दशहरा शुभ मुहूर्त 2025 | Dussehra Auspicious Muhurat 2025 | Vijayadasami Muhurat 2025
विजयादशमी अर्थात दशहरा की धूम संपूर्ण भारत-वर्ष में देखी जाती है. सत्यता का प्रतीक दशहरा अनेक महत्वपूर्ण संदेशों को देते हुए भारत के कोने-कोने में जोश एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है. विजय दशमी का पर्व आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है. दशहरा या विजयादशमी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है. अधर्म एवं बुराई को समाप्त करके धर्म की स्थापना और शांति का प्रतीक है. विजयदशमी के उपलक्ष पर भारत के कोने-कोने में रामलीला की झाँकियों का मंचन किया जाता है. क्षत्रियों के यहाँ शस्त्रों की पूजा होती है, इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है. दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के पश्चात दसवें दिन मनाया जाता है.
दशहरा एक अबूझ मुहूर्त है. दशहरे के दिन नए व्यापार या कार्य की शुरुआत करना अति शुभ होता है. यह अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है, इस दिन वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम, स्वर्ण, आभूषण नए वस्त्र इत्यादि खरीदना शुभ होता है. दशहरे के दिन नीलकंठ भगवान के दर्शन करना अति शुभ माना जाता है. दशहरा के दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है. प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे. इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं. दशहरा का पर्व समस्त पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, अहंकार, हिंसा आदि के त्याग की प्रेरणा प्रदान करता है.
दशहरा पूजन | Dussehra Pujan
दशहरे के दिन सुबह दैनिक कर्म से निवृत होने के पश्चात स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. घर के छोटे-बडे़ सभी सदस्य सुबह नहा-धोकर पूजा करने के लिए तैयार हो जाते हैं. उसके बाद गाय के गोबर से दस गोले अर्थात कण्डे बनाए जाते हैं. इन कण्डो पर दही लगाई जाती है. दशहरे के पहले दिन जौ उगाए जाते हैं. वह जौ दसवें दिन यानी दशहरे के दिन इन कण्डों के ऊपर रखे जाते हैं. उसके बाद धूप-दीप जलाकर, अक्षत से रावण की पूजा की जाती है. कई स्थानों पर लड़कों के सिर तथा कान पर यह जौ रखने का रिवाज भी दशहरे के दिन होता है. भगवान राम की झाँकियों पर भी यह जौ चढा़ए जाते हैं.
विजयादशमी मुहूर्त | Vijayadasami Muhurat
इस दिन राम ने रावण का वध किया था. रामायण के अनुसार राम तथा सीता जी के वनवास के दौरान रावण, राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले जाता है. तब भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता जी को रावण के बंधन से मुक्त कराने हेतु राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान एवं वानरों की सेना के साथ मिलकर रावण के साथ एक बड़ा युद्ध करते हैं. युद्ध के दौरान श्री राम जी नौ दिनों तक युद्ध की देवी मां दुर्गा जी की पूजा करते हैं तथा दशमी के दिन रावण का वध करते हैं और सीता जी को बंधन से मुक्त कराते हैं.
इसलिए विजयदशमी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है. इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकरण और पुत्र मेघनाद के पुतले जगह-जगह में जलाए जाते हैं. सुबह के समय पूजा करने के बाद संध्या समय में जब "विजय" नामक तारा उदय होता है तब रावण का दाह संस्कार पुतले के रुप में किया जाता है. रावण के पुतले जलाने का कार्य सूर्यास्त से पहले समाप्त किया जाता है, क्योंकि भारतीय संस्कृति में हिन्दु धर्म के अनुसार सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार नहीं किया जाता है.
विजयदशमी पूजा | Vijayadashami Puja
विजय दशमी या दशहरे के त्यौहार पर अनेक संस्कारों, अनेक संस्करणों को पूर्ण किया जाता है इस त्यौहार के अंतर्गत अनेक प्रकार के रीति-रिवाज़ों का प्रचलन है. जैसे कृषि -महोत्सव या क्षात्र-महोत्सव, सीमोल्लंघन का परिणाम दिग्विजय तक पहुंचा, शमीपूजन, अपराजितापूजन एवं शस्त्रपूजन जैसी कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक कृतियां की जाती हैं. दशहरे का एक सांस्कृतिक महत्व भी रहा है. इस समय भारत वर्ष में किसान फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है और उसी शुभ उमंग के अवसर पर वह उसका पूजन करता है. समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है.
महाराष्ट्र में इस अवसर को सिलंगण के नाम से मनाया जाता है. सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीण जन सुंदर-सुंदर नव परिधानों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'स्वर्ण' लूटकर अपने गांव वापस आते हैं. फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है. भगवान श्री राम जी ने इसी दिन लंका पर विजय प्राप्त की थी. ज्योतिर्निबन्ध में कहा गया है कि आश्विन शुक्ल दशमी के दिन संध्या तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है. इस त्यौहार के संबंध में एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है.
एक बार कि बात है माता पार्वती जी ने भगवान शिव से विजयादशमी त्यौहार के विषय में तथा इस पर्व का क्या फल प्राप्त होता है जानना चाहा. पार्वती जी के कथन को सुन भगवान भोलेनाथ उनसे कहते हैं कि आश्व्नि शुक्ला दशमी को संध्या समय में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है. यह सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने हेतु इसी समय प्रस्थान करने से विजय की प्राप्ति होती है. यदि इस दिन श्रवण नक्षत्र बने तो यह और भी शुभ होता है. भगवान श्री राम जी ने इसी विजय काल समय लंका पर चढ़ाई की थी व विजय प्राप्त की थी इस कारण यह दिन बहुत पवित्र माना जाता है