धन्वन्तरि जयंती 2024 - क्यों मनाई जाती है धन्वन्तरि जयंती और कब है पूजा का शुभ मुहूर्त समय

धर्म ग्रंथों में धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना गया है. धर्म ग्रंथों में प्रत्येक देवता किसी न किसी शक्ति से पूर्ण होते हैं. किसी के पास अग्नि की शक्ति है तो कोई प्राण ऊर्जा का कारक है, कोई आकाश तो कोई हवा का संरक्षक बनता है. इसी श्रेणी में धन्वंतरि जी चिकित्सा क्षेत्र में स्थान रखते हैं. आरोग्य देने वाले हैं. किसी भी प्रकार के रोग से बचाने वाले हैं.

धन्वन्तरि जयंती पूजा मुहूर्त समय

इस वर्ष धन्वन्तरि जयंती 30 नवंबर 2024 को  बुधवार के दिन मनाई जाएगी. धन्वन्तरि जयंती का पूजा समय इस प्रकार रहेगा-

धन्वन्तरि पूजा प्रातःकाल मुहूर्त - 06:26 प्रात:काल से 10:42 प्रात:काल

धनवन्तरि जयंती के दिन भगवान धन्वंतरि जी का पूजन किया जाता है. इस दिन आयुर्वेद से संबंधित वैध शालाओं में भी पूजन होता है. इस दिन औषधियों का दान करना अत्यंत ही शुभदायक माना गया है. मान्यता है कि इस दिन यदि कोई दवा इत्यादि दान किया जाए तो व्यक्ति को रोग से मुक्ति प्राप्त होती है.

समुद्र मंथन से प्राप्त हुए धन्वंतरि

धनवंतरि जी की कथा में सबसे प्रमुख कथा अमृत मंथन की है. अमृत मंथन के समय पर ही भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव होता है. धन्वन्तरि हिन्दू धर्म में एक देवता हैं. मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार भी माने जाते हैं. समुद्र मंथन के समय यही अमृत कलश को लेकर उत्पन्न होते हैं. अमृत को पाकर ही देवता शक्ति पाते हैं ओर दैत्यों को हरा कर विजयी होते हैं.

मान्यता अनुसार समुद्र मंथन का समय एक लम्बा समय था जिसमें प्रत्येक दिन कुछ न कुछ प्राप्त होता है., त्रयोदशी को धन्वंतरी का आगमन होता है. इस लिए दीपावली के दो दिन पहले धनवंतरि जयंती मनाई जाती है जिसे धनतेरस के नाम से भी जाना जाता है.

धनवन्तरि का स्वरुप

धनवन्तरि को भगवान विष्णु का ही एक अंश रुप माना जाता रहा है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से ऊपर के दोनों हाथों में चक्र और शंख धारण किए होते हैं. अन्य दो हाथों में से औषधि और अमृत कलश स्थित है.

धन्वंतरि पूजा विधि

  • धन्वंतरि जयंती के दिन प्रात:काल उठ कर स्नान इत्यादि कार्यों से निवृत्त होकर पूजा का संकल्प लेना चाहिए.
  • पूजा स्थान को गंगा जल का छिड़काव करके पवित्र करना चाहिए.
  • इसके बाद एक थाली पर रोली के माध्यम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए.
  • थाली पर ही मिट्टी के दीए को जलाना चाहिए. दीपक पर रोली का तिलक लगाना चाहिए.
  • भगवान धनवंतरी की पूजा घर में करें तथा आसन पर बैठकर धनवंतरी मंत्र “ऊँ धन धनवंतरी नमः”मंत्र का जप करना चाहिए.
  • धनवंतरी पूजा में पंचोपचार पूजा करनी चाहिए. धन्वंतरि देव के समक्ष दीपक जलाना चाहिए.
  • धन्वंतरि जी को फूल चढ़ाएं तथा मिठाईयों का भोग लगाना चाहिए.
  • देवता धनवंतरी की पूजा करें आरती करनी चाहिए. पूजा पश्चात परिवार के उत्तम स्वास्थ्य की कामना करनी चाहिए.

धनवन्तरि - आरोग्य के देवता हैं

भगवान धनवन्तरि को आयुर्वेद के प्रणेता कहा जाता है. कईऔषधियों की प्राप्ति इन्हीं के द्वारा ही प्राप्त हुई है. उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने वाले देवता भी हैं. भगवान विष्णु ने धनवन्तरि को देवों का चिकित्सक भी कहा है. पृथ्वी पर उपस्थित समस्त वनस्पतियों और औषधियों के स्वामी भी धन्वंतरि को ही माना गया है. भगवान धनवन्तरि के आशीर्वाद से ही आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

धन्वंतरी जयंती महत्व

धन्वंतरि जयंती के विषय में भागवत, महाभारत, पुराणों इत्यादि में उल्लेख प्राप्त होता है. कुछ कथाओं में थोड़े बहुत अंतर अवश्य प्राप्त होते हैं. किंतु एक बात मुख्य होती है की धन्वंतरि को समस्थ स्थानों पर आरोग्य प्रदान करने वाला ही बताया गया है. धन्वंतरि संहिता द्वारा ही देव धन्वंतरि के कार्यों का पता चलता है. यह ग्रंथ आयुर्वेद का मूल ग्रंथ भी माना गया है. पौराणिक मान्यता अनुसार आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था.

