स्वाति नक्षत्र फल

स्वाति नक्षत्र

27 नक्षत्रों की श्रृंखला में स्वाति नक्षत्र का स्थान 15वां है. यह कई तारों का समूह ना होकर केवल एक तारा है. यह आकाश में अपने आकार और फैलाव के कारण अंडाकार मूंगे, मोती या मणी के समान चमकता दिखाई देता है. स्वाति नक्षत्र भचक्र में तुला राशि के 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक स्थित है. राशि चक्र में 186:40 से 200:00 तक का इसका विस्तार क्षेत्र होता है. स्वाति नक्षत्र के नक्षत्रपति राहु हैं और इसके अधिष्ठाता देवता वरुण को माना जाता है.

स्वाति नक्षत्र का अर्थ शुभ नक्षत्रपुंज से लिया जाता है.चंद्रमा के स्वाति नक्षत्र में होने पर जब वर्षा होती है तो वह शुभत्व मानी जाती है. पौधों की शाखाओं का हवा में झुमना स्वाति नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है. तो कुछ स्थानों पर इस नक्षत्र को लाल मणि या मंगल के रत्न मूंगे द्वारा भी चित्रित किया जाता है.

स्वाति नक्षत्र - शारीरिक गठन और व्यक्तित्व विशेषताएँ

स्वाति नक्षत्र में जन्मा जातक अच्छी कद-काठी का होता है. जातक के चेहरे पर मुस्कान का भाव सदैव रहता है.

चाल में अधिक तेजी नहीं होती है. इनके पांव कुछ मुड़े हुए और घुटने उठे हुए हो सकते हैं. शारीरिक बनावट से सभी आकर्षित होते हैं.

स्वाति नक्षत्र का जातक हंसमुख मिलनसार प्रवृत्ति के होते हैं. अपने अच्छे शिष्टाचार के लिए जाने जाते हैं. जातक बुद्धिमान, विद्वान हैं और प्रभावशाली होता है. प्रशासनिक कार्यों में सक्षम होता है. वे अपने व्यवहार में कुशल होते हैं और इनमें नियंत्रित व्यवहार होता है,आत्म नियंत्रण अच्छा है. जातक आम तौर पर दयालु और कानून पालन करने वाला होता है जिसके तहत ये एक अच्छे नागरिक की भूमिका भी अदा करते हैं.

स्वाति नक्षत्र का देवता वायु हैं जिसके कारण इनके स्वभाव में बेचैनी का भाव भी देखा जा सकता है. बहुत लंबे समय तक एक ही स्थान पर नहीं रह सकते हैं. इस नक्षत्र की दिशा उत्तर पश्चिम है. वे वायुमंडल पर भी प्रभाव डालते हैं क्योंकि इस नक्षत्र में तूफान और घूमने वाली हवाएं होती हैं. स्वाति नक्षत्र में पैदा हुए जातक निवासी बुद्धिमान, विनोदी और महान विद्वान होते हैं.

आम तौर पर, जातक शांतिप्रिय होते हैं लेकिन जब इन्हें क्रोध आता है तो शांत करना कठिन होता है. अपने काम की आलोचना भी इन्हें पसंद नहीं आती है. दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. लेकिन स्वयं की स्वतंत्रता पर दखल पसंद नहीं करते हैं. जातक स्वभाव से कुछ संकोची लज्जावान और सौम्य प्रकृति का होता है. धैर्यशील होते हैं और परिस्थिति के सुधरने का इंतजार भी करते हैं यह आगे बढ़ कर स्थिति को संभालने और सुधारने की अधिक कोशिश नहीं करते हैं. दोस्तों के लिए बहुत अच्छे दोस्त हैं तो दुश्मनों के लिए बहुत प्रबल शत्रु भी बन जाते हैं.

पारिवारिक जीवन

स्वाति नक्षत्र जातक का पारिवारिक जीवन बहुत अधिक अनुकूल नहीं कहा जा सकता है. बाहरी रुप से लोग इन्हें बेहतर समझेंगे और इनको एक अच्छा दंपति दिखाई देगा लेकिन वास्तव में भीतर से ये ऐसे नहीं हो पाते. परिवार में और सामाजिक स्थिति के चलते इन्हें कई बार अपनी चाह के विपरीत कार्य करना पड़ सकता है. संतान की ओर से कुछ सुख प्राप्त होता है. कन्या संतती अधिक हो सकती है. जातक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करता है लेकिन कई बार मानसिक रुप से अस्थिर होकर मनमाने रुप से भी काम कर सकता है.

स्वास्थ्य

यह भचक्र का पंद्रहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह राहु है. त्वचा, गॉल ब्लैडर, गुरदे, मूत्रवाहिनी इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में आती हैं. ज्योतिषाचार्यों ने वक्ष या छाती को स्वाति नक्षत्र का अंग मानते हैं तो कुछ मुख, नासिका, कंठनली, उदर, गुदा, एवं मस्तिष्क के सभी अंगों पर इस नक्षत्र का प्रभाव मानते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से जुड़ी बीमारी होने की संभावना बनती है. स्वाति नक्षत्र को कफ प्रधान माना जाता है अत: जातक को वात और कफ से संबंधित रोग भी प्रभावित कर सकते हैं.

