27 नक्षत्रों की श्रृंखला में ज्येष्ठा 19 वां नक्षत्र है. मूल नक्षत्र में 11 तारे हैं, जो शेर की पूछ जैसे दिखाई पड़ते हैं. मूल नक्षत्र गण्डमूल में आते हैं. यह नक्षत्र धनु राशि के सून्य अंशों से 13ांश 20 मिनिट तक आता है. इसके अधिष्ठाता देवता नृति है. स्वामी ग्रह केतु है. मूल नक्षत्र का अर्थ जड़ से होता है.
मूल नक्षत्र में जन्मा जातक शारीरिक दृष्टि से अच्छा होता है, मध्यम रंग रुप वाला, सुंदर अंग और चंचल स्वभाव हो सकता है. लालिमा युक्त रंग हो सकता है. दांत छिदरे हो सके हैं अर्थात दांतों में कुछ जगह हो सकती है. जातक के नाक और कान व E कुछ मोटा हो सकता है. बले ही जातक दिखने में सुंदर न भी हो पर उसमें गजब का आकर्षण होता है. आंखों में चमक होती है, परिवार में यह सभी से अधिक आकर्षक हो सकता है.
मूल नक्षत्र में जन्म होने पर जातक पर गण्ड प्रभाव अधिक होता है. ऐसे में जातकों के लिए गण्डमूल की शांति कराना आवश्यक होता है. गण्ड के दोष निवारण से जातक को धन और सुख की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र के प्रभाव स्वरुप जातक का स्वभाव कुछ क्रोध वाल और कई मामलों में हिंसक भी हो सकता है. इनमें आक्रामकता बनी रह सकती है. जातक में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है. पर साथ ही मन के साफ होते हैं मन में कोई बात अधिक समय तक नहीं रख पाते हैं. जातक में क्रूर और निर्मम निर्णय लेने की जल्दबाजी देखी जा सकती है.
इनके गुस्से और आक्रामक विचारों को नकारते हुए यह भी कहा जाता है कि यह संयम और धैर्यशील होते हैं. मूल नक्षत्र के जातकों में भी अदृश और रहस्यपूर्ण बातों को लेकर बहुत जिज्ञासा होती है. वह चीजों का अन्वेषण और विश्लेषण करने वाले होते हैं. प्राय: जातक के स्वभाव में घमंड और स्वयं को श्रेष्ठ समझने की प्रवृत्ति भी होती है. हठी और साहसी होता है. एकाकी रहने में अधिक रुचि रख सकता है. कभी कभी छल और प्रपंच का सहारा लेकर दूसरों को छल भी सकता है.
धन धान्य से परिपूर्ण होते हैं. चातुर्य द्वारा अच्छा धनार्जन भी कर सकते हैं. स्वभाव में मौजूद क्रोध के कारण यह कलह का कारण भी बन सकते हैं. इस नक्षत्र के प्रभाव स्वरूप जातक का व्यवहार कुछ लापरवाह सा हो सकता है वह स्वयं में सीमित और अपने लक्ष्य के प्रति अधिक सजग रहने वाला होता है जिसके चलते इन्हें लोभी ओर अहम से युक्त भी माना जा सकता है. कई बार साफ सच्ची बात को मुंह पर बोलने के कारण इन्हें अशिष्ट और कटुभाषी भी कह दिया जाता है.
मल नक्षत्र में जन्मा जातक परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने वाला होता है. यह जीवन में अपने प्रयासों और मेहनत द्वारा लक्षय पाता है और परिवार की जिम्मेवारियों को पूरा करता है. माता-पिता की ओर से सामान्य सुख प्राप्त होता है. आर्थिक मदद नहीं मिल पाती है. विवाहित जीवन सामान्य होता है इनमें क्रोध ओर जल्दबाजी अधिक होती है जिस कारण इनके व्यवहार के साथ सामंजस्य बैठा पाना आसान नहीं होता है. दांपत्य जीवन में यदि उचित साथी मिल जाए तो एक सुख पूर्वक जीवन जी सकते हैं. स्त्री पक्ष को विवाह का सुख पूर्ण रुप से नहीं मिल पाता है. पति से विवाद और अलगाव की स्थिति भी झेलनी पड़ सकती है. संतान की ओर से भी चिंता अधिक रह सकती है. यदि शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो सुख मे वृद्धि होती है.
यह भचक्र का उन्नीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अंतर्गत कूल्हे, जांघे, गठिया की नसें, ऊर्वस्थि, श्रांणिफलक, दोनों पैर आदि अंग आते हैं. जातक को गठिया, कमर दर्द, कूल्हों और हाथ पैरों में दर्श की शिकायत भी हो सकती है. मूल नक्षत को वात से प्रभावित माना जाता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इस नक्षत्र से जुड़े अंगों से जुड़े रोग हो सकते हैं. यदि कुंडली में सूर्य चंद्रमा व शुक्र पापाक्रांत हों तो जातक क्षय रोग भी प्रभावित कर सकता है. इसके अलावा पेट से जुड़ी समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं जातक नशे में यदि पड़ जाए तो उसका नशे की लत से बाहर आना बहुत कठिन होता है. इसलिए किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना चाहिए.
