मां पीताम्बरा जयंती : जानें पूजा विधि और पीताम्बरा स्त्रोत
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी पीताम्बरा का प्राकट्य दिवस माना जाता है. इसी कारण यह दिन मां पीताम्बरा जयंती के रूप में पूरे भारतवर्ष में भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है. देवी पिताम्बरा को बगलामुखी नाम से भी पूजा जाता है। इस दिन भक्त माता के निमित्त विशेष व्रत, उपासना एवं पूजा-अर्चना करते हैं और मां पीताम्बरा का आशीर्वाद पाते हैं.
यह उत्सव विशेष रूप से उन श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण होता है जो जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति, शत्रुओं से रक्षा और आत्मबल की प्राप्ति हेतु मां पीताम्बरा की साधना करते हैं. इस दिन धार्मिक स्थलों और मंदिरों में बड़े आयोजन होते हैं जिनमें भजन संध्या, महायज्ञ, और रात्रिकालीन भगवती जागरण प्रमुख हैं. यह दिन देवी के शत्रु नाशिनी रूप की विशेष उपासना के लिए समर्पित होता है.
मां पीताम्बरा : स्तंभन और विजय की देवी
मां पीताम्बरा को स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. इसका अर्थ है कि वह अपने भक्तों के जीवन में आने वाले भय, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं तथा उन्हें जीवन में स्थिरता, सफलता और विजय प्रदान करती हैं. उनका प्रिय रंग पीला होता है और इसी कारण उन्हें पीताम्बरा (पीत+अम्बरा = पीले वस्त्र धारण करने वाली) कहा जाता है. पूजा में पीले फूल, हल्दी, पीली मिठाई, पीला वस्त्र आदि विशेष महत्व रखते हैं.
मां का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और आकर्षक होता है देवी का वर्ण स्वर्ण जैसे दमकता हुआ पीला है. उपासक को इस दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए और पूजा सामग्री में भी पीले रंग का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
दस महाविद्याओं में स्थान और साधना महत्व
देवी पीताम्बरा को दश महाविद्याओं में आठवां स्थान प्राप्त है. वे बगला मुखी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं. "बगला" शब्द संस्कृत के वल्गा शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है "दुल्हन". देवी का स्वरूप अत्यंत सौम्य और दिव्य होते हुए भी शक्तिशाली और रक्षणशील है. वे शत्रुनाश, वाद-विवाद में विजय, वाकसिद्धि और आकस्मिक संकटों से रक्षा के लिए उपासना की जाती हैं. उनकी कृपा से साधक को तीनों लोकों में कोई पराजित नहीं कर सकता.
मां पीताम्बरा की कथा
मां पीताम्बरा जी की एक प्रसिद्ध पुराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में एक बार एक भीषण ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ जिससे समस्त सृष्टि नष्ट होने की कगार पर पहुंच गई. इस संकट से व्याकुल होकर भगवान विष्णु ने भगवान शिव से सहायता मांगी. शिव ने उन्हें बताया कि इस संकट को केवल शक्ति स्वरूपिणी देवी ही रोक सकती हैं. तब विष्णु जी ने हरिद्रा सरोवर के निकट जाकर कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महात्रिपुरसुंदरी देवी ने अपने हृदय से एक दिव्य तेज उत्पन्न किया, जिससे पीताम्बरा देवी का प्राकट्य हुआ. उन्होंने अपने त्रैलोक्य स्तम्भिनी स्वरूप से उस महाविनाशक तूफान को रोक दिया और सृष्टि की रक्षा की.
यही कारण है कि देवी को ब्रह्मास्त्र रूपिणी और विज्ञानमयी सिद्ध विद्या कहा जाता है. तांत्रिक साधना में इन्हें अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है.
मां पीताम्बरा की पूजा विधि
मां पीताम्बरा की आराधना के लिए इस दिन श्रद्धालु प्रातःकाल स्नान कर पीले वस्त्र धारण करते हैं और पूर्व दिशा की ओर मुख कर पूजा करते हैं. एक पवित्र स्थान पर चौकी बिछाकर उस पर पीला वस्त्र बिछाएं और मां का चित्र या यंत्र स्थापित करें. इसके बाद आचमन, स्वस्तिवाचन, और दीप प्रज्ज्वलन करें.
पूजा में मुख्य सामग्री होती है
पीले चावल
हल्दी (हरिद्रा)
पीले फूल
नारियल
दक्षिणा
इसके पश्चात संकल्प लेकर मां की विधिवत आराधना की जाती है. साधना में ब्रह्मचर्य और मानसिक एकाग्रता का विशेष महत्व होता है. मां का यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है, किंतु विशेष प्रभाव के लिए इसे ताम्रपत्र या चांदी पर अंकित किया जा सकता है. माँ के मंत्रों का जप दुखों और बाधाओं को दूर करता है.
मां की कृपा से शत्रु नष्ट होते हैं. जीवन में स्थिरता, विजय और आत्मबल प्राप्त होता है. वाद-विवाद, मुकदमे और झूठे आरोपों में विजय मिलती है.मानसिक शांति, रोग मुक्ति और समस्त कष्टों से राहत मिलती है. साधक को हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है.
