रांधण छठ - रंधन छठ व्रत कथा
रांधण छठ इसे ललही छठ और हलछठ व्रत भी कहते हैं. इसके अलावा इसे हलषष्ठी, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, कमर छठ या खमर छठ भी कहते हैं. इस दिन को माताओं द्वारा विशेष रुप से पूजा जाता है. माता और संतान के प्रेम का यह अटूट बंधन है जो रांधण छठ के रुप में मनाया जाता है. शास्त्रों में मान्यता है कि इस दिन भगवान बलराम की पूजा करने से संतान की रक्षा होती है. इस दिन भगवान बलराम की पूजा करने से संतान की रक्षा होती है क्योंकि इसी दिन बलराम का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है.
रांधण छठ संतान प्राप्ति का योग
रांधण छठ का व्रत विशेष रुप से संतान के कल्याण हेतु किया जाता है. अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना के साथ मातें इस व्रत को रखती हैं. निसंतान दंपत्ति भी संतान सुख के लिए इए व्रत को करके संतान का सुख पाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माताएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि और लंबी आयु की कामना से हलछठ व्रत रखती हैं. इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का भी जन्म हुआ था.
हलछठ व्रत पूजा विधि जो करती है आपकी मनोकामनाएं पूर्ण
हलछठ व्रत के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए पूजा कक्ष को साफ करके भगवान की पूजा करनी चाहिए. पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखा जाता है. शाम को पूजा और कथा पढ़ने के बाद फलाहार करना चाहिए. इस व्रत में नियमों का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस व्रत में कई नियमों का पालन करना होता है. इस व्रत में गाय का दूध या दही इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. साथ ही गाय के दूध या दही का सेवन भी वर्जित माना गया है. इस दिन केवल भैंस का दूध या दही ही खाया जाता है, साथ ही हल से जोता हुआ कोई अनाज या फल नहीं खाया जा सकता है.
रांधण छठ कथा
रांधण छठे से जुड़ी दो कथाएं बेहद प्रसिद्ध हैं. एक कथा अनुसार माता शीतला कथा का पूजन होता है. एक अन्य कथा ग्वालिन से संबंधित है.
ग्वालिन की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन समय में एक ग्वालिन थी. उसके प्रसव का समय बहुत निकट था. एक ओर वह प्रसव को लेकर चिंतित थी तो दूसरी ओर उसका मन दूध-दही बेचने में लगा हुआ था. उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो सब वहीं पड़ा रह जाएगा. यह सोचकर उसने दूध,दही के बर्तन सिर पर रखे और उन्हें बेचने चल दी, लेकिन कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा होने लगी. वह एक रसभरी के पेड़ की ओट में चली गई और वहीं एक बच्चे को जन्म दिया.वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध और दही बेचने चली गई. संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी. उसने गाय और भैंस के मिले दूध को भैंस का दूध कहकर सीधे-सादे ग्रामीणों को बेच दिया. उधर, जिस रसभरी के पेड़ के नीचे वह बच्चे को छोड़कर गई थी, उसके पास ही एक किसान खेत जोत रहा था. अचानक उसके बैल भड़क गए और हल की धार उसके शरीर में घुसने से बच्चा मर गया.
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया. उसने बच्चे के फटे पेट को रसभरी के पेड़ के कांटों से सिल दिया और उसे वहीं छोड़कर चला गया. थोड़ी देर बाद दूध बेचने वाली ग्वालिन वहां पहुंची. बच्चे की हालत देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है. वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता तथा गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता, तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती. अत: मुझे वापस जाकर गांव वालों को सब कुछ बताकर प्रायश्चित करना चाहिए. ऐसा निश्चय करके वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध,दही बेचा था. तब स्त्रियों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए तथा उसे क्षमा करने के लिए दया करके उसे क्षमा कर दिया तथा आशीर्वाद दिया.
जब वह अनेक स्त्रियों से आशीर्वाद लेकर पुनः रसभरी के पेड़ के नीचे पहुंची, तो यह देखकर आश्चर्यचकित हो गई कि उसका पुत्र वहां जीवित पड़ा है. तब से लोग भक्ति भाव के साथ रांघण छठ का व्रत एवं पूजन करते आ रहे हैं.
