ईशान व्रत और इसका महत्व 2024

ईशान व्रत अपने नाम के अनुरुप भगवान शिव से संबंधित है क्योंकि भगवान शिव का एक अन्य नाम ईशान भी है. इसी के साथ वास्तुशास्त्र में भी ईशान संबंधित दिशा की शुभता सर्वव्यापी है यह दिशा आपके लिए शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बनती है. इस व्रत में शिवलिंग की पूजा की जाती है और मुख्य रुप से शिवलिंग के बाँयी ओर विष्णु हों और दाँयी ओर सूर्य देव को स्थापित किया जाता है तब पूजन आरंभ होता है.

इस वर्ष ईशान व्रत उत्सव 23 जनवरी 2024 को मंगलवार के दिन मनाया जाएगा.

इस व्रत में दान का अत्यंत महत्व होता है. और गाय का दान इस व्रत में मुख्य रुप से बताया गया है. परंतु आज के संदर्भ में ये संभव हो नहीं सकता तो इस के लिए यदि किसी ब्राह्मण को दक्षिणा उस दान के तुल्य ही दे दी जाए तो भी इसका फल अवश्य प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त यदि किसी धातु जिसमें पीतल, चांदी या स्वर्ण से बनी गाय का जोड़ा दान दिया जाए तो भी इसका बहुत महत्व रहा है. इस व्रत को एक लम्बे समय किया जाने का विधान है, लगभग 5 वर्षों तक करने की बात कही जाती है.

ईशान व्रत कब आता है

ईशान व्रत को पौष माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन किया जाता है. इस व्रत के विषय में कई अन्य बातें भी प्रचलित हैं, जिसके अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी होने और उसके अगले दिन पूर्णिमा तिथि के दिन गुरुवार(बृहस्पतिवार) का दिन होना बहुत अच्छा माना जाता है. इस समय पर व्रत को करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है.

एक अन्य मत के अनुसार ईशान व्रत को तब करना चाहिए जब पौष माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के अगले दिन पूर्णिमा तिथि को पुष्य नक्षत्र भी हो. इस समय पर भी ईशान व्रत की महिमा अत्यधिक बढ़ जाती है.

ईशान व्रत पूजा विधि

ईशान व्रत को करने वाले साधक को चाहिए कि वह चतुर्दशी तिथि को स्नानादि करके व्रत का संकल्प धारण करे. दिन भर भगवान शिव का का स्मरण करते हुए उपवास करें. दूसरे दिन पुष्य नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने पर शुभासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. यज्ञ वेदी का निर्माण करना चाहिए इसके साथ ही अपने समक्ष वेदी पर साफ उज्जवल सफेद वस्त्र बिछाना चाहिए. उसमे चारों दिशाओं मे अक्षत रखना चाहिए. उसके बाद चारों के बीच मे भी एक थोड़ा अक्षत का रखना चाहिए. पूर्व दिशा वाले अक्षत की ढेरी में भगवान विष्णु का, दक्षिण दिशा वाले स्थान मे सूर्य का, पश्चिम दिशा वाले मे ब्रह्मा का, उत्तर दिशा वाले स्थान मे रुद्र का और बीच वाले मे ईशान का आवाहन करना चाहिए. धूप, दीप ,गंध, अक्षत आदि से सभी का विधिवत पूजन करना चाहिए. यदि स्वयं संभव न हो सके तो किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा इस पूजन को करवाना चाहिए.

पूजन करने के पश्चात ब्राह्मणों को सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा अवश्य प्रदान करनी चाहिए. धर्म ग्रंथों के अनुसार ईशान व्रत में ब्राह्मण को दान स्वरुप एक गाय तथा एक बैल देना चाहिए. उसके पश्चात भोजन और दक्षिणा से सन्तुष्ट करना चाहिए. इस प्रकार ईशान व्रत को पाँच वर्ष तक करना अत्यंत शुभफलदायी माना गया है. पौष शुक्ल चतुर्दशी-पूर्णिमा को व्रत करने पर पहले साल में एक गाय एक बैल का दान करना चाहिए, दूसरे वर्ष दो गाय एक बैल का दान करना चाहिए. तीसरे वर्ष तीन गाय एक बैल का दान करना चाहिए. चौथे वर्ष चार गाय एक बैल का दान करना चाहिए और पाँचवे वर्ष पाँच गाय एक बैल का दान करना श्रेयस्कर माना गया है.

ईशान व्रत माहात्म्य

ईशान व्रत की महिमा का प्रभाव समस्त दिशाओं को आलोकित करने वाला है. इस दिन पूजन एवं यज्ञ जैसे कार्य करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है. इस व्रत का आह्वान करने से घर में सब प्रकार का सुख और लक्ष्मी की वृद्धि होती है. यह घर की नकारात्मकता को दूर करने वाला होता है.

ईशान व्रत में भगवान शिव के ईशान रुप का पूजन होता है. शिवलिंग का पूजन विधि-विधान से किया जाता है. यज्ञवेदी का निर्माण एवं देवों की स्थापना एवं आहवान किया जाता है. इस व्रत के द्वारा भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है.

सूर्य देव का पूजन भी इस ईशान पूजन में मुख्य रुप से होता है. भगवान सूर्य जगत को आलौकित करने वाले हैं. आत्मा को प्रकाशित करते हैं. अंधकार को समाप्त करके समस्त दिशाओं में अपनी शुभता को फैलाने वाले होते हैं. भगवान सूर्य को खखोल्क नामक से भी जाना जाता है. खखोल्क उनका प्रभामंण्डल है. भगवान सूर्य का पूजन व्याधियों को दूर करने वाला होता है. मोक्ष चाहने वालों के लिए मुक्ति का मार्ग दिखाता है. खखोल्क नामक मंत्र का इस समय पर जाप करने से सभी कष्टों की शांति होती है. यह मंत्र सदैव उच्चारण और स्मरण करने योग्य होता है. "ॐ नमः खखोल्काय" नामक मंत्र के स्मरण मात्र से ही सभी रोगों का नाश होता है. ईशान व्रत के समय पर इस मंत्र का जाप अत्यंत उत्तम होता है.

भगवान विष्णु का पूजन भी ईशान व्रत में किया जाता है. भगवान विष्णु का स्मरण करके व्रत को संपन्न किया जाता है. व्रत में भगवान विष्णु के मंत्र जाप एवं उनका आहवान किया जाता है. इस प्रकार समस्त देवों का पूजन करने से दिशाओं की शांति और शुभता आती है.

ईशान व्रत का पूजन और व्रत करने से व्यक्ति को सैकडौं गुना फल मिलता है. इसी प्रकार अगर व्यक्ति किसी भी प्रकार के वास्तु दोष से प्रभावित हो तो उसके लिए ईशान व्रत करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है. व्रत के अनुष्ठान को किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा कराया जाना चाहिए और सभी नियमों का पालन करते हुए यह पूजन संपन्न करना चाहिए.