कुंडली में प्रथम भाव को लग्न भाव, पहला भाव, तनु भाव, केन्द्र और त्रिकोण भाव के रुप में जाना जाता है. लग्न को सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है. लग्न व्यक्ति की विशेषताओं, व्यक्तित्व लक्षणों, शारीरिक शक्ति, मानसिक शक्ति आदि के बारे में बताता
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चंद्रमा के साथ शुक्र का होना एक अनुकूल स्थिति का निर्देश देने वाला सिद्धांत है. यह दोनों ग्रह बेहद शुभ माने जाते हैं. चंद्रमा एक शीतल प्रधान ग्रह है वहीं शुक्र भी शीतल और शुभता प्रदान करने वाला ग्रह है. इन दोनों के मध्य भी आपसी संबंधों का
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मेष राशि में चंद्रमा का होना एक अनुकूल स्थिति होती है. मेष राशि में चंद्रमा शुभ असर देने वाला होता है. मित्र स्थान में बैठ कर चंद्रमा नेतृत्व की कुशलता देता है. मेष में चंद्रमा का प्रभाव स्वभाव में तेजी, उग्रता, साहस और व्यक्तिगत
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शुक्र विलासिता का ग्रह है जो जीवन के अनुपम सौंदर्य से संबंधित है. सौदर्य प्रेम, खुशी, आनंद, कला, खेल, नृत्य, आभूषण, सौंदर्य प्रसाधान, फैशन आदि का कारक शुक्र ग्रह ही है. शुक्र ग्रह जब वर्की होता है रो उसके फल भी वक्र होते हैं. वृश्चिक राशि
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नवमांश कुंडली में शुक्र का प्रभाव रिश्तों और विवाह संबंधों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. शुक्र ग्रह वैवाहिक जीवन, प्रेम और रिश्तों की स्थिति को दर्शाता है. शुक्र ज्ञान में परिष्कार करने वाला होता है. यह कलात्मक प्रतिभा, रोमांस और सुंदरता
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ज्योतिष में मंगल एक विशेष प्रभावी ग्रह है, जो अग्नि तत्व युक्त है और साहस पराक्रम का कारक बनता है. मंगल अगर प्रबल हो तो व्यक्ति चुनौतियों से कैसे निपटता है और लक्ष्य कैसे प्राप्त करता है यह बातें वह बहुत अच्छे से जान सकता है. मंगल ऊर्जा,
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गुरु का किसी भी राशि में होना उस राशि के साथ मिलकर गुण तत्वों को देने वाली स्थिति होति है. मिथुन राशि में जब बृहस्पति होता है तो ये समय बुद्धि और ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि का संकेत देता है. इसके पिछे का मुख्य कारण ये हैं कि गुरु ज्ञान है
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ग्रहों का अतिचारी होना मिलेजुले असर दिखाता है. कोई ग्रह जब अतिचारी होता है तो उसके परिणामों में भी तेजी आती है. इस समय फल की प्राप्ति होना मुश्किल होता है. इस समय ग्रह अपने प्रभाव को अनुकूल रुप में नहीं दे पाता है. ग्रह का अतिचारी होना शुभ
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शुक्र का धनु राशि में गोचर : प्रतिभा में आएगा निखार शुक्र का गोचर धनु राशि में होने पर शुक्र का प्रभाव अब काफी गतिशील दिखाई देने लगता है. इस समय के दौरान नई चीजों को अपनाना आसान होता है. कुशलता अच्छी होती है. रचनात्मक हों या बौद्धिक
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बृहस्पति का वक्री होना एक ज्योतिषिय घटना है. वृष राशि में गुरु का वर्की होना अच्छी स्थिति नहीं है. गुरु के वृष राशि में वक्री होने की घटना व्यक्ति के जीवन में नए बदलावों का संकेत देती है. अब जिद ओर महत्वाकांक्षाओं को लेकर इच्छा शक्ति अधिक
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बृहस्पति के मिथुन राशि में प्रवेश के साथ ही बदलने वाली है राशियों की स्थिति. गुरु के राशि परिवर्तन के साथ ही कई राशियों पर रहेगा इसका प्रभाव. गुरु का मिथुन राशि समेत सभी राशियों के जातक पाएंगे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में देख पाएंगे असर.
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वैदिक ज्योतिष में जन्म नक्षत्र उस नक्षत्र को कहते हैं जिसमें चंद्रमा जन्म के समय स्थित होता है. सत्ताईस नक्षत्र इस प्रकार हैं : अश्विनी नक्षत्र , भरणी नक्षत्र, कृतिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु
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ज्योतिष की विद्याओं में कई तरीके से कुंडली का अध्ययन किया जाता है. इसी में से एक तरीका भाव चलित कुंडली की जांच से भी देखा जाता है. ज्योतिष में कुंडली का विश्लेषण करते समय यदि चलित कुंडली से कुंडली में सभी ग्रहों के भावों पर विचार न किया
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ज्योतिष अनुसार जन्म कुंडली के सभी 12 भावों का जीवन पर खास प्रभाव होता है. इसी में से कुछ भाव त्रिषडाय कहलाते हैं जो कष्टदायक माने गए हैं. कुंडली का तीसरा भाव, छठा भाव और ग्यारहवां भाव त्रिषडाय/त्रिषढ़ाय कहलाता है. कुंडली में बारह भावों को
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सूर्य और शनि से बनने वाला षडाष्टक योग परेशानी और मुश्किल स्थिति का समय बताता है. सूर्य और शनि से बनने वाले 6/8 एक्सिस को ही षडाष्टक योग कहा जाता है. ज्योतिष अनुसार कुछ योग नकारात्मक रुप से असर दिखाते हैं जिसमें से एक योग है षडाष्टक योग यह
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शनि का गोचर मीन राशि में होना तुला राशि वालों के लिए रहेगा बेहद खास. तुला राशि के लिए शनि योगकारक ग्रह होते हैं. जब शनि मीन राशि में होते हैं तो तुला राशि वालों के छठे भाव को प्रभावित करने वाले होते हैं. तुला राशि वालों के लिए शनि चौथे और
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तुला संक्रांति, जिसे सूर्य के तुला राशि में प्रवेश का समय कहा जाता है. तुला सूर्य संक्रमण का वो खास समय होता है जब सूर्य दक्षिणायन की गति में आरंभ होता है. इस दिन को संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है इसे हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन
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ज्योतिष अनुसार लग्न कुंडली के साथ गर्ग कुंडलियों का महत्व प्रत्येक भाव को गहराई से समझने में मदद करता है. हर एक वर्ग कुंडली व्यक्ति के जीवन के किसी न किसी पक्ष को प्रभावितकरने वाली होती है. ज्योतिष में D6 चार्ट भी एक विशेष वर्ग कुंडली है.
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ज्योतिष में सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह शनि जब राशि बदलाव करता है तो वे बहुत ही विशेष समय माना जाता है. इसके गोचर का सभी राशियों पर स्थायी प्रभाव डालते हुए देखा जा सकता है. मीन राशि में शनि के महागोचर का समय अब कई बदलाव लाएगा और कन्या
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ज्योतिष के अनुसार, चिकित्सा ज्योतिष एक ऐसा माध्यम है जिसमें कुंडली में ग्रहों और भावों के माध्यम से स्वास्थ्य और दीर्घायु के योगों को समझा जाता है क्योंकि नौ ग्रहों और बारह भावों में से प्रत्येक का संबंध किसी न किसी बीमारी से होता है.