नक्षत्रों की श्रेणी में शतभिषा नक्षत्र 24वें नक्षत्र की श्रेणी में आता है. यह नक्षत्र कुम्भ राशि में आता है. 100 तारों का एक गोलाकार झुंड होता है. कुछ विद्वान इसे एक तारे वाला नक्षत्र मानते हैं तो अन्य आसपास के सौ तारों को मिलाकर इसे शतभिषा अर्थात सौ तारों वाला नक्षत्र मानते हैं. वहीं शतभिष्क् शब्द 100 का वाचक है इसलिए इसे संख्या के आधार पर नामकरण प्राप्त है. इसे शततारक के नाम से भी पुकारा जाता है.
विद्वानों अनुसार शतभिषा का आकार वृत्ताकार होता है. तो कुछ के अनुसार इसे चमत्कारी कड़ा, मंडल के रुप में देखा जाता है. शतभिषा नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता वरुण हैं.
शतभिषा नक्षत्र में जन्मा जातक कोमल शरीर का हो सकता है. जातक का माथा चौडा़ होता है, नेत्र आकर्षक होते हैं और चेहरे में चमक होती है. नाक कुछ ऊंची सी ओर पेट उभरा हुआ होता है. जातक की स्मरण शक्ति अच्छी होती है. शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से चंचल प्रवृति के होते है. जातक में सत्य के प्रति विशेष लगाव होता है. यह गलत बात बर्दाश नहीं करते हैं. सत्य के लिए प्राण तक दे सकते हैं. धार्मिक रुप से मान्यताओं पर चलने वाले होते हैं. निर्णय लेने में इन्हें सदैव दुविधा का सामना करना पडता है जिसके कारण इन्हें व्यावसायिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन दोनों में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
जातक में काम को करने की जल्दी रहती है ऐसे में जल्दबाजी में लिए गए फैसलों के लिए बाद में अफसोस करना पड़ सकता है. इसलिए हानि से बचने के लिए इस जातक को चाहिए कि वह बिना सोचे-समझे कोई कार्य नहीं करे. जातक में विद्वता होती है, वह बुद्धिमान होता है जीवन में बौद्धिक कार्यो के कारण सफल होता है. जातक सदाचारी प्रकृति का होता है वह धर्म-कर्म के कार्यो में रुचि लेता है. ऐसे व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास और उन्नति होती है.
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक स्वयं की सुरक्षा के प्रति अधिक सतर्क रहता है. जातक बुरे कार्यो में शीघ्र फंस सकता है. इसलिए उसे अच्छे लोगों की संगत को अपनाना चाहिए. उसके जीवन में अत्यधिक उतार चढाव रहते है. अपनी योग्यता सिद्धि करने की जातक में जिद हो सकती है. जातक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल होता है.
इस नक्षत्र में जन्मे जातक का क्रोध भी बहुत अनियंत्रित सा हो सकता है. पल भर में वो विध्वंसक बन सकता है लेकिन शांत भी जल्द ही हो जाता है. गोपनीयता और रहस्य पूर्ण व्यवहार के कारण ही इस नक्षत्र को अलग पहचान प्राप्त है और इस स्थिति का प्रभाव जातक में भी देखा जा सकता है. जातक के लक्ष्यों और भेद को जान पाना आसान नही होता है.
इस नक्षत्र में जन्मा जातक अपने परिवार के सदस्यों को बहुत प्यार करते हैं, लेकिन परिवार आपको ज्यादा पसंद नहीं करता है. आपको अपने पिता से ज्यादा प्यार व दुलार नहीं मिलता है और ना ही किसी तरह की देखभाल ही मिलती है. भाईयों की ओर से कष्ट और यातना मिल सकती है. बंधुजनों से भी कोई लाभ नहीं मिलता. माता की ओर से जातक को प्रेम और सहयोग प्राप्त होता है. प्रियजनों को आप भरपूर सहायता देते हैं. जीवन साथी की ओर से स्नेह और सहयोग प्राप्त होता है. पर यहां जीवन साथी के साथ अलगाव और विच्छोह की स्थिति भी रहती है.
शतभिषा नक्षत्र में देष कष्ट, मुख में पीडा़, टांगों और जंघा में दर्द, नशे के सेवन द्वार शारीरिक कष्टों का प्रभाव देखा जा सकता है. यह भचक्र का चौबीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी राहु है. जब्डा़, घुटनों व टखनों के बीच का भाग, पैर की नलियों की मांस पेशियाँ इस नक्षत्र के अन्तर्गत आती हैं. इसी के साथ इस नक्षत्र को वायु विकार देने वाला मना जाता है. यह नक्षत्र जब पीड़ित होता है तब इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बन सकती है.