पराशर ऋषि कहते हैं कि यह जातक मूल वस्तुओं अर्थात जो वस्तुएं वृक्ष एवं जीवों से प्राप्त एवं जमीन के अंदर
से प्राप्त होने वाली चीजों के द्वारा जीवन यापन कर सकते हैं. तंत्र एवं ज्योतिष से जुड़े काम, औषधि निर्माण, विश चिकित्सा, दंत चिकित्सा से जुड़े काम, मंत्रालय के काम, प्रवचन कर्ता, अधिकारी गुप्तचर के काम व जांच पड़ताल करने वाले लोग, न्यायाधीश, सैन्य अन्वेषण, शोधकर्ता, खगोल शास्त्री, वाव-विवाद में परामर्श देने वाले कार्य, जडी़ बूटी और कंद मूल के व्यापारी हो सकते हैं. इसके अलावा आत्मघाती दस्ते के सदस्य, काला जादू या भूत प्रेत सिद्ध करने वाले, कम्प्यूटर विशेषज्ञ , प्रदर्शन व रैली प्रबंधक, गुप्त खजाने के खोजी, कोयला पैट्रोलियम उद्योग व किसी भी प्रकार की खोज व जांच पड़ताल करने वाले काम, विनाश व विध्वंस से जुड़े विभिन्न कामों का संबंध मूल नक्षत्र के कार्यक्षेत्र में आता है.
लग्न या चंद्रमा, मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक सुंदर नाक और बड़ी बड़ी आंखों वाला होता है. चतुर एवं बुद्धि से धनी होता है,बोलने में स्पष्ट और पहले अपनी बात रखने वाला. सुंदर दांत कोमल रोम और अधिक क्रोध वाला हो सकता है. रंग साफ होता है.
लग्न या चंद्रमा, मूल नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो सिर ऊँचा होता है, छाती चौड़ी फैली हुई होती है. लम्बा कद और ठुड्डी लम्बी होती है. विचारों में जातक के कुछ स्थिरता देखी जा सकती है. जातक को खोज और शास्त्रज्ञान पसंद होता है. माता के स्वास्थ्य के लिए कुछ कम शुभ, धार्मिक विचारों वाला होता है.
लग्न या चंद्रमा, मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो तो जातक का शास्त्रों को जानने वाला होता है. बौद्धकता पूर्ण काम करने वाला, गंभीर स्वभाव सा दिखने वाला, नीति कुशल स्त्री का प्रिय एवं हास परिहास करने वाला होता है. आर्थिक रुप से सक्षम रहता है.
लग्न या चंद्रमा, मूल नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक हल्के से सांवले रंग का, बुद्धिमान, अभिनय में कुशल, सुंदर बालों वाला, लम्बी कद काठी वाला, भावुक एवं संवेदनशील होता है. व्यर्थ की चिंता में रहने वाला अध्यात्म को अपनाने वाला होता है.
मूल नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 00:30 से 03:20 तक होता है. इसका अक्षर “ये” होता है.
मूल नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 03:20 से 06:40 तक होता है. इसका अक्षर “यो” होता है.
मूल नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 06:40 से 10:00 तक होता है. इसका अक्षर “भा” होता है.
मूल नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 10:00 से 13:20 तक होता है. इसका अक्षर “भी” होता है.
ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त ।
ॐ निॠतये नम: ।
मूल नक्षत्र के बुरे प्रभावों से बचने के लिए जातक को माँ काली और भगवान शिव की पूजा उपासना करने का फल भी शुभदायक बताया जाता है. चंद्रमा का मूल नक्षत्र में गोचर होने पर मूल नक्षत्र के मंत्र और भगवान शिव व देवी माँ काली की उपासना एवं जाप करना उत्तम फल देने वाला व नक्षत्र शांति के लिए उपयोगी माना जाता है. जातक के लिए लाल, काले, सुनहरे गेरुआ रंग का उपयोग भी अनुकूल परिणाम देने वाला होता है. जातक के लिए लहसनिया और पुखराज धारण करना भी अनुकूल रहता है.
नक्षत्र - मूल
राशि - धनु
वश्य - नर
योनी - श्वान
महावैर - मृग
राशि स्वामी - गुरु
गण - राक्षस
नाडी़ - आदि
तत्व -ुअग्नि
स्वभाव(संज्ञा) - तीक्ष्ण
नक्षत्र देवता - राक्षस
पंचशला वेध - पुनर्वसु