कूष्माण्डा नवमी | Kushmanda Navami | Kushmanda Navami Festival

कूष्माण्डा नवमी सिद्धि प्रदान करने वाली होती है. इसके पूजन से समस्त रोग-शोक दूर हो जाते हैं भक्त को दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होता है. कूष्माण्डा नवमी पूजा आयु में वृद्धि करने वाली और व्यक्ति को मान सम्मान और यश प्रदान करती है. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। का मंत्र माता के स्वरूप को दर्शाता है. सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में देवी भक्त के समस्त पापों का नाश करती हैं.  मंद मुस्कान से सृष्टि को उत्पन्न करने के कारण देवी को यह नाम प्राप्त होता है. जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ अत: यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई.

कूष्माण्डा नवमी पूजन | Rituals For Kushmanda Navami Puja

दुर्गा का चौथा रुप हैं देवी कूष्माण्डा इस दिन पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी का ध्यान करने से आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती है. यही सृष्टि की आदिशक्ति है. इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर माना जाता है.  सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति इन्ही में है, इनके शरीर की कान्ति और प्रभा देदीप्यमान है. अष्टभुजा में धनुष-बाण, कमण्डल, कमल, कलश, चक्र व गदा धारण किए हुए हैं. यह सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली हैं, सिंह पर सवारा माता दुष्टों का नाश करती हुई निर्बलों को भय मुक्त करती हैं.

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा रखता है उसे माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा करनी चाहिए और साधना में बैठना चाहिए. इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है.

इस दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे. द्वारा स्मरण करें. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए.

स्तोत्र पाठ | Strotra Path

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

कवच | Kawach

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥

इस प्रकार आरती के पश्चात सभी को माता का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.  इस दिन भोग में दही, हलवा बनाना श्रेयस्कर होता है. फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान माता को भेंट करना चाहिए पूजा पश्चात माँ और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है. फल, फूल, दूध, अगरबत्ती लेकर मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है. कूष्माण्डा नवमी में मंदिरों में श्रद्धालुओं को तांता लगना शुरू हो जाता है. श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं संकीर्तन मंडली भजन दुर्गा स्तुति पाठ किया जाता है. सच्चे मन से मां कूष्माण्डा की पूजा करने वाले को बल, बुद्धि व विद्या की बढ़ोतरी होती है व रोगों से छुटकारा मिलता है.