जानें क्यों मनाई जाती है तीन साल बाद विभुवन संकष्टी चतुर्थी
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार होता है. इसे विशेष गणेश चतुर्थी व्रतों में से एक के रूप में भी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इसे अत्यधिक भक्ति के साथ मनाया जाता है. यह पर्व अधिकमास के दौरान मनाया जाता है, इस दिन भगवान गणेश के भक्त विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं, मंत्र जाप करते हुए पूजा द्वारा विशेष फलों की प्राप्ति होती है.
भगवान गणेश को हिंदू संस्कृति में सौभाग्य लाने वाले देवता के रूप में अत्यधिक माना जाता है, गणेश चतुर्थी, जो हर चंद्र माह में कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाई जाती है, वह दिन है जब हिंदू ग्रंथों के अनुसार आदि देव महादेव द्वारा श्री भगवान गणेश को सर्वोच्च प्रथम पूज्य घोषित किया गया था, हिंदुओं में यह मान्यता है कि गणेश चतुर्थी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन से सभी बाधाएं दूर हो सकती हैं, संकष्टी चतुर्थी पूजा और व्रत के महत्व का वर्णन भविष्यत और नरसिम्हा पुराण में किया गया है और कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का महत्व स्वयं भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था,
विभुवन संकष्टी चतुर्थी का पौराणिक रहस्य
इस चतुर्थी के विषय में कई कथाएं एवं मान्यताओं को सुना व देखा जा सकता है. यह बेहद लम्बे समय के बाद आने वाली चतुर्थी होती है. तीन साल बाद आने के कारण चतुर्थी बेहद शुभ और महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन की गई श्रीगणेश पूजा के द्वारा कई लाभ प्राप्त होते हैं. व्रत करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसके अलावा किसी भी प्रकार के कलंक से भी मुक्ति मिल पाना संभव होता है.
ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार चतुर्थी तिथि का स्वामी श्री गणेश जी को माना गया है. इसके साथ ही श्री पुराणों में गणेश जी के अवतरण की तिथि भी चतुर्थी ही है इसके चलते यह समय बहुत ही विशिष्ट बन जाता है. इसलिए गणेश चतुर्थी का त्योहार इतने उत्साह के साथ मनाया जाता है. अधिकमास में आने वाली संकष्टी चतुर्थी बहुत ही विशेष योगों से निर्मित होती है. यह जिस मास में आती है उसके अनुसार इसका फल मिलता है. भगवान शिव के भक्ति मय माह में श्रावण मास में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को विभुवन चतुर्थी के रूप में मनाया जाएगा. यह चतुर्थी इस समय के दोरान अत्यंत ही सकारात्मक फल देने वाली होती है. शिव परिवार की पूजा इस समय पर करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इसे आने में तीन वर्ष का समय लगता है और अधिकमास में आती है तो इसका प्रभाव मोक्ष प्रदान करने के समान माना गया है.
विभुवन संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
गणेश चतुर्थी का यह व्रत जब आता है तो उस दिन हवन, यज्ञ जैसे कार्यों को धार्मिक अनुष्ठा के रुप में किया जाता है. यह दिन उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है. भगवान श्रीगणेश की पूजा और स्मरण करते हुए इस दिन मंत्र जाप करना सभी कष्टों को दूर करने का एकमात्र अचूक उपाय है बन जाता है. चतुर्थी तिथि गणेश जी को अत्यंत प्रिय है और अधिकमास की विभुवन चतुर्थी जीवन में शुभ कर्मों को देने वाली होती है.
गणेश चतुर्थी का व्रत करने से पूर्व संकल्प लेना चाहिए. ऎसा करने से गणेश जी की कृपा से संकट टल जाते हैं. व्यक्ति के जीवन में आर्थिक समृद्धि का आगमन होता है. यह चतुर्थी का पूजन संतान का सुख प्रदान करने वाला होता है. विघ्नहर्ता विभुवन चतुर्थी की पूजा सभी कष्टों को दूर करने वाली है.चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए. श्री गणेश भगवान का स्मरण करना चाहिए. पूजा और व्रत का संकल्प लेना चाहिए. पूजा स्थल पर भगवान श्रीगणेश जी का आहवान करते हुए उनकी तस्वीर को पूजा स्थान पर रखना चाहिए. वहीं पर कलश में जल भरकर स्थापित करना चाहिए. भगवान श्रीगणेश जी की पूजा करनी चाहिए. शाम के समय धूप-दीप, पुष्प, अक्षत, रोली आदि से पूजन करना चाहिए. भगवान श्रीगणेश जी को पूजा में लड्डुओं का भोग अवश्य लगाना चाहिए. भोग को प्रसाद के रूप में सभी में बांट देना चाहिए.
गणेश चतुर्थी पर विघ्नहर्ता गणेश की पूजा करने से सभी समस्याओं का समाधान होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. परिवार में आर्थिक समृद्धि आती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चतुर्थी तिथि को भगवान श्री दीन गणेश की जन्म तिथि भी माना जाता है. इसलिए भगवान श्रीगणेश का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा करने की परंपरा है. गणेश चतुर्थी शुभता और खुशियां लाने वाली है.
विभुवन संकष्टी चतुर्थी का महत्व
विभुवन संकष्टी चतुर्थी से संबंधित कई कथाएं प्राप्त होती हैं जिसमें से एक का संबंध महाभारत काल से माना गया है तथा अन्य का संबंध श्री विष्णु लक्ष्मी विवाह से बताया गया है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब कौरव वनवास के समय पांडवों को शांति से नहीं रहने देते हैं. तब पांडव अत्यंत कष्टों का सामना करते हैं अपनी पहचन को छिपा पाना उनके लिए आसान नहीं होता है. ऎसे में द्रौपदी इस संकट से बचने का उपाय वेद व्यास की से पूछती है तब व्यास जी उन्हें विभुवन संकष्टी चतुर्थी का व्रत विधिपूर्वक अनुष्ठान करने के लिए कहते हैं. पांडवों के भक्ति भाव के साथ किए गए इस पूजन से गणेश जी का आशीर्वाद उन्हें मिलता है और उनके कष्ट दूर हो जाते हैं.
एक अन्य कथा अनुसार भगवान विष्णु माता लक्ष्मी जी से विवाह करने के लिए जाने लगे तो बारात में गणेश जी को शामिल नहीं किया जाता है और उन्हें घर की देखभाल के लिए रहने को कहा जाता है. तब नारद जी गणेश जी से कहते हैं की ऎसा नहीं होना चाहिए आपको भी साथ में लेकर चलना चाहिए था किंतु आपके स्वरुप के चलते ऎसा नहीं हो पाया. तब गणेश जी ने अपने वाहन मूषक द्वारा समस्त पृथ्वी को खोखला कर देने का आदेश दिया. पृथ्वी के खोखला होने से विष्नू जी का रथ उसमें अटक गया है और पहिया निकल नहीं पाता है. रथ का पहिया निकालने के लिए सारथी को कहा गया तब उसने रथ के पहिये को छूकर गणेश जी महाराज की जय बोलते हुए पहिया निकाल दिया. यह देख सब चकित रह गए. इसलिए कहा जाता है कि जब कार्य की शुरुआत में गणेश जी का स्मरण नहीं किया जाता है तो कार्य सिद्ध नहीं हो पाता है. तब सभी अपनी गलती का एहसास हुआ और गणेश जी को बुलाया गया और माफी मांगी गई फिर भगवान विष्णु का विवाह लक्ष्मी जी से संपन्न हो पाया.