कब है फाल्गुन पूर्णिमा 2025 : व्रत कथा व पूजा विधि

फाल्गुन पूर्णिमा एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व एवं समय होता है जो धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वरुप में उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा का पर्व 14 मार्च 2025 के दिन मनाया जाएगा. फाल्गुन माह में आने वाली इस पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा-पाठ एवं अन्य धार्मिक कार्यों को करने के नियम बनाए गए हैं, जो दर्शाते हैं की किस प्रकार प्रकृति और मनुष्य के मध्य एक अत्यंत ही घनिष्ठ संबंध है. फाल्गुन पूर्णिमा के समय को धार्मिक अनुष्ठान कार्यों को किया जाता है.

फाल्गुन पूर्णिमा 12 पूर्णिमाओं मे सबसे आखिर में आने वाली पूर्णिमा है. हिन्दू नव वर्ष का आखिरी माह फाल्गुन माह होता है, और इसमें आने वाली पूर्णिमा भी बहुत महत्वपूर्ण होती है. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूर्ण स्वरुप एवं उसकी ऊर्जा का संचार भी तीव्र गति से होता है. ऎसे में बनाए गए अनुष्ठान एवं पूजन से हम उस सभी चीजों के मध्य स्वयं के तालमेल को बिठा सकते हैं.

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत

पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा आकाश में अपनी संपूर्ण कलाओं से पूर्ण होता दिखाई देता है. हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है और हर पूर्णिमा का पूजन में थोड़ी-थोड़ी भिन्नता भी दिखाई दे सकती है. लेकिन इसकी महत्ता सदैव एक स्वरुप में विद्यमान होती है. इस तिथि पर पूजा-पाठ, दान, पवित्र नदियों एवं धर्म स्थलों पर स्नान-दान का अत्यंत शुभदायक बताया गया है. यह जीवन और प्रकृति के साथ हमारे संबंधों की घनिष्ठा को भी पूर्णता देता है. पूर्णिमा तिथि के दिन गंगा व यमुना नदि के तीर्थस्थलों पर स्नान और दान करना मोक्षदायी एवं पुण्यदायी माना गया है.

इस दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन किया जाता है. फाल्गुन पूर्णिमा की कथा होली पर्व को भी दर्शाती है. यह कथा राक्षस हरिण्यकश्यपु और प्रह्लाद से संबंध रखती है. इस कथा अनुसार हरिण्यकश्यपु अपने पुत्र प्रह्लाद को मृत्युदण्ड देना चाहता है, क्योंकि उसका पुत्र श्री विष्णु का भक्त था और हरिण्यकश्यपु को ये बात सहन नहीं थी. वह श्री विष्णु को अपना शत्रु मानता था और जो भी श्री विष्णु की भक्ति करता उन्हें वह कष्ट व यातनाएं देता था. ऎसे में जब उसका पुत्र प्रह्लाद श्री विष्णु की भक्ति करता है तो वह अपने पुत्र से नफरत करने लगता है, और अनेक प्रकार के कष्ट देता है. पर श्री विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कोई कष्ट नहीं होता है.

इस कारण हरिण्यकश्यपु अपनी बहन होलिका को ब्रह्मा से मिले वरदान का लाभ उठाने को कहता है. होलिका को वरदान मिला था की वह अग्नि में नहीं जल सकती उसका अग्नि कुछ खराब नहीं कर सकती है. ऎसे में राक्षसी होलिका, प्रह्लाद को जलाने के लिए अग्नि में बैठ जाती है. पर श्री हरि की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहता है और होलिका जल जाती है.

इसलिए प्राचीन समय से ही फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन व पूजन किया जाता है. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकड़ी-उपलों से होलिका का निर्माण किया जाता है. शुभ मुहूर्त समय के दौरान होलिका दहन किया जाता है और पूजन संपन्न होता है.

