नवग्रहों में चन्द्र को रानी का दर्जा प्राप्त है. सूर्य के समान इसकी भी एक राशि है कर्क राशि जो जल तत्व की राशि होती है. इसे मन और चंचलता का कारक माना जाता है. जहां तक इसकी प्रकृति की बात यह है तो यह शांत व सौम्य ग्रह होता है. इसका रंग सफेद होता है. चन्द्रमा जब कुण्डली में किसी अन्य ग्रह के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो कुछ ग्रहों के साथ इसके परिणाम शुभ
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परम्परागत ज्योतिष (Traditional astrology) में लग्न राशि, भाव, भावेश तथा कारकतत्वों को ध्यान में रखते हुए फलादेश (Predictions) किया जाता है. लग्न में स्थित राशि की विशेषताओं के अनुसार लग्न भाव अर्थात व्यक्ति के शरीर का विचार किया जाता है. लग्न पर किसी प्रकार का कोई अशुभ प्रभाव होने पर शारीरिक क्षमता (physical capacity)
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लेखाविद का व्यवसाय आज के भौतिक युग में अत्यधिक प्रतिष्ठा, धन व शोहरत का प्रयाय बन गया है. बुध, गुरु , मंगल व शनि ग्रहों को संबध इस व्यवसाय के लिये अच्छा समझा जाता है. आवश्यक भाव: दूसरा, छठा, दशम, द्वादश व पंचम भाव (Second, Sixth, Tenth, Twelfth and Fifth House)
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सर्पों में सबसे पराक्रमी एवं पूज्य नाग शेषनाग हैं. इन्हीं शेषनाग के नाम पर कालसर्प दोष के बारहवें प्रकार का नाम शेषनाग कालसर्प दोष रखा गया है. शेष नाग के विषय में माना जाता है कि इनके सहस्रों फन हैं. इन्होंने अपने फन पर पृथ्वी को उठा रखा है. राहु केतु एवं अन्य ग्रहों की स्थिति से जब शेषनाग कालसर्प दोष (Sheshnag Kaalsarp Dosh) किसी व्यक्ति की कुण्डली में
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बुध को शुभ ग्रह के रूप में जाना जाता है. यह ज्ञान, बुद्धि व बुद्धि का स्वामी माना जाता है. (The voice and influential personality of the person is also considered through this planet) इस ग्रह की स्थिति से बोल-चाल के तौर तरीकों का भी विश्लेषण किया जाता है. बुध की विशेषता है कि यह दूसरे ग्रहों के गुणों को ग्रहण कर उसी के अनुरूप फल देता है.
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चन्द्रमा पृथ्वी से सबसे निकटतम ग्रह है. इसलिए इसका प्रभाव सबसे जल्दी होता है. ज्योतिषशास्त्र में इसे लग्न के समान ही महत्व दिया गया है. यह जिस राशि में स्थित होता है वही व्यक्ति की जन्म राशि कहलाती है, भविष्य कथन में बहुत से ज्योतिषी लग्न की बजाय इससे भी फलादेश करते हैं. आजीविका के संदर्भ में इस ग्रह की स्थिति भी काफी मायने रखती है. विशेषतौर पर अगर यह
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ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ और अशुभ योगों का वर्णन किया गया है. शुभ योगों में गजकेशरी योग को अत्यंत शुभ फलदायी योग के रूप में मान्यता प्राप्त है. (When Jupiter and Moon forms a conjunction or an aspect relationship in Kendra houses a Gajkesari Yoga is formed) यह योग गुरू व चन्द्र की केन्द्र में युति होने से अथवा केन्द्र स्थान में स्थित गुरू व चन्द्र
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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली का दसवां घर आजीविका स्थान कहलाता है. इसी घर से विचार किया जाता है कि व्यक्ति का कार्य क्षेत्र कैसा होगा तथा उनमें व्यक्ति की क्या स्थिति होगी. सूर्य का सम्बन्ध इस घर से होना आजीविका विषय में किन संभावनाओं को दर्शाता है यह आजीविका के क्षेत्र में संभावनाओं की तलाश करने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण विषय है.
