यमाय दीपदान - दूर होता है अकाल मृत्यु का भय समाप्त

हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में यम को मृत्यु का देवता बताया गया है. यम जिन्हें यमराज व धर्मराज के नाम से भी पुकारा जाता है. वेद में भी यम वर्णन विस्तार रुप से प्राप्त होता है. यमराज, का वाहन महिष है अर्थात भैसा. भैंसे पर सवार दण्डधर सभी प्राणियों के लिए मृत्यके देव हैं. सभी जीवों के अच्छे और बुरे कर्मों का निर्धारण करते हैं. यमराज को दक्षिण दिशा के का स्वामी, दिकपाल बताया जाता है.

यम दीपदान पर करें इन नामों का स्मरण

यमाय दीपदान के समय पर यम देव के अनेक नामों का स्मरण करना अत्यंत ही शुभदायक माना जाता है. यमराज के मुख्य नाम इस प्रकार हैं - धर्मराज, मृत्यु, यम, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, चित्रगुप्त, परमेष्ठी, चित्र और वृकोदर इन नामों से यमराज की पूजा होती है.

यमाय दीपदान पौराणिक कथा

यम दीपदान पर एक कथा अत्यंत प्रचलित है जो काफी प्रचीन काल से चली आ रही है. यह कथा हंसराज और हेमराज से जुड़ी हुई है. कथा इस प्रकार है - प्राचीन काल में एक राजा हुआ करता था. उस राजा का नाम हंसराज था. एक बार राज हंसराज अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने के लिए निकल पड़ते हैं. शिकार की तलाश में राजा बहुत आगे निकल जाता है और अपने सैनिकों से बिछड़ जाता है.

जंगल में भटकते हुए वह अंजाने मार्ग पर निकल पड़ता है. वह किसी दूसरे राज्य की सीमा में पहुंच जाता है. जिस राज्य में वह प्रवेश करता है उसका राजा हेमराज होता है. हेमराज के सैनिक उसे अपनी सीमा पर आता देख अपने राजा के पास ले जाते हैं. हेमराज, हंसराज का आदर भाव करता है. उस समय पर हेमराज को संतान रुप में पुत्र रत्न कि प्राप्ति होती है. इस शुभ समय पर राजा हंसराज को अपने राज्य में छठी महोत्सव तक रुकने का आग्रह करता है. हंसराज राजा कि बात मान कर उस महोत्सव में शामिल होता है.

बच्चे की छठी के दिन धार्मिक अनुष्ठा पूरे होते हैं. ज्योतिष के आचार्य बालक के भविष्य को देखते हुए कहते हैं कि यह बालक बहुत तेजस्वी होगा. पर उसके जीवन पर एक बार बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ेगा जो उसके जीवन को संकट में डाल देगा. बच्चे के विवाह होने के पश्चात विवाह के चौथे दिन बाद बालक की मृत्यु हो जायेगी. राजा हेमराज यह बात सुन अत्यंत दुखी हो जाता है.

तब हंसराज कहता है की आप परेशान न हों अपने बालका का लालन पालन करें. बालक को को एक भूमिगत महल बनवाकर, वही उसका पालन किया जाता है. समय बीतते-बीतते बालक बड़ा हो जाता है. युवराज जहां रहत अथा वहां एक बार राजा हेमराज की पुत्री उस स्थान पर आती है और उस स्थान पर राजकुमार को देख कर उस पर मोहित हो जाती है. वह दोनों गंधर्व विवाह कर लेते हैं. जब माता-पिता को इस बात का पता चलता है तो वह दोनों बच्चों को उस ज्योतिष भविष्यवाणी की बात बताते हैं जो राजकुमार के विवाह से जुड़ी हुई थी.

विवाह के चौथे दिन यमदूत वहां उस राजकुमार को लेने पहुंच जाते हैं. उस जोड़े को अलग करने का मन में दुख उन यमदूतों को भी होता है. विवाहिता बहुत विलाप करती है. वह उनसे प्रार्थना करती है की वह उसके सुहाग को न ले जाएं. पर वह दूत भी काल के अधीन होते हैं. वह उस राजकुमारी से कहते हैं यदि वह यम के निमित्त दीपदान करती हैं, तो उसके सुहाग की रक्षा हो सकती है. उस समय वह राजकुमार दक्षिण दिशा की ओर दीपक प्रज्जवलित करती है. अपने सुहाग की रक्षा हेतु प्रार्थना करती है.

दूत बिना उस राजकुमार के चले जाते हैं. यमराज दूतों से पुछते हैं की वह खाली हाथ क्यों आए हैं. दूत सारा वृ्तांत यमराज को सुना देते हैं. तब यमराज स्वयं वहां जाते हैं. राजकुमारी की निष्ठा और दीपदान को देख कर उनका मन भी द्रवित हो जाता है. नवविवाहित को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देते हैं. राजकुमार के प्राणों को मुक्त कर देते हैं. तब से यम के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और लम्बी आयु का आशीर्वाद मिलता है.

कुछ स्थानों पर इस कथा में भेद भी दिखाई देता है. जिसके अनुसार दूत उस राजकुमार के प्राण ले जाते हैं. जब वह यमराज के समक्ष उस नवविवाहिता राजकुमारी के दुख का वर्णन करते हैं. यमराज उस दशा को देख यमराज भी व्याकुल हो उठते हैं. वह कहते हैं की काल तो अपना कार्य अवश्य करेगा. पर अकाल मृत्यु से बचने के लिए यदि कोई व्यक्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस, चतुर्दशी और यमद्वीतिया को उपवास रखकर यमुना में स्नान करेगा. यम का पूजन करेगा और दीपदान करेगा उसे अकाल मृत्यु का भय कभी नहीं सताएगा.

यमाय दीपदान पूजा

स्कंदपुराण में वर्णित है -" यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति" अर्थात संध्या समय घर के बाहर यमदेव के लिए दीप रखने से अकाल मृत्यु का निवारण होता है. सूर्यपुत्र यम का दीपदान करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है. पूरे वर्षभर जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा सिर्फ दीपदान करके होती है. तो सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. यम के निमित्त दीप प्रदोषकाल जलाना चाहिए.

यम को दीपदान के लिए आटे का एक बड़ा दीपक तैयार किया जाना चाहिए. इसके उपरांत रूई लेकर दो लंबी बत्तियां बना लेनी चाहिए. उन्हें दीपक में इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुंह निकलें. इसमें सरसों या तिल के तेल से दीपक को भर देना चाहिए. इसके साथ ही दीपक में काले तिल भी डाल देने चाहिए.

प्रदोषकाल में दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करना चाहिए. घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी सी खील या गेहूं की ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना चाहिए. दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर रखने चाहिए. इसके बाद यमदेवाय: नम: कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करना चाहिए.

यमाय दीपदान महत्व

यम दीपदान और पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार यम के निमित्त दीपक जलाने से प्राणियों को मुक्ति प्राप्त हो पाती है. यम की पूजा का विधान प्राचीन काल से है. पूजन करने से व्यक्ति को रुप सौंदर्य की प्राप्ति होती है. पूजा और व्रत के प्रभाव स्वरूप उनका शरीर स्वस्थ एवं सुंदर होता है. पूजन हेतु एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाते हैं. सोलह छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, फूल इत्यादि से यम देव की पूजा करनी चाहिए. यमाय दीपदान के समय पर घर के या किसी भी निवास स्थान, भवन इत्यादि के मुख्य द्वार पर और अंदर भी दीप जलाने चाहिए.