पुष्य नक्षत्र फल

पुष्य नक्षत्र

27 नक्षत्रों की श्रृंखला में पुनर्वसु नक्षत्र का आठवां नक्षत्र होता है. भचक्र में 93:20 डिग्री से 106:40 डिग्री के विस्तार का क्षेत्र पुष्य नक्षत्र कहलाता है. पुष्य नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता बृहस्पति हैं. राशि स्वामी चंद्रमा, स्वामी ग्रह शनि हैं. पुष्य नक्षत्र का अर्थ होता है - पोषण करने वाला, ऊर्जा एवं शक्ति देने वाला. कुछ के अनुसार इसे सुंदर पुष्प माना जाता है. पुष्य का एक अन्य प्राचीन नाम तिष्य है जो शुभ एवं सुख संपदा देने वाला होता है. इस नक्षत्र को महानक्षत्र और अत्यंत शुभ नक्षत्र माना जाता है.

तीन तारों वाला यह नक्षत्र एक सीध में स्थित तारों से बाण का आकार प्रदर्शित करता है. कुछ विद्वान तीन तारों में चक्र की गोलाई को देखते हैं, वे चक्र को प्रगति का चक्का मानते हैं. तो कुछ प्राचीन विद्वान इसे गाय का थन मानते हैं उनके अनुसार गाय का दूध अमृत रूप है जो पृथ्वी के लोगों का भरण पोषण करता है.

पुष्य नक्षत्र - शारीरिक गठन और व्यक्तित्व विशेषताएँ

पुष्य नक्षत्र जातक का शरीर पुष्ट व सुडौल होता है. व्यक्ति का चेहरा गोलाकार एवं कांति से युक्त होता है, मोटापा भी इन्हें प्रभावित करता है. शरीर पर कोई चिन्ह हो सकता है. इस नक्षत्र में जिसका जन्म होता है वे दूसरों की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. जातक लोकप्रिय एवं सभी से स्नेह एवं सम्मान पाने वाला होता है. जातक निष्ठावान, संयमी और सहयोग करने वाला होता है.

जातक को दूसरों की सेवा एवं मदद करना अच्छा लगता है, जातक को बाल्यावस्था में काफी परेशानियों से गुजरना पड़ सकता है. नक्षत्र का शुभ प्रभाव में होने पर जातक धनी व राजा सरीखा होता है. प्रजापालक व दूसरों का दुख दूर करने का प्रयास करता है. जातक सुख, संतोष सहयोग व सुरक्षा को अधिक महत्व देता है. वह सेवा सत्कार एवं सदाचार में युक्त होता है. अगर नक्षत्र पर पाप प्रभाव हो तो व्यक्ति आलसी व अकर्मण्य हो सकता है .जातक मिलनसार, अच्छे खाने का शौकिन होता है. सज्जनशील, धैर्यशाली, माता को समान देने वाला होता है.

जातक परिश्रम से पीछे नहीं हटता है, कार्य को लगन पूर्वक करने की क्षमता रखता है. अध्यात्म में काफी गहरी रूचि रखते हैं, यात्रा और भ्रमण के शौकीन होते हैं, मेहनत द्वारा धीरे-धीरे प्रगति पाते हैं मिलनसार स्वभाव के व्यक्ति होते हैं, सोच विचार करने के बाद ही धन खर्च भी करते हैं. जीवन में सत्य और न्याय को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं. सत्य से हटना नही चाहते, अगर किसी कारण वश इन्हें गलत का सहारा लेना पड़े तो ये उदास और खिन्न रहते हैं. ये आलस्य को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते, साथ ही एक स्थान पर टिक कर रहना पसंद नहीं आता चंचल हो सकते हैं.

पारिवारिक जीवन

परिवार में आपको बहुत से उतार-चढा़वों को झेलना पड़ता है. जातक को बहुत सी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ सकता है, पर अपनी इस स्थिति पर वह जल्द ही नियंत्रण पा लेता है. जीवन साथी के प्रति उसकी चाह होती है कि वह पूर्ण कुशल हो. वह साथी पर बहुत अधिक निर्भर हो सकता है या शक और अविश्वास भी दर्शा सकता है. लेकिन जो स्त्री होगी वह पूर्ण रुप से अपने पतिव्रता होती है. जातक अपने विचारों को दूसरों के समक्ष प्रस्तूत न कर पाए ऐसे में परिवार को उसके मन की थाह लगा पाना कठिन होता है. दांपत्य जीवन में प्रेम तो होग किन्तु अविश्वास भी झलकेगा.

स्वास्थ्य

इस नक्षत्र के अंतर्गत फेफ़ड़े, पेट तथा पसलियाँ आती हैं. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इससे संबंधित शरीर के अंग में पीड़ा पहुंचती है. मुख और चेहरा पुष्य का अंग होता है. चेहरे के भावों का पुष्य से संबंध होता है. गैस्ट्रिक परेशानी अल्सर, पीलिया एग्जिमा, खांसी और कैंसर जैसे रोग प्रभाव डाल सकते हैं. वहीं श्वास से संबंधित दिक्कतें भी हो सकती हैं. जातक को सर्दी जुकाम भी अधिक जल्दी प्रभावित कर सकता है.

