उत्तराषाढा़ नक्षत्र इक्कीसवां नक्षत्र है. उत्तराषाढा़ नक्षत्र अप्रैल के महीने में आकाश की उत्तर-दक्षिण दिशा में देखा जाता है. इस नक्षत्र में एक मंच का आकार प्रतीत होता है अर्थात पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढा़ के 4-4 तारे मंजूषा की भांति एक तारे पर लटके हुए दिखाई देते हैं. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शुक्र है और अधिष्ठाता देवता विश्वदेव हैं अर्थात देव समूह. . यदि कोई व्यक्ति अपनी शिक्षा शुरू करता है या शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहत है तो उसे उत्तराषाढा़ नक्षत्र समय देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए और अपनी विद्या का आरंभ इसी नक्षत्र से करना चाहिए जिससे उसके पास अच्छे ज्ञान प्राप्त करने का योग प्राप्त होगा.
उत्तराषाढा़ नक्षत्र में पैसा हुआ जातक व्यवहार कुशल होता है. जातक धार्मिक क्षेत्र में भी बहुत उदार और आस्थावान होता है. इस नक्षत्र के लोग अपने व्यवहार नम्र होते हैं. धार्मिक विश्वास से पूर्ण होते हैं. धार्मिक कार्यों में उन्हें विशेष रुचि होती है. इस नक्षत्र के लोग अपने संतान पक्ष से खुशी और सहयोग प्राप्त करते हैं. उत्तराषाढा़ नक्षत्र में पैदा हुए व्यक्ति को एक सुंदर और सहायक जीवन साथी मिल जाता है. इस नक्षत्र के लोग आकर्षक व्यक्तित्व रखते हैं और अपने वस्त्रों की ओर विशेष ध्यान भी देते हैं.
कोमल वचन बोलने वाले और दूसरों के प्रति आभार रखने वाले होते हैं.उन्हें पर्यटन में रुचि होती है और भ्रमण करना अधिक पसंद होता है. वे उन स्थानों पर जाना बेहद पसंद करते हैं जहां प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर हो. वे जंगल और पहाड़ी क्षेत्रों की यात्रा करना पसंद करते हैं. धार्मिक स्थानों पर भी जाते हैं.
व्यक्ति का वैवाहिक जीवन भी अच्छा होता है.उनके पास कई दोस्त होते हैं और उन्हें अपने दोस्तों का भी पूरा समर्थन व सहयोग मिलता है. धार्मिक कार्यों से जुड़े लोगों की मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं. इसके अलावा इन्हें दान आदि का काम करना भी पसंद आता है.
परिवार से स्नेह और सम्मान की प्राप्ति होती है. जातक का बचपन अच्छा व्यतीत होता है. भाई बंधुओं की ओर से भी जातक सुखी होता है. रिश्तों में आई दूरियों को दूर करने का प्रयास भी जातक करता है. दांपत्य जीवन में जीवन साथी की ओर से एक अच्छा सहभागी प्राप्त होता है. जीवन साथी जिम्मेदार और प्रेम करने वाला होता है. जातक को जीवन साथी के स्वास्थ्य से संबंधित चिंता अधिक हो सकती है. संतान सुख में कमी रह सकती है बच्चों की ओर से दुख प्राप्त हो सकते हैं. स्त्री पक्ष को जीवन साथी से अलगाव की समस्या परेशान कर सकती है. स्त्रियां अधिक धार्मिक और आस्थावान हो सकती हैं.
यह इक्कीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह सूर्य है. इस नक्षत्र के पहले चरण में जांघे आती हैं, ऊर्वस्थि रक्त वाहिनियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के दूसरे, तीसरे व चौथे चरण में घुटने व त्वचा आती है. इसके साथ ही कमर या कटी प्रदेश भी इसी के अंतर्गत आता है. यह एक कफ प्रधान नक्षत्र होता है. ऐसे में जातक को सर्दी जुकाम से बचकर रहने की सलाह दी जाती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इस नक्षत्र के अंगों से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है.