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जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Astrology) के सिद्धांत कई मायने में पाराशरी ज्योतिष से अलग है उदाहरण के तौर पर देखें तो जैमिनी ज्योतिष में घर और राशियों का परिणाम एक ही होता है, परन्तु पाराशरी ज्योतिष में घरों और राशियों के परिणाम में विभिन्नताएं पायी जाती हैं. दोनों ही पद्धतियों में कारकों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है लेकिन, जैमिनी ज्योतिष (Jaimini
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ग्यारहवां प्रकार है. विषधर का अर्थ होता है विष धारण करने वाला. आमतौर पर यह शब्द जहरीले नागों के लिए प्रयोग किया जाता है. लेकिन, नवग्रहों में राहु एक ऐसा ग्रह है जो विष धारण करता है अत: इसे भी विषैला ग्रह या विषधर कहा जाता है. यह ग्रह जब जन्म कुण्डली में केतु के साथ एक विशेष योग बनता है तो उसे विषधर कालसर्प दोष के नाम से जाना जाता है. यह
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ज्योतिषशास्त्र में कालसर्प दोष को अशुभ एवं कष्टकारी माना कहा गया है. इसके मुख्य 12 प्रकार का जिक्र भी ज्योतिषशास्त्र में मिलता है. कुण्डली में 12 प्रकार के कालसर्प में से कोई भी कालसर्प हो तो वह कष्टदायक माना जाता है. फिर भी, दशम कालसर्प योग का नाम ऐसा है जिसे सुनकर लोगों के मन में भय हो सकता है क्योंकि, इस कालसर्प दोष का नाम है घातक कालसर्प दोष
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मुहूर्त के संदर्भ में वार, तिथि और नक्षत्र का अपना महत्व है परन्तु इन तीनों के योग से जो मुहूर्त बनता है उसका विशेष महत्व है (Muhurtha yogas may be made of Vaar, Tithi and Nakshatra). इसका कारण यह है कि जब हम वार, तिथि और नक्षत्र में से किसी एक के पक्ष से शुभ अथवा अशुभ समय का विचार करते हैं तो कई उत्तरदायी कारक पीछे छूट जाते हैं. परन्तु तीनों
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शंखचूड़ कालसर्प दोष (Shankachood Kaalsarp Dosha) कालसर्प दोष का नवम प्रकार है. शंखचूड़ नाग का जिक्र भी प्रमुख नागों के रूप में धार्मिक पुस्तकों में मिलता है. कालसर्प दोष के विषय में कहा यह जाता है कि यह उस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है जिन्हें पूर्व के अपने कर्म के प्रायश्चित हेतु पुनर्जन्म लेना पड़ता है. शास्त्रों के अनुसार संतान का कर्तव्य है कि वह अपने
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ज्योतिष शास्त्र में शुभ और अशुभ योगों का वर्णन मिलता है (Jyotisha has both positive and inauspicious yogas). इन योगों में एक योग है श्रापित योग इसे शापित दोष भी कहा जाता है. इस योग के विषय में मान्यता है कि यह जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उनकी कुण्डली में मौजूद शुभ योगों का प्रभाव कम हो जाता है जिससे व्यक्ति को जीवन में कठिनाईयों एवं
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राहु केतु की आकृति सर्प के रूप में मानी गयी है. कालसर्प दोष के निर्माण में इन दोनों ग्रहों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है. कर्कोटक कालसर्प दोष (Karkotak Kaalsarp Dosh) यह कालसर्प दोष का आठवां प्रकार है. कर्कोटक नाग का नाम भी धार्मिक पुस्तकों एवं कथाओं में कई स्थानों पर आया है. नल-दम्यंती की कथा
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महर्षि पराशर के अनुसार जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का आंकलन करने के लिए जन्म कुण्डली अति महत्वपूर्ण साधन है. कुण्डली से ज्ञात होता है कि विभिन्न समयों में, ग्रहों की युति और स्थिति के अनुसार व्यक्ति विशेष को किस प्रकार का परिणाम मिलने वाला है. इस सिद्धांत से अलग जैमिनी ज्योतिष की मान्यता है कि फलादेश के लिए ग्रहों के गोचर एवं अवधि आवश्यक
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व्यक्ति की कुण्डली के योग दशाओं में जाकर फल देते है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर अनेक राजयोग व धन योग बन रहे है. परन्तु फिर भी वह व्यक्ति साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहा है. तो समझ जाना चाहिए. की उस व्यक्ति को धन योग व राज योगों से जुडे ग्रहों की महादशाएं अभी तक नहीं मिली है.
