आपकी जन्मकुंडली में शनि -Shani in Your Kundli
शनि को ज्योतिष शास्त्र में विच्छेदकारी ग्रह कहा गया है. एक ओर जहां शनि को मृ्त्यु प्रधान ग्रह माना गया है. वहीं दूसरी ओर शनि शुभ होने पर व्यक्ति को भौतिक जीवन में श्रेष्ठता भी प्रदान करते है. शनि के विषय में यह प्रसिद्ध है कि शनि अपने तुरन्त और निश्चित रुप से देते है. कई बार शनि कुण्डली में पाप प्रभाव में हों, तो शनि के फलों में देरी की संभावनाएं बनती है. ऎसे में फलों के लिये शनि व्यक्ति को अत्यधिक प्रतिक्षा तो अवश्य कराते है, परन्तु फिर भी व्यक्ति को शनि से फल अवश्य प्राप्त होते है.
अगर जन्म कुण्डली में शनि की स्थिति शुभत्व हों तो, व्यक्ति इसके प्रभाव से व्यवस्थित, व्यवहारिक, घोर परिश्रमी , गंभीर स्वभाव व स्पष्ट बोलने वाला बना देता है. शनि के फलस्वरुप व्यक्ति की सोच में संकुचन का भाव आता है. शनि के सुस्थिर होने पर व्यक्ति भरपूर आत्मविश्वासी बनता है. शनि प्रबल इच्छा शक्ति देते है. जो लोग अत्यधिक महत्वकांक्षी होते है, उनमें महत्वकांक्षा का भाव शनि के प्रभाव से ही आता है.
शनि व्यक्ति को मितव्ययी बनाता है. कुण्डली में शनि का संबन्ध व्यय भाव से होने पर व्यक्ति व्यय करने में अत्यधिक सोच-विचार करता है. शनि से प्रभावित व्यक्ति प्रत्येक कार्य के प्रति सावधान रहता है. शनि व्यक्ति को व्यवसाय में कुशलता देते है. इनके प्रभाव से कार्य निपुणता में वृ्द्धि होती है.
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शनि का प्रभाव व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में दक्ष बनाता है. सामाजिक व आर्थिक स्थिति में बदलाव करने में शनि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. शनि व्यक्ति को त्यागपूर्ण जीवन जीने वाला बनाता है. इसके अतिरिक्त शनि का शुभ होने पर व्यक्ति विद्वान, उदार व पवित्र विचारों वाला बनता है. इनका आध्यात्म कि ओर विशेष रुप से झुकाव होता है. ऎसा व्यक्ति धर्म शास्त्रों का अध्ययन करने वाला होता है. लेखन में भी इन्हें यश व सम्मान प्राप्त होता है.
शनि अशुभ होकर स्थित हों तो व्यक्ति के मित्रों की संख्या कम होती है. व्यक्ति में शक का स्वभाव होता है. इस योग का व्यक्ति अपने मन की बात किसी को नहीं बताते है.
शनि की दृष्टि
शनि कि तीन दृष्टियां कहीं गई है. जिसमें सप्तम, तृ्तीय व दशम दृष्टियां है. सप्तम दृष्टि सभी ग्रहों को दी गई है. इसलिये इसे विशेष नहीं कहेगें. इसके अलावा शनि के पास तीसरी दृष्टि है. व कुण्डली के तीसरे भाव को पराक्रम का भाव कहा जाता है. यही कारण है कि शनि की तीसरी दृष्टि जिस भाव पर पडती है. व्यक्ति उस भाव से संबन्धित फलों के लिये पराक्रम का दिखाता है. इसी प्रकार शनि की दशम दृ्ष्टि जिस भाव से संबन्ध बनाती है. उस भाव से संम्बन्धित क्षेत्र को आजिविका क्षेत्र बनाने की संभावनाएं शनि देते है.
शनि की उच्च राशि
शनि तुला राशि में उच्च के होते है. एक ओर जहां शनि को वैराग्य का कारक ग्रह गया है. जबकि शुक्र वैभव व भोगविलास के कारक ग्रह है. फिर शनि का शुक्र की राशि में उच्च का होना दोनों ग्रहों की विशेषताओं में विरोधाभास उत्पन्न करता है.
इस के पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि धन-दौलत, ऎश्वर्य और भौतिक सुख- सुविधाओं की वस्तुओं जहां होती है. वहां व्यक्ति कर्म से पीछे हटता है. इस राशि में शनि का उच्च का होना व्यक्ति को इन सुखों को जीवन में बनाये रखने के लिये कर्म करते रहने की प्रेरणा देता है. यहीं कारण है कि शनि तुला राशि में गुरु के नक्षत्र के पास उच्च के होते है.
तुला राशि न्याय व समानता की प्रतीक है. शनि भी न्याय-समानता के कारक ग्रह है. दोनों का संबन्ध व्यक्ति को न्यायकारी बनाता है.