप है. नव चंडी देवी की शक्ति और उसका पूजन किसी भी भक्त को साधना की परकाष्ठा तक पहुंचा देने में अत्यंत ही सहायक बनता है. नवचण्डी का पूजन एक यज्ञ का रुप होता है.
रंग पंचमी का उत्सव चैत्र माह के कृष्ण पंचमी के दिन मनाया जाता है. इस पर्व के उपलक्ष पर देशभर में कई तरह के धार्मिक और रंगारंग कार्यक्रम संपन्न होते हैं. रंगपंचमी का पर्व बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. अपने नाम के
फाल्गुन माह के शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन माह की पूर्णिमा तक होलाष्टक का समय माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं. होला अष्टक अर्थात होली से पहले के वो आठ दिन जिस समय पर सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य रोक दिए जाते
पौष मास की पूर्णिमा को "पौष पूर्णिमा" का पर्व मनाया जाता है. पौष मास की पूर्णिमा को हिंदू पंचांग अनुसार बहुत ही शुभ माना गया है. इस पूर्णिमा के दिन श्री विष्णु पूजन होता है. भगवान सत्यनारायण कथा का पाठ होता है. पौष माह
भीष्म द्वादशी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को किया जाता है. यह व्रत भीष्म पितामह के निमित्त किया जाता है. इस दिन महाभारत की कथा के भीष्म पर्व का पठन किया जाता है, साथ ही भगवान श्री कृष्ण का पूजन भी होता है.
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन श्री पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस पर्व को हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह दिन भिन्न भिन्न रुपों में अलग अलग स्थानों पर मनाते हुए देखा जा सकता है. इस दिन मंदिरों में
माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को "वरद कुंद चतुर्थी" के रुप में मनाया जाता है. वैसे यह चतुर्थी अन्य नामों से भी जानी जाती है. जिसमें इसे तिल, कुंद, विनायक आदि नाम भी दिए गए हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन
पौष माह की पूर्णिमा को शाकम्भरी जयंती मनाई जाती है. शक्ति के अनेक अवतारों में से एक अवतार शाकंभरी माता का भी है. देवी दुर्गा के भिन्न-भिन्न अवतारों में से एक शांकंभरी अवतार सृष्टि के कल्याण और सृजन हेतु होता है. माता
रामदास जी का संत परंपरा में एक विशेष स्थान रहा है. इनके द्वारा की गई रचनाओं और ज्ञान को पाकर लोगों का मार्गदर्शन हो पाया है. आज भी उनकी संत रुपी वाणी के वचनों को पढ़ कर और सुन कर लोग प्रकाशित होते हैं. संत रामदास का
शीतला षष्ठी का व्रत षष्ठी तिथि के दिन किया जाता है. माता षष्ठी का पूजन संतान की कुशलता और दिर्घायु के लिए किया जाता है. इस व्रत का संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत महत्व होता है. शीतला माता का पूजन करने से घर परिवार में सुख
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्री राम विवाह पंचमी के रुप में मनाई जाती है. मान्यता है की इसी दिन भगवान श्री राम जी का सीता जी से विवाह संपन्न हुआ था. राम विवाह का बहुत ही सुंदर वर्णन हमें “रामायण” में
हिन्दू पंचांग अनुसार षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रुप में मनाई जाती है. षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द की जन्म तिथि होती है. भगवान स्कंद की षष्ठी तिथि को दक्षिण भारत में बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है. दक्षिण भारत में स्कंद
कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा को “कार्तिक पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा का पर्व संपूर्ण भारत वर्ष में उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन के पावन अवसर पर देश के अनेक क्षेत्रों पर पूजा पाठ,
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी “चंपा षष्ठी” नाम से भी मनाई जाती है. मान्यता है की चंपा षष्ठी का पर्व भगवान शिव के एक अवतार खंडोवा को समर्पित है. खंडोवा या खंडोबा को अन्य कई नामों से भी पुकारा जाता है. इसमें से
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि श्री पंचमी का पर्व मनाया जाता है. पंचमी तिथि के दिन लक्ष्मी जी को "श्री" रुप में पूजा जाता है. देवी लक्ष्मी को "श्री"का स्वरुप ही माना गया है. दोनों का स्वरुप एक ही है ऎसे में
हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में यम को मृत्यु का देवता बताया गया है. यम जिन्हें यमराज व धर्मराज के नाम से भी पुकारा जाता है. वेद में भी यम वर्णन विस्तार रुप से प्राप्त होता है. यमराज, का वाहन महिष है अर्थात भैसा. भैंसे पर
ज्योतिष शास्त्र में पंचाग गणना अनुसार माह की 30वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है. इस समय के दौरान चंद्रमा और सूर्य एक समान अंशों पर मौजूद होते हैं. इस तिथि के दौरान चंद्रमा के प्रकाश का पूर्ण रुप से लोप हो जाता है अर्थात
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 23 नवंबर 2024 को भैरव जयंती का उत्सव मनाया जाएगा. भैरव को भगवान शिव का ही एक रुप माना जाता है और भैरव शिव के अंशावतार हैं. भैरव का जन्म
कार्तिक मास की 30वीं तिथि को “कार्तिक अमावस्या” के नाम से मनाया जाता है. हिन्दू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व रहता रहा है. प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या किसी न किसी रुप में कुछ खास लिए होती है. हर महीने में एक
कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण बनता है. शास्त्रों में कार्तिक मास को श्रेष्ठ मास माना
भाद्रपद माह की अमावस्या पिठोरी अमावस्या कहा जाता है. इस वर्ष 03 सितंबर, 2024 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी. पिठोरी अमावस्या के दिन स्नान-दान का महत्व होता है. इस दिन पवित्र नदियों ओर धर्म स्थलों के दर्शन किए जाते हैं.
