27 नक्षत्रों की श्रृंखला में ज्येष्ठा 18 वां नक्षत्र है. जयेष्ठा नक्षत्र में तीन तारे होते हैं जो कुण्डल के समान आकृति दर्शाते हैं. तो कुछ के अनुसर यह गले में डालने वाले पेंडेन्ट के समान भी दिखाई पड़ता है. ज्येष्ठा नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता इन्द्र हैं और स्वामी बुध है. ज्येष्ठा नक्षत्र के अर्थ से तात्पर्य बडा़ होना या वृद्ध से होता है. ज्येष्ठा तारे का रंग लाल कहा जाता है. ज्येष्ठा नक्षत्र सबसे बडा़ या सर्वोच्च कहलाता है. कुछ प्राचीन विद्वानों के अनुसार यह नक्षत्र बडा़ व अधिक श्रेष्ठ होने से ज्येष्ठा कहलाया . कुछ विद्वान इसे आदि शक्ति के कान का झुमका मानते हैं.
ज्येष्ठ नक्षत्र गणमूल नक्षत्रों की श्रेणी में आता है. बुध और मंगल का प्रभाव इस नक्षत्र के जातक पर रहता है. इस नक्षत्र में मूल नक्षत्रों वाले प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं. ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए जातक में क्रोध की अधिकता होती है. महत्वाकांक्षी भी बहुत होते हैं. इन्हें दिखावा भी बहुत भाता है. संघर्ष द्वारा अपने लिए बेहतर स्थान भी पाते हैं. इस नक्षत्र के जातकों में काम वासना भी अधिक होती है. झूठ बोलना या किसी भी बात को बढा़-चढा़ कर बोलने की प्रवृत्ति भी इनमें देखी जा सकती है.
धार्मिक विचारधारा वाले होते हैं, अपनी स्थिति से कुछ संतुष्ट भी रहते हैं. पर चंद्रमा की स्थिति बेहतर न हो तो जीवन में असंतोष ही व्याप्त रहता है. जातक कम उम्र में ही शारीरिक और मानसिक परिपक्वता पा लेता है. समय से पूर्व ही अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत हो जाते हैं. इनमें द्वेष और ईर्ष्या की भावना भी हो सकती है. दूसरों से आगे निकल जाने की चाह भी बहुत रखते हैं. कई बार जातक बुरे प्रभावों के कारण निराशा में भी चला जा सकता है ऐसे में उसे इन स्थितियों से बचने का प्रयास करना चाहिए.
वे समय के मूल्य को समझते हैं और समय पर अपना काम पूरा करने की कोशिश करते हैं. ईमानदार और जिम्मेदारियों के प्रति वफादार होते हैं. लोगों को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकते हैं. जातक केवल नियमित कार्यों तक ही सीमित नहीं होता वह तेजी से सीखने वाले शिक्षार्थी के समान होता है. बुद्धिमानी से जीवन की कठिन परिस्थितियों से निपटते हैं. उनका बेचैन होना कभी-कभी उनके काम में विफलता ला सकता है. वे ईमानदार और कड़वे भी हैं जिसके कारण लोग उनके साथ मित्रता करने से पूर्व दो बार सोचते हैं. जातक के व्यक्तित्व में मिठास की कमी हो सकती है
इनका पारिवारिक जीवन शांत रह पाए परिवार के प्रति प्रेम और एकता की भावना रखने वाले हैं लेकिन परिवार से प्यार नहीं मिल पाएगा. माता और भाई बंधुओं से प्रेम में कमी ही प्राप्त होती है. परिवार के लोग आपको अधिक पसंद न करें जीवन साथी का दबाव भी आप पर अधिक रहेगा. साथी आप पर हावी होने की कोशिश कर सकता है. होता है, पर वैवाहिक सुख मिलता है और जीवन साथी आपको गलत चीजों से बचाने की भी कोशिश करता है. शायद इसी कारण उसका व्यवहार हावी होने जैसा लग सकता है. कहीं स्थानों पर दांपत्य जीवन में सुख की कमी भी देखी जाती है. संतान सुख में कमी हो सकती है. जातक अपने ससुराल की ओर से भी परेशान रह सकता है.
यह भचक्र का अठारहवाँ नक्षत्र है और बुध इसका स्वामी है. गुदा, जननेन्द्रियाँ, बृहदआंत्र, अंडाशय तथा गर्भ ज्येष्ठा नक्षत्र में आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है. गर्दन और धड़ का दाहिना भाग ज्येष्ठा नक्षत्र के क्षेत्र में आता है. ज्येष्ठा नक्षत्र को वात प्रधान नक्षत्र माना जाता है. इसके कारण इन्हें अफरा, पेट में गैस और गठिया जैसे रोग जल्द प्रभावित कर सकते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर बताए गए उक्त अंगों से संबंधित समस्याओं से होकर गुजरना पड़ता है.