मां पीताम्बरा की जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जागरण का अवसर है. यह दिन साधकों को अपनी आंतरिक शक्ति से जुड़ने, जीवन की बाधाओं से लड़ने और देवी शक्ति प्राप्ति का शुभ अवसर मिलता है।
।। बगलामुखी स्तोत्र ।।
ऊँ मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्नविद्यां,
सिंहासनो-परिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं
देवीं भजामि धृत-मुद्गर वैरिजिव्हाम् ।।१।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवी
वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन
पीताम्बराढयां द्विभुजां भजामि ।।२।।
चलत्कनक-कुण्डलोल्लसित चारु गण्डस्थलां
लसत्कनक-चम्पक-द्युति-मदिन्दु-बिम्बाननाम्।
गदाहत-विपक्षकां-कलित-लोल-जिह्वाचंलाम्।
स्मरामि बगलामुखीं विमुख-वाङ्ग-मनः -स्तम्भिनीम् ।।३।।
पीयूषोदधि-मध्य-चारु-वीलसद-रत्लोज्जवले मण्डपे
तत्सिंगहासन-मूल-पतित-रिपुं प्रेतसनाध्यासिनीम।
स्वर्णाभां-कर पीडितारि-रसनां भ्रामयद गदां विभ्रमाम
यस्तवां-ध्यायति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः ।।४।।
देवि त्वच्चरणाम्बुजार्चन-कृते यः पीतपुष्पान्जलीन्।
भक्तया वामकरे निधाय च मनुं मंत्री मनोज्ञाक्षरम्।
पीठध्यानपरोऽथ कुम्भक-वषाद्वीजं स्मरेत् पार्थिवः।
तस्यामित्र-मुखस्य वाचि हृदये जाडयं भवेत् तत्क्षणात् ।।५।।
वादी मूकति राङ्गति क्षितिपतिवैष्वानरः शीतति।
क्रोधी शाम्यति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति।
गर्वी खर्वति सर्वविच्च जड्ति त्वद्यन्त्रणा-यंत्रितः।
श्रीनित्ये बगलामुखी प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नमः ।।६।।
मन्त्रस्तावदलं विपक्षदलनं स्तोत्रं पवित्रं च ते
यन्त्रं वादिनियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं च चित्रं च ते।
मातः श्रीबगलेतिनामललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे
त्वन्नाम-ग्रहणेन संसदि मुखस्तंभों भवेद् वादिनाम ।।७।।
दुष्ट-स्तम्भन मुग्र-विघ्न-शमनं दारिद्रय-विद्रावणम
भुभ्रित्संनमनं च यन्मृगद्रिषां चेतः समाकर्षणम्।
सौभाग्यैक-निकेतनं समदृषां कारुण्य-पुर्णेक्षणे
मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः ।।८।।
मातर्भन्जय मद-विपक्ष-वदनं जिव्हां च संकीलय
ब्राह्मीं मुद्रय दैत्य-देव-धिषणामुग्रां-गतिं स्तम्भय।
शत्रूंश्रूचर्णय देवि तीक्ष्ण-गदया गौरागिं पीताम्बरे
विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारूण्य-पूर्णेक्षणे ।।९।।
मात्भैरवी भद्रकालि विजये वाराहि विष्वाश्रये
श्रीविद्ये समये महेशि बगले कामेशि वामे रमे।
मातंगि त्रिपुरे परात्पर-तरे स्वर्गापवर्ग-प्रदे
दासोऽहं शरणागतः करुणया विश्वेश्वरि त्राहिमाम् ।।१०।।
संरम्भे चैरसंघे प्रहरणसमये बन्धने व्याधि-मध्ये
विद्यावादे विवादे प्रकुपितनृपतौ दिव्यकाले निशायाम् ।
वश्ये वा स्तम्भने वा रिपुवध-समये निर्जने वा वने वा
गच्छस्तिष्ठं-स्त्रिकालं यदि पठति शिवं प्राप्नुयादाषु-धीरः ।।११।।
नित्यं स्तोत्र-मिदं पवित्र-महि यो देव्याः पठत्यादराद्
धृत्वा यन्त्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले।
राजानोऽप्यरयो मदान्ध-करिणः सर्पाः मृगेन्द्रदिकः
ते वै यान्ति विमो-हिता रिपु-गणाः लक्ष्मीः स्थिरा-सिद्धयः ।।१२।।
त्वं विद्या परमा त्रिलोक-जननी विघ्नौघसिंच्छेदिनी
योषाकर्षण-कारिणी त्रिजगतामा-नन्द सम्वर्धनि
दुष्टोच्चाटन-कारिणी जनमनः सम्मोह-संदायिनी
जिव्हा-कीलन भैरवि विजयते ब्रह्मादिमन्त्रो यथा ।।१३।।
विद्याः लक्ष्मीः सर्व-सौभाग्यमायुः
पुत्रैः पौत्रैः सर्व साम्राज्य-सिद्धिः।
मानं भोगो वष्यमारोग्य-सौख्यं
प्राप्तं-तत्तद्भूतलेऽस्मिन्नरेण ।।१४।।
यत्कृतं जपसन्नाहं गदितं परमेश्वरी।
दुष्टानां निग्रहार्थाय तद्गृहाण नमोऽस्तुते ।।१५।।
ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्।
गुरुभक्ताय दातव्यं न देयं यस्य कस्यचित् ।।१६।।
पितंबरां च द्वि-भुजां, त्रि-नेत्रां गात्र-कोमलाम्।
शिला-मुद्गर-हस्तां च स्मरेत्तां बगलामुखीम् ।।१७।।
।। बगलामुखी स्तोत्र सम्पूर्ण ।।