चंद्र दोष कलंक चतुर्थी 2025 | Chandra Dosha Kalanka Chaturthi

भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी के रुप में मनाई जाती है इसे को भगवान श्रीगणेश चतुर्थी व्रत किए जाने का विधान रहा है. मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है तथा यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है. ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है.

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन मिथ्या कलंक देने वाला होता है. इसलिए इस दिन चंद्र दर्शन करना मना होता है. इस चतुर्थी को कलंक चौथ के नाम से भी जाना जाता है. 27 अगस्त 2025 को इस व्रत का प्रतिपादन होगा. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि पर चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक के भागी बने.

कलंक चौथ कथा | Kalanka Chauth Story

द्वारिकापुरी में सत्राजित नाम का एक सूर्यभक्त निवास करता था उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उसे एक अमूल्य मणि प्रदान की. मणि के प्रभाव स्वरुप किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है और राज्य आपदाओं से मुक्त हो जाता है. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने राजा उग्रसेन को उक्त मणि प्रदान करने की बात सोची. परंतु सत्राजित इस बात को जान जाता है. इस कारण वह मणि अपने भाई प्रसेन को दे देता है.

परंतु एक बार जब प्रसेन वन में शिकार के लिए जाता है तो वहां सिंह के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होता है और सिंह के मुंह में मणि देख कर जांबवंत शेर को मारकर वह मणि पा लेता है, प्रजा को जब जांबवंत के पास उस मणि होने की बात का पता चलता है तो वह इसके लिए कृष्ण को प्रसेन को मारकर मणि लेने की बात करने लगते हैं. इस आरोप का पता जब श्रीकृष्ण को लगता है तो वह बहुत दुखी होते हैं और प्रसेन को ढूंढने के लिए निकल पड़ते हैं.

घने वन में उन्हें प्रसेन के मृत शरीर के पास में सिंह एवं जाम्बवंत के पैरों के निशान दिखाई पड़ते हैं. वह जाम्बवंत के पास पहुँच कर उससे मणि उसके पास होने का कारण पूछते हैं तब जांबवंत उन्हें सारे घटना क्रम की जानकारी देता है. जाम्बवंत अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण से कर देता है और उन्हें स्यमंतक मणि प्रदान करता है.

प्रजा को जब सत्य का पता चलता है तो वह श्री कृष्ण से क्षमा याचना करती है. यद्यपि यह कलंक मिथ्या सिद्ध होता है परन्तु इस दिन चांद के दर्शन करने से भगवान श्री कृष्ण को भी मणि चोरी का कलंक लगा था और श्रीकृष्ण जी को अपमान का भागी बनना पड़्ता है.

गणेश चतुर्थी पूजन | Ganesha Chaturthi Worship

भाद्रपद्र शुक्ल की चतुर्थी ही गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी कि विशेष पूजा अर्चना की जाती है. भाद्रपद्र कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था इस कारण यह तिथि और भी विशेष बन जाती है.इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है, गणेश जी की इस मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर षोड्शोपचार से पूजन किया जाता है. तथा लडडुओं का भोग लगाया जाता है.संध्या समय पूजन करके चंद्रमा देखे बिना अर्ध्य देना चाहिए.

चतुर्थी पूजन महत्व | Importance of Ganesha Chaturthi Worship

चंद्रमा को देखे बिना अर्ध्य देने का तात्पर्य है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति कलंक का भागी बनता है. क्योंकि एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का मुख देखकर उनका मजाक उड़ाया था इस पर क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि, आज से जो भी तुम्हें देखेगा उसे झूठे अपमान का भागीदार बनना पडे़गा परंतु चंद्रमा के क्षमा याचना करने पर भगवान उन्हें श्राप मुक्त करते हुए कहते हैं कि वर्ष भर में एक दिन भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन से कलंक लगने का विधान बना रहेगा.

व्रत से सभी संकट-विघ्न दूर होते हैं.  चतुर्थी का संयोग गणेश जी की उपासना में अत्यन्त शुभ एवं सिद्धिदायक होता है. चतुर्थी का माहात्म्य यह है कि इस दिन विधिवत् व्रत करने से श्रीगणेश तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं. चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से व्रत का सम्पूर्ण पुण्य प्राप्त हो जाता है.