भारत जैसे विशाल भूभाग पर संस्कृतियों का अनोखा संगम देखने को मिलता है. इस संगम में अनेकों व्रत व त्यौहार, भिन्न भिन्न विचारधारें आकर मिलती हैं. इन सभी का रंग किसी न किसी रुप में सभी को प्रभावित भी करता है. इसी में आता है
देव प्रबोधिनी एकादशी, सभी एकादशियों में से ये एकादशी एक अत्यंत ही शुभ और अमोघ फलदायी एकादशी होती है. देव प्रबोधिनी एकादशी को देव उठनी एकादशी, देवुत्थान एकादशी इत्यादि नामों से जानी जाती है. वैष्णव संप्रदाय में एकदशी
कुबेर देव का पूजन करना जीवन में शुभता और आर्थिक समृद्धि को प्रदान करने वाला होता है. कुबेर पूजा को विशेष रुप से दिपावली के समय पर किया जाता है. कुबेर जी को धनाध्यक्ष और अपार धन दौलत का स्वामी माना गया है. यह धन के देवता
कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन विश्वकर्मा पुजन होता है. इस उत्सव पर निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा का पूजन होता है. मान्यता अनुसार विश्वकर्मा पूजन के दिन सभी प्रकार की मशीनों, शस्त्रों इत्यादि मशीनों की भी
अन्नकूट पर्व अपने नाम के अर्थ को सिद्ध करता है. इस दिन अन्न का पूजन होता है और भगवान को ढेर सारे पकवानों का भोग लगाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है. यह पर्व एक
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को त्रिपुरोत्सव का पर्व मनाया जाता है. प्रदोषव्यापिनी इस पर्व को विधि विधान से मनाने का कार्य प्राचीन समय से ही चला रहा है. पूर्णिमा के दिन पड़ने वाले इस पर्व को सभी लोग बहुत
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को आश्विन पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. संपूर्ण वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा तिथियों की भांति इस पूर्णिमा का भी अपना एक अलग प्रभाव होता है. आश्विन पूर्णिमा को संपूर्ण भारत
धर्म ग्रंथों में धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना गया है. धर्म ग्रंथों में प्रत्येक देवता किसी न किसी शक्ति से पूर्ण होते हैं. किसी के पास अग्नि की शक्ति है तो कोई प्राण ऊर्जा का कारक है, कोई आकाश तो कोई हवा का संरक्षक
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. आंवला नवमी को कुष्माण्ड नवमी और अक्षय नवमी पर्व के नाम से भी मनाया जाता है. आंवला नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान करने का बहुत महत्व
आश्विन मास की अमावस्या तिथि आश्विन अमावस्या के नाम से जानी जाती है. हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास कि अमावस्या के दिन श्राद्ध कार्यों का अंतिम दिन होता है. इसके साथ ही तर्पण के काम समाप्त होते हैं. कृष्ण पक्ष की
जैन धर्म से संबंधित ज्ञान पंचमी सभी के लिए एक अत्यंत ही पूजनीय और महत्वपूर्ण दिवस है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्ञान पंचमी' का पर्व मनाया जाता है". मान्यताओं के अनुसर इसी शुभ समय पर भगवान महावीर के
माँ दुर्गा की पूजा में प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व होता है. इसमें अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय नवरात्रि का होता है. नव रात्रि अर्थात देवी पूजा के वो नौ दिन, जब हर एक दिन एक अलग रुप में होता है. साधक के लिए यह सभी नौ
सावन शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव के साथ जुड़ा है. सावन शिवरात्रि का दिन अत्यंत ही शुभ और मनोकामनाओं की पूर्ति वाला होता है. शिवरात्रि को कई तरह से मनाया जाता है. इस वर्ष 02 अगस्त 2024 को सावन/श्रावण शिवरात्रि का पर्व
गायत्री माता को हिन्दू भारतीय संस्कृति में अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. जीव और जगत के मध्य जो संबंध है वह माँ गायत्री के द्वारा ही संभव हो पाता है. गायत्री को ही चारों वेदों की उत्पति का आधार भी माना गया है.
आश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा को कोजागर व्रत किया जाता है. कोजागर व्रत माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए होता है. इस दिन मुख्य रुप से लक्ष्मी पूजन करते हैं. लक्ष्मी मां के आशीर्वाद से जीवन में किसी भी प्रकार की
कार्तिक संक्रान्ति हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों मे से एक है. सूर्य जब तुला राशि में प्रवेश करते हैं, तो कार्तिक संक्रांति पर्व को मनाया जाता है. यह पर्व अक्टूबर माह के मध्य के समय पर आता है. कार्तिक संक्रान्ति का पर्व
ज्योतिष शास्त्र में मघा नक्षत्र दसवां नक्षत्र होता है. मघा नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता पितर होते हैं. मघा नक्षत्र के स्वामी केतु को माना गया है. इसलिए इस नक्षत्र का होना श्राद्ध समय के दौरान अत्यंत ही शुभ प्रभाव वाला
संतान की लम्बी ऊम्र और उसके सुख की कामना के लिए किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत. जीवित्पुत्रिका व्रत इस वर्ष 25 सितंबर, 2024 को बुधवार, के दिन मनाया जाएगा. इस दिन व्रत को माताएं अपने बच्चों के आरोग्य और उनके सुखी जीवन
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को श्री चंद्र नवमी के रुप में या जाता है. यह उत्सव उदासीन संप्रदाय के प्रवर्तक चंद्र जी के लिए समर्पित है. इस वर्ष 12 सितंबर 2024 को चंद्र नवमी मनाई जाएगी. भारतवर्ष की तपोभूमि में
भगवान श्री विष्णु के मुख्य अवतारों में से एक अवतार कल्कि भी है. यह वह अवतार है जिसे अभी आना है क्योंकि पौराणिक ग्रंथों के आधार पर कलियुग के अंतिम चरण में कल्कि अवतार होगा. युग गणना के आधार पर अभी कलियुग का प्रथम चरण ही
महालक्ष्मी व्रत का प्रारम्भ भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होता है और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर इसका समापन होता है. 16 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान बताया गया है. महा
भाद्रपद मास की पूर्णिमा "भाद्रपद पूर्णिमा" के नाम से जानी जाती है. इस पूर्णिमा के दिन कुछ विशेष अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं. इस पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण की पूजा, शिव पार्वती पूजा, चंद्रमा पूजा कार्य संपन्न होते हैं. इस
भाद्रपद माह में सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश करना भाद्रपद संक्रान्ति कहलाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की संक्रान्ति के समय भगवान सूर्य का पूजन और भगवान श्री कृष्ण का पूजन विशेष रुप से होता है. संक्रान्ति
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को “हल षष्ठी” के रुप में मनाया जाता है. हल षष्ठी के दिन व्रत करने का विधान भी रहता है. इस अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा, बलराम जी, कृष्ण जी की पूजा, सूर्य उपासना करना अत्यंत शुभदायक होता
आषाढ़ मास को आने वाली अमावस्या तिथि “आषाढ़ अमावस्या” के नाम से जानी जाती है. इस वर्ष 05 जुलाई 2024 को शुक्रवार के दिन आषाढ़ अमावस्या संपन्न होगी. आषाढ़ मास की अमावस्या के समय स्नान - दान और पितरों के लिए दान इत्यादि
हयग्रीव को श्री विष्णु भगवान का एक अवतार रुप माना गया है. सावन मास की पूर्णिमा को हयग्रीव जयंती मनाई जाती है. भगवान विष्णु के अवतारों में से एक हयग्रीव ने वेदों का कल्याण किया. इस कारण यह अवतार जीवन में ज्ञान को प्रदान
देवी की शक्तियों में से एक मां छिन्नमस्तिका का स्वरुप अत्यंत ही प्रभावशाली है. छिन्नमस्तिका को चिन्तपूर्णि माता के नाम से भी जाना जाता है. देवी के सभी रुपों का संबंध विभिन्न शक्ति पीठों से रहा है. भारत के भिन्न-भिन्न
आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि के दौरान श्री विष्णु भगवान का पूजन और गुरु का पूजन किया जाता है. वर्ष भर में आने वाली सभी प्रमुख पूर्णिमाओं में एक आषाढ़ पूर्णिमा भी है. इस दिन भी किसी विशेष कार्य का आयोजन होता है और विशेष
भारत में चली आ रही संत एवं भक्ति परंपरा के मध्य एक नाम रामानुजाचार्य जी का भी आता है. यह दर्शन शास्त्र में अपनी भूमिका को दर्शाते हैं. रामानुजाचार्य जी ने अपनी ज्ञान एवं आध्यात्मिक ऊर्जा द्वारा देश भर में भक्ति का
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को चंपक द्वादशी का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष चम्पा द्वादशी 19 जून 2024 को मनाई जाएगी. इस तिथि में भगवन श्री विष्णु का पूजन होता है और भगवान की चंपा के फूलों से पूजा होती है.