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राजयोग को उत्तम योग माना गया है. यह बहुत ही दुर्लभ योग होता है जो भाग्यशाली व्यक्तियों की कुण्डली में पाया जाता है या यूं कह सकते हैं कि जिनकी कुण्डली में यह योग बनता है वह भाग्यशाली होते हैं. इस योग के विषय में जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Astrology) की अपनी मान्यताएं हैं. जैमिनी ज्योतिष पद्धति से देखिये क्या आपकी कुण्डली में यह योग बन रहा है.
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हर व्यक्ति का सपना होता है कि इस धरती पर उसका एक आशियाना हो. इसके लिए व्यक्ति हजारों सपने बुनता है लेकिन, यह सपना बहुत से लोगों के लिए सपना बनकर रह जाता है तो ऐसे भी बहुत से लोग हैं जिनका घर तो बन जाता है लेकिन, उस घर में आते ही उनकी परेशानियां बढ़ जाती हैं. इसका कारण वस्तु दोष एवं उनकी कुण्डली में स्थित राशि व ग्रहों का प्रभाव होता है. इस
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तक्षक नाग की कहानी हमारे कई धार्मिक पुस्तकों में मिलती है. माना जाता है कि तक्षक नाग काफी जहरीला था. इसमें इतनी शक्ति थी कि अपने विष से हरे-भरे वृक्ष को भी सूखा सकता था. कथा है कि एक बार महाराज परीक्षित को एक ऋषि ने शाप दे दिया कि तक्षक तुम्हें डसेगा जिससे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी. ऋषि के श्राप से
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ज्योतिष में न सिर्फ जन्म से व्यक्ति का भविष्य ही जाना जा सकता है, बल्कि कर्म से उसे उज्जवल बनाने का तरीका भी जाना जा सकता है. ज्योतिष का मुर्हुत अंग यह बताता है कि कब कौन सा कर्म किया जाये जिससे उससे सही फल की प्राप्ति हो सके. सही मुहुर्त (अर्थात समय) चुनकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जो कर्म हम करने जा रहे हैं वह पंचांग (Panchang) और
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उस कार्य के सन्दर्भ में तिथि ज्यादा उपयुक्त होती है जो कार्य तिथि से सम्बन्धित हो. जैसे- नन्दा तिथि खुशियों को बढ़ाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है इसलिए यह मनोरंजन पार्टी और मूवी रिलीज आदि से सम्बन्धित कार्यों के लिए शुभ फलदायी होती है. भद्रा से भाग्य का विचार किया जाता है और यह स्वास्थ्य, सफलता, नई नौकरी एवं व्यवसाय की शुरुआत तथा किसी महत्वपूर्ण
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एक चन्द्र दिवस को तिथि कहते हैं और इन तिथियों का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है. एक चन्द्र मास में कुल 30 चन्द्र दिवस अथवा तिथियां होती हैं. इन 30 तिथियों में पहली 15 तिथियां शुक्ल पक्ष और बाकी की 15 कृष्ण पक्ष की होती हैं. शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को चन्द्रमा पूर्ण होता है, इसलिए इस तिथि को पूर्णिमा कहा जाता है. कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि को अमावस्या कहा
