रेवती नक्षत्र नक्षत्र को 27वें नक्षत्र का स्थान प्राप्त है. यह नक्षत्रों में से सबसे अंत में आता है. रेवती नक्षत्र 32 तारों के समूह से मिलकर बनता है जो दिखने में एक मृदंग की आकृति जैसा लगता है. रेवती मीन राशि में 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक के विस्तार क्षेत्र में आता है. रेवती का अर्थ धनी और जानी मानी प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता है, तो कुछ विद्वानों के अनुसार इसे शुभ परिवर्तन लाने वाला नक्षत्र भी कहा जाता है. इसके राशि पति देव बृहस्पति हैं और नक्षत्रपति बुध हैं. रेवती के अधिष्ठाता देवता पुशान हैं.
इस नक्षत्र के जातक पर गुरु और बुध दोनों का प्रभाव आता है. गुरु और बुध दोनों मित्र संबंध नहीं रखते है. इसलिए बुध महादशा के फल देखने के लिए इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति की कुंडली में गुरु और बुध की तात्कालिक स्थिति देखी जाती है.
रेवती नक्षत्र में जन्मा जातक अच्छी कद-काठी का और लम्बा और संतुलित शरीर वाला होता है. जातक का रंग साफ होता है. जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है. रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक मन से साफ और परिस्थिति के अनुरूप व्यवहार करने की कला को बहुत अच्छे से जानते हैं.
बहुत अधिक समय तक कोई बात गुप्त रख पाना इनके लिए कठिन होता है. जातक विद्या का अभिलाषी होता है. वह अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता है. रेवती नक्षत्र में जन्मा जातक किसी एक स्थान पर लम्बे समय तक टिक कर एक कार्य को नहीं कर पाता है. किसी भी काम को अधिक समय तक करते रहने पर उसकी एकाग्रता भंग हो जाती है अथवा उसे उक्त काम में बोरियत का अनुभव भी होता है. जातक तब कुछ और काम करना चाहता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी मानसिक रुप से परेशान करती हैं.
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक दूसरों पर बहुत जल्दी विश्वास नहीं करता पर जब वह विश्वास कर लेता है तब पूर्ण रुप से करता है. रेवती नक्षत्र संतुलन प्रिय नक्षत्र है. इस कारण जातक समाज और समाज की परंपराओं के प्रति स्नेह और आदर रखता है. जातक सुरुचिपूर्ण कार्य करने वाला होता है. समझदारी से और परिस्थिति के अनुकूल काम करने वाला होता है.
रेवती नक्षत्र को शुभ नक्षत्रों की श्रेणी में रखा जाता है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक दृढ़ आस्थावान होता है. विपरीत परिस्थितियों में भी मानसिक संतुलन और धैर्य बना कर रखता है. जातक संवेदनशील होता है संकट में पड़े लोगों की मदद को तत्पर रहने वाला होता है. वह सभी को स्नेह और सम्मान से देखता है. अति भावुक संवेदनशील होने के कारण वह जल्द ही आहत भी हो जाता है. उसका सभ्य व्यवहार सभी को आकर्षित करने वाला होता है.
अपनी योग्यता पर इनके स्वभाव में अहम भाव भी हो सकता है. बिना वजह के स्वयं पर गर्व करने की आदत इनके सम्मान में कमी का कारण बनती है. इसके अतिरिक्त इन्हें व विपरीत लिंग में भी अत्यधिक रुचि हो सकती है. कई बार ये अपनी बुद्धि का समय पर उपयोग करने मे असफल होते है. जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए इन्हें अत्यधिक परिश्रम करना पडता है. अनेक बार इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति गलत स्थान पर अपनी योग्यता को व्यर्थ कर रहे होते है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों को अपने व्ययों पर नियंत्रण रखना चाहिए. ऐसे व्यक्ति घूमने-फिरने के शौकिन होते है.
रेवती नक्षत्र में जन्मे जातक को परिवार के प्रति मोह रहता है. पर वह अपनी भावना को जता नहीं पाता है. जातक अपने जन्म स्थान से दूर ही रहता है. अपने सगे संबंधियों से उसे अधिक सहायता नहीं मिल पाती है. पिता की ओर से भी वह अधिक मदद प्राप्त नहीं कर पाता है. घर-परिवार में कलह का वातावरण उत्पन्न हो सकता है. लोगों से इनके छोटी बातों में मतभेद हो सकते है. इसी कारण इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति के अपने आस-पास के लोगों से संबंध अधिक मधुर नहीं रहते है. विवाह पश्चात दांपत्य जीवन सामान्य रहता है. जीवन साथी आपके समक्ष सामंजस्यता और स्नेह पूर्ण व्यवहार दिखाता है.
यह भचक्र का सत्ताईसवाँ व अंतिम नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अधिकार में पंजे व पैर की अंगुलियाँ आती हैं. इसके साथ ही पेट से संबंधित रोग, जंघा तथा घुटने का संबंध भी इस नक्षत्र से आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से जुड़ी बीमारी हो सकती है. इस नक्षत्र को कफ संबंधी प्रकृति का माना जाता है. जिसके चलते जातक पर मौसम का प्रभाव जल्द ही प्रभावित करता है.
