स्कंद षष्ठी 2024 - स्कंद षष्ठी पर ऎसे करें भगवान कार्तिकेय का पूजन

हिन्दू पंचांग अनुसार षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रुप में मनाई जाती है. षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द की जन्म तिथि होती है. भगवान स्कंद की षष्ठी तिथि को दक्षिण भारत में बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है. दक्षिण भारत में स्कंद भगवान का पूजन अत्यंत ही विशाल रुप से होता है. स्कंद भगवान अनेकों नाम से जाना जाता है. जहां उत्तर भारत में ये कार्तिकेय कहलाते हैं वहीं दक्षिण भारत में इन्हें स्कंद कहा जाता है.

स्कंद षष्ठी तिथि का उत्सव श्रृद्धा और विश्वास से मनाया जाता है. इस दिन कृतिकाओं का पूजन होता है. साथ ही पूजा में भगवान स्कंद का अभिषेक होता है. स्कंद जी के साथ ही शिव परिवार का पूजन भी होता है. भगवान स्कंद को कुछ स्थानों पर विवाहित तो कुछ स्थानों पर अविवाहित बताया गया है. उत्तर भारत में जहां भगवान कार्तिकेय के अविवाहित होने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं. तो उसी स्थान में दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय- मुरुगन स्वामी को अपनी दो पत्नियों के साथ दर्शाया गया है. इनकी दो पत्नियों में देवसेना और वल्ली का नाम आता है.

स्कंद भगवान के अन्य नाम

स्कंद षष्ठी के दिन भक्ति भाव से पूजन किया जाता है. इस दिन व्रत का नियम भी किया जाता है. व्रत में फलाहार का सेवन होता है. भगवान स्कंद देव का पूजन अर्चना करते हैं और व्रत एवं उपवास रखते हैं. स्कंद भगवान को अनेकों नामों जैसे कार्तिकेय, मुरुगन व सुब्रहमन्यम इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है. इस पर्व को विशेष रुप से मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. इस उत्सव के समय पर मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. स्कन्द देव को भगवान शिव और देवी पार्वती का पुत्र बताया गया है, यह गणेश के भाई हैं. इन्हें देवताओं का सेनापति बनाए गए.

स्कंद षष्ठी का व्रत कब और कैसे करें

स्कंद भगवान का पूजन कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि में किया जाता है. प्रत्येक मास में आने वाली षष्ठी तिथि का पूजन परिवार को सुख समृद्धि दिलाने वाला होता है. स्कंदपुराण में स्कंद षष्ठी का व्रत और इसकी महिमा का वर्णन मिलता है. दक्षिण भारत में इस व्रत का ज्यादा प्रचलन है. वहां कुछ स्थानों पर इस व्रत को कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है.

स्कंद षष्ठी व्रत का पालन कभी भी किया जा सकता है. इस व्रत व्रत रख कर षष्ठी को कार्तिकेय की पूजा की जाती है. साल के किसी भी मास की षष्ठी को यह व्रत आरंभ किया जा सकता है. खासकर चैत्र, आश्विन, मार्गशीर्ष और कार्तिक मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन अधिक है.

इस अवसर व्रत के आरंभ करने से पूर्व व्रत का संकल्प लिया जाता है. इस दिन षष्ठी तिथि के अवसर पर स्कंद भगवान जी के साथ ही शिव-पार्वती की पूजा की जाती है. पूरे वर्ष इस व्रत का पालन करने के उपरांत व्रत का उद्यापन करना चाहिए. मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. स्कंद षष्ठी की कथा के अनुसार स्कंद षष्ठी के व्रत से ही अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं.

पौराणिक कथाओं में एक कथा च्यवन ऋषि की भी आती है जिनमें उनकी आंखों की रोशनी को पाने के लिए स्कंद भगवान का पूजन किया था. उन्हें आंखों की रोशनी इस व्रत के प्रभाव से मिलती है. स्कंद षष्ठी व्रत की महिमा से ही प्रियव्रत को संतान का सुख प्राप्त होता है. इस प्रकार षष्ठी व्रत के महत्व के उदाहरण मिलते हैं.

स्कंद षष्ठी पूजा नियम

  • स्कंद षष्ठी के दिन स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • भगवान स्कंद के नामों का स्मरण और जाप करना चाहिए.
  • पूजा स्थल पर स्कंद भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करना चाहिए. साथ में भगवान शिव, माता गौरी, भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर भी स्थापित करनी चाहिये.
  • भगवान कार्तिकेय को अक्षत, हल्दी, चंदन से तिलक लगाना चाहिए.
  • भगवान के समक्ष पानी का कलश भर के स्थापित करना चाहिए और एक नारियल भी उस कलश पर रखना चाहिए.
  • पंचामृत, फल, मेवे, पुष्प इत्यादि भगवान को अर्पित करने चाहिए. भगवान के समक्ष घी का दीपक जलाना चाहिए.
  • भगवान को इत्र और फूल माना चढ़ानी चाहिये. स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करना चाहिए.
  • स्कंद भगवान आरती करनी चाहिए और भोग लगाना चाहिए.
  • भगवान के भोग को प्रसाद सभी में बांटना चाहिए और खुद भी ग्रहण करना चाहिए. भगवान स्कंद का पूजन करने से कष्ट दूर होते हैं और परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है.

स्कंदषष्ठी व्रत के प्रभाव से मिलता है संतान सुख

स्कन्द षष्ठी व्रत करने से नि:संतानों को संतान की प्राप्ति होती है, सफलता, सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. स्कंद षष्ठी का व्रत संतान जन्म और उसके सुखद भविष्य के लिए किया जात है. जो दंपति संतान सुख से वंचित हैं या जिन्हें किसी कारण से संतान का सुख नही पा रहा हो उनके लिए ये व्रत अत्यंत ही प्रभावशाली होता है.

स्कंदषष्ठी व्रत महिमा

स्कंद षष्ठी पूजा दु:ख का निवारण करती है. इससे जीवन में मौजूद दरिद्रता समाप्त होती है. इस दिन व्रत का पालन करने से पापों की शांति होती है. विधि विधान से पूजा करने पर विजय की प्राप्ति होती है. कार्यों में सफलता मिलती है. रुके हुए काम बनते हैं. काम में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं. रोग या कोई ऎसी व्याधी जो लम्बे समय से असर डाल रही हो वह भी समाप्त होती है. षष्ठी पूजा में एक अखंड दीपक जलाने से जीवन में मौजूद नकारात्मकता भी शांत होती है. स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करने से व्रत का फल प्राप्त होता है.

नव ग्रह की शांति में भी स्कंद षष्ठी व्रत का प्रभाव बहुत होता है. धर्म शास्त्रों में स्कंद षष्ठी तिथि के लिए मंगल शांति के पूजन के लिए अत्यंत उत्तम बताया गया है. इस दिन भगवान कार्तिकेय का पूजन करने से व्यक्ति में साहस और पराक्रम की वृद्धि होती है. ज्योतिष के अनुसार अगर किसी भी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल ग्रह कमजोर हो या शुभ न हो. तो उस स्थिति में ग्रह की अशुभता से बचने के लिए कार्तिकेय भगवान का पूजन करना अत्यंत शुभ फल देने वाला होता है. व्यक्ति को स्कंद भगवान का पूजन करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है.