मघा नक्षत्र श्राद्ध 2024 , पितरों को दिलाता है मुक्ति का मार्ग

ज्योतिष शास्त्र में मघा नक्षत्र दसवां नक्षत्र होता है. मघा नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता पितर होते हैं. मघा नक्षत्र के स्वामी केतु को माना गया है. इसलिए इस नक्षत्र का होना श्राद्ध समय के दौरान अत्यंत ही शुभ प्रभाव वाला होता है. मघा नक्षत्र का संबंध पितर और केतु से आने के कारण ही इस नक्षत्र के समय पर किया जाने वाला श्राद्ध अत्यंत ही प्रभावशाली होता है.

इस समय पर किया गया पितृ के निमित किया गया तर्पण कार्य बिना किसी व्यवधान और विलम्ब के पितरों तक पहुंचता है. श्राद्ध कार्य कई प्रकार से किए जाते हैं. यह प्रमुख कर्म काण्ड में से एक होते हैं. अगर कुंडली में पितृदोष हो तो उसे दूर करने के लिए किया जाने वाला श्राद्ध अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.

मघा नक्षत्र समय

इस वर्ष 2024 में मघा नक्षत्र का  सितम्बर 2024 को रविवार के दिन से होगा. मघा नक्षत्र के दौरान ही द्वादशी तिथि भी मौजूद होने के कारण इसे मघा द्वादशी के नाम से भी जाना जाएगा.

मघा नक्षत्र प्रारम्भ - सितम्बर 29, 2024 को 03:38

मघा नक्षत्र समाप्त - सितम्बर 30, 2024 को 06:19

श्राद्ध का कार्य पितरों के लिए किया जाता है. इसमें पूर्वजों के निमित्त पिंडदान किया जाता है. ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और दान इत्यादि कार्य किए जाते हैं. यह सभी कुछ श्राद्ध कार्य के अंतर्गत आता है. वैसे श्राद्ध के कार्य को अमावस्या, श्राद्ध पक्ष मे, संक्रांति, पूर्वजों की तिथि इत्यादि समय में इस काम को किया जाता है. सामान्य रुप से किए जाने वाले श्राद्ध कार्य अमावस्या तिथि के दौरान अथवा पितृ पक्ष में मुख्य रुप से किए ही जाते हैं.

पितृ पक्ष का समय आश्विन मास के दौरान आता है और ये समय पितृ कार्यों के लिए होता है. श्राद्ध कार्य करने से व्यक्ति के पितृ संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद प्राप्त होता है.

पितृऋण और पितृदोष से मुक्ति

पितृऋण का अर्थ पूर्वजों का ऋण. यह ऋण हमारे पूर्वजों का माना गया है. पितृऋण कई प्रकार का होता है जिसके न चुका पाने के कारण यह पितृदोष दोष का कारण भी बनता है. अगर किसी व्यक्ति कि कुण्डली में पितृदोष बनता है तो वंश वृद्धि रुक जाती है, आर्थिक उन्नती रुक जाती है, कलह जीवन में सदैव बने रहते हैं. मांगलिक कार्य होने पर अड़चनें बनी रहती हैं, नौकरी और व्यवसाय में उन्नती नहीं मिल पाती है.

पितृ बाधा दोष यह भी एक प्रकार का दोष ही होता है. इसमें ग्रह-नक्षत्र भी सही हैं, वास्तु दोष भी नही हो लेकिन आकस्मिक दुख या धन का अभाव होने पर यह पितृ बाधा कहलाती है.

इन दोषों से बचने के लिए मघा नक्षत्र एक अत्यंत ही समय होता है श्राद्ध के काम के लिए. इस नक्षत्र में किया जाने वाला पितृ कार्य पितरों की शांति देने वाला होता है. आश्विन कृष्ण पक्ष में चंद्र लोक पर पितरों का आधिपत्य रहता है और इस समय वह पृथ्वी का पर आते हैं.

आश्विन मास में जब सूर्य कन्या राशि में गोचर करता है, तो उस समय के दौरान श्राद्ध कार्य किए जाते हैं. इस प्रकार पितर पृथ्वी लोक पर आकर अपने वंश के लोगों के पास आते हैं और उनको संतुष्ट करने के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. इन कार्यों से पितरों को शांति मिलती है. पितर जब खुश होते हैं तब वंश को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. अगर लोग अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु यदि श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करे तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं.

मघा श्राद्ध कैसे करें

आश्विन मास में आने वाले मघा नक्षत्र में पितरों अर्थात पूर्वजों के लिए श्राध कार्य करना अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है. सामान्य रुप से पितरों की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध का कार्य होता है. लेकिन इस पूरे श्राद्ध समय के दौरान अगर इन में किसी दिन मघा नक्षत्र आता है तो इस दिन विशेष होता है. इसके अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन करना चाहिए.

पिण्डदान, तर्पण काम कर लेने के पश्चात ब्राह्माणों को भोजन कराना चाहिए. इसके साथ ही फल, वस्त्र, दक्षिणा एवं दान कार्य करने से पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है. मघा श्राद्ध एक वैदिक कर्म है इसे पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किया जाना चाहिए.

मघा श्राद्ध समय सभी कामों को पूरे विधि विधान से करने से पितरों को सुख एवं शांति प्राप्त होती है. किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो उन लोगों के लिए भी मघा नक्षत्र में अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं और पितृदोष की शांति करा सकते हैं. श्राद्ध समय दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से पितर दोष से मुक्ति मिल सकती है.

मघा नक्षत्र में कोई नवीन एवं मांगलिक कार्य नहीं किये जाते. जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते वे पितृऋण से मुक्त नहीं हो पाते हैं, फलतः उन्हें पितृ-दोष का कष्ट झेलना पड़ता है. इसलिए कहा जाता है कि अपनी सामर्थ्यानुसार श्राद्ध अवश्य करना चाहिए.

श्राद्ध में ध्यान रखने योग्य बातें

  • श्राद्ध पक्ष में किसी व्यक्ति की मृत्यु तिथि के अनुसार ही श्राद्ध कार्य किया जाता है.
  • श्राद्ध कार्य में बहती नदी, में दूध, जौ, चावल, काले तिल इत्यादि प्रवाहित किए जाते हैं.
  • गंगाजल का उपयोग तर्पण करने के कार्य में उप्योग लाया जाता है.
  • पितरों के लिए किए जाने वाले पिंडदान को पके हुए चावल, दूध और काले तिल से बना कर पिंड रुप दिया जाता है. इस सामग्री से बनाए गए पिंड को शरीर का प्रतीक ही माना जाता है.
  • यदि किसी कारण से पिंडदान, श्राद्ध नहीं कर पाते हैं तो किसी ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन, धन अथवा अन्न का दान करना उत्तम माना गया है.
  • अगर किसी कारण या साधनों के अभाव में श्राद्ध नहीं कर पाते हैं तो किसी नदी में स्नान करने के उपरांत अपने पितरों का ध्यान करते हुए काले तिल जल में प्रवाहित करके भी तर्पण कार्य किया जा सकता है.
  • पितरों की स्मृति में गाय को खाना अवश्य खिलाना चाहिए.
  • पीपल पर जल चढ़ाना और तेल का दीपक प्रज्जवलित करना भी पितरों के लिए उत्तम माना गया है.