अखण्ड द्वादशी व्रत 2025 | Akhand Dwadashi Vrat 2025| Akhand Dwadashi Fast

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी अखण्ड द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. इस दिन विष्णु पूजा एवं व्रत का संकल्प किया जाता है, जिसमें  शुद्ध आचरण व सदाचार पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. अखण्ड द्वादशी तिथि के दिन किया गया व्रत पूजन धन, धान्य व सुख-समृद्धि देने वाला होता है. समस्त व्याधियों को नष्ट कर आरोग्य को बढ़ाने वाला होता है. इस वर्ष 15 दिसंबर 2025 दिन के दिन अखण्ड द्वादशी व्रत का पालन किया जाएगा. इसके प्रभाव स्वरूप से समस्त पापों का नाश होता है व सौभाग्य की प्राप्ति होती है.इस व्रत की विधि एकादशी के समान ही होती है इसे करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. यह व्रत मार्गशीर्ष मास की द्वादको शी परम पूजनीय कल्याणकारी होता है. इस तिथि पितृ तर्पण आदि क्रियाएँ की जाती है तथा श्रद्धा व भक्ति पूर्ण ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के दान हवन यज्ञादि क्रियाएँ भी की जाती हैं. ॐ नमो नारायणाय नमः आदि मंत्र जाप द्वारा भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है. यह व्रत पवित्रता व शांत चित से श्रद्धा पूर्ण किया जाता है, यह व्रत मनोवांछित फलों को देने वाला और भक्तों के कार्य सिद्ध करने वाला होता है, इस व्रत को नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर श्रद्धा विश्वास पूर्ण करना चाहिए. व्रत पूजा के सारे नियम श्रद्धा पुर्ण करने पर यह व्रत पुत्र-पौत्र धन-धान्य देने वाला है.

अखण्ड द्वादशी पूजन विधि | Akhand Dwadashi Pujan Vidhi

अखण्ड द्वादशी पूजन के लिए प्रातःकाल स्नान पश्चात षोड़शोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए और कथा श्रवण करते हुए भगवान का भजन किर्तन करना चाहिए. भोग लगाकर सभी को सदस्यों को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. परिवार के कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करनी चाहिए. ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात स्वयं भी भोजन ग्रहण करना चाहिए. द्वादशी का व्रत संतान प्राप्ति एवं े सुखी जीवन की कामाना के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी व्रत में भगवान नारायण की पूजा श्वेत वस्त्र धारण करके, गंध, पुष्प, अक्षत आदि से करनी शुभदायक होती है.

अखण्ड द्वादशी महत्व | Akhand Dwadashi Importance

नारदजी विष्णु द्वादशी के विषय में ब्रह्माजी से पुछते हैं, नारद के वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि हे नारद लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है. द्वादशी पूजन एवं कथा श्रवण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है. इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं. उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है. जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है. जो मार्गशीर्ष माह में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं, विष्णु भगवान का पूजन संसाररूपी भव सागर में डूबे मनुष्यों को पार लगाता है.