रांधण छठ अन्य कथा -शीतला माता कथा
एक नगर में एक महिला अपनी दो बहुओं के साथ रहती थी. सबसे छोटी बहू बहुत ही दयालु और भोली थी. रांधन छठ की शाम को सबसे छोटी बहू ने परिवार के लिए खाना बनाना शुरू किया. रात होने के कारण वह थक गई थी और उसे नींद आ गई. वह चूल्हे से अंगारे हटाना भूल गई. परंपरागत रूप से रांधन छठ पर शीतला मां सभी के घर जाती हैं और चूल्हे पर बैठी महिलाओं को आशीर्वाद देती हैं. उस शाम जब शीतला मां के घर पहुंचीं तो चूल्हे पर अंगारे देखकर वह बहुत क्रोधित हो गईं, शीतला मां ने क्रोधित होकर बहू को श्राप दे दिया कि जैसे मेरा शरीर जला है, वैसे ही तुम्हारे पुत्र भी जलेंगे. सुबह बहू उठी तो देखा कि उसका बेटा जलकर मर गया है. छोटी बहू की चीखें सुनकर सास और उसकी बड़ी बहू दौड़कर आईं और मृत बच्चे को देखा. सास ने कहा कि तुम रात को अंगारे डालना भूल गई और अब तुम्हें शीतला मां का श्राप मिल गया है. उसकी सास ने सुझाव दिया कि वह बच्चे को लेकर तुरंत शीतला मां की तलाश करे और उनसे क्षमा मांगे. वह अपने बच्चे को टोकरी में लेकर देवी को खोजने निकल पड़ी. यात्रा के दौरान बहू को दो झीलें दिखाई दीं, उसे बहुत प्यास लगी थी. जब वह पानी पीने गई तो उसे झील से आवाजें सुनाई दीं कि वह उसे यह पानी न पिए क्योंकि यह श्रापित है. जो भी पशु, पक्षी या व्यक्ति यह पानी पीएगा वह मर जाएगा. झीलों ने बहू से पूछा कि वह कहां जा रही है? और तुम क्यों रो रही हो? बहू ने सरोवरों से कहा कि वह शीतला माता से क्षमा मांगने जा रही है. सरोवरों ने बहू से मदद मांगी और कहा कि जब शीतला माता मिलें तो उनसे जरूर पूछें कि उनके सरोवरों का पानी जहरीला क्यों है. बहू आगे बढ़ी. वहां उसे दो बैल दिखाई दिए, उनके गले में आटा पीसने का भारी पत्थर बंधा था और वे लगातार लड़ रहे थे. उन्होंने उससे पूछा तुम कहां जा रही हो? उसने उन्हें अपनी कहानी सुनाई कि वह अपने बेटे को बचाने के लिए शीतला माता की खोज में निकली है. बैलों ने उससे कहा कि शीतला माता से पूछो कि हम हर समय लड़ते क्यों रहते हैं? उन्होंने उससे शीतला माता से उनकी समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए कहा. बहू आगे बढ़ती रही. उसे एक पेड़ के नीचे बैठी एक बूढ़ी महिला मिली, जिसके कपड़े गंदे थे. उसके बाल बिखरे हुए थे और वह अपना सिर खुजला रही थी. महिला ने बहू से कहा कि वह आकर उसके बालों को देखे. बहू का दिल बड़ा था और वह देखभाल करने वाली थी.
महिला बहुत आभारी हुई और राहत महसूस की. उसने बहू को आशीर्वाद दिया और आशा व्यक्त की कि उसकी इच्छा पूरी होगी. अचानक बिजली चमकी और उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया. तभी उसने देखा कि शीतला उसके बच्चे को गोद में लिए खड़ी हैं. बहू ने अपनी गलती के लिए शीतला माता से माफ़ी मांगी, माँ ने उसे आशीर्वाद दिया. फिर बहू ने शीतला माँ को दो झीलों के बारे में बताया. शीतला माता ने बहू को उनके पिछले जन्मों के बारे में बताया और कहा कि वे दोनों बहुत स्त्रियाँ लोगों को दूध और मक्खन में पानी मिलाकर पिलाती थीं उन्होंने स्वार्थी कर्म किए थे और अब अपने कुकर्मों का फल भोग रही हैं. तब शीतला माता ने बहू से कहा कि सरोवरों से जल लेकर चारों दिशाओं में 'मेरा' कहते हुए छिड़को और फिर थोड़ा पानी पी लो. वे अपने पापों से मुक्त हो जाएंगी.
तब बहू ने उन दो बैलों के बारे में पूछा और शीतला माता ने कहा कि पिछले जन्म में वे देवरानी-जेठानी थीं, यदि कोई उनके पास मदद के लिए आता तो वे केवल अपना स्वार्थ पूरा करवाती थीं. इसलिए आज आपस में लड़ती रहती हैं. शीतला माता ने बहू से कहा कि बैलों के पास जाओ और उनसे पत्थर हटाओ, उनका श्राप हट जाएगा. इसके बाद शीतला माता अंतर्धान हो गईं.
अपने मुस्कुराते हुए बेटे को टोकरी में लेकर घर वापस लौटते समय बहू बैलों के पास गई. उसने बैलों के पेट से भारी पत्थर हटा दिए और पीसने वाले पत्थरों के वजन के बिना शांत हो गए. फिर उसने दो झीलों का जल चारों दिशाओं में छिड़का और थोड़ा पी लिया. झीलों में जीवन लौट आया लोग इसका उपयोग करने लगे. फिर बहू घर गई और बच्चे को अपनी सास और ससुर की गोद में रख दिया, मुस्कुराते हुए और हँसते हुए वे सभी बहुत खुश होते हैं इस प्रकार संतान के सुख और परिवार की शांति को प्रदान करने वाला रांधण छठ व्रत भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है.