मार्गशीर्ष द्बादशी , जानें क्यों है विशेष मार्गशीर्ष मास की द्वादशी

मार्गशीर्ष द्वादशी में आने वाले द्वादशी व्रत का बहुत महत्व है. हर द्वादशी में दो द्वादशी आती हैं, एक कृष्ण पक्ष की द्वादशी और दूसरी शुक्ल पक्ष की द्वादशी. इस द्वादशी में द्वादशी पर गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है. मार्गशीर्ष द्वादशी में यमुना नदी में स्नान करने से भगवान की प्राप्ति आसानी से हो जाती है. मान्यताओं के अनुसार इस माह से ही एकादशी का आरंभ हुआ था और उसके पश्चात द्वादशी का प्रारंभ होता है. जिसके कारण यह काफी विशेष समय होता है.

जो भी भक्त अपने जीवन में भगवान की कृपा बनाए रखना चाहते हैं और हर संकट से मुक्ति चाहते हैं, उन्हें मार्गशीर्ष द्वादशी के दौरान पवित्र नदी में स्नान करने अवश्य जाना चाहिए, लेकिन जिनके लिए ऐसा करना संभव नहीं है, उन्हें अपने स्नान के पानी में थोड़ा सा पवित्र जल मिलाकर घर पर ही स्नान करना चाहिए.अपने नाम के अनुरूप ही यह व्यक्ति को उसके उद्देश्यों और कार्यों में सफलता दिलाने वाली है. शास्त्रों और पुराणों के अनुसार मनुष्य का अंतिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है. इस द्वादशी व्रत से मोक्ष की राह आसान हो जाती है. 

मार्गशीर्ष द्वादशी कब और क्यों मनाई जाती है

द्वादशी और एकादशी की शुरुआत के बारे में पुराणों में जो कथा मिलती है उसके अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के शरीर से एकादशी का जन्म हुआ था. इसलिए मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की एकादशी उत्पन्ना द्वादशी के नाम से जाना जाता है और इसके बाद आने वाली तिथि द्वादशी होती है जो भगवान श्री हर के पूजन के लिए विशेष बन जाती है. 

द्वादशी का नामकरण उस द्वादशी की पूर्णिमा तिथि जिस नक्षत्र से संबंधित होती है, उसके आधार पर किया जाता है. मार्गशीर्ष द्वादशी की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से संबंधित होने के कारण इस द्वादशी को मार्गशीर्ष कहा जाता है. इसके अलावा इसे मगसर, मंगसिर, अगहन, अग्रहायण द्वादशी आदि नामों से भी जाना जाता है. इसकी महिमा स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बताई है. गीता के 10वें अध्याय के 35वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है-

मार्गशीर्ष द्वादशी पौराणिक महत्व 

भगवान कहते हैं महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूं इसलिए इस द्वादशी में भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने की बड़ी महिमा है. इस द्वादशी में भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में हर प्रकार की सफलता प्राप्त होती है और वह हर प्रकार के संकट से बाहर निकलने में सक्षम होता है. सतयुग में देवताओं ने मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से वर्ष का प्रारंभ किया था.  मार्गशीर्ष द्वादशी में स्नान और दान का बहुत महत्व है.

मार्गशीर्ष द्वादशी पूजा अनुष्ठान 

मार्गशीर्ष द्वादशी का बहुत महत्व है. यह द्वादशी भगवान कृष्ण की पूजा को समर्पित है. इस दौरान यथासंभव धार्मिक कार्य करने चाहिए. इससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दौरान कान्हा जी के नामों का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है. पंचांग अनुसार मार्गशीर्ष नौवां महीना होता है. इस माह में आने वाली द्वादशी भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने पर विशेष जोर दिया जाता है. शास्त्रों में मार्गशीर्ष द्वादशी श्री कृष्ण का प्रिय है. इस द्वादशी में मुरलीधर की पूजा करने से जीवन में खुशियां आती हैं. ऐसे में जब आज से यह पावन महीना शुरू हो रहा है तो भगवान कृष्ण की विशेष पूजा करें. उन्हें फल, फूल, नैवेद्य (भोजन प्रसाद), धूप, दीप अर्पित करें.

मार्गशीर्ष द्वादशी के दौरान व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके खुद को शुद्ध करना चाहिए, भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए. स्नान से पहले तुलसी की जड़ की मिट्टी से भी स्नान करें, यानी इसका लेप अपने शरीर पर लगाएं और लेप लगाने के कुछ देर बाद पानी से स्नान करें. साथ ही स्नान करते समय 'ॐ नमो भगवते नारायणाय' या गायत्री मंत्र का जाप करें.

मार्गशीर्ष द्वादशी के दिन गर्म कपड़े, कंबल, मौसमी फल, बिस्तर, भोजन और अन्न दान का विशेष महत्व है. साथ ही इस द्वादशी में पूजन सामग्री जैसे आसन, तुलसी की माला, चंदन, पूजा मूर्ति, मोर पंख, जल का पात्र, आचमनी, पीतांबर, दीपक आदि का दान शुभ माना जाता है.

सभी द्वादशी किसी न किसी देवता को समर्पित होते हैं और सभी महीनों में कुछ खास व्रत और त्योहार शामिल होते हैं. इन्हीं महीनों में से एक महीना है मार्गशीर्ष महीना जिसे अगहन भी कहा जाता है. यह साल का नौवां महीना होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस द्वादशी में भगवान विष्णु, श्री कृष्ण और माता लक्ष्मी की पूजा करने का बहुत महत्व है. साथ ही यह महीना पितरों की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी खास माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं मार्गशीर्ष द्वादशी से जुड़े महत्वपूर्ण नियम.

मार्गशीर्ष द्वादशी महत्व 

मार्गशीर्ष द्वादशी  पवित्र नदियों में स्नान, भगवान की पूजा और दान-पुण्य करना बहुत शुभ माना जाता है. वहीं इस द्वादशी में खरद्वादशी भी शुरू हो जाता है जिसमें शुभ काम करना वर्जित माना जाता है. मान्यता है कि मार्गशीर्ष द्वादशी में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और भगवान कृष्ण की पूजा करने से मन को शांति मिलती है.

मार्गशीर्ष द्वादशी में गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. स्नान के बाद भगवान सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए. द्वादशी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए और तामसिक चीजों, जैसे मांस और शराब से दूर रहना चाहिए. जो लोग व्रत धारण कर सकें उन्हें व्रत का नियम लेना चाहिए. इस द्वादशी में भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण और देवी लक्ष्मी की पूजा अवश्य करनी चाहिए. इसके साथ ही इस द्वादशी में विष्णुसहस्रनाम और भगवद गीता का पाठ करना भी शुभ माना जाता है. इस द्वादशी जरूरतमंदों को कपड़े, कंबल और भोजन का दान करें. गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को खाना खिलाना भी फलदायी माना जाता है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करें. अगर आप गंगा घाट नहीं जा सकते हैं, तो घर पर ही पवित्र तरीके से पूजा करें.