राहु केतु को नवग्रहों में छाया ग्रह कहते हैं. इन दोनों ग्रहों का भौतिक अस्तित्व नहीं होने के कारण इसे इस नाम से जाना जाता है. यही दोनों ग्रह जब शेष सातों ग्रहों को अपनी छाया के अंदर ले लेते हैं यानी जब इन दोनों ग्रहों के बीच शेष सातों ग्रह आ जाते हैं तब कालसर्प नामक अशुभ योग बनता है. जिस प्रकार मंगल ग्रह के


शनि साढेसाती (Shani Sade Sati) का अर्थ गोचर में शनि का जन्म राशि से पहले की राशि पर, जन्म राशि पर व जन्म राशि से द्वितीय भाव की राशि पर भ्रमण से है. शनि एक राशि में ढाई साल रहते है. इस प्रकार वे तीन राशियों पर साढेसात साल में साढेसाती का भ्रमण पूरा करते है. बारह राशियों पर इनका भ्रमण पूरे 30 साल में जाकर पूरा होता है.


20 दिसम्बर 2009 को गुरू आपकी जन्म राशि में आ रहा है और 1 मई 2010 तक इसी राशि में भ्रमण करेगा. इस दौरान आपकी राशि में गुरू की लौहमूर्ति स्थिति रहेगी और यह घनिष्ठा नक्षत्र के दूसरे, चौथे एवं शतभिषा नक्षत्र के चारों चरणों तथा पूर्वाभाद्रपद के प्रथम, द्वितीय व तीसरे चरण में गमन करेगा. इन स्थितियों में आपको जीवन में कुछ चुनौतियों का सामना करना


कालसर्प एक अशुभ दोष है जो राहु केतु की विशेष स्थिति से बनता है. राहु केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है. यह चन्द्र के दो आभाषीय बिन्दु हैं जिन्हें ग्रहों के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह अभाषीय ग्रह किसी रूप में प्रमुख सात ग्रहों से कम नहीं हैं. शनि के बाद राहु ही वह ग्रह है कि जिसकी महादशा सबसे लम्बी होती है.


मीन राशि के जातकों पर कुम्भ में गुरू के गोचर का प्रभाव कई तरह से होगा, यह आर्थिक, पारिवारिक जीवन को प्रभावित करेगा. जन्म राशि से बारहवें घर में गुरू का गोचर करना कई विषयों में परेशानी दे सकता है अत: सोच विचार के साथ धैर्य पूर्वक कार्य करना आपके हित में होगा.


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जन्म राशि मकर से निकलकर कुम्भ राशि में प्रवेश करने पर गुरु का गोचर जन्म राशि से दूसरे भाव में होगा. जन्म राशि से दूसरी राशि में गुरू का आना आपके लिए बहुत ही शुभ फलदायी है. ये स्थिति इन दिनों आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा व्यवहार में भी बदलाव आएगा जिससे आपके सम्मान में वृद्धि होगी. गुरू का राशि परिवर्तन आपके लिए कई मायने में शुभकारी रहेगा. एक


ज्योतिषशास्त्र में यूं तो अनेकों प्रकार के कालसर्प दोष का जिक्र आया है लेकिन, मुख्य रूप से 12 प्रकार के कालसर्प दोष को देखा जाता है. इनमें से एक है कुलिक कालसर्प दोष. यूं तो भी सभी प्रकार के कालसर्प दोष अशुभ माने जाते हैं. परंतु, सभी प्रकार के कालसर्प दोष की अपनी-अपनी विशेषता है अपना- अपना


सिंह राशि के जातक के लिए गुरु का कुम्भ राशि में गोचर जातक को बहुत से बदलावों को देने वाला होता है. जब गुरु कुम्भ राशि में प्रवेश करेगा तो सिंह राशि से सातवें घर में गोचर करेगा. गुरू का यह गोचर लगभग 1 वर्ष तक प्रभाव देने वाला होगा. इस राशि में होगा. इस दौरान गुरू की स्वर्ण स्थिति रहेगी जो आपके लिए बहुत शुभ फलदायी होगा


गुरू अपनी नीच राशि मकर से निकल कर कुम्भ राशि में प्रवेश करने पर बदलाव दिखाता है. इस अवधि में गुरू का गोचर कन्या राशि के जातकों के लिए थोड़ा उतार-चढ़ाव वाला हो सकता है. चुंकि इस अवधि गुरू आपकी जन्म राशि से छठे घर में गमन कर रहा है, गुरू के कुम्भ राशि में गोचर का कन्या राशि के जातकों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है इसे जानने के जन्म कुंडली में स्थित


शनि को ज्योतिष शास्त्र में विच्छेदकारी ग्रह कहा गया है. एक ओर जहां शनि को मृ्त्यु प्रधान ग्रह माना गया है. वहीं दूसरी ओर शनि शुभ होने पर व्यक्ति को भौतिक जीवन में श्रेष्ठता भी प्रदान करते है. शनि के विषय में यह प्रसिद्ध है कि शनि अपने तुरन्त और निश्चित रुप से देते है. कई बार शनि कुण्डली में पाप प्रभाव में हों, तो शनि के फलों में देरी की संभावनाएं बनती है. ऎसे में


ज्योतिष शास्त्रों में शनि के विकृ्त रुप की व्याख्या अधिक की गई है. शास्त्रों में वर्णित शनि के इस रुप को जानने के बाद व्यक्ति का शनि की महादशा और शनि की साढेसाती से भयभीत होना स्वभाविक है. पर वास्तविक रुप में ऎसा नहीं है. जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते है. उसी प्रकार शनि भी अपने समय में व्यक्ति को जीवन के उच्चतम शिखर या निम्नतम स्तर में बिठा


गुरू अपनी चाल चलते हुए शनि की राशि कुम्भ में प्रवेश करने पर मिथुन राशि के जातकों के जीवन में नए बदलाव लाने वाले होंगे. गुरू के घर परिवर्तन पर सभी लोगों की निगाह टिकी रहती हैं क्योंकि, यह एक शुभ ग्रह है जो विवाह, संतान, धर्म, अध्यात्म, विद्या और बुद्धि का कारक माना जाता है. इसके राशि परिवर्तन से सभी व्यक्तियों को उनकी राशि के अनुरूप अलग अलग


नवग्रहों में अद्भुत शक्तियां है जिसके कारण इसे देवताओं के समान आदर दिया गया है. यह दवा की भांति व्यक्तियों को पीड़ा से उबारने में सक्षम होता है. इनमें कमज़ोर ग्रहों को बलवान बनाने की क्षमता होती है जिससे असंभव को भी संभव करने में भी राशि रत्न कारगर होते हैं. रत्नों का उपयोग ग्रहों की शांति में उपयोग किया जाता है. किसी भी ग्रह की शांति के लिए बहुत से


शादी कब होगी! यह प्रश्न भले है छोटा है लेकिन हमारे समाज के लिए यह एक अहम प्रश्न है. बच्चों के जन्म के साथ ही माता पिता उनकी शादी का सपना संजोने लगते हैं. जब युवावस्था में बच्चे पहुंचते हैं तो माता पिता अपने बच्चों के लिए योग्य जीवनसाथी की तलाश करने लगते हैं. यह तलाश जब लम्बी होने लगती है तो मन में प्रश्न उठने लगता है शादी


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