करक चतुर्थी कथा और महत्व

करक चतुर्थी का उत्सव कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में मनाया जाता है. करक चतुर्थी की रस्में क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग हों, लेकिन सार एक ही है जो भक्ति, आस्था और विश्वास को दर्शाने वाला समय होता है. 

करक चतुर्थी का व्रत गणेश करक चतुर्थी के रुप में भी रखा जाता है और इस दिन को करवा चौथ के रुप में भी रखा जाता है जो सौभाग्य सुख के लिए किया जाता है. करक चतुर्थी व्रत एक कठिन व्रतों में से भी एक होता है जो कुछ लोगों द्वारा विशेष रूप से बिना पानी के रखा जाता है. करक चतुर्थी, विवाहित हिंदू महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो ज्यादातर भारत के उत्तरी क्षेत्र में मनाया जाता है. इसे करवा चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. करवा या करक का अर्थ है मिट्टी का बर्तन जिसके माध्यम से पानी चढ़ाया जाता है, जिसे चंद्रमा को अर्घ कहा जाता है. यह त्यौहार विवाह का उत्सव भी है, पत्नियां उपवास रखती हैं, जिसे निर्जला व्रत के रूप में जाना जाता है, जो सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चांद दिखने तक चलता है. करक चतुर्थी उसी दिन पड़ता है जिस दिन संकष्टी चतुर्थी होती है, जो भगवान गणेश को समर्पित एक व्रत का दिन है.  

करक चतुर्थी तिथि और समय

पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार, करक चतुर्थी कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. करक चतुर्थी, जिसे करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, वैवाहिक बंधन की मजबूती का प्रतीक है और इसका पता महाभारत की कहानी से लगाया जा सकता है, जब सावित्री ने अपने पति की आत्मा के लिए मृत्यु के देवता, भगवान यम से प्रार्थना की थी.

महाकाव्य का एक और अध्याय पांडवों और उनकी पत्नी द्रौपदी के बारे में है, जिन्होंने अर्जुन द्वारा कुछ दिनों के लिए प्रार्थना और ध्यान करने के लिए नीलगिरी की यात्रा करने के बाद अपने भाई कृष्ण की सहायता मांगी थी. उन्होंने उसे देवी पार्वती की तरह ही अपने पति शिव की सुरक्षा के लिए कठोर व्रत रखने का निर्देश दिया. द्रौपदी ने इसका पालन किया और अर्जुन जल्द ही सुरक्षित घर लौट आए.तो, इस त्यौहार के पीछे का महत्व यह है कि व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में प्रेम ओर सुख का भाव सदैव बना रहता है. 

करक चतुर्थी : गणेश भगवान की कथा 

कार्तिक गणेश चतुर्थी व्रत कथा, इसे पढ़ने से सौ यज्ञों का फल मिलता है. चतुर्थी तिथि के स्वामी विघ्नहर्ता भगवान गणेश हैं. इस तिथि पर भगवान शिव के पुत्र गणेशजी की पूजा करने से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और कथा पढ़ने और सुनने मात्र से सौ यज्ञों के बराबर पुण्य का फल मिलता है. हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व है. आइए जानते हैं कार्तिक मास की करक चतुर्थी की व्रत कथा 