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के जातक वास्तुशिल्प कार्य और कलात्मक एवं रचनात्मक चीजों में अच्छा कर सकते हैं, इसलिए, ये लोग वास्तुकार, मैकेनिक, नक्शा निर्माता, इंजीनियर या कन्स्ट्रक्टर बन सकते हैं. औद्योगिक क्षेत्र में तरक्की पा सकते हैं. कुंडली में मंगल और सूर्य शुभ स्थिति में हैं तो जातक एक अच्छा प्रशासक और एक अच्छा नेता बन सकता है. यदि कुंडली में सूर्य और बृहस्पति मजबूत स्थिति में हैं तो जातक उच्च प्रशासनिक सेवाओं में अच्छी स्थिति को पा सकता है. व्यक्ति एक अच्छा लेखक बन सकता है, उसके पास एक अच्छे वक्ता के गुण भी होते हैं. कानून के क्षेत्र में वह अच्छी प्रसिद्धि और धन प्राप्त कर सकता है. पुरोहित, कथावाचक, परामर्शदाता, ज्योतिषीव उपदेश व प्रवचनकर्ता के रुप में अच्छा कर सकता है. पशु पालन, हाथियों का प्रशिक्षक, एथलीट जैसे की बाक्सर, जुडोकराटे या तलवार चलाने वाले खेलों में अच्छा कर सकता है. लेखक, अध्यापक, गुरु के रुप में भी बेहतर करने वाला होता है.
लग्न या चंद्रमा, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो, तो ऐसा जातक बडी़-बडी़ आंखों वाला, लम्बे मुख वाला, बोलने में कुशल किन्तु कम बोलने वाला, बुद्धिमान एवं कार्य कुशल होता है. लौकिक सुख के साथ साथ अध्यात्म के सुख को पाने में निपुण होता है. सज्जनों के दुख में दुखी होने वाला, न्याय प्रिय वें आत्मविश्वास से पूर्ण होता है.
लग्न या चंद्रमा, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो, तो जातक का रंग कुछ हल्का श्याम वर्ण का हो सकता है. जातक के आगे की दंत पंक्ति में परस्पर दूरी हो सकती है. सुंदर नाक और कम बालों वाला. यात्रा और संगीत को पसंद करता है. पतली देह से युक्त एवं कम बोलने वाला होता है. चंचल एवं अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने में सक्षम होता है.
लग्न या चंद्रमा, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो, तो व्यक्ति बड़े शरीर वाला, नाम में हल्का तिरछापन हो सकता है. बहुत बोलने वाला, अनेक स्त्री में रुचि रखने वाला, संगीत का प्रेमी होता है. शरीर में आलस्य अधिक हो सकता है. दूसरों के काम से अपने लाभ पाने वाला होता है. भौतिक सुख सामग्री का संग्रह करता है.
लग्न या चंद्रमा, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक को गीत संगीत में बहुत रुचि होती है. अपने क्षेत्र में नाम व प्रसिद्धि पाता है. बहुत से मित्रों और भाई बंधुओं से युक्त होता है. अपने मनोकुल काम करना ही इसे अधिक भाता है. साहस और पराक्र्म वाला होता है. अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने वाला होता है.
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 26:40 से 30:00 तक होता है. इसका अक्षर “भे” होता है.
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 00:00 से 03:20 तक होता है. इसका अक्षर “भो” होता है.
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 03:20 से 06:40 तक होता है. इसका अक्षर “जा” होता है.
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 06:40 से 10:00 तक होता है. इसका अक्षर “जी” होता है.
ॐ विश्वे अद्य मरुत विश्वSउतो विश्वे भवत्यग्नय: समिद्धा:
विश्वेनोदेवा अवसागमन्तु विश्वेमस्तु द्रविणं बाजो अस्मै ।
उत्तराषाढा़ नक्षत्र के बुरे प्रभावों से बचने के लिए जातक को भगवान गणेश की पूजा अराधना करनी चाहिए. संकट नाशन गणेश स्त्रोत का पाठ आपको कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला होता है. उत्तराषाढा़ के बीज मंत्र "ऊँ भाम् का जाप भी शुभ फल देने वाला होता है. जातक को श्वेत रंग, हलका नीला, नारंगी और पीला रंग उपयोग में लाना शुभदायक होता है. चंद्रमा का उत्तराषाढा़ नक्षत्र में गोचर होने पर यह मंत्र जाप उपाय विशेष लाभकारी होते हैं.
नक्षत्र - उत्तराषाढा़
राशि - धनु-1, मंगल-3
वश्य - चतुष्पद
योनी - नकुल
महावैर - सर्प
राशि स्वामी - गुरु-1, शनि-3
गण - मनुष्य
नाडी़ - अन्त्य
तत्व - अग्नि -1, पृथ्वी-3
स्वभाव(संज्ञा) - ध्रुव
नक्षत्र देवता - विश्वे
पंचशला वेध - मृग