इस वर्ष आषाढ़, शुक्ल षष्ठी को 12 जुलाई, 2024, शुक्रवार के दिन स्कंद षष्ठी का त्यौहार मनाया जाएगा. स्कंद षष्ठी के दिन भगवान स्कंद की पूजा की जाती है. भगवान स्कंद सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने वाले होते हैं. स्कन्द
नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व रहा है. सृष्टि में मौजूद प्रकृति ही वह शक्ति है जो जीवन के संचालन में अपना योग्दान देती है. इसी प्रकृति का सानिध्य पाकर पुरुष का जीवन भी नए चरण एवं स्वरुप को पाता है और इसी क्रम
इस वर्ष 04 अगस्त 2024 को श्रावण अमावस्या मनाई जाएगी . सावन मास में मनाई जाने वाली अमावस्या “हरियाली अमावस्या” के नाम से भी पुकारी जाती है. इसके अलावा इसे चितलगी अमावस्‍या, चुक्कला अमावस्‍या, गटारी अमावस्‍या इत्यदि नामों
सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या तिथि सोमवती अमावस्या कहलाती है. इस तिथि में सोमवार का दिन और अमावस्या तिथि का संयोग होने के कारण यह दिन एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण दिन बनता है. इस समय पर उपवास और पूजा नियम को करने से
2024 में 8 अप्रैल और 2/3 अक्टूबर को लगने वाला सूर्य ग्रहण कई तरह से अपना प्रभाव डालने वाला होगा. इस ग्रहण का प्रभाव दक्षिणी पूर्वी यूरोप, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका कुछ कुछ क्षेत्रों, प्रशांत और हिन्द महासागर एवं मध्य
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विवस्वत सप्तमी के रुप में मनाई जाती है. इस वर्ष 2024 में विवस्वत सप्तमी तिथि 13 जुलाई को मनाई जाएगी. इस दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है. सूर्य के अनेकों नाम
सूर्य की पूजा एवं साधना का पर्व है करवीर व्रत. प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल प्रतिपदा के दिन करवीर व्रत संपन्न होता है और सूर्य की पूजा की जाती है. इस वर्ष 07 जून 2024 को करवीर व्रत किया जाएगा. हिन्दु धर्म में
शास्त्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दौरान किये जाने वाले बहुत से यम-नियम आदि का उल्लेख मिलता है, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दौरान दिये गए नियमों का पालन करना चाहिए और उन नियमों का पालन करने से जीवन में आती है शुभता और मनोकामनाएं
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रंभा तृतीया के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष 08 जून 2024 के दिन रम्भा तृतीया का उत्सव मनाया जाएगा. इस दिन अप्सरा रम्भा की पूजा की जाती है. धर्म शास्त्रों में वेद पुराणों में
वैशाख अमावस्या का पर्व वैशाख माह की अमावस्या तिथि के दिन मनाया जाता है. वैशाख अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने व धर्म स्थलों पर जाकर दान-जप-तप इत्यादि करने का भी विशेष महत्व माना गया है. वैशाख अमावस्या पूजा
भारत में संक्रांति का पर्व बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है. किसी भी माह की सूर्य संक्रांति के दिन किया गया दान अन्य शुभ दिनों की तुलना में दस गुना पुण्य देता है. इसी श्रृंखला में आती है वैशाख माह की संक्रांति. इस
वैशाख पूर्णिमा का उत्सव रोशनी से भरपूर और हर दिशाओं को प्रकाशित करने वाला त्यौहार है. पूर्णिमा का समय "ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय ॥" इन पंक्तियों को चरितार्थ करने जैसा है. यह वह समय होता
प्रदोष तिथि के दिन सोमवार का दिन पड़ने पर सोम प्रदोष व्रत कहलाता है. सोम प्रदोष व्रत के दिन प्रात:काल समय भगवान शिव का पूजन होता है. प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करने का विधान रहा है. ऎसे
भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिये दमनक चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 12 अप्रैल 2024 को दमनक चतुर्थी का उत्सव मनाया जाएगा. भगवान श्री गणेश जी को
चैत्र शुक्ल पक्ष को अनंग त्रयोदशी का उत्सव मनाया जाता है. इस वर्ष अनंग त्रयोदशी 21 अप्रैल 2024 में रविवार के दिन मनाया जाएगा. अनंग त्रयोदशी के दिन अनंग देव का पूजन होता है. अनंग का दूसरा नाम कामदेव है. इस दिन भगवान शिव
नारद मुनि जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र कहा जाता है. इस वर्ष नारद जयंती 25 मई 2024 को शनिवार के दिन मनाई जाएगी. इस नारद जयंती के उपलक्ष्य पर देश भर में कई तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. नारद मुनी को
चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को चैत्र पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. चैत्र की पूर्णिमा को चैती पूर्णिमा, चैत पूर्णिमा, चैती पूनम आदि नामों से पुकारा जाता है. इस वर्ष 23 अप्रैल 2024 को चैत्र पूर्णिमा का त्यौहार मनाया
वैशाख मास में स्नान, पूजन विधि और जाने इसकी महिमा विस्तार से चैत्र माह की पूर्णिमा और हनुमान जयंती के साथ ही वैशाख माह के स्नान पर्व की परंपरा आरंभ हो जाती है. हिन्दू पंचाग अनुसार प्रत्येक माह किसी न किसी रुप में बहुत
प्रत्येक माह की पंचमी तिथि के देव नाग माने जाते हैं. ऎसे में प्रत्येक माह में आने वाली पंचमी तिथि का संबंध किसी न किसी नाग से होता है. इस लिए पंचमी तिथि के दिन नाग देव के पूजन का विधान रहा है. हिन्दू पंचांग अनुसार चैत्र
हिन्दू पंचांग अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष 13 अप्रैल 2024 को शनिवार के दिन स्कन्द षष्ठी पर्व मनाया जाएगा स्कंद भगवान को अनेकों नाम जैसे कार्तिकेय, मुरुगन
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को लक्ष्मी सीता अष्टमी रूप में पूजा जाता है. देवी लक्ष्मी को सीता का स्वरुप ही माना गया है दोनों का स्वरुप एक ही है ऎसे में ये दिन लक्ष्मी-सीता अष्टमी के पूजन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता है. इस वर्ष 09 अप्रैल 2024 को मंगलवार के दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाएगा. गुड़ी पड़वा को हिन्दू नव संवत्सर का आरंभ समय माना जाता है.
शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व माता शीतला के पूजन से संबंधित है. शीतला सप्तमी का व्रत संतान प्राप्ति एवं संतान के सुख के लिए किया जाता है. शीतला माता के व्रत में एवं इनके पूजन में बासी एवं ठंडा भोजन करने का नियम
सोमवार के दिन भगवान शिव और सोम देव के निमित्त जो व्रत किया जाता है, उसे सोमवार के व्रत के नाम से जान जाता है. सोमवार के व्रत में भगवान शिव का विशेष रुप से पूजन होता है. इस व्रत के दौरान भगवान शिव का अभिषेक एवं रात्रि के
लक्ष्मी नारायण व्रत में देवी श्री लक्ष्मी और भगवान नारायण की संयुक्त रुप पूजा की जाती है. इस पूजा को करने से घर में धन संपदा की कभी कमी नहीं आती है. श्री लक्ष्मी नारायण व्रत दरिद्रता को दूर करने का एक अचूक उपाय भी बनता
फाल्गुन पूर्णिमा एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व एवं समय होता है जो धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वरुप में उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा का पर्व 14 मार्च 2025 के दिन मनाया जाएगा. फाल्गुन माह में
ईशान व्रत अपने नाम के अनुरुप भगवान शिव से संबंधित है क्योंकि भगवान शिव का एक अन्य नाम ईशान भी है. इसी के साथ वास्तुशास्त्र में भी ईशान संबंधित दिशा की शुभता सर्वव्यापी है यह दिशा आपके लिए शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का
प्रदोष व्रत मुख्य रुप से भगवान शिव के स्वरुप को दर्शाता है. इस व्रत को मुख्य रुप से भगवान शिव की कृपा पाने हेतु किया जाता है. प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत का पालन किया जाता
देवी दुर्गा अष्टमी तिथि की अधिकारी हैं और ये तिथि उन्हें अत्यंत प्रिय है. ऎसे में हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गा अष्टमी के रुप में मनाया जाता है. इस दिन देवी दुर्गा का भक्ति भाव के साथ पूजन किया
भीष्म अष्टमी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है. इस वर्ष भीष्माष्टमी 05 फरवरी 2025 को बुधवार के दिन मनाई जाएगी. यह व्रत भीष्म पितामह के निमित्त किया जाता है. इस दिन महाभारत की कथा के भीष्म पर्व का
खरमास को मांगलिक कार्यों विशेषकर विवाह के परिपेक्ष में शुभ नहीं माना जाता है. इस कारण इस समय अवधि को त्यागने की बात कही जाती है. आईये जानते हैं की खर मास होता क्या होता है. सूर्य का धनु राशि में गोचर समय खर मास कहलाता
इस वर्ष का आखिरी ग्रहण अक्टुबर 2024 को लगेगा. 2/3 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण होगा ये ग्रहण एक पूर्ण सूर्य ग्रहण यानी के कंकण सूर्य ग्रहण के रुप में लगेगा. सूर्यग्रहण का आरंभ 2/3 अक्टूबर को मध्य रात्रि से आरंभ होगा. इस ग्रहण
तिथि पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग हैं. तिथि के निर्धारण से ही व्रत और त्यौहारों का आयोजन होता है. कई बार हम देखते हैं की कुछ त्यौहार या व्रत दो दिन मनाने पड़ जाते हैं. ऎसे में इनका मुख्य कारण तिथि के कम या ज्यादा होने के
दशमहाविद्या साधना गुप्त नवरात्रों में मुख्य रुप से की जाती है. मंत्र साधना एवं सिद्धि हेतु दश महाविद्या की उपासना का बहुत महत्व बताया गया है. माता की उपासना विधि में मंत्र जाप का बहुत महत्व होता है. किसी भी साधक के लिए
इस वर्ष 25 मार्च 2024 ओर 18 सितंबर 2024 को चंद्र ग्रहण की स्थिति बनेगी. चंद्र ग्रहण भारत में दृष्य नहीं होगा. 25 मार्च 2024 चंद्र ग्रहण (भारत में अदृष्य) ग्रहण समय ग्रहण आरंभ (स्पर्श) - 09:04 स्पर्श प्रारंभ - 10:11
गुप्त नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा का विधान होता है, यह गुप्त नवरात्र साधारण जन के लिए नहीं होते हैं मुख्य रुप से इनका संबंध साधना और तंत्र के क्षेत्र से जुड़े लोगों से होता है. इन दिनों भी माता के विभिन्न रूपों की
अधिक मास के समय के दौरान बहुत से लोग व्रत, जप, तप और साधना करते हैं भगवान विष्णु के पूजन का ये विशेष समय होता है. इस पूरे अधिक मास को मल मास, प्भुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है इसमें पूजा और तप को ही महत्व दिया गया है. जब
हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठा मास हिन्दू वर्ष का तीसरा माह होता है. इस माह में विशेष रुप से गंगा नदी में स्नान और पूजन करने का विधि-विधान है. इस माह में आने वाले पर्वों में गंगा दशहरा और इस माह में आने वाली ज्येष्ठ
चैत्र माह की प्रतिपदा का आरंभ नव वर्ष के आरंभ के साथ साथ दुर्गा पूजा के आरंभ का भी समय होता है. इस वर्ष 30 मार्च 2025 को चैत्र नवरात्रों के आरंभ से ही विक्रम संवत का आरंभ होगा और इसी के साथ ही प्रतिपदा से नवरात्रों का
इस वर्ष 12 मार्च 2025 को शनिवार के दिन मनाई जाएगी. चैत्र पूर्णिमा और हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान और दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है. चैत्र पूर्णिमा और जयंती के अवसर पर रामायण का पाठ,
धनतेरस | Dhanteras धनतेरस का पर्व 29 अक्टूबर 2024 के दिन मनाया जाएगा. हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार दिवाली का आरंभ धनतेरस के शुभ दिन से हो जाता है. धनतेरस से आरंभ होते हुए नरक चतुर्दशी, दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज तक
हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की
शारदीय नवरात्रों का विशेष महत्व रहता है, यह भक्तों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है. देवी दुर्गा जी की पूजा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, भगवान श्री राम जी ने भी विजय की प्राप्ति के लिए माँ दुर्गा जी की उपासना कि थी.
हिन्दू धर्म अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है. श्राद्ध संस्कार का वर्णन हिंदु धर्म के अनेक धार्मिक ग्रंथों में किया गया है. श्राद्ध पक्ष को महालय और पितृ पक्ष के नाम से भी जाना
इस वर्ष 24 अप्रैल 2025 के दिन वरूथिनी एकादशी व्रत किया जाएगा. यह व्रत वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. पद्मपुराण में वरूथिनी एकादशी के विषय में तथ्य प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के
कामदा एकदशी व्रत चैत्र मास मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. वर्ष 2025 में 08 अप्रैल को यह व्रत किया जायेगा. यह एकादशी कामनाओं की पूर्ति को दर्शाती है. इस व्रत को करने से पापों का नाश
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है. इस वर्ष 05 अप्रैल 2025 को अष्टमी तिथि रहेगी. महागौरी आदी शक्ति हैं इनके तेज से संपूर्ण सृष्टि प्रकाश-मान है इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी है. महागौरी की चार भुजाएं
दुर्गा-पूजा के सातवें दिन माँ काल रात्रि की उपासना का विधान है. इस वर्ष 04 अप्रैल 2025 को माँ कालरात्री जी की पूजा की जाएगी. माँ कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं इस कारण इन्हें शुभंकरी भी
नवरात्रा के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है. इस वर्ष 03 अप्रैल 2025 को कात्यायनी पूजा की जाएगी. इस उपलक्ष पर माता की आराधना एवं भंडारों का आयोजन किया जाता है. देवी कात्यायनी शत्रुओं का नाश करने वाली होती है.