स्वाति नक्षत्र जातक का व्यवसाय

स्वाति नक्षत्र में पैदा हुए जातक साहसी, जानकार, वाकप्रचार और वैज्ञानिक ज्ञान रखते हैं अत: वे किसी भी प्रकार की नौकरी करने में सक्षम हो सकते हैं. सीखने-सिखाने, छुपे हुए जुनून और गुप्त कार्यों में अच्छा संचालन कर सकते हैं. विचारक, योगी और संतों के कार्य कर सकते हैं. यात्रा से जुड़े काम, दवा विक्रेता, अभिनेता या नाटककार हो सकते हैं. वस्त्र उद्योग- कपड़ा कार्यकर्ता, नौसेना का हिस्सा भी हो सकते हैं या ज्योतिषी या अनुवादक हो सकते हैं.

दुकानदार, व्यापारी, खेल कूद से जुड़े काम, खोजी और अन्वेषक बन सकते हैं. विमान उद्योग, परिवहन सेवा, समाचार वाचक, मंच संचालक का कार्य कर सकते हैं. साफ सफाई एवं संरक्षण के काम करने में रुचि ले सकते हैं. मुख्य रुप से इस नक्षत्र के स्वामी वायु देव हैं, इस कारण जातक वायु पर आश्रित सभी प्रकार के यंत्र, उपकरण एवं पैराशूट व ग्लाइडर इत्यादि व जैसे कार्यों में अच्छा कर सकते हैं.

स्वाति नक्षत्र का प्रथम चरण

लग्न या चंद्रमा, स्वाति नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक गौर वर्ण का, लम्बी नाक, उभरी हुई आंखों वाला हो सकता है. घोड़े के समान मुख वाला, पतले शरीर का होता है. सुंदर दंत पंक्ति, लम्बी उंगलियां, सुंदर पैर और गाल कुछ उभरे हुए होते हैं. जातक बुद्धिमान ओर प्रभु भक्त होता है. गर्दन कुछ छोटी होती है. माता-पिता की सेवा करने वाला होता है.

स्वाति नक्षत्र का दूसरा चरण

लग्न या चंद्रमा, स्वाति नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो जातक पतले कंधे और पतली भुजाओं वाला होता है. ऊंचे कद का होता है. अंग कुछ कमजोर हो सकते हैं. डरपोक हो सकता है दांत उभरे हुए हो सकते हैं. साधारण रंग का एवं सामान्य चरित्र वाला होता है. स्वभाव में उदासी अधिक दिखाई देती है. तरल आंखों वाला होता है.

स्वाति नक्षत्र का तीसरा चरण

लग्न या चंद्रमा, स्वाति नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो तो जातक गंभीर नजर वाला, चतुर व्यापारी हो सकता है. यात्राओं से धनार्जन करने वाला होता है. स्थिर मन का तथा मित्रों का प्रिय होता है. बालों में कोमलता का अभाव हो सकता है. मध्य नेत्र एवं नाक के नीचे दबाव होता है.

स्वाति नक्षत्र का चौथा चरण

लग्न या चंद्रमा, स्वाति नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक सुंदर नैन नक्श वाला होता है. शरीर में भारीपन हो सकता है या कुछ स्थूल होता है. गोरे रंग का बडी़ आंखों वाला. सीधी उठी हुई नाक, नाखूनों में चमक होती है. शास्त्रों को जानने वाला होता है तथा नीति व्यवहार में कुशल भी होता है.

स्वाति नक्षत्र के नामाक्षर

स्वाति नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 06:40 से 10:00 तक होता है. इसका अक्षर “रू” होता है.

स्वाति नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 10:00 से 13:20 तक होता है. इसका अक्षर “रे” होता है.

स्वाति नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 13:20 से 16:40 तक होता है. इसका अक्षर “रो” होता है.

स्वाति नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 16:40 से 20:00 तक होता है. इसका अक्षर “ता” होता है.

स्वाति नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ वायरन्नरदि बुध: सुमेध श्वेत सिशिक्तिनो

युतामभि श्री तं वायवे सुमनसा वितस्थुर्विश्वेनर:

स्वपत्थ्या निचक्रु: । ॐ वायव नम: ।

उपाय

स्वाति नक्षत्र के जातक के लिए माँ सरस्वती की आराधना करना शुभदायक होता है. इसके साथ ही सरस्वती मंत्र का जाप करना भी उत्तम फल प्रदान करता है. "ऊँ एँ ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै" का जाप करना उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है. श्वेत रंग के वस्त्र एवं हल्के रंग के वस्त्रों का चयन भी शुभदायक माना जाता है. चंद्रमा के स्वाति नक्षत्र में गोचर के समय सरस्वती पूजन विशेष फलदायी होता है. हीरा या जरकन भी इस नक्षत्र हेतु धारण किया जा सकता है.

स्वाति नक्षत्र अन्य तथ्य

नक्षत्र - स्वाति

राशि - तुला

वश्य - नर

योनी - महिष

महावैर - अश्व

राशि स्वामी - शुक्र

गण - देव

नाडी़ - अन्त्य

तत्व - वायु

स्वभाव(संज्ञा) - चर

नक्षत्र देवता - वायु

पंचशला वेध - शतभिषा


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