ज्ञान पंचमी 2024 : क्यों मनाई जाती है ज्ञान पंचमी

जैन धर्म से संबंधित ज्ञान पंचमी सभी के लिए एक अत्यंत ही पूजनीय और महत्वपूर्ण दिवस है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्ञान पंचमी' का पर्व मनाया जाता है". मान्यताओं के अनुसर इसी शुभ समय पर भगवान महावीर के दर्शन को पहली बार लिखित ग्रंथ के रूप में सामने लाया गया था. अभी तक ज्ञान श्रुति परंपरा से आगे बढ़ रहा था. जिसमें भगवान महावीर केवल उपदेश देते थे और उनके प्रमुख शिष्य उन्हें सुनते और आत्मसात करते थे. वह इस ज्ञान को आगे लोगों तक पहुंचाते और सभी को समझाते थे.

भगवान महावीर की वाणी को इससे पूर्व लिखने की परंपरा सामने नहीं थी. उसे सुनकर ही स्मरण किया जाता था इसीलिए उसका नाम 'श्रुत' था. ज्ञान पंचमी जिसे श्रुत पंचमी भी कहा जाता है. यह दिन जैन शास्त्र की पूजा की जाती है और शास्त्रों का अध्य्यन एवं स्मरण होता है. पहले जैन ज्ञान मोखिक रूप में आचार्य परम्परा से चल आता था.

ज्ञान पंचमी कथा

ज्ञान पंचमी का पर्व दीपावली के पांचवें दिन मनाई जाती है. ज्ञान पंचमी के दिन ज्ञान का विस्तार होता है. ज्ञान कर्म का बंधन होता है. ज्ञान से ही हम अपने कर्मों को शुद्ध कर सकते हैं. ज्ञान की महिमा को समझना और उसके प्रति खुद को सजग बनाना ही ज्ञान पंचमी है. ज्ञान पंचमी के संदर्भ में बहुत सी कथाएं सुनने को मिलती हैं.

एक कथा इस प्रकार है - अजितसेन नामक एक राजा हुआ करता था, जिसके वरदत्त नामक एक पुत्र था. वरदत्त बुद्धिमान नही था उसके ज्ञान का विकास न हो पाने के कारण राज बहुत निराश रहता था. राजा ने अपने पुत्र के लिए अनेकों योग्य शिक्षक नियुक्त किए. परंतु वह सभी शिक्षक राजा के पुत्र के ज्ञान को विकसित नहीं कर पाए. राजा अपनी पुत्र की दशा से दुख में डूबा रहने लगा. राज्य का उत्तराधिकारी यदि योग्य न हो तो वह राज्य का भविष्य किस प्रकार सुरक्षित रह सकता है. केवल इसी बात की चिंता में राजा सदैव ही रहता था.

राजा अजितसेन ने एक घोषणा करता है कि जो भी व्यक्ति उसे मुर्ख पुत्र को एक योग्य ज्ञानवान व्यक्ति बना सके वह उसे ईनाम देगा. जीवन पर्यंत उस व्यक्ति को राज्य में सुरक्षित स्थान प्राप्त होगा. राजा को फिर भी कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिल पाता है. शिक्षा तो थी ही नहीं दूसरी ओर पुत्र का स्वास्थ्य भी खराब होने लगा. वरदत्त को कोढ़ का रोग हो जाता है. वरदत्त को कोढ़ होने पर सभी उससे दूर होने लगते हैं. अपने पुत्र की यह दशा देख कर राजा चिंता से भर गया. अपने पुत्र के विवाह की चिंता भी राजा को सताने लगी. वह अपने पुत्र के विवाह के लिए कन्या की तलाश करने लगा. तभी उसे एक सेठ की कन्या के बारे में पता चलता है जिसे कोढ़ हो रखा होता है. वह कन्या बोल भी नहीं पाती थी.

एक बार राजा के राज्य में एक बहुत ही प्रसिद्ध धर्माचार्य आते हैं और उनके प्रवचनों से सभी मुग्ध हो जाते थे. उस धर्मात्मा के प्रवचन सुनने और अपने प्रश्नों की जिज्ञासा को शांत करने राजा और सेठ उसके पास पहुंचते हैं. उस स्थान पर कन्या का पिता अपनी बेटी के बारे में पूछता है. आचार्य महाराज सेठ को बताते हैं की यह उस कन्या के पूर्व जन्मों का फल है जिसे वह भोग रहे हैं.

पूर्व जन्म में जिनदेव नामक धनी सेठ था. उसकी पत्नी की पत्नी सुंदरी थी. वह दोनों अपने बच्चों के साथ रहा करते थे. किंतु धन के गर्व में रहने के कारण उस सुंदरी के लिए शिक्षा का कोई भी मूल्य नहीं था. अगर उसके बच्चों को शिक्षक सजा देते थे तो वह उन्हें बुरा भला कहती थी. इस बात पर उसकी अपने पति से भी लड़ाई होती थी. आपकी पुत्री वही सुंदरी है और ज्ञान के प्रति तिरस्कार अपमान के कारण ही वह गूंगी जन्मी है.

राजा अजितसेन ने भी अपने पुत्र वरदत्त के बारे में जानना चाहा की आखिर उसके पुत्र के साथ ऎसा क्यों हुआ. आचार्य राजा को कहते हैं कि उसके पुत्र ने भी ज्ञान का तिरस्कार किया था. वह कहते हैं कि वसु नाम का सेठ था उसके दो पुत्र थे वसुसार और वसुदेव. एक बार बच्चों को महान संतमुनि के दर्शन होते हैं और उनकी कृपा से वह शिक्षा पाते हैं. शुद्ध चारित्र से वसुदेव ने गुरु की बहुत सेवा की तो गुरु की मृत्यु के बाद उसे आचार्य का पद मिल जाता है. वहीं दूसरे भाई वसुसार लालच में पड़ जाता है. बिना कोई परिश्रम के ही सुखों का भोग करता है. दूसरी और मानसिक और शारीरिक मेहनत करते करते बहुत थक जाया करता था. वह जब अपने भाई को देखता था कि उसके भाई को बिना मेहनत के ही सुख मिल रहा है तो वह दुखी हो जाता था.

एक बार वसुदेव अपने काम से थक कर चूर हो जाता है और सोचता है कि वह अब इस काम को नहीं करेगा ओर किसी को भी ज्ञान नहीं बांटेगा. इस प्रकार थक कर उसने बोलना बंद कर दिया. उसने ज्ञान की आराधना बंद कर दी. इसी कारण वह इस जन्म में मूर्ख बन कर जन्मा. इसलिए दोनों बच्चों को यह कष्ट अब इस जन्म में प्राप्त हो रहा है.

इस लिए ज्ञान की पूजा सदैव करनी चाहिए. कार्तिक शुक्ला पंचमी का दिन ज्ञान के महत्व को दर्शाने वाला है. इस दिन विधिवत आराधना करने से और ज्ञान की भक्ति करने से सभी मानसिक दोष समाप्त होते हैं. जीवन में शुभता आती है.

ज्ञान पंचमी महत्व

जैन समाज में इस दिन को विशेष महत्वपूर्ण भी बताया गया है. इसी दिन पहली बार जैन धर्मग्रंथ लिखा गया था. भगवान महावीर के ज्ञान को अनेक आचार्यों ने संजोया जिसे एक ग्रंथ रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्रस्तुत किया था. धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि की सहायता से षटखंडागम नामक शास्त्र की रचना की, इसमें जैन धर्म से जुड़े ज्ञान की जानकारियां प्राप्त होती हैं. इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परंपरा में प्रस्तुत किया गया है. इस शुभ दिन को श्रुत पंचमी के नाम से मनाया जाता है.

इस पर्व के दिन जैन धर्मावलंबी प्राचीन मूल शास्त्रों के प्रति अपना स्नेह और सम्मान प्रकट करते हैं. ग्रंथों की पूजा उपासना करते हैं. इसके साथ ही इस दिन शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं. ज्ञान सभी के लिए अमूल्य है. यह ऎसी निधि है जो बांटने पर विस्तार को पाती. जीवन के पथ को सदैव ही प्रकाशित करती है.