शतभिषा नक्षत्र में जन्मे जातक को गुप्त विद्याओं में कार्य करने से सफलता मिल सकती है. जातक साहस और बल द्वारा अपने शत्रुओं को परास्त कर सकता है. इसके साथ ही बिजली का काम करने वाले कारीगर या इलैक्ट्रीशियन, प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं. किमोथेरेपी करने वाले चिकित्सक, अंतरिक्ष यात्री व विज्ञानी, पायलट, रेडियो आपरेटर, युद्ध कौशल दिखाने वाले लोग, फिल्म व दूरदर्शन में कार्यरत कर्मचारी इत्यादि इस नक्षत्र के कार्यक्षेत्र में आते हैं.
व्यक्ति वकालत के क्षेत्र में भी सफल होता है. जातक राजनीतिक गुरु विद्या में कुशल होता है. जातक के लिए ज्ञान और विद्या क्षेत्रों से जुडकर कार्य करना अनुकुल रहता है. जल परिवहन व नौकायान तथा जल से जुड़े अन्य कार्य क्षेत्र अनुकूल रहते हैं. मादक पदार्थों के विक्रेता और बनाने वाले, औषधि निर्माण से जुड़े लोग, देह व्यापार से जुड़े लोग, खोजी, शिकारी और अविष्कार कर्ता, पहेली सुलझाने के काम इसमें आते हैं.
लग्न या चंद्रमा, शतभिषा नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो जातक के शरीर में चमक होती है, वह बोलने में कुशल होत अहै. अच्छा वक्ता हो सकता है. प्रथम चरण मे जातक स्त्रियों का प्रिय भी होता है. जातक शास्त्रों का ज्ञान भी रखता है. जातक में उदारता और मिलनसार के गुण होते हैं. जातक अच्छे संगत में रहकर अपने लिए अच्छे मुकाम पा सकता है.
लग्न या चंद्रमा, शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो जातक दूर-दृष्टा होता है. व्यवहारिक दृष्टिकोण वाला और व्यवस्था करने में कुशल होता है. जातक गौर वर्ण का गंभीर व धैर्यशाली होता है. स्त्री प्रेम में आसक्त हो सकता है. शत्रुओं को परास्त करने वाला और रतिभोग में कुशल होता है. जातक को अपनी लौकिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए.
लग्न या चंद्रमा, शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो तो जातक तीखे स्वभाव का, सांवले रंग का, सिकुड़े से कान और गालों वाला, मोटे रोम वाला हो सकता है. बातों में छुपे रहस्य को जल्दी से समझ लेता है. जातक को लौकिक सुख एवं यश की प्राप्ति भी होती है. दार्शनिक व अध्यात्मवादी भी होता है.
लग्न या चंद्रमा, शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक रौबीले चहरे वाला होता है. कल्पनशीलता अच्छी होती है. संवेदनशील और दया करने वाला होता है. उच्च अधिकारियों का प्रिय हो सकता है. शिकारी जैसे स्वभाव का होता है. इस नक्षत्र पद पर यदि पाप प्रभाव आ रहा हो तो व्यसन का शिकार भी हो सकता है.
शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 06:40 से 10:00 तक होता है. इसका अक्षर “गो” होता है.
शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 10:00 से 13:20 तक होता है. इसका अक्षर “सा” होता है.
शतभिषा नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 13:20 से 16:40 तक होता है. इसका अक्षर “सी” होता है.
शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 16:40 से 20:00 तक होता है. इसका अक्षर “सू” होता है.
ॐ वरुणस्योत्त्मभनमसिवरुणस्यस्कुं मसर्जनी स्थो वरुणस्य
ॠतसदन्य सि वरुण स्यॠतमदन ससि वरुणस्यॠतसदनमसि ।
ॐ वरुणाय नम: ।
शतभिषा नक्षत्र के जातक के लिए भगवान शिव की उपासना करना बेहद लाभकारी होता है. भगवान शिव के "ऊँ नम: शिवाय" मंत्र का जाप एक माला करना भी हितकारी होता है. शनिवार, चतुर्दशी तिथि, सावन मास के अंतिम नौ दिन और चंद्रमा के शतभिषा में गोचर के समय "ऊँ लं" मंत्र का जाप किया जाए तो वह प्रभावशाली होता है. जातक के लिए नीले रंग के वस्त्र शुभता प्रदान करने में सहायक होते हैं.
नक्षत्र - शतभिषा
राशि - कुम्भ
वश्य - नर
योनी - अश्व
महावैर - महिष
राशि स्वामी - शनि
गण - राक्षस
नाडी़ - आदि
तत्व - वायु
स्वभाव(संज्ञा) - चर
नक्षत्र देवता - वरूण
पंचशला वेध - स्वाति