दुर्गा जी के इस पांचवे स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है. माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है. इस वर्ष 02 अप्रैल 2025 को पांचवां नवरात्रा संपन्न होगा. स्कंद माता का रूप सौंदर्य अद्वितिय आभा
दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा जी की पूजा का विधान है. इस वर्ष 1 अप्रैल 2025 को यह पूजा की जानी है. देवी कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के
दुर्गा पूजा के तीसरे दिन आदि-शक्ति दुर्गा के तृतीय स्वरूप माँ चंद्रघंटा की पूजा होती है. माँ दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. इस वर्ष 31 मार्च 2025 को देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी. चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप
नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. ब्रह्मचारिणी जी की पूजा इस वर्ष 31 मार्च 2025 को की जानी है. देवी ब्रह्मचारिणी का रूप तपस्विनी जैसा है. माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और
दुर्गा-पूजा के पहले दिन माँ शैलपुत्री की उपासना का विधान है. इस वर्ष 30 मार्च 2025 के दिन माँ शैलपुत्री जी की पूजा की जाएगी. दुर्गा पूजा का त्यौहार वर्ष में दो बार आता है, एक चैत्र मास में और दूसरा आश्विन मास में. दोनों
चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 30 मार्च 2025 के दिन से होगा. इसी दिन से हिंदु नवसंवत्सर का आरंभ भी होता है. चैत्र मास के नवरात्र को ‘वार्षिक नवरात्र’ कहा जाता है. इन दिनों नवरात्र में शास्त्रों के अनुसार
गणगौर तृतीया पर्व का आयोजन शिव एवं शक्ति स्वरूपा पार्वती की असीम कृपा प्राप्त करने हेतु किया जाता है. यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है. इस वर्ष 31 मार्च 2025 को सोमवार के दिन किया जाएगा. गणगौरी उत्सव स्त्रियों
17 अप्रैल 2025 को सती अनुसूया जयंती मनाई जाएगी. अनुसूया जी का स्थान पतिव्रता स्त्रियों श्रेणी में सर्वोपरी रहा है. दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी अनुसूया जो मन से पवित्र एवं निश्छल प्रेम की परिभाषा थीं
गणेश जी की महिमा अपने आप में अनूठी है. हाथी के मस्तक वाले अपने वाहन मूषक पर सवार विघ्नहर्ता श्री गणेश ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं. किसी भी कार्य को आरंभ करने से पूर्व इनकी अराधना कार्य को निर्विघ्न संपन्न होने का आशिर्वाद
शीतलाष्टमी का पर्व होली के सम्पन्न होने के कुछ दिन पश्चात मनाया जाता है. देवी शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से आरंभ होती है. शीतला अष्टमी पर्व 22 मार्च 2025 दिन मनाई जाएगी. शीतला अष्टमी पर्व के
श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को किया जाता है. वर्ष 2025 में यह व्रत 2 अप्रैल के दिन किया जाएगा. इस दिन माँ लक्ष्मी जी की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है तथा साधक को श्री का
पाप मोचनी एकादशी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. वर्ष 2025 में पापमोचनी एकादशी व्रत 25 मार्च के दिन किया जायेगा. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापों को नष्ट करने वाली
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के रूप में मनाया जाता है. यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु राम जी ने भी इस व्रत को धारण करके अपने विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के मुख से चन्दमा के समान प्रकाशिए बिन्दू प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा. उसी बिन्दू से आमलक अर्थात आंवले के महान पेड की उत्पति हुई. भगवान विष्णु के मुख से प्रकट होने वाले आंवले के
होलिका दहन प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं ऎसा धर्म सिंधु में निहित है. यदि प्रदोष के समय भद्रा व्याप्त हो और भद्रा निशीथकाल अर्थात अर्ध रात्रि से पूर्व ही समाप्त हो
महाशिव रात्रि अर्थात कल्याणकारी रात्रि. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को किया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व इसी को दर्शाता है. इस शिवरात्रि का शास्त्रों में बहुत माहात्म्य माना है. मान्यता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को
सीता जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में उत्साह व श्राद्धा के साथ मनाया जाएगा. यह पर्व माँ सीता के जन्म दिवस के रुप में जाना जाता है. वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भी जानकी-जयंती के रूप में मनाया जाता है, परंतु
01 फरवरी 2025 के दिन मनाई जानी है. गणेश तिल चतुर्थी का व्रत हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है. इस दिन तिल दान करने का महत्व होता है. इस दिन गणेश भगवान को तिल के लड्डुओं का भोग
शक्तिरूपा पार्वती की कृपा प्राप्त करने हेतु सौभाग्य वृद्धिदायक गौरी तृतीया व्रत करने का विचार शास्त्रों में बताया गया है. इस वर्ष यह व्रत 31 मार्च, 2025 को किया जाना है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन इस व्रत को
12 जनवरी 2025 के दिन माघ पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाएगा. ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। इसी
माघ शुक्ल पंचमी 02 फरवरी 2025 के दिन बसंत पंचमी पूजन संपन्न होगा. इस शुभ दिन सभी शिक्षण संस्थानों में विद्या की देवी सरस्वती जी की पूजा कि जाती है. सरस्वती को कला की भी देवी माना जाता है अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी
माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी इत्यादि नामों से जानी जाती है. विशेषकर जब यह सप्तमी रविवार के दिन हो तो इसे अचला भानू सप्तमी के नाम से पुकारा जाता है और इस दिन पड़ने के
तिल द्वादशी व्रत माघ माह की द्वादशी को किया जाता है. 09 फरवरी 2025 को तिल द्वादशी मनाई जाएगी. इस दिन तिल से भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
षट्तिला एकादशी का व्रत 25 जनवरी, 2025 के दिन रखा जाएगा. प्रतिवर्ष माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है. अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिलों से जुडा हुआ है, तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और
28 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या का उत्सव मनाया जाएगा. मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं इसलिए यह दिन एक संपूर्ण शक्ति से भरा हुआ और पावन अवसर बन जाता है इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना
कहा गया है कि त्रिदेव माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं तथा इलाहबाद के प्रयाग में माघ मास के दौरान स्नान करने दस हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है. माघ मास में ब्रह्म मूहुर्त्त
पुत्रदा एकादशी व्रत वर्ष 2025 में पुत्रदा एकादशी व्रत 10 जनवरी को मनाया जाएगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा की
सूर्य भगवान आदि देव हैं अत: इन्हें आदित्य कहते हैं, इसके अलावा अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लेने के कारण भी इन्हें इस नाम से जाना जाता है. सूर्य के कई नाम हैं जिनमें मार्तण्ड भी एक है जिनकी पूजा पौष मास में शुक्ल
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रुप में जाना जाता है. 14 जनवरी 2025 के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते है. इस पर्व को दक्षिण भारत में तमिल वर्ष की शुरूआत इसी दिन से होती है. वहाँ यह पर्व 'थई पोंगल' के नाम
सफला एकादशी व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है. 15 दिसंबर वर्ष 2025 में यह व्रत मनाया जायेगा. इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन प्राता: स्नान करके, भगवान कि आरती करनी चाहिए और भगवान को
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी अखण्ड द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. इस दिन विष्णु पूजा एवं व्रत का संकल्प किया जाता है, जिसमें शुद्ध आचरण व सदाचार पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. अखण्ड द्वादशी तिथि के
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पावन पर्व पर गंगा समेत अनेक पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. हरिद्वार समेत अनेक स्थानों पर लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं और पापों से मुक्त होते हैं. पूर्णिमा के स्नान पर पुण्य की कामना से
पिशाचमोचन श्राद्ध के दिन पिशाच (प्रेत) योनि में गये हुए पूर्वजों के निमित्त तर्पण आदि करने का विधान बताया गया है. 7 सितंबर 2025 को पिशाचमोचन श्राद्ध किया जाना है. इस तिथि पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने
गीता जयंती एक प्रमुख पर्व है हिंदु पौरांणिक ग्रथों में गीता का स्थान सर्वोपरि रहा है. 01 दिसंबर 2025 के दिन गीता जयंती का महोत्सव मनाया जाएगा. गीता ग्रंथ का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को
प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के बाद का कुछ समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. स्थान विशेष के