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अगर सभी व्यक्ति अपने शौक को अपनी आजीविका का साधन बनाने लगे तो कितना अच्छा रहेगा. पर सदा ही ऎसा संभव नहीं होता है. कई बार व्यक्ति एसे क्षेत्र में काम कर रहा होता है जिसे करना उसे बिल्कुल पसन्द नहीं होता है. कुंडली के तीसरे घर को रुचि व शौक का घर कहते है. इस घर से पता चलता है की व्यक्ति को क्या पसन्द है और क्या नहीं. आईये रुचि व्यक्ति के
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चिकित्सक बनने के लिये किसी भी अन्य तकनीकी व्यवसाय की भांति दो चरण में जीवन को बांटा जा सकता है. पहले चरण में यह देखा जाता है कि क्या व्यक्ति में चिकित्सक बनने की शिक्षा लेने की संभावना है. उसका झुकाव इस क्षेत्र में है या नहीं है. दूसरे चरण में व्यक्ति में चिकित्सक पेशे में सफलता की संभावनाएं तलाशी जाती है. व व्यक्ति किस तरह की बीमारियों का इलाज
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महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू ने कई महाबली सर्पों को जन्म दिया. इन्हीं सर्पों में एक है महापद्म. यह भी नाग जाति का सर्प है जो वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म आदि के कुल का है. विष्णु पुराण में सर्प के विभिन्न कुलों में महापद्म का नाम भी आया है. कालसर्प दोष के कुल 12 प्रकार हैं जिसमें छठे प्रकार के कालसर्प दोष को कद्रू के
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गुरु(बृहस्पति) का गोचर जिस भी राशि में होता है उस राशि के प्रभाव स्वरुप जातक पर ग्रहों का प्रभाव भी पड़ता है. कुम्भ राशि में गुरु का गोचर तुला जातकों के लिए कई मायने में जातक लिए शुभकारी रह सकता है क्योंकि यह जन्म राशि से पांचवें घर में जा रहा है. इसके प्रभाव से जीवन में हर तरफ से कामयाबी व खुशी का संकेत मिल सकता है.
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ज्योतिषशास्त्र में अनेक योगों का वर्णन किया गया है. इन योगों में से कुछ योग शुभ फल देने वाले हैं तो कुछ अशुभ फलदायी. जन्मपत्री में शुभ योग की मौजूदगी की बात सुनकर जहां व्यक्ति प्रसन्न होता है वहीं अशुभ योगों का नाम सुनते ही उनके मन में भय पैदा होने लगता है. ऐसा ही एक अशुभ फलदायी योग है "कालसर्प दोष" (Kaal Saro Dosha). लोग इस दोष से काफी भय
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पद्मनाग कोबरा को कहते हैं. यह काफी विषैला सर्प होता है. इसका विष जहां इंसान की जान ले सकता है वहीं इसके विष से दवाईयां भी बनती है जिससे इंसान की जान बचाई भी जाती है. पद्म कालसर्प भी इसी प्रकार कालसर्प दोष है. इससे व्यक्ति को जहां कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है तो कभी-कभी इस
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कुम्भ राशि में गुरु का प्रवेश किसी न किसी रुप में अन्य राशियों पर भी प्रभावशाली होता ही है. इसी क्रम में वृश्चिक राशि पर गुरु के गोचर का दीर्घकालिक प्रभाव होगा. इस गोचर की अवधि में यह आपकी जन्म राशि से चौथी राशि में रहेगा. गुरू के गृह परिवर्तन का प्रभाव आपको कुण्डली में गुरू की स्थिति के अनुसार शुभ व अशुभ प्राप्त होगा. लेकिन आमतौर पर स्थिति यह