रेवती नक्षत्र जातक को वैज्ञानिक अनुसंधान, ऐतिहासिक खोजों और प्राचीन संस्कृति की जानकारी प्राप्त करना पसंद होता है. ऐसे में इनके लिए यह क्षेत्र कार्य हेतु अधिक फ़ायदेमंद होता है. ज्योतिष एवं खगोल शास्त्र से जुड़े काम भी इन्हें पसंद आते हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर सकता है. अपने प्रयासों द्वारा ही जातक को अनुकूल सफलता प्राप्त होती है. इस के साथ ही, कला से संबंधित क्षेत्र में आपको बेहतर सफलता के योग मिल सकते हैं.
चित्रकारी, अभिनय, नट, विदूषक, संगीतज्ञ, भाषा का ज्ञान रखने वाला, जादूगर, रेल एवं सड़क बनाने की योजना व निर्माण से जुड़े लोग, भवन निर्माण, दैवीय चिकित्सक, प्रबंधक, स्वागत कर्ता, विमान परिचारिका, रत्नों का व्यापारी, जल परिवहन से संबंधित काम, अनाथ आश्रम, धार्मिक संस्थाएं, सुरक्षा कर्मचारी एवं वाहन चालक प्रशिक्षक, यातायात एवं परिवहन के कार्यों इत्यादि में इस नक्षत्र का प्रभाव रहता है.
लग्न या चंद्रमा, रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक सुंदर, गुणवान, छोटी नाक वाला और मुंह थोड़ा तिरछा करके बोलने वाला हो सकता है. जातक को अपनी एकाग्रता बनाकर रखने के उपाय करने चाहिए. प्रतापी, प्रसिद्ध और कार्यों को निपुणता से करने की कोशिश करता है. अपने प्रयास को बनाये रख व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने में सफल होता है. स्वभाव में कुछ अभिमानी भी हो सकता है.
लग्न या चंद्रमा, रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो जातक, अपने पर कुछ अधिक गर्व करने वाला इस कारण वह अभिमानी भी होता है. कहीं सचिव व सलाहाकर हो सकता है. परिवार और समाज में यथोचित सम्मान और स्नेह नहीं मिल पाता है, तिरस्कार का सामना भी करना पडता है. बलवान, श्रेष्ठ लोगों की श्रेणी में आता है, मन से उदास रह सकता है. परकार्य में उदासिनता एवं उसमें कुछ आलस्य का परिचय भी दे सकता.
लग्न या चंद्रमा, रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो तो जातक कुछ लम्बे कद का, बडे़ सिर वाला, आलसी स्वभाव का हो सकता है, बालों में रुखापन भी होता है, धन संचय करने में लगा रहने वाला हो सकता है. जातक प्रतियोगियों पर भारी पडता है. अपने शत्रुओं को परास्त करने में उसे सफलता प्राप्त होती है.
लग्न या चंद्रमा, रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक सामान्य कद का, कोमल भाषी और धैर्यवान हो सकता है. आंखें बड़ी व शरीर में कुछ चमक रहती है. शास्त्रों को जानने वाला होता है तथा नीति व्यवहार में कुशल भी होता है. किन्तु यहां पर वह किसी कारण से तनाव का कारण स्वयं भी बन सकता है. योग्य एवं उत्तम गुणों वाला होता है.
रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 16:40 से 20:00 तक होता है. इसका अक्षर “दे” होता है.
रेवती नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 20:00 से 23:20 तक होता है. इसका अक्षर “दो” होता है.
रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 23:20 से 26:40 तक होता है. इसका अक्षर “चा” होता है.
रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 26:40 से 30:00 तक होता है. इसका अक्षर “ची” होता है.
ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन ।
स्तोतारस्तेइहस्मसि । ॐ पूषणे नम: ।
रेवती नक्षत्र के जातक के लिए भगवान विष्णु की पूजा-उपासना करना अनुकूल माना जाता है. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ श्रवण एवं पठन शुभता प्रदान करने वाला होता है. जातक यदि चंद्रमा के रेवती नक्षत्र पर गोचर के समय "ऊँ लं" "ऊँ क्षं" "ऊँ ऎं" मंत्रों का जाप करे, तो यह उसके लिए सकारात्मक और सफलता देने वाला हो सकता है. इसी के साथ जातक के लिए हल्का नीला रंग, हरा अथवा मिले जुले रंगों का उपयोग करना भी अच्छा होता है.
नक्षत्र - रेवती
राशि - मीन
वश्य - जलचर
योनि - गज
महावैर - सिंह
राशि स्वामी - गुरु
गण - देव
नाड़ी - अन्त्य
तत्व - जल
स्वभाव(संज्ञा) - मृदु
नक्षत्र देवता - पूषा
पंचशला वेध - उतरा फाल्गुनी