फाल्गुन पूर्णिमा पूजन विधि

  • धर्मशास्त्रों के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन तीर्थस्थल पर जाकर स्नान करना चाहिए यदि यह संभव नहीं हो सके तो नहाने के पानी में कुछ बूंदें गंगा जल की डालकर घर पर भी स्नान किया जा सकता है.
  • प्रातःकाल संकल्प लेकर पूर्ण विधि-विधान से चंद्रमा का ध्यान एवं पूजन करना चाहिए.
  • चंद्रमा की पूजा करते समय चंद्र मंत्र “ऊँ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम:” का जाप करना चाहिए.
  • भगवान शिव का पूजन एवं शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए.
  • माता पार्वती का पूजन भी करना चाहिए यह अत्यंत शुभफलदायी माना जाता है.
  • पूर्णिमा तिथि में चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए क्योंकि इससे सभी सुखों एवं मानसिक शांति की प्राप्त होती है.

पूर्णिमा समय : चंद्रमा के पूजन का विशेष समय

फाल्गुन पूर्णिमा के समय चंद्र देवता का पूजन मुख्य रुप से होता है. मान्यता है की फाल्गुन माह में चंद्रमा के जन्म को भी जोड़ा गया है. चंद्रमा के देवता भगवान शिव को कहा गया है. भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण किया है. जिसे हम इन उक्तियों से भी समझ सकते हैं :-

"नमामि शशिनं भक्त्या, शंभोर्मुकुटभूषणम्।"

इसलिए चंद्रमा के पूजन में भगवान शिव के पूजन का भी विशेष रुप से महत्व बताया गया है. चंद्रमा का गोत्र अत्रि तथा दिशा वायव्य बतायी गयी है. चंद्रमा को सोमवार के दिन से जोड़ा जाता है अर्थात सोमवार के दिन चंद्रमा का पूजन विशेष होता है इसके साथ ही पूर्णीमा के दिन यदि सोमवार हो तो यह भी अत्यंत शुभ योग होता है.

चंद्रमा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए कहा गया है कि पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्वार भाटा अत्यंत विशाल रुप में होता है. पूर्णिमा के दिन ही मनुष्य के मन मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. मनुष्य की चेतना का प्रवाह अधिक गति से आगे बढ़ता है. हमारे शरीर पर इसके प्रभाव का मुख्य कारण इसलिए भी है की हमारे शरीर में जल की मात्रा अत्यधिक होती है, यह चंद्रमा के प्रभाव में आने के कारण इस तिथि समय अत्यंत विस्तृत होती जाती है.

इस समय पर अगर हम विशेष रुप से चंद्रमा की पूजा उपासना करते हैं तो हमारे भीतर मौजूद नकारात्मकता और अंधकार दूर होता है. मानसिक रुप से हमें मजबूती प्राप्त होती है. ज्योतिष की अवधारणा अनुसार भी पूर्णिमा तिथि समय पूजन चंद्र देव का पूजन किया जाए तो चंद्रमा के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और मानसिक शक्ति को भी बल मिलता है. ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा शुभ और एक सौम्य ग्रह माना जाता है. स्त्री तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. चंद्रमा में ही अमृत का वास भी माना गया है और औषधियों पर भी चंद्रमा का प्रभाव लक्षित होता है. ऎसे में चंद्रमा के महत्व को केवल वैज्ञानिक रुप में ही नहीं दर्शाया गया है अपितु यह हमारी आध्यात्मिक चेतना और जीवन पर भी इसके स्वरुप को आसानी से समझा जा सकता है.

फाल्गुन पूर्णिमा उत्सव होली

हिंदू पंचांग अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली का त्यौहार भी संपन्न होता है. रंगों से भरपूर ये त्यौहार जीवन की निराशा को दूर करते हुए नव जीवन के रंगों में रंगने का संदेश देता है. बुराई पर अच्छाई की विजय का संकेत बनता ये त्यौहार फाल्गुन पूर्णिमा के रंग को बढ़ा देता है. मस्ती और उल्लास से भरपूर ये समय सभी के जीवन को प्रभावित करता है.