इस नक्षत्र में जन्मा जातक छोटी आयु से ही कमाने लग जाता है. वह घर से दूर जाकर अपने प्रयासों द्वारा धनार्जन करता है. कार्यक्षेत्र में उसकी ईमानदारी के बल पर ही उसे आगे बढ़ने के अच्छे अवसर भी प्राप्त होते हैं. खेल कूद में निपुण होता है. जातक सुरक्षा से संबंधित कामों में बेहतर कर सकता है, सरकारी कर्मचारी एवं प्रबंधक, व्यवस्थापक के काम भी बेहतर तरह से करता है. संवाददाता, दूर दर्शन में काम कलाकार, वाचक, आभिनेता व्याख्यदाता, कथा वाचक रुप में बेहतर कर सकता है.
व्यापार संघ का एक सक्रिय अधिकारी हो सकता है. नेता, तंत्र और गुप्त विभाग में काम कर सकता है, सेना से जुड़े काम, आपदा प्रबंधन, दूर संचार के काम, अंतरिक्ष संचार प्रणाली से संबंधित कार्य चिकित्सक एवं सर्जन के कामों में भी हाथ आजमा सकता है. वे उत्कृष्ट डीलर और ठेकेदार साबित हो सकते हैं वे अचल संपत्ति व्यापार से भारी मुनाफा कमाते हैं. प्रसिद्ध बिल्डर्स बन सकते हैं. इस नक्षत्र के जातक राजसी प्रकृति के होते हैं और एक शानदार जीवन जीते हैं.
लग्न या चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक चतुर एवं बुद्धि से धनी होता है, इसके व्यवहार में धृष्टता हो सकती है. जातक की नाक ऊँची होती है, बाल कम होते हैं और भौंहें भी पतली होती हैं. गंभीर और धैर्य से काम करने वाला होता है. भाषण कला में योग्य हो सकता है.
लग्न या चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र के दूसरे चरण में हो तो जातक अधिक क्रोधी स्वभाव का होता है. आंखों में उत्तेजना झलक सकती है. बाल छितरे से रहते हैं और दांत कुछ टेड़े मेड़े से हो सकते हैं. ढीला शरीर और पतला पेट होता है. मुंह खुला सा रहता है. शरीर में नसें अधिक दिखाई देती हैं.
लग्न या चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो तो जातक का रंग कुछ सांवला होता है. नाक पर उसके रेखा सी खिंची दिखाई पड़ती है. शरीर पर मैल से युक्त हो सकता है. खुले बालों वाला और कम बुद्धि वाला होता है. बौद्धिकता अधिक प्रखर नहीं होती. दुर्व्यवहार करने वाला हो सकता है.
लग्न या चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक गोरे रंग का, चंचल और एक स्थान पर टिक नहीं रह पाता है. आंखों में हल्का भूरापन होता है. शरीर कुछ कमजोर हो सकता है. बुजुर्गों में प्रिय होता है. लापरवाह हो सकता है.
ज्येष्ठा नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 16:40 से 20:00 तक होता है. इसका अक्षर “नो” होता है.
ज्येष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 20:00 से 23:20 तक होता है. इसका अक्षर “या” होता है.
ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 23:20 से 26:40 तक होता है. इसका अक्षर “यी” होता है.
ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 26:40 से 30:00 तक होता है. इसका अक्षर “यू” होता है.
ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं
पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र: । ॐ इन्द्राय नम: ।
ज्येष्ठा नक्षत्र के बुरे प्रभावों से बचने के लिए जातक को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से भी कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है. इसके साथ ही माँ दुर्गा और काली माता की पूजा उपासना करने का फल भी शुभदायक बताया जाता है. चंद्रमा का ज्येष्ठा नक्षत्र में गोचर होने पर ज्येष्ठा नक्षत्र के बीज मंत्र "ऊँ धं " का जाप करना उत्तम फल देने वाला व नक्षत्र शांति के लिए उपयोग माना जाता है. जातक के लिए लाल, नीला, हरा, काला और आसमानी रंगों का उपयोग शुभदायक होता है.
नक्षत्र - ज्येष्ठा
राशि - वृश्चिक
वश्य - कीट
योनी - मृग
महावैर - श्वान
राशि स्वामी - मंगल
गण - राक्षस
नाडी़ - आदि
तत्व - जल
स्वभाव(संज्ञा) - तीक्ष्ण
नक्षत्र देवता - इन्द्र
पंचशला वेध - पुष्य