रंग तेरस : रंग तेरस कब ओर क्यों मनाते हैं ?
रंग तेरस का पर्व चैत्र माह के दौरान मनाया जाता है. रंग तेरस का उत्सव चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाते हैं जो प्रमुख त्योहारों में से एक है. रंग तेरस का त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है, जिन्हें भगवान श्रीनाथ जी के रूप में पूजा जाता है. राजस्थान के नाथद्वारा में, यह त्योहार बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. रंग तेरस के दौरान देश के कोने-कोने से भक्त यहां श्रीनाथजी मंदिर के दर्शन करने आते हैं.
रंग तेरस तिथि और समय
हिंदू महीने चैत्र के कृष्ण पक्ष के दौरान त्रयोदशी अर्थात चंद्र माह में 13वें दिन को मनाया जाता है. इसे रंग त्रयोदशी भी कहा जाता है. इस दिन लोग रंगों के साथ प्रभु का पूजन करते हैं. भगवान की झांकियां निकाली जाती हैं और उन्माद के रस में डूबा ये रंग तेरस का त्योहार सभी के मन में खुशी और भक्ति की धारा को प्रवाहित करता है.
कुछ स्थानों में इसे होली के एक भाग के रूप में भी मनाया जाता है. होली एक रंगीन हिंदू त्योहार है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन महीने के दौरान पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसके बाद आने वाले तेरह दिन पर इस महत्वपूर्ण त्योहार का एक हिस्सा होने के नाते, रंग तेरस को मनाते हैं. रंग तेरस मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में अत्यंत उत्साह के साथ मनाया जाता है.
रंग तेरस श्री नाथ जी पूजन
रंग तेरस का त्यौहार उत्तर भारत में बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है. पूरे देश में भगवान कृष्ण के ज़्यादातर मंदिरों में यह उत्सव बहुत खास होता है. रंग तेरस का उत्सव उन मंदिरों में ज़्यादा विस्तृत और प्रसिद्ध होता है जहां भगवान कृष्ण की श्रीनाथजी के रूप में पूजा की जाती है. रंग तेरस हिंदू हर्म का एक शानदार त्योहार है जिसे हर साल बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है.
रंग तेरस कृषी पूजन
भारतीय किसान रंग तेरस को कृतज्ञता के दिन के रूप में मनाते हैं. किसान इस शुभ दिन पर धरती माता का सम्मान करते हैं क्योंकि वह उन्हें जीवित रहने के लिए भोजन सहित सभी चीजें प्रदान करती है. महिलाएं त्योहार के समारोह में भाग लेती हैं
रंग तेरस के दिन भारतीय राज्य राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में कृषी का उत्सव मनाने के लिए बड़े आदिवासी मेले आयोजित किए जाते हैं. चैत्र के महीने में, आस-पास के इलाकों के स्वदेशी लोग भी इस जीवंत उत्सव में भाग लेते हैं. लोग इस तरीके से रंग तेरस मनाते आ रहे हैं, और हर साल यह उत्सव बढ़ता जा रहा है. युवा पुरुष बांस की छड़ियों और तलवारों का उपयोग करके नागाड़ों पर बजने वाले संगीत की ताल पर ताल मिलाने का प्रयास करते हैं, जो कि बुज़ुर्ग लोगों के एक समूह द्वारा बजाया जाने वाला एक पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र और नृत्य का आनंद लेते हैं.
रंग तेरस का महत्व
रंग तेरस का विशद उत्सव भगवान कृष्ण को समर्पित है, जिन्हें इस दिन श्रीनाथ जी के रूप में पूजा जाता है. अपने अलग स्वरुप में यह दिन बहुत खास होता है। रंग तेरस भारतीय किसानों के धन्यवाद के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. इस शुभ दिन पर, किसान भोजन सहित विभिन्न प्रकार की सभी आवश्यक वस्तुएं प्रदान करने के लिए पृथ्वी माता को सम्मान देते हैं. महिलाएं उपवास रखती हैं और इस त्योहार से जुड़ी रस्में निभाती हैं. इस उत्सव के एक हिस्से के रूप में, गांव के युवा लोग नृत्य और बिछाने के खेल के साथ अपने वीरतापूर्ण कौशल का प्रदर्शन करते हैं.
राजस्थान राज्य के मेवाड़ क्षेत्र में गेहूं की फसल की खुशी व्यक्त करने के लिए रंग तेरस के दिन भव्य आदिवासी मेले का आयोजन किया जाता है. आस-पास के क्षेत्रों से भी आदिवासी चैत्र के महीने में इस रंगारंग मेले का हिस्सा बनने आते हैं. रंग तेरस पारंपरिक तरीके से मनाया जाता रहा है और हर बीतते साल के साथ यह आयोजन बड़ा होता जा रहा है. बुज़ुर्ग लोगों की भीड़ नागाड़ा बजाती है और युवा बांस की छड़ियों और तलवारों के साथ बजने वाले संगीत की लय के साथ ताल मिलाने की कोशिश करते हैं.
रंग तेरस विशेष
रंग तेरस का पर्व लोक परंपराओं का विशेष प्रदर्शन करता है. इस दिन का आयोजन राजस्थान राज्य के नाथद्वारा में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन, पूरे देश से तीर्थयात्री श्रीनाथजी के दर्शन करने के लिए इस मंदिर में आते हैं. भक्ति और प्रेम के रंग में डूबा यह दिन सब ओर भक्ति की धारा को प्रवाहित करता है।