हयग्रीव जयंती 2024, इसलिए लिया था श्री विष्णु ने ये अवतार

हयग्रीव को श्री विष्णु भगवान का एक अवतार रुप माना गया है. सावन मास की पूर्णिमा को हयग्रीव जयंती मनाई जाती है. भगवान विष्णु के अवतारों में से एक हयग्रीव ने वेदों का कल्याण किया. इस कारण यह अवतार जीवन में ज्ञान को प्रदान करने वाला है. व्यक्ति के जीवन को सही मार्ग पर ले जाने वाला है. 

हयग्रीव जयंती शुभ मुहूर्त पूजा समय

इस वर्ष हयग्रीव जयन्ती 19 अगस्त 2024 को सोमवार के दिन मनाई जाएगी

  • पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 18 अगस्त , 2024 को 27:09
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त - 19 अगस्त, 2024 को 23:56

हयग्रीव का रुप कैसा है

भगवान के इस रुप का वर्णन आधे मनुष्य और सिर घोड़े के जैसा होता है. यह दोनों का मेल प्रकृति और मनुष्य की निर्माण और उसकी नवीन चेतना को दर्शाता है. वेद, जिन्हें मधु और कैटभ नाम के दैत्य उठा ले गये थे, उनके उद्धार के लिए विष्णु ने यह अवतार लिया और सृष्टि का कल्याण किया.

हयग्रीव पौराणिक कथा

हयग्रीव की कथा का स्त्रोत अनेक ग्रथों में मौजूद है. इसमें से एक कथा महाभारत में भी है. यह कथा इस प्रकार है. - एक समय जब पृथ्वी चारों ओर से जलमग्न होती है. तब विष्णु को सृष्टि के निर्माण का विचार आता है. वह जगत की रचना के लिए योगनिद्रा का आवलम्बन कर जल में सो रहे थे. कुछ समय के पश्चात भगवान कानों से दो दैत्य प्रकट होते हैं. एक का नाम मधु और दूसरे से का नाम कैटभ होते हैं. दोनों दैत्य वहां उपस्थित ब्रह्मा जी को देखते हैं और ब्रहमा जी से वेदों चुराकर रसातल में चले जाते हैं.

वेदों का लुप्त हो जाना सृष्टि के ज्ञान को अंधकार में बदलने वाला होता है. चारों ओर एक अज्ञान का आवरण बढ़ने लगता है. सृष्टि के इस रुप को देख ब्रह्मा चिन्तित होने लगते हैं. वेद ही ब्रह्मा जी के चक्षु होते है जिनके अभाव में लोकसृष्टि का उचित रुप से पालन कर पाना संभव नही हो पाता है.

ब्रह्मा जी वेद प्राप्ति के लिए श्री विष्णु जी का स्मरण करते हैं और वेदों के उद्धार के लिए भगवान विष्णु की स्तुति करते हैं. तब भगवान जागते हैं और वेद को प्राप्त करने के लिए हयग्रीव का रुप धारण करते हैं. दैत्यों से वेद को प्राप्त कर वेदों का उद्धार करते हैं.

एक अन्य कथा - कथा अनुसार भगवान श्री विष्णु का सिर अलग होने और उस स्थान पर घोड़े के सिर कि स्थापना होती है जिस कारण वह हयग्रीव कहलाते हैं. कथा इस प्रकार है - शौनक आदि ऋषि सुत जी से श्री विष्णु के सिर के गायब होने की कथा के बारे में पूछते हुए कह्ते हैं कि “हे सूत जी ! हम सब के मन में इस अत्याधिक संदेह को दूर कीजिये की किस प्रकार श्री विष्णु का सिर उनके शरीर से अलग होता है और उस के बाद वे हयग्रीव कहलाये गए .यह आश्चर्यजनक घटना किस प्रकार हो सकती है. जिनकी प्रशंसा वेद करते हैं, देवता भी जिन पर निर्भर हैं, जो सभी कारणों के भी कारण हैं. यह कैसे संभव हुआ कि उनका भी सिर कट गया” अत: आप इस वृत्तांत का विस्तार रुप से हमारे समक्ष वर्णन कीजिये.