विष्णु सप्तमी व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है. इस वर्ष विष्णु सप्तमी 27 नवंबर 2025 को मनाई जानी है. भारतीय संस्कृति में ,मार्गशीर्ष मास का अपना एक विशेष महत्व होता है, इस मास में
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के रुप में जाना जाता है. वर्ष 2025 में मोक्षदा एकादशी 01 दिसंबर को मनाई जाएगी. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अनेकों पापों को नष्ट करने वाली है. मोक्षदा
मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती के रूप में भी मनाई जाती है. इस वर्ष 04 दिसंबर 2025 को मनाई जाएगी. मान्यता अनुसार इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को
मार्गशीर्ष का महीना श्रद्धा एवं भक्ति से पूर्ण होता है. मार्गशीर्ष अमावस इस वर्ष 19 नवंबर 2025 को रहेगी. इस माह में श्रीकृष्ण भक्ति का विशेष महत्व होता है और पितरों की पूजा भी कि जाती है इस दिन पितर पूजा द्वारा पितरों
पौष संक्रांति पर सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे. पौष संक्रांति पर सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे. पौष संक्रांति का आरंभ 16 दिसंबर 2025, को होगी. हिन्दुओं के पवित्र पौष माह में आने वाली संक्रांति के दिन गंगा-यमुना
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है. वर्ष 2025 के दिन उत्पन्ना एकादशी व्रत 15 नवंबर का रहेगा . यह व्रत पूर्ण नियम, श्रद्धा व विश्वास के साथ रखा जाता है, इसे व्रत के प्रभावस्वरूप धर्म
इस वर्ष 12 नवंबर, 2025 के दिन भैरवाष्टमी मनाई जाएगी. काल भैरव अष्टमी तंत्र साधना के लिए अति उत्तम मानी जाती है. कहते हैं कि भगवान का ही एक रुप है भैरव साधना भक्त के सभी संकटों को दूर करने वाली होती है. यह अत्यंत कठिन
सौभाग्य सुंदरी व्रत सुहागिन का त्यौहार रहा है यह व्रत सौभाग्य की कामना व संतान सुख की प्राप्ति हेतु किया जाता है. यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है और उन्हें संतान का सुख देना वाला होता
छठ का त्यौहार सूर्योपासना का पर्व होता है. छठ का त्यौहार सूर्य की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के
कूष्माण्डा नवमी सिद्धि प्रदान करने वाली होती है. इसके पूजन से समस्त रोग-शोक दूर हो जाते हैं भक्त को दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होता है. कूष्माण्डा नवमी पूजा आयु में वृद्धि करने वाली और व्यक्ति को मान सम्मान और यश प्रदान
सौभाग्य पंचमी जीवन में सुख और सौभाग्य की वृद्धि करती है इसलिए कार्तिक शुक्ल पक्ष कि पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष 26 अक्टूबर 2025 के दिन सौभाग्य पंचमी पर्व संपन्न किया जाएगा. इस दिन भगवान शिव की
09 नवम्बर 2024, के दिन गौपाष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा. इस दिन प्रात: काल में गौओं को स्नान आदि कराया जाता है तथा इस दिन बछडे़ सहित गाय की पूजा करने का विधान है. प्रात:काल में ही धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़,
प्रत्येक मास की अपनी एक मुख्य विशिष्टता होती है, इसी तरह कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण
हिन्दू पंचांग अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज एवं यम द्वितीया के रूप में मनाते हैं. भाई दूज का यह त्यौहार विशेष रूप से भाई और बहन के मध्य स्थापित प्रगाढ़ संबंधों को दर्शाता है. राखी के बाद
आषाढ़ शुक्ल पक्ष और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी का उल्लेख स्कन्द-षष्ठी के नाम से किया जाता है. पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान की पूजा का विशेष महत्व है, पंचमी
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष यह व्रत, 4 नवम्बर 2025 को रखा जाएगा. इस शुभ दिन के उपलक्ष्य में भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है. इसके साथ ही व्रत का पारण
गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है. इस वर्ष 22 अक्टूबर 2025 को गोवर्धन पूजा की जाएगी. यह पर्व उत्तर भारत में विशेषकर मथुरा क्षेत्र में
कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं. कुबेर जी की पूजा धन धान्य से पूर्ण बना देती है. सुख समृद्धि के मार्ग खुलते हैं. उन्नति, विकास व धन सम्पन्नता के लिए कुबेर यन्त्र पूजन अत्यंत लाभकारी होता है. यह यन्त्र मन्त्र वेदों से
दिवाली का पर्व भारतीय संस्कृत्ति में अत्यधिक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण त्यौहारों के रुप में स्थान पाता है. यह धन, वैभव एवं उल्लास की कामना एवं पूर्णता का पर्व है. कार्तिक मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले इस पंच दिवसीय पर्व
दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन शुभ समय मुहूर्त्त समय पर ही किया जाना चाहिए. पूजा को सांयकाल अथवा अर्द्धरात्रि को अपने शहर व स्थान के मुहुर्त्त के अनुसार ही करना चाहिए. इस वर्ष 01 नवंबर, 2024 के दिन दिवाली मनाई जाएगी.
एकादशी के व्रत को व्रतों में श्र्ष्ठ माना गया है. एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. इसी श्रेणी में रमा एकादशी व्रत भी आता है. यह व्रत कार्तिक माह के
रूप चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी, नरक चौदस, रुप चौदस अथवा नरका पूजा के नामों से जाना जाता है. इस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान होता है. इस वर्ष 2025 को रूप चतुर्दशी 20 अक्टूबर के दिन
निशीथव्यापिनी कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हनुमान जयंती का महोत्सव मनाया जाता है. इस वर्ष 19 अक्टूबर 2025 के दिन हनुमान जयंती मनाई जाएगी. इस दिन भक्तों को चाहिए की वह प्रात: स्नानादि से निवृत होकर संकल्प
नवरात्रों के समय गृह शांति पूजा सभी बाधाऔम को दूर करने का योग्य समय होता है. अध्यात्मिक साधना के लिए जो लोग इच्छुक होते हैं वह लोग इन दिनों साधना रत रहते है. ग्रहों से पीड़ित व्यक्ति इन दस दिनों में ग्रह शांति भी कर
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष कि अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है. यह व्रत पूजन संतान व पति के कल्याण हेतु किया जाता है. अहोई अष्टमी व्रत उदयकालिक एवं प्रदोषव्यापिनी अष्टमी को ही किया जाता है. यह व्रत मुख्यत:
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है, पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा अर्चना की जाती है. करवा चौथ व्रत को करक चतुर्दशी
रामलीला | Ramlila दशहरा पर्व से पूर्व नौ दिनों तक कई स्थानों पर रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है. इसमें राम-सीता के जीवन की झाँकियां दिखाई जाती है. इस दौरान बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है. रामलीला नाटक का मंचन देश के
पापाकुंशा एकादशी व्रत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है. पापाकुंशा एकादशी के दिन मनोवांछित फल कि प्राप्ति के लिये श्री विष्णु भगवान कि पूजा की जाती है. इस वर्ष 03 अक्तूबर 2025 को यह व्रत किया जाएगा.
आदि शक्ति माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं, उपांग ललिता का व्रत भक्तजनों के लिए शुभ फलदायक होता है. इस वर्ष उपांग ललिता व्रत 07 अक्टूबर 2024 के दिन किया जाएगा. इस दिन उपांग ललिता की पूजा भक्ति-भाव सहित करने से
विजयादशमी अर्थात दशहरा की धूम संपूर्ण भारत-वर्ष में देखी जाती है. सत्यता का प्रतीक दशहरा अनेक महत्वपूर्ण संदेशों को देते हुए भारत के कोने-कोने में जोश एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है. विजय दशमी का पर्व आश्विन माह की
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है. वर्ष 2024 में शरद पूर्णिमा 17 अक्टूबर, को मनाई जाएगी. शरद पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. कुछ क्षेत्रों में इस
श्राद्ध अवसर पर पितृदोष शांति के उपाय करने से पितर दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ दोष की शांति के लिए शास्त्रों में अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जैसे कि किन कारणों से पितृ दोष होता है और पितृ दोष की शांति कैसे करें.
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होने वाला गणेश महोत्सव अनंत चतुर्दशी तक चलता है. गणेशोत्सव सारे विश्व में बड़े ही हर्षोल्लास एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. घर-घर में भगवान गणेशजी की पूजा होती है, लोग
यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्य तिथि होती है किंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृ पक्ष के लिए उत्तम मानी जाती है. इस अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा महालया के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रोक्त
नंदा देवी की अराधना प्राचीन काल से ही होती चली आ रही है. नंदा को नवदुर्गाओं में से एक बताया गया है. भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी तथा शुक्ल पक्ष की नवमी को नन्दा कहा जाता है. साल में तीन अवधियों में दुर्गा पूजा की जाती है.