पौराणिक मान्यताओं और कथाओं के आधार पर कहा जाता है कि कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धनवंतरि जी का प्रकाट्य हुआ था. इस दिन को औषधालयों पर पूजन होता है ओर महत्वपूर्ण वस्तुओं की खरीदारी भी इस दिन किया जाना अत्यंत ही शुभदायक माना जाता है.

धनवंतरि जयंती के दिन मनाया जाता है धन तेरस

धन्वंतरि जी के जन्म समय को धनतेरस पर्व के रुप में मनाया जाता है. धनतेरस की कथा इस प्रकार है : - भगवान विष्णु पृथ्वी पर विचरण करने के लिए आते हैं, तो देवी लक्ष्मी भी उनके साथ चलने का आग्रह करती हैं. इस पर भगवान श्री विष्णु देवी लक्ष्मी से एक वचन लेते हैं की जो वो कहेंगे लक्ष्मी जी उसे मानेंगी. लक्ष्मी जी ने विष्णु जी की बात को मान लिया और उनके साथ पृथ्वी भ्रमण के लिए निकल पड़ती हैं.कुछ समय घूमने के बाद श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को कहा की वो अभी यहीं रुक जाएं और जब तक विष्णु जी न आएं वह उस स्थान से हटें नहीं. भगवान श्री विष्णु दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े.

देवी लक्ष्मी अपनी जिज्ञासावश, उनका कहना नहीं मानती और विष्णु जी के पिछे चल पड़ती हैं. कुछ ही दूर पर उन्हें खेत दिखाई दिया वहां के फूलों की सुंदरता से इतना मोहित होती हैं की वह उस उन फूलों को तोड़ कर अपने पास रख लेती हैं. जब आगे निकलती हैं तो गन्ने का खेत देखती हैं ओर उस खेत से गन्ने तोड़ कर उनका रस पी लेती हैं.

भगवान श्री विष्णु जी जब वापस आने लगते हैं तो उसी मार्ग पर लक्ष्मी जी को देख कर क्रोधित हो उठते हैं. वह देवी लक्ष्मी से नाराज़ होकर उन्हें सजा देते हैं. खेत से जो भी वस्तें उन्होंने ली होती हैं उसके बदले खेत के मालिक के पास 12 वर्ष तक रहने को कहते हैं. ये कहने के बाद भगवान श्री विष्णु लक्ष्मी जी को वहीं छोड़कर चले जाते हैं.

लक्ष्मी जी उदास हो जाती है और उस किसान के घर जाकर उसके घर काम करने देने की आज्ञा मांगती हैं. किसान गरीब होता है लेकिन लक्ष्मी जी को अपने पास रहने कि अनुमति दे देता है. धीरे धीरे समय बीतने के साथ ही लक्ष्मी की कृपा से किसान अमीर हो जाता है उसके घर में धन धान्य कि कोई कमी नहीं रहती है. 12 वर्ष बीत जाते हैं और लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार होती हैं. विष्णुजी, सामान्य रुप धरकर लक्ष्मी जी को लेने आते हैं.

किसान और उसकी पत्नी, लक्ष्मीजी अपने यहां से जाने नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है की वह उनके परिवार के लिए सौभाग्य लेकर ही आई थी. तब श्री विष्णु भगवान किसान को सचाई बताते हैं की लक्ष्मीजी का तुम्हारे पास किसी कारण से ही भेजा था अब उनकी सजा पूरी हो गयी है अब हमें जाने दो. किसान देवी का आंचल पकड़ लेता है और देवी लक्ष्मी को नही जाने देने की जिद्द करने लगता है. तब लक्ष्मीजी ने कहा-'हे किसान अगर तुम मुझे सदैव अपने पास रखना चाहते हो तो तुम कल घर को अच्छे से साफ करके रात्रि में घी का दीपक जलाकर मेरा पूजन करना ऎसा करने पर मैं हमेशा के लिए तेरे घर पर निवास करूंगी”. इसी तरह प्रत्येक वर्ष इसी तरह तेरस के दिन मेरा पूजन करने पर मै कभी तुम्हारे घर से दूर नहीं होउंगी. किसान मान जाता है. लक्ष्मी जी के कहे अनुसार पूजन करता है और तेरस पूजन करने पर वह सदा के लिए माँ लक्ष्मी का आर्शीवाद पाता है.