पुष्य नक्षत्र जातक का व्यवसाय

पुष्य नक्षत्र के जातक के लिए धर्म गुरु, राज्याध्यक्ष, सांसद, विधायक, राजनीतिज्ञ से संबंधित काम हो सकते हैं. धर्म व दान संस्थाओं से जुड़े हो सकते हैं भूमि व भवनों से आमदनी हो सकती है. निजी सचिव रुप में भी कार्य कर सकता है. अध्यापन के कार्य शिक्षण संस्थाओं में काम कर सकते हैं. बच्चों की देखभाल, स्वयं सेवक व सेविकाएं, प्ले स्कूल, अनाथालय, भवन निर्माण तथा आवास बस्ती से जुड़े काम, कारीगरी, शिल्प कार्य से जुड़े काम हो सकते हैं.

गेहूं, गुड़, चीनी के उत्पादन और व्यवसाय, जंगलातों का कार्य, सलाहकार, मंत्री, राजनैतिक व प्रशासनिक संबंधी काम, गोताखोर, पारंपरिक कार्य, धार्मिक व सामाजिक उत्सवों के आयोजन से संबंधी काम हो सकते हैं. यज्ञ व कर्म काण्ड करने वाले काम इसी के अन्तर्गत आते हैं.

पुष्य नक्षत्र का प्रथम चरण

लग्न या चंद्रमा, पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक लालिमा युक्त वर्ण वाला हो सकता है, कला प्रिय किंतु लड़ने में उग्र होता है. बिलाव के समान मुख और नेत्रों वाला. त्यागशील, स्त्रियों के प्रति समर्पण का भाव रखने वाला, गैस अथवा श्वास रोग से प्रभावित हो सकता है.

पुष्य नक्षत्र का दूसरा चरण

लग्न या चंद्रमा, पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो जातक गौर वर्ण का, अधिक बोलने वाला, सुंदर कोमल शरीर एवं भावनाओं से युक्त, कम परिश्रम वाले काम करने में रुचि रखने वाला, थोड़ा आलसी भी हो सकता है. थुलथुल व स्त्री समान नाजुक शरीर वाला हो सकता है. जातक के मित्र बहुत होंगे, भूमि और मकान का स्वामी होगा. स्त्रियों का आदर करने वाला,

पुष्य नक्षत्र का तीसरा चरण

लग्न या चंद्रमा, पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में जातक अपनी बोलचाल से लोगों को प्रभावित कर सकता है. सांवला रंग बडा़ शरीर, लम्बा कद, झुकी भौंहें, सुंदर नाक. शरीर अंदर से कमजोर हो सकता है. दानी, अपने कुल के अनुसार कार्य करने वाला होता है. जल एवं उद्यान के समीप घर की इच्छा रखने वाला, विदेश में मेहनत करने वाला. जातक को संतान संबंधी परेशानी झेलनी पड़ सकती है.

पुष्य नक्षत्र का चौथा चरण

लग्न या चंद्रमा, पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक की वाणी में खनक होगी, गर्दन झुकी हुई सी और मिली हुई भौंहें हो सकती हैं. लम्बे हाथ पैर, सेवा भाव रखने वाला पर काम में आलसी और काम खराब भी कर सकता है. दबंग लेकिन बौद्धिकता में कमी भी झलक सकती है. दूसरों का धन गबन कर सकता है. बाहरी लोगों पर नेतृत्व की शक्ति रखेगा. .

पुष्य नक्षत्र के नामाक्षर

पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 03:20 से 06:40 तक होता है. इसका अक्षर “हू” होता है.

पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 06:40 से 10:00 तक होता है. इसका अक्षर “हे” होता है.

पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 10:00 से 13:20 तक होता है. इसका अक्षर “हो” होता है.

पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 13:20 से 16:40 तक होता है. इसका अक्षर “डा” होता है.

पुष्य नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु ।

यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम ।

ॐ बृहस्पतये नम: ।

उपाय

पुष्य नक्षत्र के पुरे प्रभावों से बचने के लिए गाय की सेवा करें, गौशाला में चारा दान करें, गुरु अथवा पंडित व ब्राह्मण को सामर्थ्य अनुरुप भेंट दीजिए. देवी माँ की उपासना करना शुभदायक होता है. बृहस्पति के मंत्र जाप करने चाहिए. सफेद, पीले, नारंगी रंग के वस्त्रों को धारण करन अभी अनुकूल होता है. चंद्रमा के पुष्य नक्षत्र में गोचर करने पर दान एवं जाप करना शुभदायक माना जाता है.

पुष्य नक्षत्र अन्य तथ्य

नक्षत्र - पुष्य

राशि - कर्क

वश्य - जलचर

योनी - मेढा़

महावैर - वानर

राशि स्वामी - चंद्र

गण - देव

नाडी़ - मध्य

तत्व - जल

स्वभाव(संज्ञा) - क्षिप्र

नक्षत्र देवता - गुरु

पंचशला वेध - ज्येष्ठा


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