ऋषियों की बात सुन कर सूत जी बोले हे मुनि श्रेष्ठ ऋषियों, विष्णु के इस कार्य को ध्यान से सुनें. यह उन्हीं की रचना है. एक बार दस सहस्त्र वर्षों के चले आ रहे दैत्यों के साथ युद्ध के पश्चात जब भगवान थक गए थे. तब पद्मासन में विराजमान होकर अपना सिर एक प्रत्यंचा चड़े हुए धनुष पर रखकर सो जाते हैं.

उस समय इन्द्र तथा अन्य देवों ने एक यज्ञ का आहवान आरंभ किया.यज्ञ में ब्रहमा और भगवान शिव भी को भी बुलाया जाता है. जब देव भगवान विष्णु के पास वैकुंठ में जाते हैं लेकिन श्री विष्णु को वहां न पा कर उन्होंने ध्यान द्वारा उस स्थान का पता लगाया जहां भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे.

भगवान विष्णु को योगनिद्रा में सोता हुए देख देव एवं ब्रह्मा व शिव भगवान चिंतित हो गए. भगवान को कैसे जगाया जाए. यदि भगवान की निद्रा में बाधा डाली गयी तो वे क्रुद्ध होंगे ऎसे में ब्रह्मा जी ने वामरी कीट की रचना की ताकि वह धनुष के अग्र भाग को काट दे जिससे धनुष ऊपर उठ जाये और विष्णु निद्रा से जाग उठें.

ब्रह्मा जी ने कीट को धनुष काटने का आदेश दिया. आदेश अनुसार वामरी ने धनुष के अग्रभाग, जिसपर वह भूमि पर टिका था, को काट दिया.धनुष प्रत्यंचा टूट गयी और धनुष ऊपर उठ गया और एक भयंकर आवाज होती है.

विष्णु का सिर मुकुट सहित गायब हो गया, विष्णु के सिर - विहीन देह को देख देव चिंता के सागर में डूब गये तब ब्रह्मा जी ने वेदों को आदेश दिया कि वह महा माया देवी की स्तुति करें, ब्रह्मा के वचन सुनकर समस्त वेद महामाया देवी की स्तुति करने लगे.

महामाया देवी प्रसन्न होती हैं और कहती हैं कि कुछ भी बिना किसी कारण के नहीं होता है. अब सुनों हरि का सिर क्यों कट गया. बहुत पहले एक समय अपनी प्रिय पत्नी लक्ष्मी देवी का सुंदर मुख देख कर वे उन के समक्ष ही हंस पड़े. लक्ष्मी , विष्णु के हंसने पर क्रुद्ध हो गयी और भगवान के सिर को शरीर से अलग हो जाने का श्राप देती हैं. लक्ष्मी के श्राप कारण उन्हें यह कष्ट उठाना पड़ा है.

 

हयग्रीव महात्म्य

प्राचीन काल में एक प्रसिद्ध देत्य - ह्यग्रीव ने कठोर तपस्या की उसकी कठोर तपस्ता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहती हैं हयग्रीव माता से मुझे वर मांगता है कि मृत्यु कभी मेरे निकट ना आये और मैं अमर हो जाऊं. किंतु देवी अमरता का वरदान देने से मना कर देती हैं तब उससे कोई ओर वर मांगने को कहती हैं तब हयग्रीव कहता है कि मुझे वर दीजिए कि मेरी मृत्यु केवल उसी से हो जिसका मुख अश्व का हो. माता उसे वरदान देती है और वरदान को पाकर हयग्रीव ने अपना आतंक सभी ओर मचा दिया.

 

सूत जी बोले “देवी के वचन सुन कर देवताओं ने विश्वकर्मा से प्रार्थना करी की विष्णु का सिर लगा दें जिससे वह उस असुर का वध कर पाएं. विश्वकर्मा ने घोड़े का सिर काट कर विष्णु जी के शरीर पर लगा दिया. हयग्रीव बन कर भगवान ने उस दानव का अपनी शक्ति द्वारा वध कर दिया.