कार्तिक मास गणेश चतुर्थी तिथि व्रत कथा अनुसार देवी पार्वतीजी ने कहा- हे पुत्र! कार्तिक मास की गणेश चतुर्थी पर किस गणेश की पूजा करनी चाहिए, उन्होंने कहा- गिरजा नंदिनी, कार्तिक में विकट नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए, चंद्रोदय के समय अध्र्य भोजन करना चाहिए. प्राचीन काल में अगस्त्य मुनि नाम के एक ऋषि थे, वे समुद्र के किनारे कठोर तपस्या कर रहे थे, कुछ समय पश्चात एक मादा पक्षी अपने अंडों से बच्चे निकाल रही थी, उसी समय समुद्र उफान पर आ गया और अंडों को बहा ले गया. पक्षी बहुत दुखी हुआ और उसने प्रण किया कि वह समुद्र का पानी खत्म कर देगा और अपनी चोंच से समुद्र के पानी को फेंकना शुरू कर दिया. इस प्रकार बहुत समय बीत गया परंतु समुद्र का पानी कम नहीं हुआ तो वह दुखी होकर अगस्त्य मुनि के पास गया और उनसे समुद्र को सुखाने की प्रार्थना की, तब अगस्त्य मुनि को चिंता हुई कि मैं समुद्र को कैसे पी पाऊंगा. तब महर्षि ने गणेशजी का स्मरण किया और करक चतुर्थी का व्रत किया. तीन माह तक व्रत रखने से गणेशजी प्रसन्न हुए. श्री गणेशजी के व्रत की कृपा से अगस्त्य मुनि ने प्रसन्नतापूर्वक समुद्र को पी लिया. इस व्रत के प्रभाव से अर्जुन ने निर्गत, कवच आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त की. श्री गणेश के ऐसे वचन सुनकर पार्वतीजी प्रसन्न हो गईं और सोचने लगीं कि मेरा पुत्र संसार में पूजनीय है और सब सिद्धियों को देने वाला है. इस कथा का माहात्म्य बताते हुए श्री कृष्णजी ने कहा- हे राजन तुम कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि का व्रत करो. श्री कृष्ण के ऐसे वचन सुनकर धकराज ने भक्तिपूर्वक व्रत किया और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया.  

करक चतुर्थी साहूकार कथा

प्राचीन समय की कथा है. एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी, 7 बेटों, 7 बहुओं और एक बेटी के साथ रहता था. साहूकार की बेटी का नाम करवा था. साहूकार के सातों बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे. बहन के खाए बिना वे भोजन नहीं करते थे, एक बार करक चतुर्थी कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ा. यह व्रत साहूकार की पत्नी, बेटी और सातों बहुओं ने किया. शाम को जब करवा के भाई घर आए और भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से कहा कि वह भी उनके साथ भोजन करे लेकिन बहन ने भाइयों से कहा, आज मेरा करक चतुर्थी का व्रत है, मैं चांद के दर्शन और पूजन के बाद ही जल और भोजन ग्रहण करूंगी. यह सुनकर भाइयों ने भी भोजन नहीं किया और चांद निकलने का इंतजार करने लगे. कुछ देर इंतजार करने के बाद जब चांद नहीं निकला तो अपनी बहन को भूखी-प्यासी देखकर भाइयों ने एक उपाय सोचा. 

सभी भाई नगर से बाहर गए और एक पेड़ पर चढ़ गए और वहां अग्नि जला दी और घर आकर उसने अपनी बहन से कहा, चांद निकल आया है, चलो दर्शन करें और अर्ध्य देकर जल पिएं. करवा ने यह बात अपनी भाभी से कही, चांद निकल आया है. चलो दर्शन करें और जल पिएं. भाभी ने समझाया कि उसके भाइयों ने नगर के बाहर एक पेड़ पर अग्नि जला दी है, और उसे चांद कह रहे हैं. लेकिन करवा ने उसकी बात नहीं मानी और उसने अग्नि को ही चांद समझकर अपना व्रत तोड़ दिया. व्रत खोलते ही करवा को ससुराल से समाचार मिला, उसके पति की मृत्यु हो गई है. यह सुनकर करवा के होश उड़ गए. तब उसकी बड़ी भाभी ने उसे समझाया, तुम्हारा व्रत टूट गया है, इसीलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ है. करवा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने प्रण किया कि वह अपनी पतिव्रता भक्ति से अपने पति को जीवित कर लेगी.

और उसने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया. वह प्रतिदिन शव के पास बैठती और उस पर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रहती. ऐसा करते-करते एक वर्ष बीत जाता है और करक चतुर्थी आ जाता है और वह विधि विधान से व्रत करती है जिसके प्रभाव से उसका पति जीवित हो जाता है. तब से सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए करक चतुर्थी का व्रत किया जाता है.