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन दशावतार व्रत का विधान बताया गया है. इस दिन भगवान श्री विष्णु जी के दस अवतारों की पूजा की जाती है तथा कथा श्रवण होता है. भगवान विष्णु को की नामों से जाना जाता है वह अपने अवतारों
भाद्रपद मास की चतुर्थी से आरंभ भगवान गणेश उत्सव भाद्रपद मास की अनंत चतुर्दशी तक चलता है. दस दिन तक मनाए जाने वाले गणेश जन्मोत्सव का बहुत महत्व होता है. गणेश महोत्सव की धूम भारतवर्ष में देखी जा सकती है. इस महत्वपूर्ण
प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध कर्म के रुप में जाना जाता है. इस वर्ष 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक श्राद्ध मनाए जाएंगे. इस पितृपक्ष अवधि में पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी के रुप में मनाई जाती है. इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करते हैं और संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता है. अनंत चतुर्दशी मुहूर्त्त | Anant Chaturdashi
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है. इस वर्ष यह 11 सितंबर 2024, को मनाया जाएगा. राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़ पर पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं. इस दिन
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष वामन जयंती, 15 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में भगवान श्री
श्री महालक्ष्मी व्रत का प्रारम्भ भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन से होता है. वर्ष 2024 में 11 सितंबर को यह व्रत संपन्न होगा. यह व्रत राधा अष्टमी के ही दिन किया जाता है. इस व्रत में लक्ष्मी जी का पूजन
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख का हिंदु पूजा पद्धती में महत्वपूर्ण स्थान है दक्षिणावर्ती शंख देवी लक्ष्मी के स्वरुप को दर्शाता है. दक्षिणावर्ती शंख ऎश्वर्य एवं समृद्धि का प्रतीक है. इस शंख का पूजन एवं ध्यान
पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत पुरुषोत्तम मास (अधिक मास ) में करने का विधान है. पुरूषोत्तमा एकादशी के विषय में एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे भगवन मुझे पुरुषोत्तम मास की एकादशी का फल बताएं, भगवान
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी के रुप में मनाई जाती है इसे को भगवान श्रीगणेश चतुर्थी व्रत किए जाने का विधान रहा है. मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है तथा यह तिथि भगवान गणेश
शक्तिरूपा पार्वती की कृपा प्राप्त करने हेतु सौभाग्य वृद्धिदायक हरितालिका व्रत करने का विचार शास्त्रों में बताया गया है. इस वर्ष यह व्रत 26 अगस्त 2025 को किया जाना है. यह व्रत गौरी तृतीया व्रत के नाम से भी जाना जाता है.
भगवान श्री गणेश जी को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शात्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश जी का अवतरण हुआ था इसी कारण चतुर्थी भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय रही है. इस वर्ष अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत
प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. सामान्यत:
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को वत्स द्वादशी के रुप में मनाया जाता है. 11 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा, वत्स द्वादशी को बछवास, ओक दुआस या बलि दुआदशी के नाम से भी पुकारा जाता है. वत्स द्वादशी के रूप मे पुत्र सुख की
विक्रमी संवत के माह भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की नवमी को गुग्गा नवमी मनाई जाती है. गुग्गा नवमी इस वर्ष 17 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी. गुग्गा नवमी के दिन नागों की पूजा करते हैं मान्यता है कि गुग्गा देवता की पूजा करने से सांपों
कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का प्रिय स्थान कहा गया है. इसे भगवान शिव-पार्वती का घर माना जाता है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह स्थल शिव का स्थायी निवास होने के कारण से यह स्थान सर्वश्रेष्ठ पाता है. मानसरोवर को 'कैलाश
श्रावण माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है. ग्रंथों में इन दिनों किए गए तप और दान का महत्व उल्लेखित है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल
जन्माष्टमी अर्थात कृष्ण जन्मोत्सव इस वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार 26 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा. जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष में इस त्यौहार का उत्साह देखने
सावन की शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के रुप में मनाया जाता है. यह तीज पर्व सिंधारा, हरियाली तीज, मधुस्रवा तृतीय या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष यह त्यौहार 07 अगस्त 2024, के दिन मनाया जाएगा. तीज
नाग पंचमी श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. नाग पंचमी के दिन कालसर्प दोष की पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन काल सर्पदोष की पूजा करने से व्यक्ति को इसके दुषप्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है और
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पवित्रा एकादशी के रुप में मनाते हैं. इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 16 अगस्त 2024 को मनाया जाना है. धर्म ग्रंथों के अनुसर इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त
श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है. यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं. शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है.
सावन माह में शिवभक्त श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. शिव मंदिरों में शिवभक्तों
मंगला गौरी सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है. यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है. श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किए जाने वाले इस व्रत का आरंभ 23 जुलाई 2024 को मंगलवार के
कामिका एकादशी श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है. इस वर्ष कामिका एकादशी 21 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी. कामिका एकादशी विष्णु भगवान की अराधना एवं पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय होता है. इस व्रत के पुण्य से
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और इसी के संदर्भ में यह समय अधिक प्रभावी भी लगता है. इस वर्ष गुरू पूर्णिमा 10 जुलाई 2025, को मनाई जाएगी. गुरू पूर्णिमा अर्थात गुरू के ज्ञान एवं उनके स्नेह
भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों के समस्त दुखों को दूर करने वाले समस्त जगत के स्वामी हैं. इन्हीं की कृपा दृष्टि को प्राप्त करके जीव अपने स्वरुप को जान पाता है. प्रभु की भक्ति से भक्त के समस्त कष्टों का क्षय होता है.
भारत देश नदियों और मान्यताओं का देश है. यहां नदियों को विशेष सम्मान दिया गया है. गंगा नदी यहां के निवासियों के लिए माता का रुप है. यही वजह है, कि गंगा को माता के नाम से सम्बोधित किया जाता है. इस कारण हिंदुओं के लिए गंगा
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष देवशनी एकादशी 06 जुलाई 2025 के दिन मनाई जानी है. इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ भी माना गया है. देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और
धर्म ग्रंथों के अनुसार मंगलवार को आने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा जाता है. भौमवती अमावस्या के समय पितृ तर्पण कार्यों को करने का विधान माना जाता है. अमावस्या को पितरों के निमित पिंडदान और तर्पण किया जाता है
आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा का शुभारंभ होता है. उड़ीसा में मनाया जायाने वाला यह सबसे भव्य पर्व होता है. पुरी के पवित्र शहर में इस जगन्नाथ यात्रा के इस भव्य समारोह में में भाग
आषाढ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन योगिनी एकादशी व्रत का विधान है. इस वर्ष 22 जून 2025 के दिन योगिनी एकादशी का व्रत किया जाना है. इस शुभ दिन के उपलक्ष्य पर विष्णु भगवान जी की पूजा उपासना की जाती है. इस एकादशी के
प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश चतुर्थी व्रत किए जाने का विधान रहा है. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष बहुला चतुर्थी का त्यौहार 12
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है. इस वर्ष गंगा दशहरा 05 जून 2025, के दिन मनाया जाएगा. स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा
सावन के माह में शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता सा लगा रहता है. पूरे ही माह शिव मंदिरों में मेला सा लगा रहता है. भक्तजन दूर स्थानों से काँवड़ में जल भरकर लाते हैं और उस जल से शिवजी का जलाभिषेक करते हैं. सावन का यह
27 मई , 2025 के दिन ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाएगी. इस दिन शनि देव की विशेष पूजा का विधान है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों व स्तोत्रों का गुणगान किया जाता है. शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य
एकादशी दो तरह की होती है. विद्धा एकादशी और शुद्धा एकादशी. सूर्योदयकाल में यदि दशमी तिथि का वेध हो या अरुणोदयकाल में एकादशी में दशमी का वेध हो तब यह एकादशी विद्धा कहलाती है. यदि अरुणोदयकाल में दशमी के वेध से रहित एकादशी
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है. इस वर्ष 2025 में यह व्रत 26 मई को मनाया जाएगा. यह व्रत सौभाग्य की कामना एवं संतान की प्राप्ति हेतु फलदायी माना जाता है. वट वृक्ष का पूजन और
अपरा या अचला एकादशी वर्त 23 मई 2025 के दिन ज्येष्ठ मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाएगी. यह व्रत पुण्यों को प्रदान करने वाला एवं समस्त पापों को नष्ट करने वाला होता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपार धन संपदा
उत्तराखण्ड के चमोली क्षेत्र में गोपेश्वर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है. भगवान शिव को समर्पित यह धाम भारत के प्रमुख रमणीय स्थलों मे से एक है. इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं.
अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है. इसे अखतीज और वैशाख तीज भी कहा जाता है. इस वर्ष यह पर्व 30 मार्च 2025 के दिन मनाया जाएगा. इस पर्व को भारतवर्ष के खास त्यौहारों की श्रेणी में रखा जाता है. अक्षय तृतीया पर्व
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन पजूनो पूनो व्रत का विधान है. इस शुभ तिथि के अवसर पर महिलाएं संतान की खुशहाली के लिए इस व्रत का पूजन एवं नियम पूर्ण श्रद्धा के साथ करती हैं. यहां पूजन पूनो से तात्पर्य यह है कि शुक्ल पक्ष की
वैशाख माह में आने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है बैसाखी. इस वर्ष यह त्यौहार 14 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. बैसाखी का आगमन प्रकृत्ति के परिवर्तन को दर्शाता है. सूर्य का मेष राशि में प्रवेश बैसाखी का आगमन है. बैसाखी पर्व
रामनवमी का त्यौहार चैत्र शुक्ल की नवमी मनाया जाता है. इस वर्ष यह त्यौहार 06 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है. हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी
चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 2025 में 30 मार्च को रविवार के दिन से होगा. इसी दिन से हिंदु नवसंवत्सर अर्थात नए साल का आरंभ भी होता है. नवरात्र के नौ दिनों में देवी की पूजा के अलावा दुर्गा पाठ, पुराण पाठ,
इस वर्ष 2025 में 14 मार्च के दिन होली रंगोत्सव मनाया जाएगा. होली का त्योहर प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. होली से ठीक एक दिन पहले रात्रि को होलिका दहन होता है. उसके अगले दिन प्रात: से ही लोग रंग
श्रावण संक्रांति में सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे. श्रावण संक्रान्ति का समय 16 जुलाई 2025 को आरंभ होगा. संक्रांति के पुण्य काल समय दान, जप, पूजा पाठ इत्यादि का विशेष महत्व होता है इस समय पर किए गए दान पुण्य का कई
चैत्र संक्रांति में सूर्य, 14 मार्च 2025 , के दिन, मीन राशि में प्रवेश करेंगे. चैत्र संक्रांति में स्नान, दान, जप इत्यादि का विशेष पुण्य काल सांय काल बाद से आरंभ हो जाएगा. इस पुण्य काल में दान- स्नान आदि कार्य करने अति
ज्येष्ठ संक्रांति में सूर्य वृष राशि में प्रवेश करेंगे यह संक्रांति 15 मई, 2025 को आरंभ होगी. इस पुण्य काल के समय दान, स्नान एवं जप करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है. इस मास में संक्रान्ति, गंगा दशहरा व निर्जला
आषाढ़ संक्रांति में सूर्य मिथुन राशि में प्रेवश करेंगे. आषाढ़ संक्रान्ति 15 जून 2025 को मनाई जाएगी. संक्रांति पुण्य काल समय में दान-धर्म,कर्म के कार्य किये जाते हैं. जिनसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है. आषाढ संक्रांति के
आदि शंकराचार्य एक महान हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे. आदि शंकराचार्य जी का जन्म 788 ईसा पूर्व केरल के कालड़ी में एक नंबूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इसी उपलक्ष में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु
गंगा जयंती हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है. वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 2025 में यह जयन्ती 05 मई को मनाई जाएगी. गंगा जयंती
वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 2025 में यह जयन्ती 05 मई, को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है. भगवान श्री नृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं, पौराणिक मान्यता एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने नृसिंह
वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयन्ती के रुप मे मनाया जाता है. महावीर जयंती 21 अप्रैल 2024, के दिन मनाई जाएगी. वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री आदिनाथ की परंपरा में चौबीस वें तीर्थंकर हुए थे. इनका जीवन
वाराह अवतार भगवान विष्णु का ही एक अवतार है. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया में वराह जयंती मनाई जाती है. भगवान के इस अवतार में श्री हरि पापियों का अंत करके धर्म की रक्षा करते हैं. वाराह अवतार जयंती भगवान के इसी
देवी मातंगी जयंती के उपलक्ष पर माता की पूजा अर्चना की जाती है. इस पावन अवसर पर जो भी कोई माता की पूजा करता है वह सर्व-सिद्धियों का लाभ प्राप्त करता है. मातंगी की पूजा व्यक्ति को सुखी जीवन का आशीर्वाद प्रदान करती है. इस
त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं. इनकी उपासना भव-बन्ध-मोचन कही जाती है. इस वर्ष त्रिपुर भैरवी 15 दिसंबर 2024 के दिन मनाई जानी है. इनकी उपासना से व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति होती है.
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रुप में मनाया जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री विष्णु के अन्य रुप भगवान वामन का अवतार हुआ था.
माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं. ललिता जयंती का व्रत भक्तजनों के लिए बहुत ही फलदायक होता है. श्री ललिता जयंती इस वर्ष 24 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी. भक्तों में मान्यता है कि यदि कोई इस दिन मां ललिता देवी की पूजा
दस महा विद्याओं में छिन्नमस्तिका॒ माता छठी महाविद्या॒ कहलाती हैं. इस वर्ष देवी छिन्नमस्तिका जयंती 21 मई 2024, के दिन मनाई जाएगी. यह जयंती भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाई जाती है. माता के सभी भक्त इस दिन माता की विशेष
माँ भुवनेश्वरी शक्ति का आधार हैं तथा प्राणियों का पोषण करने वाली हैं. माँ भुवनेश्वरी जी की जयंती इस वर्ष 15 सितंबर 2024,के दिन मनाई जाएगी. यही शिव की लीला-विलास सहभागी हैं. इनका स्वरूप कांति पूर्ण एवं सौम्य है. चौदह
भगवान विष्णु के कूर्म अवतार रूप में वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन कूर्म जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष कूर्म जयंती 22 मई 2024 के दिन मनाई जाएगी. हिंदु धार्मिक मान्यता अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने कूर्म(कछुए)
मां धूमावती जयंती के विशेष अवसर पर दस महाविद्या का पूजन किया जाता है. 14 जून 2024, को धूमावती जयंती मनाई जाएगी. धूमावती जयंती समारोह में धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है. काले वस्त्र में काले
इस वर्ष महाकाली जयंती 26 अगस्त 2024 के दिन मनाई जाएगी. मधु और कैटभ के नाश के लिये ब्रह्मा जी के प्रार्थना करने पर देवी जगजननी ने महाविद्या काली मोहिनी शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं. महामाया भगवान श्री हरि के नेत्र,
वर्ष 2024 में 10 मई, वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को परशुराम जयन्ती मनाई जाएगी. वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की रात में पहले प्रहर में भगवान परशुराम का जन्म हुआ था. इसलिए यह जयन्ती तृतीया तिथि के प्रथम प्रहर में
महातारा जयंती पूरे देश में उत्साह के साथ मनाई जाती है. इस वर्ष महातारा जयंती 17 अप्रैल 2024, के दिन मनाई जाएगी.चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती