तिथि वृद्धि और तिथि क्षय क्या होता है | What is Tithi Vridhi and Tithi Kshaya
तिथि पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग हैं. तिथि के निर्धारण से ही व्रत और त्यौहारों का आयोजन होता है. कई बार हम देखते हैं की कुछ त्यौहार या व्रत दो दिन मनाने पड़ जाते हैं. ऎसे में इनका मुख्य कारण तिथि के कम या ज्यादा होने के कारण देखा जा सकता है.
तिथि का निर्धारण सूर्योदय से होता है. यदि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच में तीन तिथियाँ आ जाएँ तो उसमें एक तिथि क्षयी अर्थात कम हो जाती है. इसी प्रकार अगर दो सूर्योदयों तक एक ही तिथि चलती रहे तो वह तिथि वृद्धि अर्थात बढ़ना कहलाती है.
इन तिथियों का प्रत्येक व्रत व त्यौहार के साथ साथ व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव होता है. एक माह में पहली 15 तिथियां कृष्ण पक्ष और बाकी की 15 शुक्ल पक्ष की होती हैं. कृष्ण पक्ष की 15(30)वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है. शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को चन्द्रमा पूर्ण होता है, इसलिए इस तिथि को पूर्णिमा कहा जाता है. अमावस्या समय चंद्रमा और सूर्य एक ही भोगांश पर होते हैं.
तिथि क्यों घटती-बढ़ती है | Why does a date increase or decrease?
तिथि का पता सूर्य और चंद्रमा की गति से होता है. ज्योतिष शास्त्र में तिथि वृद्धि और तिथि क्षय की बात कही गई है.
सूर्य और चन्द्रमा एक साथ एक ही अंश पर होना अमावस्या का समय होता है और चंद्रमा का सूर्य से 12 डिग्री आगे निकल जाना एक तिथि का निर्माण करता है और इसी प्रकार प्रतिपदा, द्वितीया क्रमश: तिथियों का निर्माण होता जाता है.
चंद्रमा और सूर्य की गति में बहुत अंतर होता है. जहां सूर्य 30 दिन में एक राशि चक्र पूरा करता है, वहीं चंद्रमा को
एक राशि का चक्र पूरा करने में सवा 2 दिन का समय लेता है. सूर्य और चंद्रमा के मध्य जब अंतर आने लगता है तो प्रतिपदा का आरंभ होता है और ये अंतर 12 अंश समाप्त होने पर प्रतिपदा समाप्त हो जाती है और इसी के साथ द्वितीया का आरंभ होता है.
तिथि वृद्धि और तिथि क्षय होने का मुख्य कारण चंद्रमा की गति का होना है. चन्द्रमा की यह गति कम और ज्यादा होती रहती है. चन्द्रमा कभी तेज चलते हुए 12 अंश की दूरी को कम समय में पार कर लेता है और कभी कभी धीमा चलते हुए अधिक समय लेकर पूरा करता है.
तिथि क्षय और तिथि वृद्धि कैसे पता करें | How to determine ‘Tithi Vridhi’ & ‘Tithi Kshaya’
एक तिथि का भोग काल सामान्यतः 60 घटी का होता है. तिथि का क्षय होना या तिथि में वृद्धि होना सूर्योदय के आधार पर ही निश्चित होता है. अगर तिथि, सूर्योदय से पहले शुरू हो गई है और अगले सूर्योदय के बाद तक रहती है तो उस स्थिति को तिथि की वृद्धि कहा जाता है.
उदाहरण के लिए - रविवार के दिन सूर्योदय प्रातः 06:32 मिनिट पर हुआ और इस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय के पहले प्रातः 6:15 मिनिट पर आरंभ होती है और अगले दिन सोमवार को सूर्योदय प्रातः 06:31 मिनिट के बाद प्रातः 7ः53 मिनिट तक रही तथा उसके बाद षष्ठी तिथि प्रारंभ होती है. इस तरह रविवार और सोमवार दोनों दिन सूर्योदय के समय पंचमी तिथि होने से तिथि की वृद्धि मानी जाती है. पंचमी तिथि का कुल मान 25 घंटे 36 मि0 आया जो कि औसत मान 60 घटी या 24 घंटे से अधिक है. इस कारण के होने से तिथि वृद्धि होती है.
इसकी दूसरी स्थिति में जब कोई तिथि सूर्योदय के बाद से शुरू होती है और अगले दिन सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है तो इसे क्षय होन आर्थात कम होना कहा जाता है जो हम तिथि क्षय कहते हैं. कैसी होती है क्षय तिथि उदाहरण - शुक्रवार को सूर्योदय प्रातः 07:12 पर हुआ और इस दिन एकादशी तिथि सूर्योदय के बाद प्रातः 07:36 पर समाप्त हो गई एवं द्वादशी तिथि शुरू हो जाए और द्वादशी तिथि 30:26 मिनट अर्थात प्रात: 06:26 तक ही रही और उसके बाद त्रयोदशी तिथि शुरु हो गई हो. सूर्योदय 07:13 पर हुआ ऎसे में द्वादशी तिथि में एक भी बार सूर्योदय नहीं हुआ. ऎसे में शुक्रवार को सूर्योदय के समय एकादशी और शनिवार को सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि रही, जिस कारण द्वादशी तिथि का क्षय हो गया.
तिथियों के मुख्य नाम | Main Names of Tithis
सभी तिथियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इन तिथियों के नाम के आधार पर ही इनके प्रभाव भी मिलते हैं. तिथियों के नाम इस प्रकार रहे हैं - नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा. 1-6-11 तिथि को नन्दा तिथि कहते हैं यह तिथि खुशी को दर्शाती है. 2-7-12 तिथि को भद्रा कहा जाता है वृद्धि को दर्शाती है. 3-8-13 जया तिथि कही जाती हैं, इनमें विजय की प्राप्ति होती है. 4-9-14 रिक्ता तिथि होती हैं यह अधिक अनुकूल नहीं होती हैं. 5-10-15 पूर्णा तिथियों में आती हैं यह शुभता को दर्शाती हैं.