शनि-त्रयोदशी : जानें शनि त्रयोदशी व्रत विधि और कथा

शनि त्रयोदशी का पर्व पंचाग अनुसार त्रयोदशी तिथि के दिन शनिवार के दिन पड़ने पर मनाया जाता है. शनि त्रयोदशी का समय भगवान शिव और शनि देव के पूजन का विशेष संयोग होता है. इस समय पर भगवान शिव के साथ शनि देव का पूजन करने से समस्त प्रकार के रोग दोष शांत होते हैं. इस दिन विशेष अनुष्ठान कार्यों को भी किया जाता है. शनि त्रयोदश का व्रत पंचांग तिथि अनुसार कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष में दोनों ही समय पर मनाया जाता है. शनि त्रयोदशी तिथि के समय पर शनि देव का पूजन करने से शनि संबंधी पीड़ा शांत होती है और जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. इस समय पर भगवान शिव का पूजन करने से व्यक्ति को भक्ति एवं सिद्धि का योग प्राप्त होता है. 

शनि त्रयोदशी क्या है?

शनिवार के दिन त्रयोदशी का योग शनि त्रयोदश के रुप में मनाया जाता है. यह दिन भगवान शनि का है और उनके लिए प्रार्थना करने से शनि ग्रह के खराब प्रभाव से पीड़ित व्यक्तियों को आराम मिलता है. यह एक बहुत ही शुभ दिन है और इस दिन शनि प्रार्थना करना बहुत फायदेमंद माना जाता है.  

शनि त्रयोदशी कथा 

शनि त्रयोदश के दिन शनि देव का पूजन एवं भगवान शिव पूजन के साथ कथा को सुनने एवं पढ़ने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है. शनि त्रयोदश कथा अनुसार प्राचीन काल में एक नगम में धनवान सेठ निवास करता था. सेठ अपनी पत्नी सहित धन पूर्ण एवं सुखद जीवन को व्यतीत कर रहा होता है. सेठ कई तरह के धार्मिक कार्य भी करता था तथा दया भाव के साथ सभी का कल्याण करने में आगे रहता था. सेठ अपनी धन-दौलत का कुछ भाग गरीबों में बांटता था. वैभव पूर्ण जीवन जीने पर भी वह दयालु स्वभाव से सभी का सहयोग करता. अपने घर से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देता था.

जीवन में सभी सुख होने पर भी दोनों पति पत्नी को एक ही दुख था की उन्हें कोई संतान नहीं थी. संतान न होने का अत्यंत दुख उनके मन में उपस्थित था. निसंतान होने के दुख के कारण वह सदैव ही मन से निराश भाव में होते थे. एक बार उन दोनों ने तीर्थयात्रा पर जाने का विचार किया. अपना सारा काम काज उन्होंने अपने सेवकों पर छोड़ कर तीर्थ यात्रा करने के लिए निकल पड़े. मार्ग में उन्हें एक दिव्य तेजस्वी साधु महाराज के दर्शन होते हैं और वह उनका आशीर्वाद लेने के पश्चात यात्रा आरंभ करने का सोचते हैं. साधु महाराज उस समय समाधी में होते हैं तब दोनों पति पत्नी वहीं रुक जाते हैं और साधु महाराज के जागने का इंतजार करते हैं. 

एक लम्बा समय व्यतीत हो गया किंतु साधु महाराज अपनी समाधि से नहीं उठते हैं लेकिन वह दंपति वहीं पर बैठ रहे और साधु जी के जागने का इंतजार करते हैं. अगले दिन साधु महाराज अपनी साधना से जागते हैं. अपने सामने सेठ दंपति को देख कर उन के मन की बात जान लेते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं. साधु उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन दंपति को शनि त्रयोदश का व्रत रखने का आदेश देते हैं और उसके प्रभाव से संतान सुख की प्राप्ति का योग मिलने का वरदान भी देते हैं. तब दंपति ने भगवान शिव और शनि देव का पूजन एवं व्रत किया. शनि त्रयोदश के व्रत उपरांत सेठ दंपति को संतान का सुख प्राप्त होता है. 

शनि त्रयोदश से दूर होते हैं शनि दोष 

शनि त्रयोदश का समय शनि देव की पूजा ओर शनि के शुभ लाभ प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम होता है. जीवन में कई बार व्यक्ति को शनि देव के प्रकोप के कारण दुखों का सामना करना पड़ता है. कई तरह के उतार-चढ़ाव जीवन में बने रहते हैं. वैदिक ज्योतिष अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि कमजोर है या शनि का प्रभाव साढ़ेसाती अथवा शनि ढैय्या के रुप में उस पर पड़ रहा है तो उस समय व्यक्ति को शनि त्रयोदश का व्रत अवश्य करना चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से शनि के दुष्प्रभाव शांत होते हैं. शनि कर्म अनुसार फल देने वाले ग्रह हैं. जाने अंजाने किए गए सभी कर्मों का निर्धारण शनि द्वारा ही फल प्राप्ति के रुप में हमें प्राप्त होता है. ऎसे में शनि त्रयोदश का समय शनि उपासना करके कर्मों की शुद्धि भी प्रदान करता है. 

इस दिन शनि देव का भक्ति भाव से पूजन करना चाहिए. यदि भक्ति शृद्धा के साथ व्रत किया जाए तो शनि देव अपने भक्तों को शांति एवं सुख का आशीर्वाद देते हैं. अचानक होने वाली दुर्घटनाओं या जीवन के खतरों के किसी भी जोखिम को दूर करने में शनि देव सहायक बनते हैं. शनि के प्रतिकूल प्रभाव से पीड़ित व्यक्ति को बचाव हेतु शनि को खुश करने के लिए एक उपचारात्मक उपायों के रूप में शनि त्रयोदश की पूजा को करने की सलाह दी जाती हैं. शनि त्रयोदशी का समय शनि के नकारात्मक प्रभावों को कम करने का सबसे विशेष दिन और अचूक उपाय बन जाता है.

भगवान शनि मंत्र

"ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्"