आदि अमावस्या : क्यों और कब मनाई जाती है आदि अमावस्या जानें इसका महत्व
पंचांग गणना अनुसार प्रत्येक माह में अमावस्या का आगमन होता है. यह अमावसाय तिथि कृ्ष्ण पक्ष के अंतिम दिन में मनाई जाती है जिसके पश्चात शुक्ल पक्ष का आरंभ होता है. अमावस्या को कई नामों से पुकारा जाता है. जिस माह में जो अमावस्या आती है उसे उस नाम से पुकारते हैं. जैसे श्रावण माह में आने वाली अमावस्या तिथि को सावन अमावस्या के नाम से पुकारा जाता है उसी प्रकार तमिल संप्रदाय द्वारा आदि अमावस्या, तमिल महीने के आदि माह में आने वाली अमावस्या होती है जिसे माह के नाम से आदि अमावस्या कहा जाता है.
अमावस्या तिथि का महत्व हर समुदाय के लिए विशेष रहा है. यह वह समय होता है जब कुछ विशेष नियमों का पालन भी किया जाता है. इस दिन को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. आदि अमावस्या में लोग अपने पूर्वजों का सम्मान करने और उनसे आशीर्वाद लेने के लिए अत्यधिक शुभ मानते हैं. तमिल महीना आदि, जो जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य तक चलता है, आध्यात्मिक महत्व का समय है, और आदि अमावस्या इसके भीतर एक विशेष क्षण को चिह्नित करती है.
आदि अमावस्या 2024 की तिथि और समय
वर्ष 2024 में आदि अमावस्या 4 अगस्त, रविवार को मनाई जाएगी. इस पवित्र दिन की शुरुआत को 3 अगस्त को 15:50 बजे शुरू होगी और 4 अगस्त को 16:42 बजे समाप्त होगी. इस अवधि को पारंपरिक रूप से पूजा मंत्रों और प्रार्थनाओं के साथ मनाया जाता है.
तमिल महिनों के नाम
थाई, माछी, मासी, पंगुनी, चिट्ठी (चिट्ठिराई), वैकासी, आनी, आदि, आवनी, पुरात्तासी, अइप्पासी, कार्तिकाई, मार्कजी़(मरकज़ी)
इन सभी महिनों में आने वाली अमावस्याओं को इन नामों से भी पुकारा जाता है.
आदि अमावस्या का ज्योतिष अनुसार महत्व
आदि अमावस्या के दिन को ज्योतिष अनुसार भी काफी विशेष माना गया है. इस दिन, सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं. सूर्य पिता और आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है, और चंद्रमा माता और मन का प्रतिनिधित्व करता है. इस कारण ये दोनों ग्रह पूर्वजों के रुप में माता-पिता का प्रतिनिधित्व करते हुए भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करते हैं. माना जाता है कि यह भक्ति के साथ साथ प्रार्थनाओं और भक्ति की शक्ति को बढ़ाता है, जिससे यह पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने और उनका आशीर्वाद लेने का एक आदर्श समय बन जाता है.
आदि अमावस्या का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रहा है. तमिल संस्कृति और हिंदू समुदाय में आदि अमावस का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक रहता है. यह अमावस्या का दिन अपने पूर्वजों के सम्मान के लिए पितृ तर्पण करने के लिए शुभ होता है.
पितृ दोष शांति : आदि अमावस्या को पितरों के पूजन के लिए काफी विशेष माना गया है. इस दिन पितरों का पूजन पितृ दोष की शांति रहती है. पितृ तर्पण में पूर्वजों को भोजन, जल और प्रार्थना अर्पित करते हैं. माना जाता है कि य्ह दिन पूर्वजों को जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष प्राप्त करने में सहायता करता है. पूर्वजों को याद करने और उनका सम्मान करने का कार्य इस विश्वास पर आधारित है कि उनके आशीर्वाद से जीवित लोगों को समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास मिल सकता है. एक ही राशि में सूर्य और चंद्रमा का होना माता-पिता के मिलन का प्रतीक है, जो इसे आध्यात्मिक अभ्यास करने के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली समय बनाता है. यह प्रार्थनाओं और भक्तों को लाभ पहुंचाता है, जो इसे पूर्वजों का आशीर्वाद लेने के लिए एक आदर्श समय बनाता है.
आदि अमावस्या जीवित लोगों को अपने दिवंगत पूर्वजों से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है. इस समय के दौरान, यह माना जाता है कि भौतिक दुनिया आध्यात्मिक क्षेत्र के करीब होती है. यह समय पूजा अनुष्ठान को अधिक शक्ति प्रदान करता है. इस दिन किए जाने वाले पूजा कार्यों में गलत काम के लिए क्षमा मांगने और वंश वृद्धि का आशिर्वाद देता है. आदि अमावस्या पर पूजा दान स्नान के कामों को करने से जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और आशीर्वाद मिलता है. इस के द्वारा परिवार के लिए सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके अलावा, आदि अमावस्या अतीत, वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के परस्पर संबंध की याद दिलाती है. यह भक्तों को पारिवारिक बंधनों को बनाए रखने और उन्हें संजोने तथा इन परंपराओं को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए प्रोत्साहित करती है.
आदि अमावस्या से जुड़ी खास बातें
आदि अमावस्या की शुरुआत भक्तों द्वारा सुबह जल्दी उठकर स्नान और ध्यान जैसे कार्यों से शरीर और मन को शुद्ध करना शामिल होती है. इसके बाद, पूजा करने के साथ साथ प्रभु का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिरों में जाते हैं. इस दिन दान-पुण्य के कार्य भी महत्वपूर्ण होते हैं. इस दिन जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करना विशेष होता है.
आदि अमावस्या के समय तर्पण से संबंधित कार्य किए जाते हैं, जो विशेष रूप से मृत पूर्वजों की आत्माओं के प्रति सम्मान हेतु होते हैं. इस दिन तर्पण के कार्यों को नदियों, समुद्रों, तालाबों या झीलों जैसे प्राकृतिक जल निकायों के पास किए जाने का विशेष विधान माना गया है. पूर्वजों को तिल और पानी चढ़ाते हैं, ये तर्पण आत्माओं को तृप्त करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए प्रतीकात्मक कार्य हैं. तर्पण के दौरान मंत्रों का अनुष्ठानिक जाप भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह पूर्वजों की उपस्थिति का आह्वान करता है और उन्हें मुक्ति की ओर ले जाता है.
उपवास और पूजा: व्रत पूजा उपवास आदि अमावस्या के नियमों का महत्वपूर्ण पहलू है. इस दिन भक्त पूजा एवं उपवास के नियमों को चुनते हैं, इस दौरान केवल एक बार भोजन करते हैं या भोजन से पूरी तरह परहेज़ करते हैं. आत्म-अनुशासन और भक्ति के इस कार्य को मन और शरीर को शुद्ध करने के तरीके के रूप में देखा जाता है. इस दिन मंदिरों और घरों में विशेष पूजा की जाती है. इस पूजा हवन इत्यादि में मंत्रोच्चार और देवताओं और पूर्वजों को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद शामिल होते हैं. दक्षिण भारत में, रामेश्वरम में अग्नि तीर्थम और कन्याकुमारी में त्रिवेणी संगमम जैसे पवित्र स्थल आस्था का मुख्य केन्द्र होते हैं.